Padhakku Ki Soojh पढ़क्कू की सूझ

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पढ़क्कू की सूझ रामधारी सिंह दिनकर


पढ़क्कू की सूझ रामधारी सिंह दिनकर पढ़क्कू की सूझ कविता परिचय Padhakku Ki Soojh पढ़क्‍कू की सूझ  रामधारी सिंह दिनकर पढ़क्कू की सूझ पढ़क्‍कू की सूझ Paṛhak‍kū Kī Sūjha Thappa Class 4 Hindi पढ़क्कू की सूझ प्रश्न और उत्तर Class 4 Hindi NCERT CBSE पढ़क्कू की सूझ प्रश्न और उत्तर Class 4 Hindi NCERT CBSE पढ़क्‍कू की सूझ Padakku Ki Sujh Chapter 11 Class 4 Hindi with Question and Answers Poem 11 पढ़क्कू की सूझ Padhakku Ki Sujh Hindi CBSE Grade 4 Easy explanation NCERT Solutions for Class 4 Hindi Rimjhim for chapter 11 पढ़क्कू की सूझ

पढ़क्कू की सूझ कविता का अर्थ व्याख्या 


1. एक पढ़क्कू बड़े तेज़ थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे,
जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नई बात गढ़ते थे | 

एक रोज़ वे पड़े फ़िक्र में समझ नहीं कुछ पाए,
बैल घूमता है कोल्हू में कैसे बिना चलाए ?”

कई दिनों तक रहे सोचते, मालिक बड़ा गज़ब है ?
सिखा बैल को रक्खा इसने, निश्चय कोई ढब है | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता 'पढ़क्कू की सूझ' से ली गई हैं, जो कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि एक पढ़क्कू व्यक्ति था, जो तर्कशास्त्र का ज्ञाता था | वह बहुत तेज था | जहाँ पर कोई भी बात न होती, वहाँ भी नई बात गढ़ जाता था | एकदिन वह इस बात पर बहुत चिंतित था कि कोल्हू में बैल बिना चलाए कैसे घूमता है ? इस सवाल पर वह कुछ दिनों तक परेशान रहा | सोचने लगा कि मालिक ने अवश्य ही उसे कोई कला या ढंग सिखा दी होगी | 

2. आख़िर, एक रोज़ मालिक से पूछा उसने ऐसे,
पढ़क्कू की सूझ
पढ़क्कू की सूझ 
अजी, बिना देखे, लेते तुम जान भेद यह कैसे ?”

कोल्हू का यह बैल तुम्हारा चलता या अड़ता है ?
रहता है घूमता, खड़ा हो या पागुर करता है ?”

मालिक ने यह कहा, “अजी, इसमें क्या बात बड़ी है ?
नहीं देखते क्या, गर्दन में घंटी एक पड़ी है ?

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता 'पढ़क्कू की सूझ' से ली गई हैं, जो कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि अंतत: पढ़क्कू ने एकदिन मालिक से पूछ ही लिया कि बिना देखे आप यह कैसे समझ लेते हैं कि कोल्हू का यह बैल आपका घूम रहा है या खड़ा है | तब मालिक ने उत्तर दिया कि क्या तुम बैल के गले में जो घंटी बंधी है, उसे नहीं देख रहे हो ? जबतक यह घंटी बजती रहती है, तबतक मुझे कोई चिंता नहीं रहती है |

3. जब तक यह बजती रहती है, मैं न फ़िक्र करता हूँ,
हाँ, जब बजती नहीं, दौड़कर तनिक पूँछ धरता हूँ | 

कहा पढ़क्कू ने सुनकर, तुम रहे सदा के कोरे !
बेवकूफ! मंतिख की बातें समझ सकोगे थोड़े ! 

अगर किसी दिन बैल तुम्हारा सोच-समझ अड़ जाए,
चले नहीं, बस, खड़ा-खड़ा गर्दन को खूब हिलाए | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता 'पढ़क्कू की सूझ' से ली गई हैं, जो कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जबतक यह घंटी बजती रहती है, तबतक मुझे कोई चिंता नहीं रहती है | परन्तु, जैसे ही घंटी से आवाज़ आना बंद हो जाती, मैं दौड़कर थोड़ा सा उसकी पूँछ पकड़ लेता हूँ | तभी मालिक के इस बात पर पढ़क्कू ने उत्तर दिया कि आप सदा के लिए अनपढ़ ही रहेंगे | आपको मेरी बात नहीं समझ में आएगी | कभी ऐसा भी तो हो सकता है कि किसी दिन आपका बैल अड़ जाए और खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाए | 

4. घंटी टुन-टुन खूब बजेगी, तुम न पास आओगे,
मगर बूंद भर तेल साँझ तक भी क्या तुम पाओगे ?

मालिक थोड़ा हँसा और बोला कि पढ़क्कू जाओ,
सीखा है यह ज्ञान जहाँ पर, वहीं इसे फैलाओ | 

यहाँ सभी कुछ ठीक-ठाक है, यह केवल माया है,
बैल हमारा नहीं, अभी तक मंतिख पढ़ पाया है | 

व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ कविता 'पढ़क्कू की सूझ' से ली गई हैं, जो कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि यदि किसी दिन आपका बैल अड़ जाएगा और खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाएगा, तो आप समझेंगे कि बैल चल रहा है, किन्तु शाम तक एक बूंद भी तेल नहीं निकल पाएगा | तभी पढ़क्कू की बातें सुनकर मालिक हँसा और बोला --- " पढ़क्कू तुम अब जाओ, जहाँ से यह ज्ञान सीखकर आए हो, इसे वहीं फैलाओ |" यहां पर सबकुछ ठीक-ठाक है, क्योंकि मेरे बैल को अभी तक तर्कशास्त्र का ज्ञान नहीं है | 

पढ़क्कू की सूझ summary सारांश

पढ़क्कू की सूझ पाठ या कविता, कवि 'रामधारी सिंह दिनकर' जी के द्वारा रचित है | इस कविता के अनुसार, एक पढ़क्कू व्यक्ति था, जो तर्कशास्त्र का ज्ञाता था | वह बहुत तेज था | जहाँ पर कोई भी बात न होती, वहाँ भी नई बात गढ़ जाता था | 

एकदिन वह इस बात पर बहुत चिंतित था कि कोल्हू में बैल बिना चलाए कैसे घूमता है ? इस सवाल पर वह कुछ दिनों तक परेशान रहा | सोचने लगा कि मालिक ने अवश्य ही उसे कोई कला या ढंग सिखा दी होगी | 

अंतत: उसने एकदिन मालिक से पूछ ही लिया कि बिना देखे आप यह कैसे समझ लेते हैं कि कोल्हू का यह बैल आपका घूम रहा है या खड़ा है | तब मालिक ने उत्तर दिया कि क्या तुम बैल के गले में जो घंटी बंधी है, उसे नहीं देख रहे हो ? जबतक यह घंटी बजती रहती है, तबतक मुझे कोई चिंता नहीं रहती है | परन्तु, जैसे ही घंटी से आवाज़ आना बंद हो जाती, मैं दौड़कर थोड़ा सा उसकी पूँछ पकड़ लेता हूँ | तभी मालिक के इस बात पर पढ़क्कू ने उत्तर दिया कि आप सदा के लिए अनपढ़ ही रहेंगे | 
आपको मेरी बात नहीं समझ में आएगी | यदि किसी दिन आपका बैल अड़ जाएगा और खड़ा-खड़ा ही गर्दन हिलाएगा, तो आप समझेंगे कि बैल चल रहा है, किन्तु शाम तक एक बूंद भी तेल नहीं निकल पाएगा | 

तभी पढ़क्कू की बातें सुनकर मालिक हँसा और बोला --- " पढ़क्कू तुम अब जाओ, जहाँ से यह ज्ञान सीखकर आए हो, इसे वहीं फैलाओ |" यहां पर सबकुछ ठीक-ठाक है, क्योंकि मेरे बैल को अभी तक तर्कशास्त्र का ज्ञान नहीं है...|| 


पढ़क्कू की सूझ पाठ के प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 "कोल्हू का बैल" ऐसे व्यक्ति को कहते हैं, जो कड़ी मेहनत करता है या जिससे कड़ी मेहनत करवाई जाती है |  मेहनत और कोशिश से जुड़े कुछ और मुहावरे नीचे लिखे हैं | इनका वाक्यों में इस्तेमाल करो | 

• दिन-रात एक करना
• पसीना बहाना
• एड़ी-चोटी का जोर लगाना

उत्तर- वाक्यों का प्रयोग निम्नलिखित है - 

• दिन-रात एक करना - परीक्षा में अच्छे नम्बरों से पास होने के लिए दिन-रात एक करना पड़ता है | 

• पसीना बहाना - जब किसान खेतों पर पसीना  बहाते हैं, तब फसलें लहलहाती है | 

• एड़ी-चोटी का जोर लगाना - सभी पार्टी चुनाव जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं | 

प्रश्न-2 पढ़क्कू का नाम पढ़क्कू क्यों पड़ा होगा ? 

उत्तर- पढ़क्कू अधिकतर पढ़ता ही रहता होगा, जिस कारण से लोग उसे पढ़क्कू के उपनाम से पुकारते होंगे | इसप्रकार उसका नाम पढ़क्कू पड़ा होगा | 

प्रश्न-3 पढ़क्कू नई-नई बातें गढ़ते थे | बताओ, ये लोग क्या गढ़ते हैं ? 

सुनार -------------
लुहार -------------
ठठेरा -------------
कवि --------------
कुम्हार -----------
लेखक -----------

उत्तर- निम्नलिखित गढ़ते है - 

सुनार --- जेवर
लुहार --- लोहे की वस्तु 
ठठेरा --- बर्तन
कवि --- कविता
कुम्हार ---  मिट्टी के बर्तन
लेखक --- कहानी, लेख आदि | 

प्रश्न-4 तीसरी कक्षा में तुमने रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘मिर्च का मज़ा’ पढ़ी थी | अब तुमने उन्हीं की कविता ‘पढ़क्कू की सूझ’ पढ़ी | 

(क) दोनों में से कौन-सी कविता पढ़कर तुम्हें ज्यादा मज़ा आया ? 

उत्तर- तुल्नात्मक रूप से ‘पढ़क्कू की सूझ’ कविता पढ़कर हमें ज्यादा मज़ा लगा | इस कविता में पढ़क्कू तर्कशास्त्र का ज्ञाता है तथा बहुत पढ़ा-लिखा है | फिर भी बैल के मालिक से मूर्खतापूर्ण और अनपढ़ वाला प्रश्न पूछ बैठता है | इससे कविता रोचक बन जाती है | 

प्रश्न-5 तुम्हें काबुली वाला ज्यादा अच्छा लगा या पढ़क्कू ?  या कोई भी अच्छा नहीं लगा ? 

उत्तर- 'काबुली वाला' या 'पढ़क्कू' दोनों के अपने-अपने भाव और अपनी-अपनी पृष्ठभूमि है | मुझे दोनों अच्छे लगे | 

पढ़क्कू की सूझ शब्दार्थ 


• पढ़क्कू -         बहुत पढ़ने वाला
• तर्कशास्त्र -      इसके द्वारा तर्क विद्या का ज्ञान दिया जाता है 
• गढ़ते थे -        स्वयं से बात बनाकर बोलना 
• गज़ब -           विचित्र 
• ढब -             ढंग, तरीका
• भेद -             गुप्त बात, रहस्य 
• पागुर -           जुगाली 
• फ़िक्र -           चिंता 
• तनिक -          थोड़ा सा 
• धरता हूँ -        पकड़ता हूँ
• कोरे -            मूर्ख, बेवकूफ
• अड़ जाए -      जिद पर आना, ठहर जाना 
• साँझ -           संध्या, शाम 
• मंतिख -         तर्कशास्त्र, मस्तिष्क संबंधी | 


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