सजा सोहन सिंह, हां यही नाम था उसका ट्रक ड्राइवर था। लोग ट्रक ड्राइवरों को वैसे भी अच्छा नहीं समझते। कहते हैं कि ये जो ट्रक ड्राइवर महीनों बाहर रहने के कारण ये थोड़े ज्यादा ही दिलफेंक स्वभाव के होते हैं। सोहनसिंह की पत्नी प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी वह भी सख्त मिजाज की थी।
सजा
सोहन सिंह, हां यही नाम था उसका ट्रक ड्राइवर था। लोग ट्रक ड्राइवरों को वैसे भी अच्छा नहीं समझते। कहते हैं कि ये जो ट्रक ड्राइवर महीनों बाहर रहने के कारण ये थोड़े ज्यादा ही दिलफेंक स्वभाव के होते हैं। सोहनसिंह की पत्नी प्राइवेट अस्पताल में नर्स थी वह भी सख्त मिजाज की थी। इतनी सख्त होने के बावजूद वह सोहनसिंह को नियंत्रण में नही रख पाई थी और शायद पति अच्छा न होने के कारण ईश्वर ने उसे बेऔलाद रखा था।
सोहनसिंह को आठ और साठ वर्ष की महिला में कोई अंतर नही दिखता था इस कारण वह बदनाम भी था। कई बार लड़कियों की छेड़खानी, महिलाओं को अश्लील इशारे आदि के नाम से जेल भी जा चुका था। सोहनसिंह की पत्नी भी उससे त्रस्त रहती थी।इस बार सोहनसिंह ट्रक से उतरकर एक महीने के लिए आया था। उसके घर में एक परिवार किराए से रहता था बहुत ही प्यारा परिवार। पति, पत्नी व एक प्यारी सी बच्ची।
बच्ची की उम्र 6 से 7 वर्ष के बीच, दूसरी क्लास में पढ़ती थी। बच्ची बहुत मासूम थी। वह सोहनसिंह को बड़े पापा कहकर बुलाती थी। एक दिन की बात है सोहनसिंह की पत्नी अस्पताल ड्यूटी गई थी। सोहनसिंह घर में अकेला था। उस दिन उस बच्ची का मॉर्निंग स्कूल था वह 10:30 घर लौटी। मां को घर में न देख वह सोहनसिंह के पास पूछने गई कि मेरी मां कहां है?
उसने उसे पास बुलाया और कहा कि "तुम्हारी माँ बाहर गई है आती ही होगी"। वह वहीं अपनी गुड़िया के साथ खेलने लगी । तभी सोहनसिंह ने उस बच्ची के हाथ से गुड़िया छीन लिया। वह बड़े पापा दो कहकर उससे मांगने लगी सोहनसिंह ने अपना हाथ ऊपर कर लिया वह बच्ची उसके गोद में चढ़ कर हाथ तक पहुंचने की कोशिश करने लगी। और तब सोहनसिंह के अंदर का जानवर जाग गया और उस मासूम के साथ वह कर बैठा जो नहीं करना चाहिए था।
मासूम बच्ची चिल्लाती रही -''ये क्या कर रहे हो बड़े पापा ! मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा"।पर उसे कहां सुध थी वह तो अपनी हवस की आग को ठंडा करने में लगा था। अनन्त: जब वह शांत हुआ तब उसे छोड़ दिया। बच्ची रोती बिलखती घर पहुंची और अपनी मां को सारी घटना सुबक सुबक कर बताई। उसकी हालत देखकर मां आग बबुला हो गई। पति के आने पर उसने सारी बात बताई और दोनों थाना में रिपोर्ट लिखाने गए। सोहनसिंह नाम सुनते ही थानेदार ने समझाईश दी- कहां इस चक्कर में पड़े हो छोड़ो हटाओ। क्यों परेशानी में पड़ना चाहते हो बड़ी होगी तो हल्ला हो जाने के कारण इसकी शादी में परेशानी आएगी। लेकिन उस बच्ची के माता-पिता तैयार नही हुए। उनका कहना था की ऐसे व्यक्ति को समाज में रहने का कोई हक नहीं। काफी मशक्कत के बाद थाने में रिपोर्टबाजी हुई। सोहनसिंह को पकड़ लिया गया। उसे 5 साल की सजा हुई किन्तु ऊपरी पहुंच के कारण वह 2 साल में ही जेल से छुटकर आ गया। हरकतें वही की वही कोई अंतर नहीं।
सोहनसिंह की पत्नी बेबस थी उसकी हरकतों से तंग आकर वह 2 बार जान देने का प्रयास भी कर चुकी थी। अब ये बच्ची वाला केस तो उसकी आत्मा को धिक्कार रहा था। सोहनसिंह की पत्नी को भी मजबूरी में उसकी पत्नी बनना पड़ा था। दरअसल एक बार सोहनसिंह का ट्रक चलाते समय एक्सीडेंट हो गया था घायल हो जाने पर इसी नर्स के अस्पताल में भर्ती हुआ था और यही नर्स उसकी सेवा कर रही थी। एक दिन सोहनसिंह ने इसके साथ भी जबर्दस्ती की थी। नर्स के माता-पिता नहीं होने से तथा गर्भवती होने के कारण वह मजबूर होकर इसे ही अपना किस्मत मान बैठी थी। सही देखभाल न होने के कारण 5 वें महीने में नर्स का गर्भपात हो गया बहुत मुश्किल में जान बची पर हां अब वह मां नहीं बन सकती थी। वह बच्चे के लिए तड़पती थी और सोहनसिंह की इस हरकत से तो उसकी व्याकुलता बढ़ती ही जा रही थी। उसने फैसला किया की अब चाहे जो हो इसने मेरे साथ जो किया सो किया लेकिन उस बच्ची के साथ जो किया वह ठीक नही है उसे इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। यह कैसा न्याय है जहां इसे 5 साल की सजा 2 साल में ही पूर्ण कर बरी कर दिया गया। समाज में ऐसे दरिंदों को जिंदा रहने का कोई हक नहीं। वह दिन प्रतिदिन इस बात पर गहराई से विचार करती। उसने फैसला कर लिया कि वह न्याय करेगी।
ठंडी का दिन था दोपहर का समय। सोहनसिंह को शराब पीना बहुत पसन्द था। सोहनसिंह की पत्नी उसके लिए दो बोतल शराब ले के आई। सोहनसिंह पीने लगा पीते पीते वह नशे में धुत्त होकर कुर्सी पर बैठा था। नर्स ने मन को कठोर किया और नशीली आँखों में बड़े प्यार से झांका।सोहनसिंह आंखों की गहराई में झांकते हुए बोला - क्या इरादा है? मेरा कत्ल करने का!
वह हड़बड़ा गई पर सम्भली और कुर्सी में बैठे सोहनसिंह को मज़बूत रस्सी से चारों ओर लपेट दिया ताकि सोहनसिंह भाग न सके। अब सोहनसिंह की आँख भी नशे के कारण बन्द होने लगी थी। नर्स ने शराब व पेट्रोल से सोहनसिंह को नहला दिया व सिगरेट उसके मुंह पे लगाया और लाइटर से सिगरेट सुलगा कर जलता लाइटर कुर्सी के नीचे छोड़ दिया। धीरे धीरे आग की लपटें उठने लगी सोहनसिंह न भाग सकता था न चिल्ला पा रहा था। सोहन सिंह की पत्नी ने घर से धुंआ निकलते देखा और चल पड़ी अपनी दोपहर की ड्यूटी करने। अब उसकी बैचैनी खत्म हो चुकी थी उसे कोई अफसोस नही था वह बड़बड़ाती जा रही थी उसे सजा मिल गई....…..।
- डॉ (श्रीमती) ललिता यादव
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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