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स्वतंत्रता की ओर सुभद्रा सेन गुप्ता
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स्वतंत्रता की ओर पाठ का सारांश
स्वतंत्रता की ओर पाठ या कहानी लेखिका 'सुभद्रा सेन गुप्ता' के द्वारा लिखित है | इस कहानी के अनुसार, धनी अपने माता-पिता के साथ अहमदाबाद के पास महात्मा गाँधी के साबरमती आश्रम में रहता था | धनी उस समय नौ साल का बच्चा था | आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही थी | पर यह बात धनी को कोई नहीं बताता था | इसलिए वह सोचता था कि लोग उसे बुद्धू समझते हैं | आश्रम में पूरे भारत से लोग रहने आते थे | गाँधीजी की तरह वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे | आश्रम में सबको कोई न कोई काम करना होता, जैसे खाना पकाना, बर्तन धोना, गाय और बकरियों का दूध दुहना आदि | धनी का काम था बिन्नी की देखभाल करना | वैसे बिन्नी आश्रम की एक बकरी थी | धनी और बिन्नी एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे | धनी को बिन्नी से बातें करना पसंद था | एकदिन जब धनी बिन्नी को घास खिला रहा था, तब उस समय सभी गाँधीजी के कमरे में बैठकर कोई योजना पर चर्चा कर रहे थे | धनी को सब बच्चा समझते थे, लेकिन धनी कहता था कि वह सबकुछ समझता है | वह बिन्नी को लेकर रसोई की ओर चला जहाँ उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थी और कमरे में धुँआ भर रहा था |
बिन्नी अपनी माँ से पूछता है --- " अम्मा, क्या गाँधी जी कहीं जा रहे हैं ?"
खाँसते हुए माँ बोलीं --- " वे सब यात्रा पर जा रहे हैं |"
धनी अपनी माँ से कुछ और पूछता कि माँ ने डांटते हुए उससे कहा कि अब तुम पूछना बंद करो और जाओ यहाँ
स्वतंत्रता की ओर |
नमक का नाम सुनते ही धनी आश्चर्यचकित होकर पूछा --- " नमक क्यों बनाएँगे ? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है |" फिर से धनी बिंदा चाचा से पूछा कि गाँधीजी नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं ? यह तो समझदारी वाली बात नहीं है | इस पर बिंदा चाचा ने धनी को समझाया कि सभी भारतीयों को, चाहे वह गरीब से गरीब ही क्यों न हो, उसे भी नमक पर कर देना पड़ता है | ऊपर से ब्रिटिश सरकार की ओर से भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही भी है | महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी | इसलिए उन्होंने निश्चय किया है कि वे दांडी चलकर जाएंगे और समुद्र के पानी से नमक बनाएंगे | धनी सोचने लगा कि गाँधी जी इतना पैदल चलेंगे तो थक जाएंगे | उन्हें बस या ट्रेन से जाना चाहिए |
तभी बिंदा चाचा ने धनी को समझाते हुए बोला --- " यदि वे इस लम्बी यात्रा में दांडी तक पैदल जाएंगे तो यह ख़बर फैलेगी | अखबारों में फोटो छपेंगी | रेडियो पर रिपोर्ट जाएगी | पूरी दुनिया के लोग यह जान जाएंगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं | ब्रिटिश सरकार के लिए यह बड़ी शर्म की बात होगी |" इतना सुनते ही धनी कहने लगा कि तब तो गाँधीजी बड़े अक्लमंद हैं | फिर धनी ने भी निश्चय कर लिया कि वह भी दांडी यात्रा में जाएगा | तत्पश्चात्, वह सीधा अपने पिता के पास पहुँचा और अपना निर्णय उन्हें सुना दिया | पिताजी जी के समझाने के बाद भी वह अपने निर्णय पर डटा रहा |
धनी के पिताजी ने चरखा रोककर उसे समझाया कि सिर्फ वे लोग जाएंगे जिन्हें महात्माजी ने खुद चुना है | इस बात पर धनी बोला उठा कि ठीक है, मैं उन्हीं के पास जाऊँगा और बात करूंगा | वे जरूर हाँ कहेंगे |
गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे | उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था | पर धनी को वह समय पता था, जब उन्हें बात सुनने का समय होगा | हरदिन सुबह वे आश्रम में पैदल घूमते थे |
अगले दिन जैसे ही सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़कर गाँधीजी को ढूंढ़ने निकला | गाँधी जी गौशाला में गायों को देख रहे थे | फिर सब्जी के बगीचे में चले गए | अंत में, गाँधीजी अपनी झोंपड़ी की ओर चले गए | बरामदे में चरखे के पास बैठकर उन्होंने स्वयं धनी को पुकार लिया --- " यहाँ आओ बेटा !" धनी दौड़ कर उनके पास पहुँचा | बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई | धनी हिम्मत करके उनसे पूछ ही लिया कि क्या मैं आपके साथ दांडी चल सकता हूँ ?
गाँधीजी ने मुस्कुराते हुए कहा --- " तुम अभी छोटे हो बेटा ! दांडी तो बहुत दूर है ! सिर्फ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पाएँगे | "
इसपर धनी बोला --- " पर आप तो नौजवान नहीं हैं, आप नहीं थक जाएंगे ?"
" मैं बहुत अच्छे से चलता हूँ..." --- गाँधी जी ने कहा | धनी भी जिद्द करते हुए कहा --- " मैं भी बहुत अच्छे से चलता हूँ |"
गाँधीजी थोड़ा सोचकर बोले --- " मगर एक समस्या है | अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा ? इतना चलने के बाद मैं तो कमजोर हो जाऊँगा | इसलिए जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे की मेरी ताकत लौट आए |" धनी गाँधीजी की बात समझ गया और अंत में उनसे कहा कि ठीक है, मैं आपके लिए बिन्नी की देखभाल करूंगा | बिन्नी और मैं आपका यहीं पर इंतजार करेंगे...||
स्वतंत्रता की ओर कहानी का उद्देश्य
स्वतंत्रता की ओर पाठ द्वारा हमें यह बताया गया है कि हमें सदा अपने कर्त्तव्य के प्रति ईमानदार रहना चाहिए | मृदुल स्वभाव का या व्यवहार-कुशल बनने की कोशिश करना चाहिए | अत: राष्ट्रहित में सदैव समर्पित रहना चाहिए |
स्वतंत्रता की ओर प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 धनी ने गाँधीजी से सुबह के समय बात करना क्यों ठीक समझा होगा ?
उत्तर- गाँधी जी बड़े व्यस्त रहते थे | उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था | गांधी जी आश्रम में हरदिन सुबह पैदल घूमते थे | इस समय उनसे मिलना आसान था | इसलिए धनी ने गाँधीजी से सुबह के समय बात करना ठीक समझा होगा |
प्रश्न-2 धनी बिन्नी की देखभाल कैसे करता था ?
उत्तर- धनी का काम था बिन्नी की देखभाल करना | वैसे बिन्नी आश्रम की एक बकरी थी | धनी और बिन्नी एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे | धनी को बिन्नी से बातें करना पसंद था | वह बिन्नी को हरी घास खिलाता था | उसके बर्तन में पानी डालकर पिलाता था और उसे आश्रम में घुमाता था |
प्रश्न-3 धनी को यह कैसे महसूस हुआ होगा कि आश्रम में कोई योजना बनाई जा रही है ?
उत्तर- एकदिन जब धनी बिन्नी को घास खिला रहा था, तब उस समय सभी गाँधीजी के कमरे में बैठकर गम्भीरतापूर्वक चर्चा कर रहे थे | धनी को उसी समय महसूस हुआ होगा कि आश्रम में कोई योजना बनाई जा रही है |
प्रश्न-4 धनी को बिन्नी की देखभाल करने की जिम्मेदारी दी गई थी | इनकी क्या-क्या जिम्मेदारियाँ थीं ?
• माँ
• पिता
• बिंदा
उत्तर- जिम्मेदारियाँ निम्नलिखित थी -
• माँ - आश्रम के लोगों के लिए खाना पकाती थी |
• पिता - चरखा कातकर धागा बनाते थे |
• बिंदा - आश्रम के लिए तरह-तरह की सब्जियाँ उगाते थे |
प्रश्न-5 गांधीजी के आश्रम का नाम क्या है ?
उत्तर- गांधीजी के आश्रम का पूरा नाम "साबरमती आश्रम" है |
प्रश्न-6 जब धनी ने अपने पिता से पूछा कि क्या आप और अम्मा दांडी यात्रा पर जा रहे हैं, तो उसके पिता ने क्या कहा ?
उत्तर- जब धनी ने अपने पिता से पूछा कि क्या आप और अम्मा दांडी यात्रा पर जा रहे हैं, तो उसके पिता ने कहा कि मैं जा रहा हूँ, तुम और अम्मा यहीं रहोगे |
प्रश्न-7 धनी यात्रा पर जाने के लिए उत्सुक क्यों था ?
• अगर तुम धनी की जगह होते तो क्या तुम यात्रा पर जाने की जिद करते ? क्यों ?
उत्तर- धनी स्वतंत्रता की लड़ाई में भाग लेना चाहता था | वह गांधीजी के कारनामों से प्रभावित था | इसलिए वह यात्रा पर जाने के लिए उत्सुक था | जी हाँ, अगर मैं धनी की जगह होता तो यात्रा पर जाने की जिद करता | क्योंकि मैं भी चाहता कि स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान दूँ |
स्वतंत्रता की ओर पाठ का शब्दार्थ
• अक्लमंद - होशियार, बुद्धिमान
• बुद्धू - मूर्ख
• उतावला होना - धैर्य खो देना
• खिलाफ - विरोध
• सत्याग्रह - सत्य के लिए आग्रह करना
• मनाही - रोक, अवरोध
• ठुकरा देना - अवज्ञा करना, इनकार करना
• हिम्मत - साहस
• ताकत - शक्ति, बल |
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