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मेरे संग की औरतें मृदुला गर्ग
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मेरे संग की औरतें पाठ का सारांश
मेरे संग की औरतें पाठ या कहानी मेरे संग की औरतें लेखिका मृदुला गर्ग जी के द्वारा लिखित है | इस कहानी को वर्णित करते हुए लेखिका कहती हैं कि उनकी एक नानी थी, जिन्हें वह कभी नहीं देखी थी | लेखिका की माँ का विवाह होने से पहले ही उनकी नानी की मृत्यु हो चुकी थी | लेखिका को अपनी नानी से कहानी सुनने का सौभाग्य नहीं मिल पाया था | परन्तु, वह नानी की कहानियों को जरूर सुनी थी, जिसका वास्तविक मर्म लेखिका को बाद में समझ में आया |
लेखिका अपनी नानी के बारे में बताते हुए कहती हैं कि उनकी नानी एक पारम्परिक, अनपढ़ और पर्दा करने
वाली महिला थीं, जिनके पति विवाह पश्चात् उन्हें छोड़कर वकालत (बैरिस्ट्री) पढ़ने विदेश चले गए थे | वहाँ से पढ़कर लौटने के बाद लेखिका के नाना पर विदेशी रहन-सहन का रंग दिखने लगा, पर लेखिका की नानी पर इसका कोई असर न हुआ था | आगे लेखिका कहती हैं कि जब कम उम्र में नानी ने स्वयं को मृत्यु के नजदीक पाया, तो 15 वर्षीय इकलौती पुत्री यानी लेखिका की माँ की शादी की चिंता ने उन्हें डरा दिया | तत्पश्चात्, इसी चिंता के कारण नानी पहले की अपेक्षा अधिक बोलने वाली बन गई | एकदिन नानी ने नाना से कहा कि वह उनके दोस्त स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से मिलने को इच्छुक हैं | नाना ने बिना किसी सवाल-जवाब के अपने दोस्त को लाकर नानी के समक्ष खड़ा कर दिया | नानी ने स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से कहा --- " आप मुझे वचन दीजिए कि मेरी लड़की के लिए वर आप तय करेंगे | मैं नहीं चाहती की मेरी बेटी का विवाह मेरे पति जैसे साहब से हो | आप खुद के जैसा आजादी का सिपाही ढूँढ़कर उसकी शादी करवा दीजिएगा...|"
मेरे संग की औरतें |
आगे लेखिका कहती हैं कि नानी की मर्जी के अनुसार, मेरी माँ की शादी एक पढ़े-लिखे लड़के यानी मेरे पिता के साथ हो गई, जिन्हें बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रहने के अपराध में आई.सी.एस. की परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया था | लेखिका कहती हैं कि मेरी माँ, नानी और गाँधी जी की तरह ही सादा और उच्च विचारों वाला जीवन जीने के आदि हो गई थीं | नाना पक्के साहब माने जाते थे | वे सिर्फ नाम के हिन्दुस्तानी रह गए थे | बाकी चेहरे-मोहरे, रंग-ढंग, पढ़ाई-लिखाई, सब में अंग्रेज थे | लेखिका कहती हैं कि मजे की बात यह है कि गाँधी-नेहरू या मेरे पिताजी के घर वाले हों या फिर आजादी की जंग लड़ने वाले ही क्यूँ न हों, सभी अंग्रेजों के सबसे बड़े प्रशंसक थे |
लेखिका अपनी माँ के बारे में बताते हुए कहती हैं कि मैंने कभी उन्हें भारतीय माँ जैसा नहीं पाया था | न कभी वह हमें दुलार या लाड-प्यार दी, न कभी हमारे लिए खाना बनाया और न ही कभी अच्छी-पत्नी बहु होने की सीख दी | उनका अधिकतर समय पुस्तकें पढ़ने में गुजरता था | बाकी का समय साहित्य चर्चा और संगीत सुनने में बीतता था, जो ये काम वह बिस्तर पर लेटे-लेटे किया करती थी | घर में पिताजी माँ की भूमिका निभा लिया करते थे | लेखिका कहती हैं कि छोटे से घर में छह बच्चों के साथ, सास-ससुर आदि के रहते हर व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से रहकर अपना निजत्व बनाए रखने की छूट थी | इसी निजता का फायदा उठाकर हम तीन बहनें और एक छोटा भाई लेखन को समर्पित हो गए | लेखिका आगे कहती हैं कि जब मेरी माँ पहली बार गर्भ धारण की तो मेरी परदादी ने मंदिर में जाकर मन्नत माँगी कि मेरी बहु का पहला बच्चा लड़की के रूप में पैदा हो | वैसे घर में पहला बच्चा हर बहु का लड़का पैदा होता रहा था | लेकिन परदादी की मन्नत भी भगवान ने कुछ ऐसा सुना कि एक के बाद एक करके पाँच बेटियों ने जन्म ले लिया था |
लेखिका माँ जी और चोर के बारे में बताती हुई कहती हैं कि माँ जी के सामने अच्छे-बड़े नामी चोर भी फंस जाया करते थे | एक रोज तो एक नामी चोर माँ जी के कमरे में घूस आया | फिर क्या था, माँ जी ने उसकी ऐसी खबर ली कि बेचारा किसी लायक न रह गया | तब से वह चोर चोरी का धंधा छोड़कर खेती-किसानी में लग गया था | लेखिका ने बाद में जब उस चोर को देखा, तो वह भलामानुस सीधा-सादा बूढ़ा लगा | जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजादी के जश्न में डूबा था, तब लेखिका बीमार थी | वह उस समय 9 साल की बच्ची थी | लेखिका के बहुत रोने-धोने पर भी उसे इंडिया गेट जाकर जश्न में शामिल होने नहीं दिया गया | लेखिका और उसके पिताजी के अलावा घर के सभी लोग बाहर जा चुके थे | बाद में पिताजी ने उसे 'ब्रदर्स कारामजोव' नामक उपन्यास पकड़ा दिए थे | तत्पश्चात्, लेखिका उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो गई थी और पिताजी अपने कमरे में अपनी किताबें पढ़ने लगे थे |
लेखिका कहती हैं कि ये माँ जी की मन्नत का प्रभाव रहा होगा कि मैं और मेरी चारों बहनें लड़की होकर भी किसी हीन भावना का शिकार नहीं हुए | लेखिका कहती हैं कि पहली लड़की, जिसके लिए परदादी मन्नत माँगी थी, वह मैं नहीं, बल्कि मेरी बड़ी बहन मंजुल भगत थी, जिसका घर का नाम रानी था | दूसरे नम्बर पर मैं थी और मेरा घर का नाम उमा था | मुझसे छोटी बहन का नाम है गौरी है, जिसे बाहर में सब चित्रा के नाम से जानते हैं | वह नहीं लिखती | तत्पश्चात्, दो छोटी बहनों का नाम क्रमश: रेणु और अचला था | हम पाँच बहनों के बाद एक भाई हुआ, जिसका नाम राजीव था | लेखिका कहती हैं कि वक़्त की माँग को ध्यान में रखकर मेरी बहन अचला अंग्रेज़ी में लिखती हैं और भाई राजीव हमारी ही तरह हिन्दी में लिखता है |
आगे लेखिका कहती हैं कि विवाह पश्चात् मैं बिहार के एक छोटे कस्बे, जिसका नाम डालमिया नगर था, वहाँ रही | जहाँ की एक अजीब बात थी कि मर्द-औरतें, फिर चाहे वे पति-पत्नी ही क्यूँ न हों, पिक्चर देखने भी जाते तो अलग-अलग जगहों पर बैठते थे | मैं दिल्ली से कॉलेज की नौकरी छोड़कर वहाँ पहुँची थी और नाटकों में अभिनय करने की शौकीन रही थी | लेखिका कहती हैं कि मैंने वहाँ के चलन से हार नहीं मानी | लगभग साल भर के अंदर, उन्हीं शादीशुदा औरतों को पराए मर्दों के साथ नाटक करने के लिए मना लिया था | वहाँ अगले चार साल तक हमने मिलकर कई नाटकों में काम किए | अकाल राहत कोष के लिए भी उन्हीं के माध्यम से पैसा भी जुटाया | बाद में मैं कर्नाटक चली आई थी | तब तक मेरे दो बच्चे हो चुके थे, जो स्कूल जाने लायक की उम्र में पहुँच रहे थे | पर लेखिका कहती हैं कि वहाँ कोई बढ़िया गुणवत्तायुक्त स्कूल नहीं था | तत्पश्चात्, लेखिका ने स्वयं का एक प्राइमरी स्कूल खोला | वह कहती हैं कि मेरे बच्चे तथा दूसरे अफसरों या अधिकारियों के बच्चे उसी स्कूल में पढ़े थे | बाद में दूसरे अच्छे स्कूलों में प्रवेश भी पा गए |
ऐसे बहुत अवसर आए कि लेखिका अपने जुझारू और जिद्दीपन के नमूने पेश करती रही | परन्तु, वह सबसे ज्यादा ख्याति हासिल की अपने लेखन कला में...||
मेरे संग की औरतें पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं ?
उत्तर- लेखिका ने भले ही अपनी नानी को कभी देखा नहीं था, परन्तु, उनके बारे में बहुत कुछ सुन रखी थीं |
लेखिका की नानी ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में लेखिका के नाना के दोस्त स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से भेंट की थी | नानी ने स्वतंत्रता सेनानी प्यारेलाल शर्मा से कहा --- " आप मुझे वचन दीजिए कि मेरी लड़की के लिए वर आप तय करेंगे | मैं नहीं चाहती की मेरी बेटी का विवाह मेरे पति जैसे साहब से हो | आप खुद के जैसा आजादी का सिपाही ढूँढ़कर उसकी शादी करवा दीजिएगा...|"
नानी के इस भावना से लेखिका बहुत प्रभावित हुई थीं | पूरी उम्र परदे में रहकर भी लेखिका की नानी किसी पराए पुरुष से मिलने की हिम्मत की थी | भारत की आजादी के नायकों के प्रति नानी का सम्मान जानकर लेखिका अपनी नानी के उच्च व्यक्तित्व से प्रभावित हो उठी थीं |
प्रश्न-2 लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही ?
उत्तर- लेखिका की नानी परदे में या मौन रहकर भी आज़ादी के आंदोलन में अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान देती रहीं | उन्हें अपनी बेटी के लिए कोई साहब या अफसर पति नहीं, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी चाहिए था, जो भारत की आजादी में अपना योगदान दे सके | लेखिका की नानी को अंग्रेज़ों की चाटुकारिता से बहुत नफ़रत थी | उक्त बातों से पता चलता है कि लेखिका की नानी की आज़ादी के आंदोलन में भागीदारी रही है |
प्रश्न-3 लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी | इस कथन के आलोक में -
क . लेखिका की माँ की विशेषताएँ लिखिए |
उत्तर- लेखिका की माँ एक स्वतंत्र विचार और निष्पक्ष छवि की महिला थीं | वह कभी दूसरी माताओं की तरह अपनी बेटी को दुलार या लाड-प्यार नहीं दी थी और न ही कभी खाना बनाई थी | वह अपनी बेटी को अच्छी पत्नी या बहु होने की सीख भी नहीं दी थी | लेखिका की माँ का अधिकतर समय पुस्तकें पढ़ने में गुजरता था | बाकी का समय साहित्य चर्चा और संगीत सुनने में बीतता था | वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और न ही कभी इधर-उधर की बातें करती थीं | हर काम में उनकी राय ली जाती थी और लोग उसे स्वीकारते भी थे |
ख. लेखिका की दादी के घर के महौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए |
उत्तर - लेखिका की दादी के घर का महौल अद्भुत था | जहाँ घर में कुछ लोगों के व्यवहार में अंग्रेज़ी संस्कार झलकते थे, तो वहीं कुछ लोग पूर्णतः भारतीय संस्कार से बंधे थे | घर में किसी भी प्रकार की संकीर्ण भावनाओं का कोई अस्तित्व नहीं था |
हर कोई अपने-अपने विचारों से स्वतंत्र थे | घर में अलग-अलग विचारों के लोग रहते हुए भी आपस में एकता के सूत्र में बंधे थे | कोई भी सदस्य अपने विचार किसी पर जबरदस्ती थोप नहीं सकता था | घर की सभी जिम्मेदारियों का निर्वाह सब आपस में मिलकर करते थे | अत: हम कह सकते हैं कि लेखिका की दादी के घर का माहौल शांतिमय और आनंदित था |
प्रश्न-4 आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी ?
उत्तर - मेरी कल्पनानुसार, परदादी जी उच्च विचार वाली महिला थी | उनकी दृष्टि में लड़का-लड़की का कोई भेद नहीं था | वह लड़कियों को भी लड़कों के समान आदर व प्यार देती होगी | उसके कुल में हर बहु का पहला बच्चा लड़का पैदा होता आया था | वह सभी को लड़का पैदा होने की मन्नत मांगते बहुत सुनी-देखी थी | शायद इसलिए एक लड़की को भी सम्मान देने के लिए परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत माँगी होगी |
प्रश्न- 5 डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है - पाठ के आधार पर तर्क सहित उत्तर दीजिये |
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, सहजता का अच्छा दृष्टांत मिलता है | लेखिका की नानी के पति अंग्रेज़ी चाल-ढाल से ओत-प्रोत थे, अर्थात् अंग्रेजों की चाटुकारिता में लीन थे | लेकिन फिर भी लेखिका की नानी ने प्रत्यक्ष रूप से कभी अपने पति का विरोध नहीं किया | वह हमेशा अपने आदर्शों का पालन करती रहीं और जब समय आया तो पति के समक्ष सहजतापूर्वक अपने विचार रखकर अपनी बेटी के लिए भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पढ़ा-लिखा होनहार वर दिला सकीं |
एक चोर जब लेखिका की माता के घर घुस आया, तो उसने चोर को न ही पकड़ा और न ही उसे किसी प्रकार का दंड दिया | बल्कि उसके साथ मानवीयता से पेश आई | उसके साथ अपनत्व का भाव जताते हुए उससे सेवा ली | तत्पश्चात्, उसे अपना पुत्र बना लिया | लेखिका की माता के सहज और कुशल व्यवहार से चोर का हृदय परिवर्तित हो गया | चोर ने उसी दिन से चोरी को त्यागकर खेती-किसानी का काम अपना लिया |
अत: हम कह सकते हैं कि डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है |
प्रश्न- 6 पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है ?
उत्तर- जब हम आडम्बरयुक्त स्वभाव और ईर्ष्यायुक्त भावना को त्यागकर सरल, सहज, पारदर्शी और विचारों से स्वतंत्र होने की भावनाओं को आत्मसात करके जीवन जीते हैं, तब जीवन में इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है |
मेरे संग की औरतें पाठ का शब्दार्थ
• विलायत - विदेश
• परदानशीं - परदे में रहने वाली महिला
• मुँहजोर - अत्यधिक बोलने का भाव
• फ़रमाबरदार - आज्ञाकारी
• आखिरी - अंतिम
• मुस्तैद - तैयार, तत्पर
• गोपनीय - गुप्त
• खानदान - कुल, वंश
• फ़जल - दया, मेहरबानी
• अपरिग्रह - संग्रह न करना
• पोशीदा - गुप्त
• बदस्तूर - नियम के अनुसार
• जुस्तजू - तलाश
• शागिर्द - चेला, शिष्य
• दाखिला - प्रवेश
• दरख़्वास्त - आवेदन
• इसरार - आग्रह
• अफ़सर - अधिकारी
• मुकाबिल - तुलना
• खासियत - विशेषता
• माकूल - मुनासिब, अच्छा
• मंज़िल - लक्ष्य |
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