लुंगी कहानी शमोएल अहमद विभाग में किसी नई लड़की का नामांकन होता तो अबुपट्टी लुंगी पहनता | उसके पास तरह तरह की लुंगियां थी...लाल पीली नीली हरी ....एक नहीं थी तो सफेद...! सफेद लुंगी से अबुपट्टी को चिढ़ सी थी | पहनो भी नहीं कि मैली नजर आती है | भला ये भी कोई रंग हुआ कि दागों को छुपा नहीं पाता है ? इस एतबार से उसको सियाह लुंगी पसंद थी कि गर्दखोर थी |
लुंगी कहानी शमोएल अहमद
विभाग में किसी नई लड़की का नामांकन होता तो अबुपट्टी लुंगी पहनता | उसके पास तरह तरह की लुंगियां थी...लाल पीली नीली हरी ....एक नहीं थी तो सफेद...!
सफेद लुंगी से अबुपट्टी को चिढ़ सी थी | पहनो भी नहीं कि मैली नजर आती है | भला ये भी कोई रंग हुआ कि दागों को छुपा नहीं पाता है ? इस एतबार से उसको सियाह लुंगी पसंद थी कि गर्दखोर थी | लेकिन एक ज्योतिषी ने कहा था कि सियाह शनि का रंग है जो नाउम्मीदी का सितारा है और अबुपट्टी ने भी महसूस किया था कि
सियाह रंग के इस्तेमाल से उसको अक्सर घाटा ही हुआ है | उस दिन उसने सियाह लुंगी बैग में रखी थी जब जरबहार उसके हाथों से साबुन की तरह फिसल गयी थी और प्रोफेसर राशिद एजाज़ की झोली में जा गिरी थी | ज़रबहार एक स्थानीय शायर की सुपुत्री थी | उसने एम्.ए. किया था और अब एम्.फिल. में नामांकन कराना चाहती थी | अबुपट्टी उन दिनों विभागाध्यक्ष था | वो नामांकन पत्र लिए चैम्बर में दाखिल हुई तो अबुपट्टी ने अजीब सी बेचैनी महसूस की | बेचैनी तो वो हर उस लड़की को देखकर महसूस करता था जो एम्. फिल. में दाखिला लेती थी | लेकिन ज़रबहार की अदाएं कुछ अलग सी थीं | बतियाने के दौरान जुल्फों की एक लट उसके मुखमंडल पर लहरा जाती जिसे अदाए-ख़ास से पीछे की तरफ पलटती रहती | वो मांसल देह वाली लड़की थी’ गाल फूले फूले से थे | खूबसूरत नहीं थी लेकिन कहीं कुछ था जो अबुपट्टी को लुंगी पहनने पर उकसा रहा था |
चैम्बर में दाखिल होते ही उसने अदब से सलाम किया और फिर दो कदम चलकर उसके एक दम करीब खड़ी हो गयी | छात्र अंदर आते हैं तो प्राय; एक दूरी बना कर खड़े रहते हैं , लेकिन ज़रबहार का अंदाज़ कुछ ऐसा था मानो वर्षों से परिचित हो | उसने पहले अपने वालिद का नाम बताया जो शायर हुआ करते थे |
अबुपट्टी ने प्रभावित होने का नाटक किया |
“” माशाल्लाह ....क्या कहने...! ‘’
ज़रबहार खुश हो गयी और पिताश्री की शान में स्तुति करने लगी कि मुशाएरे में कहाँ कहाँ जाते थे और कैसे कैसे पुरूस्कारों से सम्मानित हुए | फिर चेहरे के करीब एक ज़रा झुककर मुस्कुराती हुई बोली |
‘’ सर...मैं पी.एच.डी. करना चाहती हूँ |’’
अबुपट्टी मुस्कुराया ! ‘’ एक ही बार में पी.एच.डी. ? पहले एम्.फिल. करते हैं | ‘’
अपनी गलती का एहसास हुआ तो दाँतों तले जीभ काटी |
अबुपट्टी की मुस्कुराहट गहरी हो गयी |
‘’ किस विषय पर शोध करना चाहती हो ? ‘’
‘’ कुछ भी |’’
किस विधा में ? शायरी , अफसाना, उपन्यास ....?’’ अबुपट्टी के लहजे में झुंझलाहट थी लेकिन उसकी मुस्कुराहट बरक़रार थी |
‘’ शायर की बेटी हूँ तो शायरी पर ही करुँगी |’’
‘’ नई शायरी पर करो , इकबाल , ग़ालिब और मीर पर तो बहुत शोध हुआ ,|’’
‘’ जी सर | ‘’
‘’ किसी को पढ़ा है ...? निदा फाजली...शहरयार ....?’’
‘’ आप पढ़ा देंगे सर ...!’’
‘’ मैं तो बहुत कुछ पढ़ादुंगा ....हे हे हे ....| ‘’
अबुपट्टी हंसने लगा | ज़रबहार भी हंसने लगी | बालों की लट उसके गालों पर झूल गयी | गालों में गढ़े से पड़ गये |
चैम्बर में साक्कुब दाखिल हुआ और अबुपट्टी के माथे पर बल पड़ गये |
‘’ आप बिना इजाजत अंदर कैसे आ गये ? ‘’
‘’ सर....मेरी थीसिस ....! ‘’
जानता हूँ आपने थीसिस मुकम्मल करली है, लेकिन बेअदबी से पेश आएँगे तो थीसिस धरी रह जाएगी | ‘’
‘’ गलती हुई सर...माफ़ कीजिएगा |’’
उसके जाने के बाद भी अबुपट्टी का गुस्सा कम नहीं हुआ |
‘’ यही वजह है कि मैं चैम्बर अन्दर से बंद करदेता हूँ | लड़के बहुत डिस्टर्ब करते हैं |’’
‘’ सही कहा सर , बिना इजाजत तो अन्दर आना ही नहीं चाहिए |’’
पर्दे के पीछे से कोई दूसरा लड़का झाँकने लगा
‘’ देखो फिर कोई झाँक रहा है |’’अबुपट्टी की झुंझलाहट बढ़ गयी |
‘’ दरवाज़ा बंद कर दूँ सर...?’’
‘’ रहने दो , कुछ छात्र मिलना चाह रहे हैं| तुम कल दस बजे आओ | फ़ार्म भी भर दूंगा , समझा भी दूंगा कि क्या करना है और विषय भी तय करदूंगा | ‘’
‘’ शुक्रिया सर ...मैं कल आती हूँ | ‘’
ज़रबहार चली गयी तो अबुपट्टी ने छात्रों को अन्दर बुलाया |
चार लड़के...छ; लडकियां ....
अबुपट्टी ने लड़कों पर सरसरी सी नज़र डाली | लड़कियों को घूर घूर कर देखा | वो यकीनन फैसला कर रहा था कि किसको अपने पास रखेगा और किसको दुसरे की निगरानी में सौंप देगा |
‘’ आप फ़ार्म भरने आए हैं ? ‘’
जी सर ...’’
‘’ तो मेरे पास आने की क्या ज़रूरत है ? आप फ़ार्म जमा कर दें | आपका टेस्ट होगा | जो ज़्यादा नम्बर लाएंगे वो सीधा पी.एच.डी भी कर सकते हैं वर्ना एम्.फिल. में दाखिला होगा |छ; माह क्लासेस करने होंगे फिर टेस्ट होगा |’’
‘’ सर हमें विषय चुनने का अधिकार तो है ? ‘’ किसी लड़के ने पुछा तो अबुपट्टी ने उसे घूर कर देखा |
‘’ बिलकुल है लेकिन विषय की जानकारी भी आपको होनी चाहिए |’’
लड़का सिहर गया | उसने शालीनता से सर हिलाया |
छात्र चले गये तो अबुपट्टी भी क्लास लेने चला गया |
ज़रबहार बाहर निकली तो खुश थी |
‘’ नई मुर्गी ‘’ लड़कों ने उसे सर से पाँव तक देखा
‘’ आप एम्.फिल. के लिए आयी हैं ?’’
मैं सीधा पी.एच.डी. करुँगी |’’ नई मुर्गी मुस्कराई |
साक्कुब ये सोचकर दिल ही दिल में मुस्कुराया कि इनकी पी.एच.डी. तो लुंगी में होगी |
‘’ आपका विषय क्या है ?’’
जदीद शायरी |’’
जदीद शायरी में क्या....? ‘’
‘’ ये सर तय करेंगे |’’
‘’ कमाल है . आप पी.एच.डी. कर रही हैं और आपको विषय का पता नही है |’’
साक्कुब के जी में आया कह दे ‘’ होशियार रहिएगा ...सर कमरा अंदर से बन्द कर लेते हैं |’’ लेकिन वो चुप रहा | वो कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहता था | अबुपट्टी को अगर भनक मिल जाती तो कैरियर खराब होने में वक़्त नहीं लगता | फिर भी उसने दबे स्वर में पूछा |
‘’ सर आप लोगों पर मेहरबान रहते हैं , हमें तो कोई पूछता भी नहीं |’’
लड़कों को वाकई कोई पूछता नहीं था |लेकिन लड़कियों को परेशानी नहीं थी | इनपर ख़ास ध्यान दिया जाता |
शमोएल अहमद |
जो लड़की फ़्लैट का रुख नहीं करती उसे पी.एच.डी. में कई साल लग जाते | लेकिन वो जल्दबाजी से काम नहीं लेता था | पहले छात्रा को यकीन दिलाता कि उसकी मदद के बिना वो पी.एच.डी. नहीं कर सकती | पहला अध्याय खुद लिख देता | बीच बीच में डिक्टेशन देता | लड़की के पीछे खडा हो जाता और झुककर देखता कि व्याकरण की अशुद्धियाँ कहाँ कहाँ हैं | फिर उसके कंधे के ऊपर से हाथ बढ़ाकर त्रुटिपूर्ण शब्दों पर अपनी तर्जनी रखकर कहता ‘’ इसे शुद्ध करो ‘’ | इसतरह हाथ बढाने में उसके बाजू लड़की के मुखमंडल को छूने लगते | लडकी हटकर बैठने की कोशिश करती तो उसके कंधे पर हाथ रखकर कहता |
‘’ बच्ची....तुम मेरी मदद के बिना पी.एच.डी. नहीं कर सकती | ‘’
तब कुछ देर के लिए अपनी कुर्सी पर बैठ जाता और कहता ‘’ आगे लिखो |’’
लेकिन कुछ पंक्तियाँ लिखाने के बाद फिर पीछे खड़ा हो जाता और गालों को सहलाते हुए कहता |
‘’प्यारी बच्ची ...इसतरह गलतियां करोगी तो थीसिस का सत्यानाश हो जाएगा | ‘’
जब फिजा साज़गार हो जाती तो कमरा अंदर से बंद करता और लुंगी.....|
राशिद एजाज़ इसे पहला एपिसोड कहता था | पहला एपिसोड हमेशा चैम्बर में होता | बाक़ी अध्यन कक्ष में | प्रोफेसर से सभी भयभीत थे | उसकी पहुँच मंत्री तक थी, बल्कि अफवाह थी कि बहुत जल्द वो किसी विश्वविद्यालय का कुलपति होने जा रहा है |
लड़कों के लिए कोई झिक झिक नहीं थी | वो आज़ाद थे | जिसे चाहते अपना मार्गदर्शक बना सकते थे | फिर भी प्रोफेसर मंज़र हसनैन के पल्ले कोई पड़ना नही चाहता था | चेहरे पर सफेद दाग थे और लम्बी दाढ़ी थी | तिकोनी टोपी पहनते थे जो ललाट को ढक लेती लेकिन दाग छुप नहीं पाते | किसीने कोई सवाल पूछ लिया तो हसनैन उसे निशाने पर रखते और उसके लिए रुकावटें पैदा हो जातीं | पंचगाना नमाज़ पढ़ते और नैतिकता का पाठ पढ़ाते | एक दो लुंगी उनके पास भी थी | जहां लुंगी मयस्सर नहीं होती तो सूट का मुतालबा करते |
‘’ रेमंड के सूट बहुत महंगे हैं |’’
‘’सोचता हूँ एक सूट सिलवा लूँ.|’’
लेकिन सिलाई बहुत महंगी है |’’
‘’ आपलोगों को कमी क्या है ? जे आर ऍफ़ से पैसे मिलते हैं |’’
अक़लमंद के लिए इशारा काफी होता | परेशानी कौन मोल ले ? हर सीजन में वो दो चार सूट सिलवा ही लेते |
और प्रोफेसर हाशमी ....?
आली जनाब ने हरम सजा रखा था | बीवी छोड़कर जा चुकी थी | आज़ाद थे | लडकियाँ चौका सम्भालती थीं | कोई चौका बर्तन करती कोई सब्जियां काटती | गुलबानो कपडे धोती और डिक्टेशन लेती \ अलीगढ से कथाजगत का बुड्ढा बादशाह आया तो हरम से दो शोधछात्राएं भेजी गईं | बाइबल में आया है कि
‘’ और दाऊद बादशाह बुड्ढा और पुराना हुआ और वे उसे कपड़े ओढ़ाते पर वो गर्म नहीं होता था |सो उसके चाकरों ने उससे कहा कि हमारे मालिक बादशाह के लिए एक जवान कुंआरी ढूढी जाए जो बादशाह के हुज़ूर खड़ी रहे और उसकी खबरगीरी किया करे और तेरे पहलु में लेट रहा करे ताकि हमारे मालिक बादशाह को गर्मी पहुंचे |’’
मालिक बादशाह ने आली जनाब की सेमिनारों में पैरवी की और उन्हें पुरुस्कृत किया |साक्कुब ने कुर्रतुल ऐन हैदर की नाविलनिगारी पर काम किया था | उसकी थीसिस मुकम्मल हो चुकी थी | वो चाहता था इन्टरव्यू की तारीख मिल जाए ,लेकिन विभागाध्यक्ष का हस्ताक्षर बाक़ी था | वो जबभी थीसिस की बात करता अबुपट्टी कोई न कोई बहाना बना देता | उसे सीनियर लडकों से मालूम हुआ था कि तारीख यूँ ही नही मिल जाती , भारी रकम खर्च करनी पड़ती है | लेकिन साक्कुब किसी अमीर बाप का बीटा नहीं था |जेआरऍफ़ से जो पैसे मिलते उससे अपनी पढ़ाई और हास्टल का खर्च पूरा करता | और अब शोध मुकम्मल हो गया था तो पैसे मिलने भी बंद हो गये थे |
साकुब ने अंग्रेजी साहित्य का भी अध्ययन किया था | उसकी योग्यता के सभी कायल थे | प्रो. राशिद एजाज़ उसके मार्गदर्शक थे | सब जानते थे कि साक्कुब की थीसिस उसकी अपनी मेहनतों का नतीजा थी | किसी को पैसे देकर नहीं लिखवाए | लेकिन साक्कुब गरीब था |
गरीब हो तो दुःख उठाना पड़ेगा ....!
और सकीना वहाब .....?
गोभी के फूल में भी ताजगी होती है | लेकिन सकीना के चेहरे पर पतझड़ का रंग निरन्तर वहम की तरह छाया रहता | आँखों में दर्द किसी कटी हुई पतंग की तरह डोलता था | नाक की नोक अचानक बधने की टोंटी की तरह ऊपर उठ गयी थी | नजर पहले नाक के सुराखों पर पड़ती| पिस्ता कद थी और जिस्म थुल थुल था| उसे कौन पूछता...? अध्यापकों में इसके लिए कभी तकरार नहीं हुई |
और साक्कुब कुढ़ता था | वो सकीना वहाब के लिए अजीब सी सहानुभूति महसूस करता जो उलझन भरी थी | क्यों चली आयी पीएचडी करने ? कौन पूछेगा इसको ? लेक्चरर तो जिंदगीभर नहीं हो सकती |कोई पैरवी नहीं करेगा ? न तो अध्यापकों का बिस्तर गरम कर सकती है न समिति के सदस्यों की मुट्ठी....! फिर यहाँ आई क्यों ? गरीब मुज़िन की लड़की को उस्तानी होना चाहिए | घर घर में उर्दू और कुरान पढ़ाएगी तो गुज़ारा हो जाएगा | लेकिन पीएचडी करेगी तो निकम्मी हो जाएगी |
लेकिन मुज़िन की लड़की प्रतिभाशाली थी | उसने मनोवैज्ञानिक कहानियों पर शोध किया था | प्रो. अमजद उसके गाइड थे | वो शायरी पढ़ाते थे | कथासाहित्य में ज्यादा रूचि नहीं थी | उन्हें मनोवैज्ञानिक साहित्य का ज्यादा ज्ञान भी नहीं था | अफसाना ‘ अनोखी मुस्कराहट ‘’ ज़रूर पढ़ रखा था और बार बार उसी का हवाला देते थे | वो सकीना का मार्गदर्शन क्या करते ? लेकिन सकीना ने बहुत मेहनत की | दिनभर लाइब्रेरी में बैठी पढ़ती रहती | साक्कुब ने उसकी मदद की थी | उसने पचास से ज्यादा मनोवैज्ञानिक कहानियों की सूची तैयार की थी और सकीना को सबकी फोटोकापी मुहय्या कराई थी | सकीना ने साक्कुब की मदद से अपना लेख मुकम्मल किया था | उसकी थीसिस यूनिवर्सिटी में जमा भी हो गयी थी लेकिन वाइवा की तारीख नहीं मिली थी |
साक्कुब की नज़र सकीना पर पड़ती और वो कुढने लगता | अभी अभी वो प्रो. अमजद के चैम्बर से निकली थी | हस्बमामूल उसके चेहरे पर टूटे पत्तों का दुःख था लेकिन कहीं सूर्य की रुपहली किरणों का हल्का सा रंग भी छाया था जो साक्कुब को नजर नहीं आया |
‘’ काटती रहो डिपार्टमेंट के चक्कर ....|’’
तारीख मिल गयी | ‘’ वो धीरे से मुस्कराई |
‘’ अरे वाह ! मुबारक | ‘’ साक्कुब खुश हो गया |
‘’ लेकिन एक उलझन है | ‘’ पतझड़ का रंग फिर छा गया |
‘’ अब क्या हो गया ? ‘’
सकीना ने एक पर्ची साक्कुब की तरफ बढ़ाई | साक्कुब ने सरसरी सी नजर डाली | ये तीस आदमियों की सूची थी |
यूनिवर्सिटियां भी बाजारवाद का हिस्सा हैं | शोधकर्ता पर वाजिब है कि वाइवा लेने बाहर से उस्ताद आएं तो पंचसितारा होटल में भोज की व्यवस्था हो वर्ना थीसिस रद्द हो सकती है | वाइवा लेने जामीया से उस्ताद तशरीफ़ ला रहे थे | वो लेगकबाब के शौकीन थे | विभाग से ज्ञापन जारी हुआ कि हजरत के लिए पुरतक्ल्लुफ़ दावत की व्यवस्था की जाए | प्रो. राशिद ने अतिथियों की सूचि तैयार की जिसमें शोध छात्राओं के आलावा विभाग के दूसरे लोग भी शामिल थे |
तीस आदमियों का होटल अलकरीम में प्रीतिभोज.... ....बटरनान...बिरयानी...लेगकबाब....चिक्नतिक्का...चिकनबोनलेस....फिशफ्राई ....!
गरीब हो तो उलझन में मुब्तला रहोगे |
और साक्कुब गुस्से से खौल रहा था |
‘’ तुम्हें पता है खर्च क्या होगा....?
सकीना चुप रही |
पचास हजार खर्च होंगे...पचास हजार...!’’
सर कह रहे थे इससे विभाग का मान बढ़ेगा | ‘’
तुम विभाग का मान बढ़ाओगी ....? प्रोफेसर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं और तुम इस्तेमाल की जा रही हो अहमक स्कालर ...?’’
‘’ तो क्या करूं ?
‘’ मरो....!’’
सकीना की आँखों में आंसू आ गये |
‘’ तुमने स्कालरशिप की रकम से पैसे काट काट कर अपनी शादी के लिए जमा किये लेकिन बाजारवाद तुम्हारा पैसा अपने उपयोग में लाएगा और तुम वहीं खड़ी रहोगी | क्या ज़रूरत थी तुम्हे पीएचडी करने की दुख्तर मुज़िन ? अपने सिस्टम से बाहर जीना चाह रही हो तो मरो ! बुर्जुआ तबके को तुम कबूल नहीं हो | तुम मुज़िन की लडकी हो | समाज मुज़िन को मुज़िन कहता है मुज़िन साहब नहीं कहता | साहब का शब्द इमाम के लिए है | ‘’
‘’ साक्कुब तुम भी.....! ‘’ मुज़िन की लडकी सिसक पड़ी |
साक्कुब खामोश रहा | उसे ग्लानि होने लगी थी | वो अपना गुस्सा इस मासूम पर क्यों उतार रहा है | खुद उसकी थीसिस तो लुन्गीदार बाक्स में बन्द है |
साक्कुब ने माफ़ी मांगी | ‘’ सौरी सकीना....माफ़ कर दो ! ‘’
कैरियर का सवाल है साक्कुब....’’ |
‘’ हम एहतिजाज भी दर्ज नहीं कर सकते ...| ‘’ साक्कुब आह भरकर रह गया |
सकीना ने आंचल के कोने से अपने आंसू खुश्क किए |
अबुपट्टी ने दुसरे दिन सियाह लुंगी खरीदी | बैग में रखा और दस बजे अपने चैम्बर में दाखिल हुआ | वो अपनी कुर्सी के बाजू में अलगसे एक कुर्सी रखता था | ज़रबहार सलाम करती हुई अंदर दाखिल हुई | अबुपट्टी ने मुस्कराते हुए सलाम का जवाब दिया |
‘’ फ़ार्म की खानापूरी कर ली ? ‘’
‘’ जी सर ! ‘’ ज़रबहारने फ़ार्म उसकी तरफ बढाया |
‘’ ये क्या...? सिर्फ नाम और पता दर्ज किया है ? ‘’
‘’ सोचा आपसे पूछकर भरुंगी | ‘’
‘’ बच्ची हो तुम ! ‘’ अबुपट्टी ने मुस्कराते हुए उसके गाल थपथपाए | ज़रबहार हंसने लगी |जुल्फों की लट गालों पर झूल गयी | अबुपट्टी खुश हुआ कि गाल सहलाने का बुरा नहीं माना ....अब आगे बढ़ा जा सकता है | अबुपट्टी ने एक कदम आगे .....
असल में उसके हाथ जिस्म की दीवारों पर छिपकिली की तरह रेंगते थे | छिपकिली की नजर जिस तरह पतिंगे पर होती है उसी तरह अबुपट्टी की नजर ‘’ बच्ची ‘’ के चेहरे पर होती थी कि क्या भाव है ? किस तरह शर्मा रही है ? बुरा तो नहीं मान रही...?झुंझलाहट के आसार तो नहीं हैं ?भंवे तो नहीं तन रही हैं ? किसी से कुछ कहेगी तो नहीं ? अगर समर्पण का आभास होता तो दूसरा कदम बढाता | चेहरे का दोनों हाथोंसे कटोरा सा बनाता और पेशानी चूमता ....कुछ देर कुर्सी पर बैठकर विषय वास्तु पर बात करता और प्यारी बच्ची कहकर आँखें चूमता ...फिर मुखमंडल....और रेंगते रेंगते चट से तितली पकड लेता | अगर ज़रा भी शक होता कि बिदक रही है और किसी से शिकायत कर सकती है तो रुक जाता और डिक्टेशन देने लगता |
‘’ देखो ये एक मुश्किल विषय है , मैं लिखा देता हूँ | ‘’
उसे यकीन दिलाता कि वो एक मासूम बच्ची है और वो उसका बहुत बड़ा शुभचिंतक | एक दो अध्याय खुद लिख देता और फिर दीवार पर रेंगने लगता | छिपकिली अगर निरन्तर रेंगती रहे तो एक दो पतिंगे पकड़ ही लेती है | लेकिन ज़रबहार तो मकड़ी के जाले की तरफ खुद रेंग रही थी | अबुपट्टी के सब्र का पैमाना छलक रहा था | उसके जी में आया तुरंत दरवाजा बंद करे और लुंगी पहन ले | इस नीयत से वो उठकर दरवाज़े की तरफ बढ़ा लेकिन उसी पल सिकंदर तूफानी धड़धड़ाता हुआ चैम्बर में घुसा | ज़रबहार फौरन उठकर सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी |
‘’ अस्स्लामअलयकुम ‘’
‘’ वालेकुमअस्स्लाम ‘’
‘’ नाचीज़ को सिकंदर तूफानी कहते हैं | ‘’ तूफानी ने हाथ मिलाया |
अबुपट्टी कुछ घबरा सा गया था |हिम्मत नहीं हो रही थी कि बिना इजाजत अन्दर आने पर तूफानी को डपटता |
‘’ ये मेरी छोटी बहन है | ‘’ तूफानी ने ज़रबहार की तरफ इशारा किया |
‘’ माशाल्लाह ! बहुत ज़हीन बच्ची है | ‘’
‘’ज़रा ध्यान रखियेगा हुज़ूर ....और आप मुझे तो जानते ही हैं . |’’ तूफानी ने मुस्कराते हुए कहा |
वो तूफानी को जानता था | एक बार अंग्रेजी विभाग के एक प्रोफेसर की उसके चैम्बर में पिटाई कर दी थी | कारण था प्रोफेसर ने एक छात्रा के गाल सहलाए थे जो तूफानी की गर्लफ्रेंड थी |
खतरे की घंटी.....अबुपट्टी ने उसी वक़्त फैसला कर लिया ज़रबहार को कोई भी ले जाए , वो खुदको अलग रखेगा |
ज़रबहार टेस्ट पास कर गयी | सभी पास कर गये | इनका बटवारा हुआ | प्रो. राशिद एजाज़ को ज़रबहार पसंद आ गयी |प्रोफेसर ने तुरंत उसको उचक लिया | अब उसका मैदान कथा-साहित्य था |प्रोफेसर ने उसके लिए विषय चुना ‘’ कुर्रतुल ऐन की नाविलनिगारी ‘’
दिन गुज़रते रहे | साक्कुब की थीसिस उसी तरह विभाग में पड़ी रही |एक दिन मालूम हुआ कि प्रोफेसर एजाज़ विभागाध्यक्ष से उसकी थीसिस मांग कर ले गये हैं | वो प्रोफेसर से मिला |
‘’ इसमें सुधार करना होगा | ‘’
‘’ कैसा सुधार ? ‘’
‘’ आपने कुर्रतुल ऐन को वर्जिनिया उल्फ़ से प्रभावित बताया है कि स्ट्रीम आफ कांशसनेस की टेक्निक क़र्रतुल ऐन ने विर्जिनिया से उधार ली है |’’
‘’ जी सर ....’’
लेकिन आपने प्रमाण नहीं दिए | उल्फ़ के नाविलों का नाम लीजिये और वो इबारत कोट कीजिये जिसमें इस टेक्निक का उपयोग हुआ है , साथ ही ऐन के नाविल का कोई पैराग्राफ कोट कीजिये जिससे स्ट्रीम आफ कांशसनेस का पता चले | शोध इसी को कहते हैं वर्ना स्वीपिंग रिमार्क से तो यही साबित होता है कि आपने ये बात किसी से सुन ली और लिख दिया |’’
‘’ लेकिन सर ये बात आपने पहले नहीं बताई | ‘’
अब बता रहा हूँ | उस वक़्त ये बात जहन में नहीं आई थी |’’
‘’ लेकिन सर थीसिस तो आपने ओ.के. कर दी थी, इसका एक एक अध्याय आप पढ़ चुके हैं ‘’ |
‘’ आपमें यही खराबी है अपने उस्ताद की बात नहीं सुनते हैं | ये थीसिस अगर एक्सपर्ट के पास भेजी गयी और उसने आब्जेक्शन कर दिया तो .....?’’
साक्कुब ने सुधार कर दिया | लेकिन राशिद एजाज़ घास नहीं डाल रहे थे | वो जबभी मिलने जाता कमरा अंदर से बन्द मिलता | एक बार उसने निश्चय कर लिया कि मिलकर ही जाएगा | बाहर टूल पर बैठा रहा | दरवाज़ा खुला तो ज़रबहार दुपट्टा दुरुस्त करती हुई बाहर निकली थी | प्रोफेसर पैंट की बेल्ट कस रहे थे | साक्कुब की नजर फर्श पर रखे हुए बैग पर पड़ी जिसकी ज़िप पूरी तरह बंद नहीं हुई थी |ज़िप के कोने पर बैग आधा खुला हुआ था जिससे गुलाबी रंग की लुंगी झाँक रही थी |
सर मैंने उस अध्याय को रीराईट किया है | ‘’
‘’ अभी बिजी हूँ कल दिखाइएगा ‘’ |
सर....एक नजर देख लेते ...’’ |
‘’ आपमें यही खराबी है | उस्ताद की बात नहीं मानते | ‘’
साक्कुब सर झुकाए कमरे से बाहर निकल गया |
उस्ताद आजम जामिया से तशरीफ़ लाए | विभाग में चहल पहल थी | तीस आदमियों के लंच के लिए अलकरीम बुक हो गया था | मेहमानों के आने जाने के लिए सकीना को कार कि व्यवस्था भी करनी पड़ी | दिन के ग्यारह बजे से वाइवा शुरू हुआ | विभाग के सभागार में कुर्सियां लगा दी गयी थीं | एक पंक्ति उस्तादों की थी |बीच में उस्ताद आजम बिराजमान थे | सामने की कुर्सी पर सकीना भीगी बिल्ली की तरह बैठी थी जैसे बलिस्थल पहुंच गयी हो और अब राजाधिराज हुक्म सादिर करेंगे |सकीना के पीछे भी कुर्सियों की कतार थी जिस पर छात्र बैठे हुए थे | इनसे अलग छात्राओं की कतार थी |
उस्ताद अजम के हाथ में स्पाइरलबाइंडिंग की हुई थीसिस की प्रति थी जिसे उल्ट पुलट कर वो इसतरह देख रहे थे जैसे बली चढाने से पहले बकरे के दांत देखे जाते हैं |
‘’ आपने ऐसे विषय का चयन क्यों किया ...मनोवैज्ञानिक कहानियाँ ? हर कहानी मनोविज्ञानिक होती है |’’
सर कुछ मानवीय रवय्ये इतने रहस्यमयी होते हैं कि इन्हें समझने के लिए उस सिद्धांत और विचारधारा से मदद लेनी होगी जो मनोवैज्ञानिकों ने रचे हैं ‘’|
‘’ अच्छा....? किस किस को पढ़ा आपने ?’’
सकीना ने घबराहट महसूस की |
बताइए फ़्राइड का कारनामा क्या है ? ‘’
अन्कान्शास्नेस की खोज ‘’ |
यूंग ....?’’
कलेक्टिव कांशसनेस ....आर्कीटाइप की खोज उसीने की |’’
उस्ताद आजम ने पहलु बदला | फिर अचानक थीसिस का एक पन्ना उलटते हुए बोले |
‘’ स्पेलिंग मिस्टेक बहुत है ‘’ |
‘’ टाइपिंग मिस्टेक है सर ‘’ |
‘’ ये क्या जवाब हुआ ? सुधारने के लिए मेरे पास लाइ हैं ‘’ |
सकीना चुप रही | उस्ताद आजम ने कुछ और पन्ने पलटे |
‘’ ये क्या ? इस तरह सूची बनाई जाती है | सिर्फ किताबों का नाम लिखा है , प्रकाशक का नाम नहीं है | प्रकाशन का साल नहीं है....बहुत गलत बात है...बहुत गलत बात.... ‘’ |
‘’ लेकिन बच्ची ने मेहनत तो की है ‘’ | प्रोफेसर हाशमी ने बीच में टोका |
उस्ताद मुस्कराए |’’ मेहनत तो सभी करते हैं .’’ |
लेकिन एक बात है | तहरीर ओरिजनल लगती है ‘’ |
अबुपट्टी ने झुककर आहिस्ता से कहा ‘’ लंच का बन्दोबस्त अलकरीम में है |’’
अलकरीम में तीस आदमियों की जगह सुरक्षित थी | ज़रबहार प्रोफेसर एजाज़ से चिपकी नजर आ रही थी | वो जिधर जाते उधर जाती | वो बैठे तो बगल में बैठी | वो उठे और उस्ताद आजम की पास वाली कुर्सी पर बैठे तो वहां भी चिपक गयी | लेकिन सकीना वहाब खड़ी रही | कोई उसे बैठने के लिए नहीं कह रहा था | साक्कुब ने कहा |
‘’ आओ बैठो | ‘’
मैं कैसे बैठ सकती हूँ ? मैं मेज़बान हूँ ‘’ |
‘’ तुम अहमक हो ‘’ | साक्कुब को गुस्सा आ गया |
मुज़िन की लडकी...गरीब...बदसूरत...तुम नौकरानी की तरह कोने में खड़ी रहोगी | उस्ताद बरात लेकर आए हैं ...तुम दहेज़ की रकम अदा करोगी....पचास हजार....’’ |
साक्कुब भन्नाता हुआ होटल से बाहर चला गया |
लेकिन मुज़िन की लडकी को डिग्री मिल गयी | वो अब डाक्टर सकीना वहाब थी |
साक्कुब ने अपने आलेख में पुन; संशोधन किया | उसने उल्फ़ के उपन्यास ‘ लाइटहाउस ‘’ की चंद पंक्तियों के साथ ऐन के नाविल ‘’ मेरे भी सनमखाने ‘’ का एक अंश पेश किया | लेकिन प्रोफेसर संतुष्ट नहीं थे | उनहोंने कुछ और मिसालें पेश करने की सलाह दी | साक्कुब को एहसास होने लगा कि उसका आलेख कभी मुकम्मल नहीं होगा | उसको लगा इर्द-गिर्द कांटे से उग आए हैं | वो इन्हें साफ़ नहीं कर सकता |
लेकिन साक्कुब को एक तीर और लगा | ये कम गहरा नहीं था | ज़रबहार उस दिन इतरा कर चल रही थी और साहित्य में उत्तर आधुनिकता की बात कर रही थी | उसके हाथ में एक पत्रिका थी जिसमें उसका एक लेख छपा था | वो सबको दिखाती फिर रही थी | साक्कुब ने देखा तो......
‘’ अरे...अरे....ये तो मेरा लेख है...माबाद जदीदियत के इसरार ....ये मैंने लिखा है | तुमने अपने नाम से कैसे छपा दिया ? ‘’
‘’ आपका लेख कैसे हो गया जनाब ? ‘’
बिलकुल मेरा है | तुमने चोरी की है | ‘’
‘’ आपके नामसे कहीं छपा हो तो बताइए | ‘’
‘’ मैंने कहीं नहीं छपाया , मैं इससे संतुष्ट नहीं था तो फाड़कर फेंक दिया था और वो तुम्हारे हाथ लग गया |’’
‘’ वाह क्या लाजिक है ?’’
‘’ मैं तुमपर मुक़दमा दायर करूंगा | ‘’
‘’ आप मुझे धमकी दे रहे हैं | मैं सर से कहूँगी | ‘’
सरने साक्कुब को बुलाया | ज़रबहार भी बैठी हुई थी |
‘’ आप इसको धमकी क्यों दे रहे हैं ?’’
‘’मैं कोई धमकी नहीं दे रहा हूँ सर....लेकिन इसने मेरा लेख अपने नामसे छपा लिया है |’’
‘’ क्या सबूत है आपके पास ? मज़मून की नकल दिखाइये | ‘’
‘’ नकल नहीं है | ‘’
‘’ क्यों ? ‘’
‘’ मैंने डायरी में लिखा था | मुझे स्तरीय नहीं लगा तो फाड़कर फेंक दिया कि फिरसे लिखूंगा | ‘’
‘’ इस बच्ची ने बहुत मेहनत की है | मैं गवाह हूँ |मेर्र मार्गदर्शन में इसने लिखा है और आप इस पर इल्जाम लगा रहे हैं | जाइए अपनी थीसिस मुकम्मल कीजिये |’’
गुस्से से साक्कुब की आँखों में आंसू आ गये | उसके जी में आया खरी खरी सुनादे कि हम जबभी कोई लेख लिखकर लाए आपने घास नहीं डाली | ये कहकर टाल दिया कि अभी से पत्रिकाओं में छपने की ज़रूरत नहीं है और इस जाहिल लडकी पर इतनी इनायत ....?
कमज़ोर आंसू पीता है |
साक्कुब आंसू पी गया |उसने खुदको ही कोसा | गलती उसी की है | लेख फाडकर फेंकने की क्या ज़रूरत थी ? रहने देता डायरी में ...इस पापिन के हाथ तो नहीं लगता |
अध्यापकों के रवय्ये से साक्कुब का दिल टूट गया था | विभाग में उसका आना जाना कम हो गया | उसने थीसिस में कई बार संशोधन किया लेकिन प्रोफेसर एजाज़ को हर बार कमी महसूस हुई |
कुदरत भी कभी कदम कदम पर ज़ख्म लगाती है |
इसबार साक्कुब सम्भल नहीं सका | वो एक दूकान पर पांडुलिपि की फोटोकापी कराने गया था | वहां ज़रबहार की थीसिस नजर आयी और उसके पाँव तले जमीन खिसक गयी |ये उसकी अपनी थीसिस थी जिसे ज़रबहार ने अपना नाम दे दिया था | उसने थीसिस उठाई | दुकानदार उसे रोकता ही रह गया | सीधा विभाग में आया | पागल की तरह ज़रबहार को ढूंड रहा था |वो उसे कारीडोर में नजर आयी |
‘’ क्यों री कुल्टा....? ये तेरी थीसिस है ? ‘’
ज़रबहार काँप गयी |
साक्कुब ने उसे दोनों हाथों से दबोचा |
‘’ मेरी थीसिस चोरी करती है ?’’
‘’ तमीज़ से बात कीजिये ‘’ |
‘’ तमीज़ से बात करूं तुझसे....? इजारबंद की ढीली....दूसरों को तमीज़ सिखाती है ‘’ |
‘’ छोड़िये मुझे....’’
साक्कुब ने उसे दीवार से अड़ा दिया |
‘’ लुंगी में रिसर्च करती है...कमरे में बन्द होकर.....?’’
‘’ मुझे जाने दीजिये ‘’ |
आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता ‘’
‘’ मैं कहती हूँ छोड़िये मुझे....’’|
छोड़ दूँ तुझे...? मेरा मज़मून चोरी कर लिया मेरी थीसिस चोरी करली और तुझे छोड़ दूँ....?’’
साक्कुब ने उसकी छातियाँ जोर से दबाई
ज़रबहार सिसक पड़ी |
साक्कुब ने अपनी जांघ उसकी जांघ से भिड़ा दी |
‘’ मेरी जान...सिर्फ लुंगीबरदार को दोगी...?’’
लड़के उसके इर्द-गिर्द जमा हो गये |
‘’ क्या करते हो साक्कुब ? छोड़ो इसे .’’|
‘’ मेरी थीसिस चोरी की है | ‘’
इसको बेइज्ज़त करने से क्या फायदा है ? उस प्रोफेसर से कहो जो रिसर्च के नाम पर यौनशोषण करता है पैसे लेता है और थीसिस बेचता है | ‘’
लड्कोंने किसी तरह उसको ज़रबहार से छुड़ाया |
साक्कुब सीधा प्रोफेसर राशिद एजाज़ के चैम्बर में घुसा | उसकी पीठ पर लड़के भी थे \
‘’ सुनले लुंगी-बरदार ! जिस दिन तेरी रखैल को वाइवा की डेट मिली उस दिन ऍफ़.आई.आर दर्ज करूंगा |
विभाग ने चुप्पी साध ली | सबको सांप सूंघ गया |
साक्कुब ने भी डिपार्टमेंट छोड़ दिया और फोटोकापी की दूकान करली |
वो पांडुलिपि की स्पाइरल बाइंडिंग करता है और कमज़ोर बच्चों की थीसिस लिखता है |
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शमोएल अहमद
३०१, ग्रैंड पाटलिपुत्र अपार्टमेन्ट
नई पाटलिपुत्र कालोनी ,
पटना - 800013
MOB - 9835299303
shamoilahmad@gmail.com
Bahot achi kahani ke liye shamol Ad ko badhai....
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