Mata Ka Anchal माता का आँचल

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Mata Ka Anchal माता का आँचल


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माता का आँचल पाठ का सारांश 

माता का आँचल, शिवपूजन सहाय द्वारा लिखा गया है, जिसमें लेखक ने अपने माता-पिता के साथ बचपन के आत्मीय लगाव को ख़ूबसूरत तरीके से व्यक्त किया है | इस पाठ में ग्रामीण संस्कृति का अद्भुत चित्रण है | साथ ही साथ ग्राम्य लोकोक्तियों का बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है | जैसे - 

"जहाँ लड़कों का संग, तहाँ बाजे मृदंग, 
 जहाँ बुड्ढों का संग, तहाँ खरचे का तंग |"

ऐसे और भी कई लोकोक्तियाँ इस पाठ में मौजूद हैं | लेखक का बचपन का नाम 'तारकेश्वरनाथ' होता है, जिसे सब घर में या यूँ कहें खास करके उनके पिताजी प्यार से 'भोलानाथ' कहके संबोधित किया करते थे | लेखक भी अपने पिता को 'बाबू जी' और माता को 'मइयाँ' कहके पुकारा करते थे | 

बचपन में लेखक ज्यादातर वक़्त अपने बाबू जी के सानिध्य में गुजारा करते थे | वे अपने पिता के साथ ही सोते, सुबह जल्दी उठते और पिता जी के हाथों से स्नान करने का सुख भी प्राप्त करते थे | जब लेखक के पिताजी रामायण का पाठ करते, तब वे उनके बगल में बैठकर आईने में अपना मुँह निहारा करते थे | पिता की नज़र जब लेखक पर पड़ती तो वे लजाकर आइना नीचे कर देते थे | इस बात पर लेखक के पिताजी मुस्कुरा देते थे | लेखक अपने माथे पर तिलक लगवाकर खुश हो जाते थे | पूजा के बाद पिता जी उसे कंधे पर बिठाकर गंगा में मछलियों को दाना खिलाने के लिए ले जाते थे और रामनाम लिखी पर्चियों में लिपटीं आटे की गोलियाँ गंगा में डालते थे | लौटते हुए उसे रास्ते में पड़ने वाले पेड़ों की डालों पर झुलाते |

घर आकर जब वे उसे अपने साथ खाना खिलाते, तो माँ को कौर छोटे लगते थे | लेखक की माँ जब पक्षियों के
माता का आँचल
माता का आँचल
नाम के निवाले ‘कौर’ बनाकर उनके उड़ने का डर बतातीं, तो लेखक बड़े चाव से उस निवाले को अपने मुँह में ले लेते थे | फिर लेखक की माँ अचानक उसे पकड़ के अपने आगोश में भर लेती थीं और उसके सिरपर कड़वा तेल (सरसों तेल) डाल देती थीं | लेखक रोने लगते तो उसके पिता जी लेखक की माँ पर गुस्सा हो जाते | रोने के बावजूद भी माँ बालों में तेल डाल कंघी कर देतीं थीं | कुरता-टोपी पहनाकर चोटी गूँथकर फूलदार लट्टू लगा देती थीं | लेखक रोते-रोते बाबूजी की गोद में बाहर आते | बाहर आते ही वे बालकों के झुंड के साथ मौज-मस्ती में डूब जाते थे | वे चबूतरे पर बैठकर तमाशे और नाटक किया करते थे | मिठाइयों की दुकान लगाया करते थे | घरौंदे के खेल में खाने वालों की पंक्ति में आखिरी में चुपके से बैठ जाने पर जब लोगों को खाने से पहले ही उठा दिया जाता, तो वे पूछते कि भोजन फिर कब मिलेगा |

लेखक से उनके पिता जी का बेहद लगाव था | वे कभी उसके हाथों का चुम लेते, तो कभी दाढ़ी-मूँछ गड़ाकर मस्ती करते | कुश्ती खेलते और बार-बार हार जाते थे | लेखक अपने दोस्तों के साथ आस-पास के छोटे-मोटे सामान को जुटाकर इतनी रुचि से खेलते कि उन खेलों को देखकर सभी खुश हो जाते थे | 

एक बार रास्ते में आते हुए लड़कों की टोली ने मूसन तिवारी को "बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा" कहकर चिढ़ा दिया | मूसन तिवारी ने उनको खूब खदेड़ा | जब वे लोग भाग गए तो मूसन तिवारी पाठशाला पहुँच गए | अध्यापक ने लेखक की खूब पिटाई की | यह सुनकर पिताजी पाठशाला दौड़े-दौड़े आए | अध्यापक से विनती कर पिताजी उन्हें घर ले आए | फिर वे रोना-धोना भुलकर अपने मित्र मंडली के साथ हो गए और खेतों में चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश करने लगे |चिड़ियों के उड़ जाने पर जब एक टीले पर आगे बढ़कर चूहे के बिल में उसने आस-पास का भरा पानी डाला, तो उसमें से एक साँप निकल आया | डर के मारे लुढ़ककर गिरते-पड़ते हुए लेखक लहूलुहान स्थिति में जब घर पहुँचा, तो सामने पिता को बैठकर हुक्के गुड़गुडाते हुए देखा | पिता के साथ सदा अधिक समय बिताने के बाद भी उसे अंदर जाकर माँ से चिपटने में सुरक्षा महसूस हुई | माँ ने घबराते हुए और चिंतित अवस्था में आँचल से उसकी धूल साफ की और हल्दी लगाई | 

बेशक, लेखक को तब माँ की ममता, पिता के प्यार-दुलार से ज्यादा मजबूत और प्रगाढ़ लगी | शायद उस वक़्त माँ का आँचल लेखक के लिए किसी महफ़ूज आशियाने से कम न था...|| 


माता का आँचल प्रश्न उत्तर 


प्र.१ प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है | आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?

उत्तर- नि:सन्देह, माँ की ममता का कोई मोल नहीं होता|स्वाभाविक रूप से जब बच्चे पर विपदा या दुख का पहाड़ टूटता है तो वे सर्वप्रथम अपनी माँ के छाती से जा लिपटते हैं | मानो माँ के आँचल के सिवा कोई दूसरी सुरक्षित जगह न हो | प्रस्तुत पाठ में भी लेखक का सबसे ज्यादा और प्रिय जुड़ाव उसके पिता जी से था | परन्तु, जब वह लहूलुहान होकर रोता हुआ घर पहुँचा तो अपनी माँ से जाकर लिपट गया और खुद को माँ के आँचल में सुरक्षित महसूस करने लगा | 


प्र.२.आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है ?

उत्तर- बच्चे स्वाभाविक तौर पर हठी प्रवृत्ति के होते हैं |इसलिए पल में हंसना और पल में छोटी-छोटी बातों पर सिसकियाँ लेकर रोना उनकी आदतों में शामिल होता है | लेकिन जब वे अपने हमउम्र साथियों को खेलते देखते हैं, तो वे भी खेल में शामिल होकर पिछली तमाम बातों को भूल जाते हैं | भोलानाथ भी अपने मित्र मंडली के साथ खेलना और मजे करना पंसद करता है | इसलिए वह रोना भूलकर अपने दोस्तों के साथ खेलने में मग्न हो जाता है | उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है | 


प्र.३. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों ?

उत्तर- (क) - लेखक का अपने पिता के साथ कुश्ती लड़ना और पिता के द्वारा शिथिल होकर बच्चे के बल को बढ़ावा देना | पिता का बेटे के हाथों को चुम लेना, तो कभी दाढ़ी-मूँछ गड़ाकर मस्ती करना | बेहद रोचक और आत्मीय प्रसंग है | 

(ख) - जब लेखक के पिताजी रामायण का पाठ करते,तब वे उनके बगल में बैठकर आईने में अपना मुँह निहारा करते थे | पिता की नज़र जब लेखक पर पड़ती तो वे लजाकर आइना नीचे कर देते थे | इस बात पर लेखक के पिताजी मुस्कुरा देते थे | यह भी एक सुंदर प्रसंग की श्रेणी में है | 

(ग)- जब लेखक साँप को देखकर डर जाता है और गिरते-पड़ते लहूलुहान होकर घर लौटता है, तो वह पिता से लिपटने के बजाय माँ से लिपटकर रोते हुए अपने दुख को प्रकट करता है | अत: वह माँ की गोद और आँचल का सहारा लेकर प्यार और सुकून का अनुभव करता है | बेशक, लेखक को तब माँ की ममता, पिता के प्यार-दुलार से ज्यादा मजबूत और प्रगाढ़ लगी | शायद उस वक़्त माँ का आँचल लेखक के लिए किसी महफ़ूज आशियाने से कम न था | यह प्रसंग अत्यन्त मार्मिक और सुन्दर है | 


प्र.४. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं | 

उत्तर- आज की ग्रामीण संस्कृति को तीस के दशक की ग्रामीण संस्कृति से अगर तुलना करेंगे तो काफी बदलाव देखने को मिलेगा | तीस के दशक में भारतीय ग्रामीण सभ्यता में जन-जीवन बेहद साधारण और पिछड़ा हुआ था | खेती के लिए आधुनिक सुविधाएं नहीं थीं | शिक्षा का अभाव और बेरोजगारी की समस्याओं से लोग जूझ रहे थे | लोग आजादी की जंग में खुद को न्यौछावर कर रहे थे | गांवों में आधुनिकीकरण का अभाव था | पर उस वक़्त हमारी कौमी एकता बेहद सशक्त और अटूट थी | 

आज के ग्राम्य जीवन में आधुनिकीकरण का प्रभुत्व देखने को मिलता है | शिक्षा के स्तर में बढ़ोतरी हुई है | छोटे-छोटे गाँवों तक बिजली की पहुंच हो गई है | स्कूल, अस्पताल से लेकर उच्च शिक्षा के लिए कॉलेजों का संचालन भी हो रहा है | खेती के लिए वैज्ञानिक संसाधन भी उपलब्ध हैं |  


प्र.५. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए  कोई अन्य शीर्षक सुझाइए | 

उत्तर- प्रस्तुत कहानी का शीर्षक "माता का आँचल" उपयुक्त रखा गया है | क्योंकि इस कहानी में माँ के आँचल की जो सार्थकता है, उसे भलिभांती समझाने का प्रयास किया गया है | भोलानाथ को माता व पिता दोनों से प्रेम और लगाव था | उसका दिन पिता की छत्रछाया में ही शुरू होता था और पिता भी विपदा की घड़ी में उसकी रक्षा करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहते थे | परन्तु जब वह साँप को देखकर डर जाता है और गिरते-पड़ते लहूलुहान होकर घर लौटता है, तो वह पिता से लिपटने के बजाय माँ से लिपटकर रोते हुए अपने दुख को प्रकट करता है | अत: वह माँ की गोद और आँचल का सहारा लेकर प्यार और सुकून का अनुभव करता है | माँ अपने बेटे का गम देखकर अपनी सुधबुध खो बैठती है | वह बस इसी कोशिश में है कि वह अपने बेटे की पीड़ा को ख़त्म कर सके | माँ की यही कोशिश उसके बच्चे को आत्मीय सुख व प्रेम का अनुभव कराती है | 

अन्य उपयुक्त शीर्षक यह हो सकता था - "माँ की ममता" | 

प्र.६.  इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है ?

उत्तर- हठी प्रवृत्ति तो सभी बच्चों में समान होती है |परन्तु, पाठ में रची गई तीस के दशक की दुनिया हमारे बचपन की दुनिया से बिल्कुल अलग है | उस वक़्त के बच्चों का खेल प्रकृति से जुड़े हुए रहते थे | उस समय के खेलों में सादगी और आपसी लगाव का एहसास रहा करता था |परन्तु, आज के बच्चों की दुनिया में मशीनों का वर्चस्व है |आज के बच्चे टी.वी., कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक गेम इत्यादि में ही ख़ुद को कैद कर लिए हैं | 



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