मनुष्य आचरण में चार आर्य सत्य अष्टांगिक मार्ग

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भगवान बुद्ध जी की विचारधारा वर्तमान समय में मनुष्य जिंदगी को लेकर है; आज मनुष्य अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है। तथागत बुद्ध जी ने मनुष्य जाति के त्रासदी कारणों और उसके उभरने का मार्ग क्या है और क्यों इंसान इतना निराश एवं दू:खवादी क्यों बना है ? इन सभी उलझे हुए प्रश्नों का उत्तर बौद्ध दर्शन में इसकी प्रासंगिकता और इसकी उपयोगिता के तौर पर तथागत भगवान बुद्ध जी ने समझाई है।

मनुष्य आचरण में आर्य सत्यों का संधान 
(बौद्ध दर्शन के संदर्भ में)


                
वर्तमान समय माननीय जटिलताओं का समय है जिसमें हर कोई अपने त्रासदी जीवन के प्रति त्रस्त और निराश है। भगवान बुद्ध जी की विचारधारा वर्तमान समय में  मनुष्य जिंदगी को लेकर है; आज मनुष्य अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है।  तथागत बुद्ध जी ने मनुष्य जाति के त्रासदी  कारणों और उसके उभरने  का मार्ग क्या  है और क्यों इंसान इतना निराश एवं दू:खवादी क्यों बना है ? इन सभी उलझे हुए प्रश्नों का उत्तर बौद्ध दर्शन में इसकी प्रासंगिकता और इसकी उपयोगिता के तौर पर तथागत भगवान बुद्ध जी ने समझाई है। 
             
भगवान बुद्ध जी का जन्म 'ईसा पूर्व 563 में जो लुंबिनी नामक गांव में आज के नेपाल में माता महामाया की कोख से धरती का यह उद्धारक , ज्ञानरूपी महासागर का जन्म हुआ। बौद्ध दर्शन से अभिप्राय उस दर्शन से हैं जो भगवान बुद्ध जी ने अपने विचार माननीय उद्धार के लिए व्यक्त की है ।आज उनके विचारों का प्रभाव एशिया खंड में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इसके प्रभाव को देखा जा सकता है। 
           
दु:ख से मुक्ति यही बौद्ध धर्म का सदा से ही मुख्य उद्देश्य रहा है । आर्य सत्य की संकल्पना बौद्ध दर्शन का मुख्य
भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध
सिद्धांत है। आर्य सत्य चार है जो तथागत ने बताए हुए हैं। मनुष्य जीवन में दुख एक ऐसा व्यापक रूप है जो संसार में हर जगह देखने के लिए मिल जाता है भगवान बुद्ध जी ने अपने घर पत्नी और पुत्र को त्याग कर इस मायावी दुनिया के वैभव से  दूर  होकर मनुष्य जीवन में दु:ख का कारण क्या है ? यह खोज निकालने के  उद्देश्य से उन्होंने अपनी ध्यान साधना प्रारंभ की तथागत मनुष्य का जीवन देखकर उन्हें दुख का कारण ज्ञात हो गया तथागत को समझ में आ गया कि दु:ख का मुख्य कारण ही मनुष्य की तृष्णा है।  मनुष्य अपने आसपास के चकाचौंध रौशनी  देखकर वह भौतिक सुखों के पीछे भाग रहा है।  वह इतना निर्दयी बन गया है कि मानवीयता को भूलकर  धोखाधड़ी ,वासना ,मत्सर ,अहंकार  आदि कारणों का अपना व्यवहारिक ले रखा है । मनुष्य इस  दुनिया में इस कदर खो गया है कि उसे हर  कदम-दर-कदम लालसा से उठाने पर  मजबूर दिखाई दे रहा  हैं।
          
तथागत भगवान बुद्ध ने इन सभी चली आ रही दुविधा तथा मनुष्य के सुख एवं दु:ख इन सभी का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य की विचित्र वृत्तियों का आशय बताया है। 
              
मनुष्य अपने कामवासना मोह अहंकार इन इंद्रियों को वश में नहीं कर सकता बल्कि इसका शिकार बन जाता है और उसे इसकी लत सी लग जाती है इन सभी बातों पर विचार विमर्श करके तथागत कहते हैं जो इंसान अपने इंद्रियों को वश में नहीं कर सकता तथा हमेशा वह लोभ ,कामवासना एवं दूसरों का बुरा सोचता है वह इंसान जीवन में कभी भी सफलता हासिल नहीं कर सकता वह हमेशा इन लोभासुर के  पीछे भागता है किंतु उसके हाथ में दुख ही दुख आता  है वह  इंसान जीवन भर अपने आपको  ही खोजता रहता है। 
              
आज हम वर्तमान समय की ही बात ले, गृहस्थ अपने सुख और साधनों की ओर इस तरह   आकर्षित हो गया है कि उसे समझ में नहीं आ रहा है कि क्या सही है और क्या गलत है दुनिया की चमक- दमक देखकर मनुष्य अंधा हो चुका है और गलत रास्ते पर चल रहा है अगर प्रासंगिक तौर पर देखा जाए तो सामाजिक,राजनीतिक, कौन सा भी क्षेत्र हो सभी मनुष्य जातियों का स्वभाव उनकी विचारधारा बदल सी गई है मनुष्य को अनेक विकारों ने घेर रखा है इस बात की वजह से आज सभी मनुष्य लालची तथा स्वार्थी बनकर दानव सा रूप ले रहा  दिखाई दे रहा है आज सृष्टि में जो बड़े बड़े हादसे देखने मिल जाते हैं इसका मुख्य दोषी मनुष्य की लालसा  ही तो है। 
            
तथागत कहते हैं मनुष्य अपने दु:ख से निराश और भ्रमित है जब तक मनुष्य अपनी भावनाओं तथा अपनी इंद्रियों का पर विजय प्राप्त नहीं पा सकता तब तक वह मनुष्य कायम रूप से अंधकार तथा दुख में गिरा हुआ रहता है तथागत भगवान बुद्ध का व्यक्तिमत्व ऐसा था कि दुश्मन भी उनका करुण स्वरूप देख कर उनका मित्र बन जाता । उन्हें हिंसा बिल्कुल भी पसंद नहीं थी लेकिन जो हिंसा वादी मनुष्य है उनको सही मार्ग पर लाने का कार्य स्वयं भगवान बुद्ध ने किया देवदत्त जोकि भगवान बुद्ध जी के भाई थे,वे पशु तथा प्राणियों की हत्या कर अपने आप को क्षत्रिय होने का प्रमाण देते थे तथागत ने देवदत्त को सही तरीके से समझा कर उन्हें सही रास्ते पर ले आए  तथागत ने उन्हें समझाया कि हत्या करके तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं हो सकता अतः हत्या न कर उनके प्राणों की रक्षा कर और यही सही क्षत्रिय तथा राजा का धर्म है यह बात सुनकर देवदत्त को अपनी गलती का एहसास हो गया वह तथागत की शरण में आ गया और उनके कार्य में सम्मिलित हो गया। 
             
तथागत  के चार आर्य सत्य ही उनके ध्यान प्राप्ति का प्रमुख अंग है वर्तमान समय  में मनुष्य को अपना जीवन कैसे बिताना चाहिए यह सीख उनके आर्य सत्य से  देखने  मिल जाती है 
            
तथागत भगवान बुद्ध का प्रथम आर्य सत्य 'दुख' है यदि हम जीवन के बाह्य स्वरूप में उलझे हुए हैं तो वहाँ मात्र दुख ही दुख है जन्म, मृत्यु ,चिंता, व्यग्रता, प्रिय का वियोग  यह सभी दुखों के कारण है। ढाई हजार वर्ष पहले की बात हो या वर्तमान समय की किंतु मनुष्य की मन स्थिति तब से अब तक अपने दुख की सोच से  जूझ रही है जीवन के किसी भी मोड़ पर दुख का सामना करना अनिवार्य है अगर जीवन में सुख है तो दुख का आना लाजमी है ।
          
अपने दूसरे आर्यसत्य में तथागत ने दुख का कारण क्या है यह बताया है वह कहते हैं कि,चाहे जीवन में दुख का प्रत्यक्ष अनुभव है तो अवश्य ही इस दु:ख का कोई कारण भी होगा। मनुष्य दु:ख का कारण  बाहर से  मानते हैं।  वे सारे उसीमें केंद्रित है।  उससे तात्पर्य वस्तु ,व्यक्ति ,स्थिति, कर्म आदि से दुख का उद्भव होता है और वही कारण  दु:ख काहै।  यह सभी संसारी वस्तु  जो इस दु:ख का कारण है।  जब तक मनुष्य को बाहरी कारण निश्चय नहीं होता तब तक दु:ख से निवृत्ति के सभी प्रयास निष्फल ही रहते हैं।
           
तथागत का तीसरा आर्यसत्य दु:ख का निवारण है भगवान बुद्ध जी ने कहा था हमें हर वक्त सचेत रहने की आवश्यकता है क्योंकि यदि हम दु:ख को ही नष्ट कर दे तो उसका परिणाम ही उत्पन्न नहीं होगा यदि हम यथार्थ के बारे में अपने भ्रम को समाप्त कर दें तो दु:ख फिर कभी नहीं लौटेगा तथागत ने हमारी इन्हीं समस्याओं की बात नहीं कर रहे हैं वे कहते हैं कि समस्या उत्पन्न ही नहीं की जानी चाहिए उसे पूर्ण रूप से समाप्त कर देने में ही सबकी भलाई है। 
        
तथागत भगवान बुद्ध जी ने अपने अंतिम और चौथे आर्य सत्य में  दु:ख का निवारण का मार्ग बताया है । मनुष्य या तो अति भोग में प्रवृत्त रहता है या फिर अति त्याग  में उलझ जाता है भगवान बुद्ध का कहना है यह मार्ग दोनों ही उचित  नहीं है इन दोनों से सही और उचित मार्ग है मध्य का । मनुष्य जो भी निर्णय ले सोच-समझकर ले इसके लिए तथागत ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया है तथागत भगवान बुद्ध जी के अष्टांगिक मार्ग इस प्रकार से हैं-सम्यक दृष्टि ,सम्यक संकल्प, सम्यक वचन,सम्यक कर्मान्त,सम्यक आजीविका, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि कुछ लोग आर्य अष्टांगिक मार्ग को पथ की तरह समझते हैं जिसमें आगे बढ़ने के लिए आवश्यक बातें कही गई है। वर्त्तमा में  इन मार्गों को तीन हिस्सों में वर्गीकृत किया जाता है वह' प्रज्ञा, शील ,और समाधि। '
             
आज वर्तमान समय में युवा पीढ़ी को सजग और सशक्त बनाने का कार्य बौद्ध दर्शन के माध्यम से समझाया जाना आवश्यक है तथागत भगवान बुद्ध कहते हैं 'अप्प दीपो भव:' अर्थात आप स्वयं प्रकाशित बनो शुरुआत अपने आप से करो दिशाएं मिलती जाएगी स्वयं को उजागर करो तो रास्ता अपने आप प्राप्त हो जाएगा अगर मनुष्य अपने बुरे कार्य को छोड़कर अपनी विचारधारा साफ रखें तो वह शांति  का मार्ग पकड़ सकता है। 
             
वर्तमान शिक्षा के संदर्भ में अगर हम बौद्ध दर्शन की बात करें तो इसकी उपयोगिता तथा इसकी अहमीयत आज पूरे विश्व को दिखाई देती है बौद्ध दर्शन एक शांति शील करुणा का माध्यम है अगर आज की बात की जाए तो सभी देश चौकन्ना हो गए हैं वह अपनी-अपनी देश की ताकत तथा प्रदेश के ऊपर आक्रमण से बचने के लिए बड़े-बड़े हथियार की तरफ जा रहे हैं किंतु अगर मनुष्य स्वयं शांति से रहे तो इसकी कोई आवश्यकता नहीं है युद्ध का मार्ग परम शांति का समाधान नहीं दे सकता तथागत भगवान बुद्ध जी ने अपने अलौकिक से मनुष्य को उसके दुख का कारण  बताकर उसका निवारण तथा निर्धारण  करने का मार्ग भी बताकर मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति का रास्ता दिखाया है। 
           
बौद्ध दर्शन के माध्यम से अगर बात की जाए तो मनुष्य भगवान बुद्ध जी के विचारों पर उनके मार्गों पर अथवा उनके द्वारा बताए गए चार आर्य सत्य अष्टांगिक मार्ग पर चलें और उनका पालन करें तो मनुष्य का जीवन सुख शांति समता करुणा से भरा रहेगा और उन्हें निस्वार्थ ही मोक्ष प्राप्ति मिलेगी। 
           
वर्तमान समय में संपूर्ण सृष्टि या फिर दुनिया को शांति समता ज्ञान बंधुता तथा समाधान पर चलने में ही सबकी भलाई है आज पूरे विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध चाहिए भारतीय धर्म पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा है इंसान अपने जीवन में क्षणिक आनंद पाने के लिए अनेक प्रकार के गलत काम करता रहता है और अपने जीवन को मृत्यु पर ले जाता है बौद्ध दर्शन के प्रभाव से इस दुखी संसार को त्याग कर मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। 
      
तथागत भगवान बुद्ध जी के बौद्ध दर्शन की उपयोगिता तथा उनके आर्य सत्य आज भी वर्तमान समय में भी मनुष्य जाति को एक वरदान स्वरूप है अगर कोई मनुष्य इसका आचरण सही ढंग से करें तो संसार में श्रेष्ठ मनुष्य बन सकता है।  अत:

बुद्धम शरणम गच्छामि
धम्ममं शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि।

आधार ग्रंथ  :-
1) Life of Buddha – Thomas 
2) भगवान बुद्ध : जीवन और दर्शन – धर्मानंद कोस्मबी 
3) बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास – डॉ. जी. सी. पांडेय 
4) बौद्ध दर्शन मीमांसा – आ. बलदेव उपाध्याय 
5) बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग – वेब दुनिया 
6) बौद्ध दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन – भरतसिंह    



- विवेक कांबळे
हिंदी विभाग ,एम. ए. भाग- एक


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मनुष्य आचरण में चार आर्य सत्य अष्टांगिक मार्ग
भगवान बुद्ध जी की विचारधारा वर्तमान समय में मनुष्य जिंदगी को लेकर है; आज मनुष्य अपनी जिंदगी से बहुत परेशान है। तथागत बुद्ध जी ने मनुष्य जाति के त्रासदी कारणों और उसके उभरने का मार्ग क्या है और क्यों इंसान इतना निराश एवं दू:खवादी क्यों बना है ? इन सभी उलझे हुए प्रश्नों का उत्तर बौद्ध दर्शन में इसकी प्रासंगिकता और इसकी उपयोगिता के तौर पर तथागत भगवान बुद्ध जी ने समझाई है।
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