दान का हिसाब हिंदी कहानी दान का हिसाब Daan Ka Hisaab Class 4 Hindi NCERT Solutions for Class 4 Hindi Daan ka hisab दान का हिसाब of Rimjhim book NCERT CBSE दान का हिसाब Daan Ka Hisaab Chapter 7 Class 4 Hindi with Question and Answers NCERT Class 4th दान का हिसाब पाठ 7 हिंदी दान का हिसाब प्रश्न और उत्तर Class 4 Hindi NCERT CBSE Dan Ka Hisab दान का हिसाब Ch 7 दान का हिसाब Daan Ka Hisaab Hindi, Grade 4 Rimjhim, CBSE Easy explanation NCERT Solutions for Class 4 Hindi Daan ka hisab
दान का हिसाब हिंदी कहानी
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दान का हिसाब कहानी का सारांश
दान का हिसाब पाठ या कहानी में एक कंजूस राजा और दूर दृष्टि रखने वाले संन्यासी का रोचक दृष्टांत का उल्लेख किया गया है | इस कहानी के अनुसार, एक राजा था | वह अपने कपड़ों के ऊपर हजारों रुपये खर्च करते रहते थे | पर जब दान देने का समय आता था, तब उनकी मुट्ठी बंद हो जाती थी | उसके राजसभा में नामी या बड़े लोगों की पूछ-परख होती थी | पर गरीबों, विद्वानों, सज्जनों की कोई पूछ नहीं होती थी | इसलिए ये लोग राज दरबार में नहीं आते थे |
एक बार उस देश में अकाल पड़ गया | पूर्वी सीमा के लोग भूखे-प्यासे मरने लगे थे | राजा के पास खबर आई | परन्तु राजा यह कहकर मदद करने से इनकार कर दिया कि यह तो भगवान की मार है, इसमें मेरा कोई हाथ नहीं है |
जब लोगों ने राजा से सहायता की गुहार लगाई तो निर्दयी राजा ने यह कहकर लोगों को निराश किया कि --- " आज तुम लोग आकाल से पीड़ित हो, कल पता चलेगा, कहीं भूकंप आया है | परसों सुनूँगा, कहीं के लोग बड़े गरीब हैं, दो वक़्त की रोटी नहीं जुटती | इस तरह सभी की सहायता करते-करते जब राजभंडार ख़त्म हो जाएगा, तब खुद मैं ही दिवालिया हो जाऊँगा |" राजा की ये बातें सुनकर सभी निराश होकर लौट गए |
इधर अकाल का प्रकोप फैलता ही जा रहा था | न जाने कितने लोग भूख से मरने लगे थे | लोग फिर राजा के पास पहुंचे | उन्होंने राजसभा में गुहार लगाते हुए सिर्फ दस हजार रुपए की मांग रखी, ताकि आधा पेट खाकर भी जीवित रह सकें | परन्तु, राजा ने उनकी एक नहीं सुनी | जब एक व्यक्ति से रहा नहीं गया, तब वह बोला --- " भगवान की कृपा से लाखों रुपए राजकोष में मौजूद हैं | जैसे धन का सागर हो | उसमें से एक-आध लोटा ले लेने से महाराज का क्या नुकसान हो जाएगा !" तभी राजा ने कहा --- " राजकोष में अधिक धन है तो क्या उसे दोनों हाथों से लुटा दूँ ?" जब दूसरे व्यक्ति ने कहा कि महल में प्रतिदिन हजारों रुपये सुगंधित वस्त्रों, मनोरंजन और महल की सजावट में खर्च होते हैं | यदि इन रुपयों में से ही थोड़ा सा धन जरूरतमंदों को मिल जाए तो उनकी जान बच जाएगी | यह सुनकर राजा को क्रोध आ गया | लोग डरकर वहाँ से चले गए |
दो दिन बाद एक बूढ़ा संन्यासी राजसभा में आया | उसने राजा को आशीर्वाद देते हुए कहा --- " दाता कर्ण महाराज ! बड़ी दूर से आपकी प्रसिद्धि सुनकर आया हूँ | संन्यासी की इच्छा भी पूरी कर दें |" अपनी प्रशंसा सुनकर राजा बोला --- " ज़रा पता तो चले तुम्हें क्या चाहिए ? यदि थोड़ा कम मांगो तो शायद मिल भी जाए |" तभी संन्यासी ने कहा कि मैं राजकोष से बीस दिन तक बहुत मामूली भिक्षा प्रतिदिन लेना चाहता हूँ | मेरा भिक्षा लेने का नियम कुछ इस प्रकार है कि मैं पहले दिन जो लेता हूँ, दूसरे दिन उसका दुगुना, फिर तीसरे दिन उसका दुगुना, फिर चौथे दिन तीसरे दिन का दुगुना | इसी तरह से प्रतिदिन दुगुना लेता जाता हूँ | भिक्षा लेने का मेरा यही नियम है | जब राजा ने संन्यासी से पूछा कि यह तो ठीक है, पर पहले दिन कितना लेंगे ? तब संन्यासी ने कहा कि आज मुझे एक रुपया दे दीजिए | फिर बीस दिन तक दुगुने करके देते रहने का हुक्म दे दीजिए | राजा तैयार हो गया | उसने हुक्म दे दिया कि संन्यासी के कहे अनुसार बीस दिन तक राजकोष से उन्हें भिक्षा दी जाती रहे | संन्यासी राजा की जय-जयकार करते हुए घर लौट गए |
दान का हिसाब हिंदी कहानी |
राजा के आदेशानुसार राज भंडारी संन्यासी को भिक्षा देने लगा | ठीक दो सप्ताह तक भिक्षा देने के बाद उसने हिसाब करके देखा कि दान में काफी धन निकलता जा रहा है | वह चिंतित हो उठा | उसने यह बात मंत्री को बताई | मंत्री भी चिंता में पड़ गया | उसने भंडारी से बोला कि यह क्या कर रहे हो ! अभी से इतना धन चला गया है ! तो फिर बीस दिनों के अंत में कितने रुपये होंगे ? उसने भंडारी को तुरंत हिसाब करने का आदेश दिया | भंडारी ने हिसाब करके बताया कि दस लाख अड़तालीस हजार पाँच सौ पिचहत्तर रुपए | भंडारी की बात सुनते ही मंत्री घबरा गया | सभी उन्हें सँभालकर बड़ी मुश्किल से राजा के पास ले गए |
राजा ने पूछा --- " क्या बात है ?" मंत्री बोले --- " महाराज, संन्यासी को आपने भिक्षा देने का हुक्म दिया है | मगर अब पता चला है कि उन्होंने इस तरह राजकोष से दस लाख रुपए झटकने का उपाय कर लिया है |" मंत्री की बात सुनते ही राजा के होश उड़ गए | राजा के आदेश पर संन्यासी को तुरंत राजसभा में बुलाया गया |
संन्यासी के आते ही राजा रोते हुए उसके पैरों पर गिर पड़ा और बोलने लगा कि मुझे इस तरह जान-माल से मत मारिए संन्यासी महाराज | अगर आपको बीस दिन तक भिक्षा दी गई तो राजकोष खाली हो जाएगा | फिर राज-काज कैसे चलेगा !
तभी संन्यासी ने गंभीर होकर कहा --- " इस राज्य में लोग अकाल से मर रहे हैं | मुझे उनके लिए केवल पचास हजार रुपए चाहिए | वह रुपए मिलते ही मैं समझूँगा मुझे मेरी पूरी भिक्षा मिल गई है |" राजा और उसके मंत्री लोग भी रुपए कम करने के लिए संन्यासी के सामने बहुत गिड़गिड़ाए लेकिन संन्यासी अपने वचन पर डटा रहा | अंतत: लाचार होकर राजकोष से पचास हजार रुपए संन्यासी को देने के बाद ही राजा की जान बची |
तत्पश्चात्, पूरे देश में ख़बर फैल गई कि अकाल के कारण राजकोष से पचास हजार रुपए राहत में दिए गए हैं | सभी ने कहा --- " हमारे महाराज कर्ण जैसे ही दानी हैं...||"
दान का हिसाब हिंदी कहानी का उद्देश्य
दान का हिसाब कहानी का उद्देश्य यह है कि हमें एक-दूसरे के प्रति अपनी क्षमतानुसार परोपकार की भावना रखना चाहिए | एक-दूसरे के दुख-सुख में भागीदार बनना चाहिए |
दान का हिसाब के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 राजा किसी को भी दान क्यों नहीं देना चाहता था ?
उत्तर- राजा बहुत कंजूस था | उसे लगता था कि दान देने से राजकोष खाली हो जाएगा | इसलिए वह किसी को भी दान नहीं देना चाहता था |
प्रश्न-2 राजदरबार के लोग मन ही मन राजा को बुरा कहते थे लेकिन राजा का विरोध क्यों नहीं कर पाते थे ?
उत्तर- राजदरबार के लोग मन ही मन राजा को बुरा कहते थे लेकिन राजा का विरोध इसलिए नहीं कर पाते थे, क्योंकि उन्हें राजा के द्वारा दण्डित किए जाने का डर लगा रहता था | राजा अपना नुकसान देखकर क्रोधित भी हो जाता था |
प्रश्न-3 राजसभा में सज्जन और विद्वान लोग क्यों नहीं जाते थे ?
उत्तर- राजसभा में सज्जन और विद्वान लोग इसलिए नहीं जाते थे, क्योंकि उनका वहाँ आदर-सत्कार नहीं होता था |
प्रश्न-4 संन्यासी ने सीधे-सीधे शब्दों में भिक्षा क्यों नहीं माँग ली ?
उत्तर- संन्यासी ने सीधे-सीधे शब्दों में भिक्षा इसलिए नहीं माँगी, क्योंकि वह पहले से जानता था कि राजा कंजूस है | वह एक बार में पचास हजार रुपए कभी नहीं देता |
प्रश्न-5 राजा को संन्यासी के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर- यदि संन्यासी की बात पर चलते हुए उसे भिक्षा दी जाती तो निश्चित ही राजकोष खाली हो जाता | अत: राजकोष को बचाने के लिए राजा को संन्यासी के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा |
प्रश्न-6 अकाल के समय लोग राजा से कौन-कौन से काम करवाना चाहते थे ?
उत्तर- अकाल के समय लोग राजा से अकाल पीड़ितों की सहायता करवाना चाहते थे | लोग चाहते थे कि राजा जरूरतमंदों को कम से कम दस हजार रुपये भी दे दे, ताकि वे अपना पेट भर सकें |
प्रश्न-7 सभी ने कहा, “हमारे महाराज कर्ण जैसे ही दानी हैं |" पता करो कि
(क) कर्ण कौन थे ?
(ख) कर्ण जैसे दानी का क्या मतलब है ?
(ग) दान क्या होता है ?
(घ) किन-किन कारणों से लोग दान करते हैं ?
उत्तर- (क) कर्ण महाभारत के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारियों में से एक थे, जो कुन्ती के पुत्र थे |
(ख) कर्ण जैसे दानी का मतलब है कि कर्ण के जैसा ही अपना सर्वस्व दान कर देना |
(ग) जब किसी गरीब की सहायता के लिए अपने पास से धन स्वेच्छा और नि:स्वार्थ भाव से दिया जाता है, तो वह दान कहलाता है |
(घ) दान करने के कई कारण हो सकते हैं |जैसे कोई परोपकार की भावना से दान करता है |कोई नाम कमाने के लिए दान करता है | कोई पुण्य के लिए दान करता है |
दान का हिसाब शब्दार्थ
• सत्कार - आदर, सम्मान, ख़ातिरदारी
• अकाल - भुखमरी, दुर्भिक्ष,
• लकदक - कीमती, मंहगा, चमक-दमक वाला
• वक्त - समय, काल
• नामी लोग - प्रसिद्ध लोग
• खबर - समाचार
• बकवास - फालतू बात करना
• दिवालिया - जो अपना सारा धन गंवा दिया हो
• प्रकोप - अत्यधिक क्रोध
• गुहार लगाई - आवाज़ लगाई, प्रार्थना की
• रकम - रुपया-पैसा
• लोभी - लालची
• हुक्म - आदेश, आज्ञा
• मुक्त कर दीजिए - स्वतंत्र कर दीजिए
• लाचार होकर - मज़बूर होकर, विवश होकर
• तरीका - ढंग |
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