एक दिन की बादशाहत Ek Din Ki Badshahat Class 5 Hindi Story

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एक दिन की बादशाहत 
Ek Din Ki Badshahat Class 5 Hindi Story


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एक दिन की बादशाहत Summary Class 5 Hindi सारांश 

एक दिन की बादशाहत पाठ या कहानी में दो बच्चे आरिफ़ और सलीम की एक दिन की बादशाहत का ख़ूबसूरत और मज़ेदार चित्रण किया गया है | 

एक दिन की बादशाहत
एक दिन की बादशाहत
कहानी के अनुसार, आरिफ़ और सलीम दोनों बच्चे अपने घरवालों के हर वक़्त किसी न किसी बात पर टोकते रहने से परेशान रहते थे | 'ऐसा करो, वैसा मत करो’ , इस तरह की बातें हमेशा उनके कानों में गूँजते रहते थे | बच्चे अगर बाहर चले गए तो अम्मी पूछ बैठतीं कि बाहर क्यों हो और घर के अंदर हैं, तो दादी बोल पड़ती है बाहर जाओ, यहाँ शोर मत मचाओ | उन्हें हर वक़्त पाबंदी में रहने को मजबूर रहना पड़ता था | बच्चों की अपनी मर्ज़ी कभी नहीं चलती थी | 

एक दिन बच्चों को एक तरक़ीब सूझा | वे तुरन्त अपने अब्बा के पास गए और उनके सामने दरख़्वास्त पेश किए --- 

"एक दिन के लिए उन्हें बड़ों के सारे अधिकार दे दिए जाएं और सब बड़े छोटे बन जाएँ |"

अब्बा भी भला उस वक़्त कैसे मूड में थे कि बच्चों की बात मान गए और एकदिन के लिए हर किस्म के अधिकार उन दोनों को देने की बात कह दी | और अगले दिन सुबह से वह बात लागू भी हो गई | 

आरिफ़ ने अम्मी को झिंझोड़ डाला, “अम्मी, जल्दी उठिए, नाश्ता तैयार कीजिए !” अम्मी को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उस दिन के लिए उनके सारे अधिकार छीने जा चुके थे | अब दादी की बारी थी | जैसे ही उन्होंने बादाम का हरीरा पीना शुरू किया, आरिफ ने उन्हें रोका --- “दादी ! कितना हरीरा पिएँगी आप… पेट फट जाएगा !” इसी प्रकार आरिफ ने खानसामे को आदेश देकर अपने सामने अंडे और मक्खन रखवाया और घर के बाकी सदस्यों को दलिया और दूध-बिस्कुट देने को कहा | आपा भी बेबस नज़र आ रही थी उस दिन | 

आरिफ़ और सलीम यहीं नहीं रुके | खाने की मेज पर सलीम ने अम्मी को टोका, “अम्मी, जरा अपने दाँत देखिए, पान खाने से कितने गंदे हो रहे हैं |” 
अम्मी ने सफाई दी कि वह अपना दाँत माँज चुकी हैं, सलीम ने जबरदस्ती कंधा पकड़कर उन्हें उठा दिया और गुसलखाने में भेज दिया | अब अब्बा की बारी थी | सलीम अब्बा की तरफ़ मुड़ा --- " कल कपड़े पहने थे और आज इतने मैले कर डाले !” अब्बा को हँसी-आ गई क्योंकि दोनों बच्चे बड़ों की सही नकल उतार रहे थे | अब्बा अपने दोस्तों के साथ बैठकर ग़ज़ल गुनगुना ही रहे थे कि आरिफ़ चिल्लाने लगा, “अब्बा, जल्दी ऑफिस जाइए |” दस बज गए हैं | इस बार अब्बा गुस्सा होते-होते शांत हो गए | 

खानसामा रज़िया (बच्चों की अम्मी) से यह पूछने के लिए आया कि खाने में क्या बनेगा, अम्मी को याद नहीं था कि उस दिन के लिए उन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं करना है और उन्होंने खानसामे को आदेश देना शुरू कर दिया, “आलू, गोश्त, कबाब, मिर्चों का सालन……” | सलीम तुरंत आगे बढ़ आया और अम्मी की नकल उतारते हुए बोला, आज ये चीजें नहीं पकेंगी ! आज गुलाब जामुन, गाजर का हलवा और मीठे चावल पकाओ !”

दादी किसी से तू-तू मैं-मैं किए जा रही थीं | “ओफ्फो ! दादी तो शोर के मारे दिमाग पिघलाए दे रही हैं !” आरिफ ने दादी की तरह दोनों हाथों में सिर थामकर कहा | दादी को बहुत गुस्सा तो आया पर वो अब्बा के समझाने पर खून का घूँट पीकर रह गईं | 
कॉलेज का वक्त हो जाने पर भाई जान ने कहा --- 

“अम्मी, शाम को देर से आऊँगा, दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना है |”

“खबरदार !”--- आरिफ ने आँखें निकालकर उन्हें धमकाया !” कोई जरूरत नहीं फ़िल्म देखने की ! इम्तिहान करीब है |” 

इतने में बच्चों की नज़र आपा पर पड़ गई | सलीम उनका गौर से मुआयना करके बोला --- 

“इतनी भारी साड़ी क्यों पहनी ? शाम तक गारत हो आएगी |… आज वह सफेद वॉयल की साड़ी पहनना |” 

“हमारे कॉलेज में आज फंक्शन है |” --- आपा ने कहा | 

“हुआ करे … मैं क्या कह रहा हूं … सुना नहीं …?” 

अपनी इतनी अच्छी नकल देखकर आपा शर्मिंदा हो गईं | इस तरह आदेश देते-देते एक दिन की बादशाहत ख़त्म हो गई | दूसरी सुबह हो गई | सलीम की आँख खुली तो आपा नाश्ते की मेज सजाए उन दोनों के उठने का इंतज़ार कर रही थी | अम्मी ने खानसामे को हर खाने के साथ एक मीठी चीज़ बनाने का आदेश दे दिया | अब्बा का भी रुख अब बदल गया था | 

मतलब घर के बड़ों को एहसास हो गया था कि हुक्म देना या फ़रमान सुनाना आसान है | मगर उसका अपनी ख़्वाहिशों को मार कर पालन करना उतना ही ज़्यादा मुश्किल...|| 

एक दिन की बादशाहत कहानी का उद्देश्य 

बच्चों पर अत्यधिक पाबंदियाँ न लगाकर , उन्हें उनके कर्तव्यों के प्रति सचेत या जागरूक करना चाहिए | अधिकारों की माँग के साथ-साथ कर्तव्यों का निर्वाह जरूरी है | 

एक दिन की बादशाहत प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 अब्बा ने क्या सोचकर आरिफ़ की बात मान ली ?

उत्तर- स्वाभाविक रूप से घर के बड़े बच्चों पर अपना हुक़्म जताते हैं | जब आरिफ़ ने अपने अब्बा को कहा कि एक दिन के लिए उन्हें बड़ों के सारे अधिकार दे दिए जाएं और सब बड़े छोटे बन जाएँ | तो अब्बा ने बच्चों की बात मान ली | वे सोचे होंगे, चलो बच्चे भी एक दिन की बादशाहत से खुश हो जाएंगे | इसलिए उन्होंने आरिफ़ की बात मान ली | 

प्रश्न-2 कहानी में उस दिन बच्चों को सारे बड़ों वाले काम करने पड़े थे | ऐसे में कौन एक दिन का असली ‘बादशाह’ बन गया था ?

उत्तर-  कहानी में आरिफ़ और सलीम एक दिन का असली बादशाह बन गए थे | सारे बड़ों वाले काम इन दोनों ने किया था और घर के बड़ों पर अपना हुक्म जता रहे थे | 

प्रश्न-3 ‘बादशाहत’ क्या होती है ? चर्चा करो | 

उत्तर-  "बादशाहत" शब्द "बादशाह" शब्द से बना है | बादशाह से आशय उस शासक या राजा से है, जो किसी एक खास इलाके पर हुकूमत करता था | सारी प्रजा पर राज करता था | बादशाह के इसी अधिकार को ‘बादशाहत’ कहते हैं | 

प्रश्न-4 तुम्हारे विचार से इस कहानी का नाम ‘एक दिन की बादशाहत’ क्यों रखा गया है ? तुम भी अपने मन से सोचकर कहानी को कोई शीर्षक दो | 

उत्तर- हमारे विचार से इस कहानी का नाम 'एक दिन की बादशाहत' इसलिए रखा गया है, क्योंकि घर में आरिफ़ और सलीम दोनों छोटे बच्चे थे | इन पर घर के सभी बड़े हुक्म चलाते थे | एकदिन आरिफ़ और सलीम को अब्बा की इजाजत से घर के सभी बड़ों पर हुकुम चलाने का अधिकार मिला गया, जिसके कारण उन्होंने सारे बड़ों को उनकी गलतियों का एहसास दिलाया | फलस्वरूप, इस कहानी का नाम “एक दिन की बादशाहत” पड़ा | 

इस कहानी का अन्य शीर्षक यह हो सकता है --- "बच्चों की हुकूमत बड़ों पर"

प्रश्न-5 वह एक दिन बहुत अनोखा था जब बच्चों को बड़ों के अधिकार मिल गए थे | वह दिन बीत जाने के बाद इन्होंने क्या सोचा होगा– 
• आरिफ़ ने
• अम्मा ने
• दादी ने 

उत्तर- वाकई, वह एक दिन बहुत अनोखा था, जब बच्चों को बड़ों के अधिकार मिल गए थे | वह दिन बीत जाने के बाद इन लोगों ने यह सोचा होगा - 

• आरिफ़ ने – आरिफ़ को घर के बड़ों पर हुकूमत  जता के मजा आ रहा था | वह सोचा होगा कि हमेशा ऐसा दिन रहे | 

• अम्मा ने – अम्मा को इस बात का एहसास हो गया होगा कि बच्चों पर कुछ ज़्यादा ही ज्यादती हो रहा था | इसलिए उसने सोचा होगा चलो आज बच्चों की बात मानकर उन्हें खुशी दे दी |दुबारा उनकी ख़ुशियों का भी ख़्याल रखने की सोची होगी | 

• दादी ने – दादी को भी एहसास हुआ होगा कि बच्चों की भावनाओं को दरकिनार करके वह ठीक नहीं करती थी | बच्चों को खुश देखकर वह भी बच्चों की ख़ुशियों का ख़्याल रखने की बात सोची  होगी | 


एक दिन की बादशाहत शब्दार्थ

• किस्म - प्रकार 
• मुसीबत - समस्या, तकलीफ़ 
• पाबंदी - रोक 
• तकरार - झगड़ा, बहस 
• तरकीबें - उपाय 
• ख़िदमत - सेवा 
• दरखास्त - अर्जी, आवेदन 
• ऊधम मचाना - शोर मचाना
• इकरार - मान लेना, क़बूल करना 
• झापड़ रसीद करना - थप्पड़ मारना
• बेबस - लाचार
• गुसलखाना - स्नानघर 
• गत - दशा
• फौरन - तुरंत, शीघ्र 
• तुनककर - गुस्सा में 
• खून का चूंट पीकर रह जाना - गुस्सा दबा लेना
• इम्तिहान - परीक्षा
• लपके - आगे की तरफ़ बढ़े 
• निहायत - बिल्कुल, निश्चित रूप से 
• हुक्म - आदेश
• हर्ज - नुक़सान, घाटा 


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