हिन्दी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नयी दृष्टि हिन्दी जाति का साहित्य सिर्फ हिन्दी भाषी क्षेत्र में नहीं बना, बल्कि बाहर भी इसका दायरा बहुत विस्तृत है। दक्षिण भारत का हिन्दी लेखन साहित्य के इतिहास के पुनर्पाठ में नए आयाम जोड़ सकता है। हिन्दी साहित्य का इतिहास हिन्दी -उर्दू की साझी विरासत का भी इतिहास है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नयी दृष्टि
नई दिल्ली : आज जिस तेजी से दुनिया बदल रही रही है उतनी ही तेजी से साहित्यक विधाओं की प्रकृति और सरंचना भी। इसी विषय के मद्देनजर वाणी प्रकाशन और डॉ. प्रभाकर सिंह बी एच यू के संयोजन में ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नयी दृष्टि’ व्याखान माला का आयोजन आज से 22 जून तक वाणी डिजिटल के तहत सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर लेके आया है. 15 दिन 15 व्याखानों में देश के शिलांग से लेके राजस्थान तक और पंजाब से लेके केरला तक के हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ विचारक, बौद्धिक प्राध्यापक रोज शाम 5 से 6 बजे वाणी प्रकाशन के सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर उपस्थित रहेंगे। यह व्याखान माला साहित्य के इतिहास को जानने ,परखने की एक सार्थक और अति आवश्यक पहल है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास:अध्ययन की नई दृष्टि विषयक 15 व्याख्यानों की श्रृंखला का पहला व्याख्यान लेखक
विद्वान, चिन्तक व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,वाराणसी के प्रो. सदानन्द शाही ने दिया।उनका वक्तव्य आदिकाल पर केंद्रित था। उन्होंने कहा की आदिकालीन साहित्य बहुरंगी और विविध वर्णी है। भारत के मन को समझने की यह विविधता भरी दृष्टि ही आदिकाल को महत्व प्रदान करती है। आदिकाल में रासो साहित्य के साथ सिद्ध, जैन और नाथ साहित्य का आज के समय में अधिक महत्व है। उस युग में संस्कृत के बरअक्स जनपदीय चेतना और जनपदीय भाषा को प्रतिष्ठित करने का काम गोरखनाथ करते हैं। आचार्य शुक्ल की इतिहास दृष्टि ने शिक्षित जन को लेकर आदिकालीन साहित्य की जो विवेचना की उसके बरक्स आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राहुल सांकृत्यायन जैसे इतिहासकारों की इतिहास दृष्टि से हमें आदिकालीन साहित्य का पुनर मूल्यांकन करना होगा। आदिकाल में अमीर खुसरो,विद्यापति और मुल्ला दाऊद का साहित्य हिन्दी की जातीय चेतना का साहित्य है। आदिकाल मैं रचा गया साहित्य ही हिंदी साहित्य के इतिहास की रचनात्मक पृष्ठभूमि है।
वाणी प्रकाशन के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी ने इस व्याखान माला के उदेश्य पर कहा “ हम जानते हैं कि कोई भी काल हो चाहे वो ऐतिहासिक हो,तो उस ऐतिहासिक काल का अगर हम इतिहास और साहित्य के बीच विभाजन करें तो वह काल हमें कुछ नया देके जाता है ,नई चीजें,परिस्थितियां और ज्ञान. कोरोना काल भी एक ऐसा ही काल है जिसके बीच हम सब डिजिटल हो रहे हैं ,यह डिजिटल काल हमारे शिक्षा के प्रसार के माध्यमों को एक नया आयाम दे रहा है. हिन्दी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नयी दृष्टि’ व्याखान माला में अभी तक जो व्याखान हुए हैं वे बड़े ज्ञानपूर्ण और नए तथ्यों की और ध्यान केन्द्रित करते हैं ”
बी एच यू के डॉ. प्रभाकर सिंह ने अपनी रखते हुई कहा “वाणी प्रकाशन समूह की ओर से- हिंदी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नई दृष्टि 15 दिन 15 व्याख्यान- की सीरीज में हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा और हिंदी साहित्य में नई इतिहास दृष्टि की प्रस्तावना के साथ वैचारिक वक्तव्य हो रहे हैं। आदिकाल पर सदानंद शाही ने और भक्ति आंदोलन और भक्ति काव्य के बहाने आशीष त्रिपाठी ने साहित्य के इतिहास को देखने की कई नई वैचारिक दृष्टियों का प्रस्ताव किया जैसे की अब साहित्य की धाराओं का इतिहास ही लिखा जा सकता है । सही है कि हिंदी साहित्य के इतिहास को आचार्य शुक्ल के ढांचे से बाहर निकलना पड़ेगा विशेष रुप से आदिकाल और भक्ति काल में जो विभिन्न काव्य धाराएं हैं जिनका विकास लगभग 1000 सालों का है उनका मुकम्मल इतिहास लिखा जाना चाहिए”।
हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों की इतिहास दृष्टि में आदिकाल और मध्यकाल के मूल्यांकन में बहुत कुछ ऐसा छूट गया जिसको इतिहास लेखन के नव्य-इतिहासदृष्टियों के आलोक में विवेचित किया जाना चाहिए। हिन्दी साहित्य के इतिहास को समझने की मुकम्मल दृष्टि तभी बनेगी जब हम इसके लिए व्यापक परिप्रेक्ष्य लेकर चलते हैं। हिन्दी जाति का साहित्य सिर्फ हिन्दी भाषी क्षेत्र में नहीं बना, बल्कि बाहर भी इसका दायरा बहुत विस्तृत है। दक्षिण भारत का हिन्दी लेखन साहित्य के इतिहास के पुनर्पाठ में नए आयाम जोड़ सकता है। हिन्दी साहित्य का इतिहास हिन्दी -उर्दू की साझी विरासत का भी इतिहास है। इन्हीं विचारों के साथ वाणी प्रकाशन ग्रुप और डॉ प्रभाकर सिंह द्वारा यह व्याख्यान माला प्रयोजित की गयी है । आप सभी व्याख्यान निःशुल्क वाणी प्रकाशन ग्रुप के फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पेज पर सुन और देख सकते हैं। यह सभी अमूल्य वक्तव्य वाणी प्रकाशन ग्रुप के यू ट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध होंगे।
कार्यक्रम की रुपरेखा
दिनांक - 11 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : आधुनिकता और हिन्दी नवजागरण
शंभूनाथ,
भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता
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दिनांक - 12 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : खड़ी बोली कविता की ज़मीन और द्विवेदी युग
प्रभाकर सिंह,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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दिनांक - 13 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : छायावाद : पुनर्मूल्यांकन
गोपेश्वर सिंह,
दिल्ली विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली
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दिनांक – 14 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
प्रगतिशील हिन्दी कविता : व्याप्ति और विस्तार
भरत प्रसाद,
पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय,शिलॉन्ग
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दिनांक – 15 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : प्रयोगवाद : विचार और विश्लेषण
मृत्युन जय,
अम्बेडकर विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली
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दिनांक – 16 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : नयी कविता : एक पुनर्विचार
सर्वेश सिंह, बाबा भीमराव अम्बेडकर
केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ
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दिनांक – 17 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : समकालीन हिन्दी कविता : अध्ययन की समस्याएँ
जितेन्द्र श्रीवास्तव,
इग्नू , नयी दिल्ली
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दिनांक – 18 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : हिन्दी आलोचना : विचार और विमर्श
राजकुमार, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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दिनांक – 19 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : हिन्दी कहानी के प्रस्थान बिन्दु
नीरज खरे , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
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दिनांक – 20 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : हिन्दी उपन्यास : संरचना और विकास
सत्यकाम सत्यकाम, इग्नू, नयी दिल्ली
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दिनांक – 21 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : दक्षिण भारत का समकालीन हिन्दी लेखन
प्रमोद कोवप्रत, कालिकट विश्वविद्यालय, केरल
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दिनांक – 22 जून 2020 | समय - शाम 5:00 से 6:00 बजे
विषय : हिन्दी पत्रकारिता के वैचारिक पहलू
अविनाश कुमार सिंह,
विमेंस कॉलेज, जमशेदपुर
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