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किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया शमशेर बहादुर सिंह
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किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का सारांश
किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ या कहानी (आपबीती) 'किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया' लेखक 'शमशेर बहादुर सिंह' जी के द्वारा लिखित है | इस कहानी के माध्यम से लेखक के द्वारा अपने हिन्दी लेखन विद्या में आने की घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है | प्रस्तुत कहानी के अनुसार, लेखक शमशेर बहादुर सिंह जी कुछ बातों से नाराज़ होकर अचानक दिल्ली के लिए पहली बस पकड़कर रवाना हो गए थे | उन्होंने तय कर लिया था कि अब उन्हें कोई काम करना है | वे अपनी ख़्वाहिश के अनुकूल पेंटिंग की शिक्षा लेने के लिए तैयार हो गए थे | लेखक परीक्षा में पास हो गए थे तथा उनके पेंटिंग के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए बिना फीस का ही उन्हें प्रवेश दे दिया गया था | लेखक करोल बाग में सड़क किनारे एक कमरा किराए से लेकर अपने क्लास के लिए आने-जाने लगे |
लेखक अकसर रास्ते में आते-जाते ड्राइंग के साथ-साथ कविताएँ भी लिखा करते थे | परन्तु, उन्हें इस बात का कभी गुमान नहीं था कि उनकी कविताएँ कभी प्रकाशित भी होंगी | कभी-कभी लेखक के भाई तेज बहादुर उनके लिए मदद स्वरूप कुछ पैसे भेज देते थे | या कभी-कभार लेखक स्वयं साइनबोर्ड पेंट करके कुछ पैसे अर्जित कर लेते थे | बाद में लेखक के साथ एक पत्रकार महोदय भी आकर रहने लगे थे, जिनकी उम्र तीस-चालिस वर्ष के बीच होगी तथा वे महाराष्ट्र के रहने वाले थे |
लेखक अंदर से दुखी रहते थे | उनकी पत्नी का देहान्त टी.बी. बिमारी के कारण हो चुका था | अब वह बिल्कुल अकेला महसूस करने लगे थे | स्केच करना और कविता लिखना उनके जीवन का मुख्य हिस्सा बन गया था | एक बार लेखक की क्लास जब समाप्त हो चुकी थी और वे वहाँ से निकल चुके थे, तब श्री बच्चन स्टूडियो में आए थे | उन्होंने लेखक के नाम एक नोट लिखकर छोड़ दिया था | लेखक के अनुसार, उनकी एक बुरी आदत थी पत्रों का जवाब न देना | तत्पश्चात्, लेखक के मन में अतुकान्त मुक्तछंद रूपी कविता उभरी और वे उस कविता को लिख लेने के बाद जवाब के रूप में श्री बच्चन जी को प्रेषित करने के उद्देश्य से रख लिए थे |
किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया |
बाद में लेखक अपने ससुराल देहरादून आ जाते हैं | वहाँ उन्होंने केमिस्ट्स और ड्रगिस्ट्स की दुकान पर कम्पाउंडरी सिखी | एकदिन लेखक ने अपनी अतुकान्त मुक्तछंद वाली कविता श्री बच्चन जी को प्रेषित कर दिया | सन् 1937 में श्री बच्चन गर्मी की छुट्टियों में देहरादून आए और ब्रजमोहन गुप्त के यहाँ ठहरे थे | संयोग से श्री बच्चन ब्रजमोहन गुप्त के साथ डिस्पेंसरी में आकर लेखक से मिले और एकदिन के लिए मेहमान भी रहे थे | उस छोटी सी, पर सटीक मुलाकात ने लेखक को श्री बच्चन के साथ व्यावहारिक रिश्ता जोड़ने में सफल हुआ | श्री बच्चन ने लेखक से कहा था --- " तुम यहाँ रहोगे तो मर जाओगे | मेरे साथ इलाहाबाद चलो और एम.ए. करो...|" तत्पश्चात्, श्री बच्चन के कहने पर लेखक इलाहाबाद चले आते हैं |
इलाहाबाद में लेखक को बच्चन परिवार से बहुत मदद और प्यार मिला | बच्चन के पिताजी ने एक गार्जियन की भूमिका निभाते हुए लेखक को उर्दू-फ़ारसी की सूफ़ी नज़्मों का एक संग्रह बड़े स्नेह से दिया था | लेखक का रूझान कभी भी सरकारी नौकरी की तरफ नहीं रही | फलस्वरूप, वे सरकारी नौकरी से दूर रहे | लेखक के अनुसार श्री पंत जी की सहायता और कृपा से उन्हें हिन्दू बोर्डिंग हाउस के कॉमन रूम में एक सीट फ्री में मिल गई थी | वहाँ पर लेखक को इंडियन प्रेस से अनुवाद का काम करना था | तत्पश्चात्, लेखक ने ये ठान लिया था कि अब उन्हें हिन्दी कविता गम्भीरता से लिखना है | वैसे लेखक के घर का वातावरण उर्दू का था और उन्होंने बी.ए. में भी एक विषय उर्दू ही रखा था | लेखक अपने बचपन के युग को धन्यवाद हैं कि किसी भाषा को लेकर कभी कोई दीवार उनके चारों तरफ़ खड़ी न हो सकी |
आखिरकार, श्री बच्चन के लाख कोशिशों के बाद भी लेखक एम.ए. फाइनल इयर की परीक्षा नहीं लिखे थे | लेखक अपनी तरह की जो कविता रच रहे थे, वह प्रयास निर्थक नहीं गया था | 'सरस्वती' पत्रिका में छपी लेखक की एक कविता ने निराला जी का ध्यान आकृष्ट किया था | लेखक ने कुछ निबंध भी लिखे थे | लेखक के अनुसार, उनका हिन्दी के साहित्यिक प्रांगण में फलने-फूलने के पीछे श्री बच्चन जी का बहुत बड़ा योगदान था | लेखक कहते हैं कि बच्चन का व्यक्तित्व उनकी श्रेष्ठ कविताओं से भी बड़ा है | बहुतों की तरह वे मेरे भी नजदीक हैं | आगे लेखक कहते हैं कि बच्चन जैसे व्यक्तित्व के धनी लोग भी दुनिया में हुआ करते हैं और वे हमेशा ऐसे ही होते हैं |
अत: लेखक कहते हैं कि मैं श्री बच्चन को असाधारण कहकर उनकी मर्यादा कम नहीं करना चाहता | परन्तु, यह साधारण और सहज प्राय: दुष्प्राप्य भी है | लेखक के अनुसार, बस यही बात सच है...||
किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 वह ऐसी कौन सी बात रही होगी जिसने लेखक को दिल्ली जाने के लिए बाध्य कर दिया ?
उत्तर- लेखक की बेरोजगारी पर उपहास किया गया होगा | या फिर घर के किसी दयनीय स्थिति पर तरस खाकर लेखक दिल्ली जाने के लिए बाध्य हो गए होंगे |
प्रश्न-2 लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफ़सोस क्यों रहा होगा ?
उत्तर- अंग्रेज़ी भारतीय भाषा न होने के कारण, अधिकांश लोगों के समझ से परे थी | जब लेखक अंग्रेज़ी में कविता लिखते होंगे, तो उन्हें सब नहीं पढ़ पाते होंगे | इसलिए लेखक को अंग्रेज़ी में कविता लिखने का अफ़सोस रहा होगा |
प्रश्न-3 अपनी कल्पना से लिखिए कि बच्चन ने लेखक के लिए 'नोट' में क्या लिखा होगा ?
उत्तर- बच्चन ने लेखक के लिए 'नोट' में लिखा होगा कि तुममें हिन्दी कविता लेखन की बहुत सम्भावनाएँ हैं | अपने कलम की रफ़्तार को थमने मत देना | हो सके तो तुम इलाहाबाद आ जाओ और बाकी की पढ़ाई भी पूरी कर लो | हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं |
प्रश्न-4 लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के किन-किन रूपों को उभारा है ?
उत्तर- लेखक ने बच्चन के व्यक्तित्व के निम्नलिखित रूपों को उभारा है ---
• बच्चन जी स्वभाव से परोपकारी व सहयोगी व्यक्ति थे |
• बच्चन जी कुशल व्यक्तित्व के धनी थे |
• बच्चन जी की सृजनात्मक शक्ति अद्भुत थी |
• बच्चन जी किसी की आंतरिक प्रतिभा को पहचानने में माहिर थे |उन्होंने लेखक के सॉनेट को पढ़कर उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था |
• बच्चन जी एक धैर्यवान संघर्षशील व्यक्ति थे |
प्रश्न-5 बच्चन के अतिरिक्त लेखक को अन्य किन लोगों का तथा किस प्रकार का सहयोग मिला ?
उत्तर- बच्चन के अतिरिक्त लेखक को निम्नलिखित लोगों का सहयोग मिला ---
• तेजबहादुर सिंह - ये लेखक के बड़े भाई हैं, जो लेखक को कुछ पैसे भेजकर आर्थिक रूप से सहयोग किया करते थे |
• उकील - ये आर्ट के शिक्षक हैं, लेखक ने इनसे पेंटिंग की बारीकियाँ सिखी थी |
• बच्चन के पिता - जब लेखक इलाहाबाद में आकर रहने लगे, तो एक अभिभावक के रूप में बच्चन के पिता जी ने ही उनका सहयोग किया |
• सुमित्रानंदन पंत - श्री पंत जी ने लेखक को इंडियन प्रेस में अनुवाद का काम दिला दिया था |
• ससुराल वाले - लेखक को अपनी आजीविका चलाने के लिए ससुराल पक्ष ने उन्हें कम्पाउंडरी का ट्रेनिंग देकर सहयोग किया |
प्रश्न-6 लेखक के हिंदी लेखन में कदम रखने का क्रमानुसार वर्णन कीजिये |
उत्तर- किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ के अनुसार, 1933 में लेखक की कुछ रचनाएँ 'सरस्वती' और 'चाँद' पत्रिकाओं में छपी थी | बच्चन के द्वारा 14 पंक्तियों का एक स्टैंज़ा, लेखक को इतना प्रभावित किया कि वे भी उसी 'प्रकार' की एक रचना किए थे, पर वह कभी छपी ही नहीं | श्री बच्चन के 'निशा-निमंत्रण' की कविताओं के रूप-प्रकार से प्रेरित होकर लेखक ने 'निशा-निमंत्रण के कवि के प्रति' कविता लिखी थी, जिस पर पंत जी के कुछ संशोधन भी हैं | लेखक की वह कविता भी अप्रकाशित है | 'सरस्वती' में छपी एक कविता ने निराला जी का ध्यान आकृष्ट किया | बाद में लेखक ने कुछ हिंदी निबंध भी लिखे | तत्पश्चात्, लेखक बनारस 'हंस' कार्यालय की 'कहानी' में चले गए |
किस तरह आखिरकार मैं हिंदी में आया पाठ का शब्दार्थ
• जुमला - वाक्य
• मुख्तसर - संक्षिप्त, साररूप
• लबे-सड़क - सड़क के किनारे
• फ़ौरन - तुरन्त
• चुनाँचे - इसलिए, अत:
• वसीला - ज़रिया, सहारा, स्रोत
• गोया - जैसे, मानो
• इबारत - वाक्य की बनावट
• इत्तिफ़ाक - संयोग
• मेज़बान - आतिथ्य करने वाले
• इसरार - आग्रह, अनुरोध
• अर्द्धांगिनी - बीवी, पत्नी, औरत
• विन्यास - व्यवस्थित करना, सजाना
• क्षोभ - दुःख, असंतोष
• नैसर्गिक - सहज, स्वाभाविक, प्राकृतिक
• दुष्प्राप्य - जिसको पाना कठिन हो
• नज़दीक - करीब, समीप
• प्रातिभ - प्रतिभा से युक्त |
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंIs path me konsi vidha ka paryog hua hai?
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