रामायण के महिला पात्र रामायण में स्त्री पात्र रामायण के महिला पात्र रामायण के पात्र सीता ramayan ki mahila paatra female characters in Ramayan ramayana female characters - रामायण संस्कृत साहित्य के इतिहास में उन विशिष्ट कृतियों में से एक है, जिसने परिवार और सामाजिक आदर्शों के माध्यम से जीवन में व्यापक दृष्टि को पेश किया है। भारत में वेद, पुराण और महाकाव्य भारतीय चिंतन और संस्कृति के केंद्र हैं।
रामायण के महिला पात्र
रामायण में स्त्री पात्र रामायण के महिला पात्र रामायण के पात्र सीता ramayan ki mahila paatra female characters in Ramayan ramayana female characters - रामायण संस्कृत साहित्य के इतिहास में उन विशिष्ट कृतियों में से एक है, जिसने परिवार और सामाजिक आदर्शों के माध्यम से जीवन में व्यापक दृष्टि को पेश किया है। भारत में वेद, पुराण और महाकाव्य भारतीय चिंतन और संस्कृति के केंद्र हैं। महाकाव्यों का समाज पर शक्तिशाली प्रभाव है क्योंकि इसमें क्योंकि इनमें दर्शन की एक सतत धारा प्रवाहित है । वेदों में विस्तार से , मनुष्य की चार सिद्धियों, अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष को प्राप्त करके सुख और आनंद प्राप्त करने का प्रयास के बारे में शिक्षा दी गयी है वहीँ रामायण में इन सिद्धियों को प्राप्त करने की विधि का वर्णन मिलता है । मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य अपने भीतर ईश्वर रुपी आत्मा को जानना है और यही भारतीय सभ्यता का प्रमुख उद्देश्य रहा है। एस वी पार्थसारथी की राय में, ‘आप रामायण को राम जिन्हें हम ईश्वर मानते हैं की स्तुति करने के लिए नहीं पढ़ते बल्कि हम इसे अपने जीवन को आदर्श बनाने के लिए पढ़ते हैं ।
भारत की पौराणिक कथाएं सदियों से जीवित हैं क्योंकि इनमे वो पात्र हैं जो जीवन के कुछ आदर्शों के प्रतीक हैं। ऐसे चरित्रों और आदर्शों को इन कहानियों में प्रस्तुत किया गया है ताकि वे व्यक्तियों के व्यक्तित्व के विकास के लिए और सामाजिक व्यवहार के लिए प्रेरित करें । रामायण महाकाव्य को पढ़ने का उद्देश्य है: कि कोई भी व्यक्ति इसके प्रति सचेत हुए बिना नए व्यक्तित्व का निर्माण कर सकता है। इस महाकाव्य से व्युत्पन्न कई उपअर्थ हैं।यह महाकाव्य मनुष्य के लिए मनोवैज्ञानिक विकास की एक प्रक्रिया के और अपने स्वयं के मूल की परिधि से आगे बढ़ने की शिक्षा देता है। यह महाकाव्य व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तरों पर उन संदर्भित आदर्शों के प्रति एक आवश्यक आंदोलन का सुझाव देता है।
वाल्मीकि ईसा पूर्व पहली सहस्राब्दी में कवि थे जिन्हें 'आदि कवि' (प्रथम कवि) माना जाता है। उन्होंने श्लोक (संस्कृत के दोहे) का आविष्कार किया जो संस्कृत कविता का एक परिभाषित कारक बन गया। गोस्वामी तुलसी दास ने रामायण को रामचरितमानस के रूप में अवधी भाषा में अनुवादित किया है।
रामायण |
रामायण में महिला पात्रों का एक अध्ययन न केवल उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं बल्कि सूक्ष्म विरोधाभासों और उन आदर्शों को उजागर करता है आदिकाल से मानव समाज का हिस्सा रहें हैं।रामायण की महिला पात्रों के चरित्रों का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों से करने पर उनके रिश्ते, घर और समाज में उनकी स्थिति, महिलाओं के प्रति पुरुषों का रवैया, उनकी शिक्षा, स्वतंत्रता और मानदंड के बारे में हमें जानकारियां प्राप्त होतीं हैं । यह महाकाव्य न केवल उन महिलाओं के पक्ष में खड़ा दिखता है जिन्होंने अपने पति के साथ-साथ परिवार के अन्य सभी सदस्यों का समर्थन किया। महिला पात्रों के विशिष्ट अध्ययन में ये अक्सर, यह देखा गया है कि जिन मूल्यों या आदर्शों नहीं छोड़ा जाना चाहिए, उन्हें बिना सोचे-समझे छोड़ दिया जाता है।
नारी ही वह मुख्य आधार है जिस पर समाज और संस्कृति की अवधारणा टिकी है। रामायण वह महाकाव्य है जिसमें भारतीय संस्कृति निहित है। यह महाकाव्य मानव प्रवृत्ति के पथ के रूप में कठिन से कठिन रास्ते को चित्रित करता है। इस महाकाव्य से समाज के सभी वर्गों से आकर्षित होते हैं। एक तरफ कौसल्या का चरित्र है जिसमे समर्पित पत्नी और उदार मातृत्व है, दूसरी ओर, कैकेयी जैसी पत्नी है, जिसे अपनी सुंदरता पर गर्व है। इस महाकाव्य में सीता की क्षीणता और क्षत्रियता सुमित्रा की गुणवत्ता की भावना प्रस्फुटित है। स्वार्थपरक विचारों से प्रेरित मंथरा है और आत्म उत्थान की प्रक्रिया में लगी सबरीको भी यह महाकाव्य बहुत उदारता से चित्रित करता है । जीवन-निर्माण की यह विविधता महाकाव्य की विभिन्न महिला पात्रों के विविध आयाम देती है।
रामायण महिला पात्रों को न केवल उनकी व्यक्तिगत विशेषताओं बल्कि सूक्ष्म विरोधाभासों और उन आदर्शों के साथ प्रस्तुत करता जिनके उन्होंने सबकुछ छोड़ दिया । आदर्श महिलाओं को मुख्य रूप से इसलिए चित्रित किया गया है ताकि उनके मॉडल भविष्य की पीढ़ियों द्वारा पालन किए जा सकें। महिला पात्रों को रामायण में विभिन्न दृष्टिकोणों से चित्रित किया गया है उनके व्यक्तिगत स्वभाव, उनके रिश्ते, घर और समाज में उनकी स्थिति, महिलाओं के प्रति पुरुषों का दृष्टिकोण, उनकी शिक्षा, स्वतंत्रता और अधिकार आदि का विस्तृत वर्णन हमें इस महाकाव्य में मिलता है।
सीता
सीता इस महाकाव्य का केंद्रीय चरित्र है, वह न केवल इसलिए कि वह शुरू से अंत तक दिखाई देती है, बल्कि इस तथ्य के कारण भी है कि वह कहानी में प्रमुख भूमिका निभाती है,और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महाकव्य की हर घटना में शामिल हैं । संस्कृत में सीता का अर्थ है खेत में हल से बानी घार जिसमे सीता राजा जनक को मिली थीं। जनक ने उसे अपनी बेटी के रूप में पाला और जब वह बड़ी हो गई, तो उन्होंने सीता की शादी के लिए शिव धनुष का स्वयम्बर रचा जिसे राम ने जीता और ऋषि वशिष्ठ ने राम और सीता के विवाह को संपन्न कराया। प्रारम्भ में वे बहुत खुशहाल वैवाहिक जीवन जीते हैं। सीता अपने पति के प्रति अत्यंत समर्पित थीं। जब राम को चौदह वर्षों का वनवास हुआ तो सीता ने राम के साथ वन जाने की इच्छा प्रकट की यद्यपि राम ने उन्हें यह कहते हुए मना करने की कोशिश की कि वह अपनी माताओं की देखभाल करें किन्तु सीता ने बड़ी ढृढ़ता से उन्हें एक पत्नी के कर्तव्य के बारे में समझा कर अपने साथ वन जाने के लिए मना लिया।सीता के गुण उन्हें पितृसत्तात्मक मानदंडों के रूप में विरासत में मिले थे इतनी आदर्श नारी होने के बाद भी वह किसी भी अन्य महिला की तरह संकट, दु: ख और निराशा के क्षणों में भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को छुपाती नहीं दिखतीं । उनके चरित्र से उस बुनियादी असुरक्षा का पता चलता है जिसमे महिलाएं हमेशा जीती हैं।
कौशल्या
राजा दशरथ की पहली पत्नी और राम की माता कौसल्या इस महाकाव्य की सबसे शांत और आदर्श चरित्र हैं । वह राजा दशरथ की सबसे बड़ी पत्नी है, और बहुत दयालु और बुद्धिमान भी । उनका अपने पति के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं है, लेकिन वह अपने बेटे राम से बहुत प्यार करती है। जब दशरथ कैकेयी और सुमित्रा से शादी करते हैं, तो कौशल्या बिना किसी ईर्ष्या के उन्हें खुशी से स्वीकार करती है। वह कैकेयीऔर सुमित्रा से कहती है कि तुम दोनों मेरी बहनों की तरह हो। 'अयोध्याकाण्ड' में, जब यह निर्णय लिया गया कि भगवान राम को अयोध्या के नए राजा के रूप में ताज पहनाया जाएगा।तब कौशल्या बहुत प्रसन्न होतीं हैं उसके बाद तो जैसे वो महाकाव्य में हमेशा दुखी और व्यथित ही रहीं हैं।
कैकेयी
कैकेयी इस महाकाव्य में एक महान योद्धा और दशरथ की दूसरी पत्नी के रूप में चित्रित है जिसके ऊपर अपनी दासी मंथरा का गहन प्रभाव है। कैकेयी ने श्री राम का राज्या अभिषेक नहीं होने दिया। उन्होंने ने राजा दशरथ से अपने वर मांग कर राम को वनवास में भेज दिया। उस अवधि के दौरान,राम ने बहुत सारे दानव राजाओं (असुरों) का नाश कर दिया । कैकेयी ने इस महाकाव्य को गति प्रदान की और वह सबसे बड़ी गाथा का कारण बन गई। उसने न केवल उस युग की बल्कि आने वाले युगों की घृणा सहने की ज़िम्मेदारी ली। जिसने भी रामायण को पढ़ा / सुना है, वह न केवल कैकेयी को घृणा करता है बल्कि उसे किसी हद तक पूरी कहानी का जिम्मेदार भी मानता है कैकेयी एक ऐसा चरित्र है जिसने नफरत का दर्द सहा, उसने पीढ़ी दर पीढ़ी के भविष्य को भी बदल दिया
राम को अपनी मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि स्थापित करने में केकैयी का प्रमुख योगदान है इस कारण राम सबसे पहले माताओं में उन्हें ही प्रणाम करते थे।
सुमित्रा
सुमित्रा इस महाकाव्य में एक बहुत ही उचित भूमिका निभाती है, राजा दशरथ की पत्नी एवं लक्ष्मण और शत्रुघ्न की माँ के रूप में वो अप्रितम हैं। तीनों रानियों के बीच सुमित्रा सबसे उच्च-स्तरीय व्यक्ति के रूप में दिखाई देती है, वह सभी घटनाओं में स्थिति को संभालने के व्यावहारिक तरीके के बारे में सोचती है। हालांकि वह महाकाव्य में कभी कभी ही दिखाई देती हैं लेकिन उनका मजबूत चरित्र है। जब लक्ष्मण राम के साथ जंगल में जाना चाहते हैं, तो वह लक्ष्मण से कहती है कि उन्हें किसी भी कीमत पर अपने बड़े भाई की सेवा करनी चाहिए। वह कहती है, दुनिया में सदाचार का पालन करने का नियम है जिसमे छोटे भाई को अपने बड़े भाई के नियंत्रणमें होना चाहिए। वह पितृसत्तात्मक मानदंडों का पालन करती है और किसी को भी असहज महसूस नहीं करती है। अपने बेटे को राम की सेवा करने की अनुमति देने में। वह खुद को अलग करने की भावना को व्यक्त करने के लिए अपने मन की भावनाओं को छुपा लेती हैं और इसे तथ्य के रूप में स्वीकार करती है। इसमें वह कैकेयी से अलग है जो अपने लिए और अपने पुत्र भरत के लिए असुरक्षा की भावना का अनुभव करती है।
शबरी
शबरी का मूल नाम श्रमणा था।अपने विवाह के अवसर पर बलि के लिए मूक जानवरों को बचाने के लिए उसने पाने गृह का त्याग कर दिया था। जानवरों को घर से भगाने के बाद शबरी खुद भी घर नहीं लौटीं। मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी को जगह मिली तथा वहीं उन्हें शिक्षा प्राप्त हुई। मतंग ऋषि शबरी के सेवा भाव तथा गुरु भक्ति से बहुत प्रसन्न थे। मतंग ऋषि अपना शरीर छोड़ने से पहले शबरी को आर्शीवाद दिए भगवान श्रीराम उनसे मिलने स्वयं आएंगे और तभी उनको मोक्ष प्राप्त होगा।श्रीराम व लक्ष्मण मतंग ऋषि के आश्रम पहुंचे। वहां आश्रम में वृद्धा शबरी भक्ति में लीन थी।जब शबरी को पता चला कि भगवान श्रीराम स्वयं उसके आश्रम आए हैं तो वह एकदम भाव विभोर हो उठी थी।
सरसिज लोचन बाहु बिसाला। जटा मुकुट सिर उर बनमाला।।
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।।
शबरी जल्दी से जंगली कंद-मूल और बेर लेकर आईं और अपने परमेश्वर को सादर अर्पित किए। अपने इष्ट की भक्ति की मदहोशी से ग्रसित शबरी ने बेरों को चख-चखकर श्रीराम व लक्ष्मण को भेंट करने शुरू कर दिए। श्रीराम शबरी की अगाध श्रद्धा व अनन्य भक्ति के वशीभूत होकर सहज भाव एवं प्रेम के साथ झूठे बेर अनवरत रूप से खाते रहे, लेकिन लक्ष्मण ने झूठे बेर खाने में संकोच किया। उसने नजर बचाते हुए वे झूठे बेर एक तरफ फेंक दिए। माना जाता है कि लक्ष्मण द्वारा फेंके गए यही झूठे बेर, बाद में जड़ी-बूटी बनकर उग आए। समय बीतने पर यही जड़ी-बूटी लक्ष्मण के लिए संजीवनी साबित हुई। महर्षि वाल्मीकी ने शबरी को सिद्धा कहकर पुकारा, क्योंकि अटूट प्रभु भक्ति करके उसने अनूठी आध्यात्मिक उपलब्धि हासिल की थी। यदि शबरी को हमारी भक्ति परम्परा का प्राचीनतम प्रतीक कहें तो कदापि गलत नहीं होगा।शबरी को उसकी योगाग्नि में लीन होने से पहले प्रभु राम ने शबरी को नवधाभक्ति के अनमोल वचन दिए ।
अहिल्या
अहल्या ऋषि गौतम की पत्नी थीं। वह बड़ी रूपवती थी। यहां तक कि, देवीय साम्राज्य के शासक इंद्र भी उसके रूप से प्रभावित हो गए। एक दिन जब वह ऋषि के दूर जाने पर ऋषि का रूप लेकर अहल्या से मिलने गया।अहल्या ने इंद्र को ऋषि की प्रतिकृति के बावजूद पहचान लिया । लेकिन घमंड एवं अपने सौंदर्य की प्रशंसा के प्रलोभन के आगे वह झुक गई। जब असली गौतम वापस लौट आये तो इंद्र को गौतम ने वहाँ से भागते देखा गौतम पूरी घटना को समझ गए उन्होंने अहल्या को शाप दिया ... “तुमने जो पाप किया है, उसके लिए मैं तुम्हारा त्याग करता हूँ । तुम अभी पत्थर की हो जाओ ।श्री राम तुम्हें एक दिन इस श्राप से मुक्त करेंगे। अहल्या का चरित्र मानवीय रिश्तों में विश्वासघातों एवं उनके घातक परिणामों और उनके प्रायश्चित को चित्रित करता है।
मंथरा
पद्म-पुराण में उल्लेख किया गया है कि राम को जंगल में भेजने और रावण की हत्या में सहायता करने के लिए देवताओं द्वारा प्रतिपादित मन्थरा एक आकाशीय अप्सरा थी। वाल्मीकि रामायण में मंत्र के चरित्र को एक धूर्त महिला के रूप में चित्रित किया है जिसका मानना था कि दशरथ ने कैकेयी के साथ अन्याय किया है और कैकेयी को अपने और भरत के हितों की रक्षा के लिए लड़ना चाहिए । वह भाइयों और सह-पत्नियों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश करती है। वह कहती है कि कैकेयी को राम के राजा होने पर वैसा ही सम्मान नहीं मिलेगा और वह और उनका बेटे को कौशल्या और राम की सेवा करनी होगी। मंथरा के बारे में पाठकों में जो छाप छोड़ी गई है, वह एक चालाक बूढ़ी औरत की है और उनमें जो प्रतिक्रिया है, वह निंदा के रूप में है। उसके चरित्र के बारे में एक और परिप्रेक्ष्य दिया गया है। कई आलोचक मंथरा से सहानुभूतिपूर्ण विचार रखते हैं उनके अनुसार मंथरा एक ऐसी महिला थी, जिसमे राजनीतिक प्रतिभा और सूझबूझ थी।
उर्मिला
उर्मिला, सीता की बहन है, जिसका विवाह लक्ष्मण से हुआ था। उन्हें एक समान रूप से सुंदर और गुणी महिला के रूप में जाना जाता है। लेकिन पूरे महाकाव्य में उसके चरित्र के बहुत कम संदर्भ है। कुछ आलोचक मानते हैं कि उर्मिला द्वारा किया गया बलिदान भी उतना ही महान है जितना सीता का । यदि सीता अपने पति से अलग हो गईं, तो उर्मिला को लंबी अवधि तक वैसा ही अलगाव सहना पड़ा। इस महाकाव्य में उसके बलिदान के लिए कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, इससे महिलाओं की भूमिका के प्रति समाज की लापरवाही का पता चलता है। उर्मिला जैसे कुछ सशक्त पात्रों के हाशिए पर होने प्रश्नचिन्ह जरूर हैं । महाकाव्य में उर्मिला के चरित्र को कवि द्वारा विकसित नहीं किया गया ― ऐसा लगता है जैसे वाल्मीकि ने भविष्य के लेखकों को जानबूझकर ऐसे चरित्रों को विकसित करने के लिए छोड़ दिया है।
तारा
तारा किष्किंधा के वानर राजा वाली की पत्नी है। वह बहुत ही समझदार है और बहुत ही महत्वपूर्ण समय में बाली को अच्छी सलाह प्रदान करती है। वह जानती है कि सुग्रीव राम के साथ गठबंधनकर चुके हैं और वह राम की शक्तियों से भी भलीभाँति परिचित है। जब सुग्रीव अपने भाई बाली को चुनौती देता है और बाली की ताकत को बर्दाश्त करने में असमर्थ सुग्रीव भाग जाता है । जब वह बाली को रात में दूसरी बार युद्ध के लिए चुनौती देता है,तो तारा को कुछ साजिश लगती है वह बाली को सावधान करती है। उसका अंतर्ज्ञान उसे सुग्रीव के खिलाफ द्वंद्व में भाग लेने की गवाही नहीं देता है।
मंदोदरी
मंदोदरी मयासुर, जो कि असुरों के राजा था और अप्सरा हेमा की पुत्री थी । मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था एवं मंदोदरी के पुत्र थे : मेघनाथ (इंद्रजीत), और अक्षयकुमार। कुछ रामायण रूपांतरों के अनुसार, मंदोदरी सीता की मां है,जन्म के बाद अशुभ की आशंका से जिसे रावण ने खेत में दबा दिया था। अपने पति के दोषों के बावजूद, मंदोदरी उससे प्यार करती है और उसे धार्मिकता के मार्ग पर चलने की सलाह देती है। मंदोदरी बार-बार रावण को सीता को राम को लौटाने की सलाह देती है, लेकिन उसकी रावण ने कभी नहीं मानी। रावण के प्रति उसके प्रेम और निष्ठा की रामायण में प्रशंसा की गई है।
त्रिजटा
त्रिजटा विभीषण की बेटी थी और महाकाव्य में उसने एक सकारत्मक स्त्री की भूमिका निभायी है। वह राम के आगमन के बारे में सीता में आशा जगाने की कोशिश करती है। उसने सपने में रावण को मृत्यु की दहलीज पर पाया। भयावह राक्षसियों के बीच त्रिजटा विशिष्ट मानवीय गुणों के साथ एक विपरीत चरित्र प्रस्तुत करती है। वह सीता को निराशा में सांत्वना देती है और उसे भविष्यवाणी की याद दिलाती है कि वह राम के साथ सिंहासन पर चढ़ेगी। कवि कहता है कि सीता के प्रति उसके स्नेह में कोई खोट नहीं है।
शूर्पणखा
शूपर्णखा रावण की बहन, और एक शक्तिशाली राक्षसी है। वह राम को बहकाने और सीता को मारने का प्रयास करती है, लेकिन लक्षमण उस पर हमला कर उसकी नाक काट देते हैं। वह राम के खिलाफ राक्षसी सेना और रावण को भड़काती है। ऐसा कहा जाता है कि वाल्मीकि ने राम और रावण के बीच युद्ध के लिए उकसाने में शूपर्णखा की भूमिका के बारे में विस्तार से नहीं बताया है।कुछ लेखकों ने कहा कि युद्ध में रावण की मृत्यु के बाद लंका के नए राजा के रूप विभीषण के साथ लंका में शूपर्णखा रही और कुछ साल बाद वह अपनी सौतेली बहन कुम्बिनी के साथ समुद्र में मृत पाई गई।
यह परम सत्य है कि रामकथा भारत की आदि कथा है, जिसे भारतीय संस्कृति का रूपक कह दिया जाये तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । रामकथा के सभी पात्र भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को महिमा प्रदान करते दिखाई देते हैं । विशेष रूप से नारी पात्र अपनी विशिष्टता लिए हुए हैं । उनमें भारतीय मूल्यों के प्रति असीम आस्था है, त्याग की प्रतिमूर्तियाँ हैं, आदर्श पतिव्रता हैं, विवेकवान् समर्पणशीला हैं, कर्तव्यपरायण व युग-धर्म की रक्षिका भी हैं । वर्तमान समय में प्रासंगिकता- वस्तुतः रामकाव्य परम्परा में रचे गये साहित्य का उद्देश्य जीवन मूल्यों का निर्माण करना, भारतीय सांस्कृतिक आदर्शों की मूल्यवत्ता बनाये रखना, सकारात्मक चिंतन प्रदान करना व राष्ट्रीय-चरित्र का रेखांकन करना रहा है ।रामायण में वर्णित नारी-पात्र भी भारतीयता के आदर्श से ओत-प्रोत हैं, जिनसे न केवल चारित्रिक शिक्षा मिलती है, वरन् हमारे जीवन को रसमय बनाने की क्षमता भी इन पात्रों में हैं।
- डॉ सुशील शर्मा
COMMENTS