पथिक कविता रामनरेश त्रिपाठी पथिक कविता रामनरेश त्रिपाठी Pathik summary class 11 cbse RAMNARESH TRIPATHI Hindi chapters class 11 cbse Class 11 poem Pathik pathik NCERT class 11 class11 Hindi pathik summary pathik class 11 summary class 11 Hindi aroh ch 3 class 11 Hindi aroh chapter 3 pathik Aaroh, Class 11 hindi class 11 poem pathik poem by ramnaresh tripathi of aroh book poem पथिक काव्यांश class 11th summary of pathik chapter class 11 pathik question answer class 11 cbse पथिक कक्षा 11 कक्षा 11 हिंदी पथिक Pathik कक्षा 11 Full Explanation रामनरेश त्रिपाठी पथिक कविता व्याख्या Pathik Poem Explanation Class 11 NCERT pathik poem by ram naresh tripathi pathik poem pathik poem meaning class 11 poem pathik poem by ramnaresh tripathi of aroh book poem pathik question answer class 11 cbse summary of pathik chapter class 11 काव्य खंड पथिक कविता की व्याख्या
पथिक कविता रामनरेश त्रिपाठी Pathik summary class 11 cbse RAMNARESH TRIPATHI Hindi chapters class 11 cbse Class 11 poem Pathik pathik NCERT class 11 class11 Hindi pathik summary pathik class 11 summary class 11 Hindi aroh ch 3 class 11 Hindi aroh chapter 3 pathik Aaroh, Class 11 hindi class 11 poem pathik poem by ramnaresh tripathi of aroh book poem पथिक काव्यांश class 11th summary of pathik chapter class 11 pathik question answer class 11 cbse पथिक कक्षा 11 कक्षा 11 हिंदी पथिक Pathik कक्षा 11 Full Explanation रामनरेश त्रिपाठी पथिक कविता व्याख्या Pathik Poem Explanation Class 11 NCERT pathik poem by ram naresh tripathi pathik poem pathik poem meaning class 11 poem pathik poem by ramnaresh tripathi of aroh book poem pathik question answer class 11 cbse summary of pathik chapter class 11 काव्य खंड
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला |
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला |
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है |
घन पर बैठ, बीच में बिचरूँ यही चाहता मन है ||
रत्नाकर गर्जन करता है, मलयानिल बहता है |
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है |
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के-
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरूँ जी भर के ||
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि नभ या आसमान में बादलों का समूह प्रतिक्षण नूतन या नया वेश धारण करके रंग-बिरंगे प्रतीत हो रहे हैं, जो मानो सूर्य के सामने ही थिरक रहे हों | आगे कवि कहते हैं कि नीचे मन को हरने वाला नीला समुद्र है, तो वहीं ऊपर नीला गगन या आकाश विद्यमान् है | प्रकृति के उक्त नज़ारे को देखकर ही पथिक का मन चाहता है कि वह भी मेघ पर बैठकर
समुद्र और गगन दोनों के दरम्यान विचरण करे |
आगे कवि के अनुसार, पथिक कहता है कि मानो रत्नाकर अर्थात् समुद्र गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत से आने वाली ख़ुशबूदार हवाएँ भी बह रही हैं | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि इन दृश्यों से हरदम मेरे हृदय में उत्साह भरा रहता है | आगे पथिक अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहता है कि इस विशाल, विस्तृत और महिमामय रत्नाकर के लहरों पर बैठकर इसके
घर रूपी विशालकाय जलमंडल के चारों दिशा में भ्रमण करता रहूँ |
निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा |
कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा |
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी |
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी ||
निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है |
लहरों पर लहरों का आना सुंदर, अति सुंदर है |
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी ?
अनुभव करो हृदय से, हे अनुराग-भरी कल्याणी ||
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक सूर्योदय का अद्भुत वर्णन करते हुए कहता है कि समुद्र की सतह से सूरज का बिंब अधूरा सा निकलता हुआ प्रतीत हो रहा है | अर्थात् आधा सूरज जल के अंदर है तथा आधा बाहर दिखाई दे रहा है | आगे कवि के अनुसार, पथिक को ऐसा आभास हो रहा है, मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कँगूरा हो | सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य पेश करता है | पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो |
आगे कवि कहते हैं कि समुद्र भयमुक्त होकर पूरी दृढ़ता से तथा गंभीर भाव लिए गरज रहा है | जब लहरें एक-दूसरे पर आ रही हैं, तो वह दृश्य सचमुच अत्यधिक सुंदर लग रहा है | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम अनुभव करो हृदय से हे ! अनुराग-भरी कल्याणी और बताओ कि यहाँ जो सुख मिल पा रहा है, क्या इससे अधिक सुख कहीं और भी मिल सकता है ? अर्थात् ऐसा सौंदर्य तुम्हें कहीं और मिल सकता है क्या ?
जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है |
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है |
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है |
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है ||
उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है |
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है |
पक्षी हर्ष सँभाल न सकते मुग्ध चहक उठते हैं |
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं --
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ रामनरेश त्रिपाठी जी के द्वारा रचित कविता पथिक से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध
होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक के अनुसार, जब आधी रात में गहरा अंधेरा सम्पूर्ण जगत को ढक लेता है तथा अंतरिक्ष या आसमान की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारों का अस्तित्व आ जाने से वे चमकने लगते हैं | उस समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर का धीमी गति से आगमन होता है और वह समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मधुर गीत गाने में मग्न हो जाता है |
आगे पथिक कहता है कि संसार के स्वामी अर्थात् ईश्वर के मधुर गीत पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद भी हँसने लगता है | पथिक प्रकृति का सुन्दर चित्रण करते हुए कहता है कि वृक्ष विविध पत्तों व फूलों से अपने तन को सजा लेते हैं | पक्षियों से भी खुशी सँभाली नहीं जाती और वे सुंदर प्राकृतिक दृश्य पर मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं | फूल भी सुख रूपी आनंद के साथ साँस लेकर पूरे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं |
वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं |
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं |
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी |
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी ||
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी |
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी |
स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर है |
अहा! प्रेम का राज्य परम सुंदर, अतिशय सुंदर है ||
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | पथिक संसार के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक व उत्सुक है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक प्रकृति के सौंदर्य से बेहद प्रभावित है | आगे पथिक कहता है कि प्रकृति की सौंदर्य में बढ़ोत्तरी करने के लिए वन, उपवन, पहाड़, समुद्र तल व वनस्पतियों पर मेघ बरसने लगते हैं | तो मैं आत्मिक रूप से भावुक हो जाता हूँ और मेरी आँखों से आँसू बहने लगते हैं | तत्पश्चात्, पथिक अपनी प्रेयसी को संबोधित करते हुए कहता है कि समुद्र की लहरों, तटों, तिनकों, पेड़ों, पर्वतों, आकाश, किरन व बादलों पर लिखी गई विश्व को मोहित करने वाली मधुर कहानी को पढ़ो |
आगे पथिक कहता है कि प्राकृतिक सौंदर्य की यह आडंबररहित मधुर व उज्ज्वल प्रेम कहानी मनोहर व पवित्र है | तत्पश्चात्, वह कहता है कि मेरी भी चाहत है कि मैं इस प्रेम-कहानी का अक्षर बनके विश्व की वाणी बन जाऊँ | सचमुच यह प्राकृतिक सौंदर्य स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित और सदा शांति व सुख प्रदान करने वाली है | पथिक आनंदित होकर कहता है कि यहाँ प्रकृति रूपी प्रेम का राज्य बेहद सुंदर है |
प्रस्तुत पाठ या कविता पथिक कवि रामनरेश त्रिपाठी जी के द्वारा रचित है | प्रस्तुत अंश पथिक शीर्षक खंड काव्य के पहले सर्ग से लिया गया है |
इस संसार के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने को इच्छुक है | प्रकृति के प्रति पथिक यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है | किसी साधुजन के द्वारा संदेश ग्रहण करके पथिक देशसेवा का व्रत लेता है | पथिक, सागर के सौंदर्य देखकर उसपर मुग्ध हो गया है | प्रकृति के इस अद्भुत सौन्दर्य को पथिक मधुर मनोहर उज्ज्वल प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है | स्वच्छंदतावादी इस रचना में प्रेम, भाषा एंव कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है...||
प्रश्न-1 पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पथिक का मन बादलों पर बैठकर नीले आकाश में विचरण करना चाहता है और समुद्र की लहरों पर बैठकर सागर का कोना-कोना देखने को इच्छुक व उत्सुक है |
प्रश्न-2 सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में सूर्योदय वर्णन के लिए निम्नलिखित बिंबों का प्रयोग किया गया है ---
• प्रात:कालीन समुद्र तल से उदित होते हुए सूर्य का अाधा बिंब अर्थात् अर्द्ध गोला अपनी लालिमा के कारण बेहद मनोरम दिखाई देता है |
• पथिक तट पर सूर्योदय के वक़्त दिखाई देने वाले अर्द्ध सूर्य को कमला के स्वर्ण-मंदिर का कँगूरा बताता है |
• एक बिंब में पथिक सूर्योदय को लक्ष्मी की सवारी के लिए समुद्र द्वारा बनाई स्वर्ण-सड़क की संज्ञा देता है |
प्रश्न-3 आशय स्पष्ट करें ---
(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है |
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है |
(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल है यह प्रेम-कहानी |
जी में है अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी |
उत्तर- आशय स्पष्ट निम्नलिखित है -
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से त्रिपाठी जी रात्रि के सौंदर्य का वर्णन कर रहे हैं | पथिक कहता है कि जगत के स्वामी का मुस्कुराते हुए धीमी गति से आगमन होता है तथा वह तट पर खड़ा होकर गगन-गंगा के मधुर गीत गाकर सुनाता है |
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताते हैं | आगे पथिक कहता है कि प्राकृतिक सौंदर्य की यह आडंबररहित मधुर व उज्ज्वल प्रेम कहानी मनोहर व पवित्र है | तत्पश्चात्, वह कहता है कि मेरी भी चाहत है कि मैं इस प्रेम-कहानी का अक्षर बनके विश्व की वाणी बन जाऊँ |
प्रश्न-4 कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है | ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें |
उत्तर- कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है | ऐसे उदाहरणों का भाव निम्नलिखित है ---
• प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला |
रवि के सम्मुख थिरक रही है नभ में वारिद-माला |
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि नभ या आसमान में बादलों का समूह प्रतिक्षण नूतन या नया वेश धारण करके रंग-बिरंगे प्रतीत हो रहे हैं, जो मानो सूर्य के सामने ही थिरक रहे हों |
• रत्नाकर गर्जन करता है |
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | कवि के अनुसार, पथिक कहता है कि मानो रत्नाकर अर्थात् समुद्र गर्जना कर रहा है, जो गर्जना ऐसी प्रतीत होती है कि मानो कोई वीर अपनी वीरता का हुंकार भर रहा हो |
• लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी |
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी ||
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य पेश करता है | पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो |
• जब गंभीर तम अर्द्ध-निशा में जग को ढक लेता है |
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है |
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पथिक के अनुसार, जब आधी रात में गहरा अंधेरा सम्पूर्ण जगत को ढक लेता है तथा अंतरिक्ष या आसमान की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारों का अस्तित्व आ जाने से वे चमकने लगते हैं |
• सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है |
तट पर खड़ा गगन-गंगा के मधुर गीत गाता है |
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि जब आकाश में तारों का अस्तित्व आ जाने से वे चमकने लगते हैं, तब उसी समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर का धीमी गति से आगमन होता है और वह समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मधुर गीत गाने में मग्न हो जाता है |
• उससे ही विमुग्ध हो नभ में चंद्र विहँस देता है |
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है |
फूल साँस लेकर सुख की सानंद महक उठते हैं --
भाव - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'रामनरेश त्रिपाठी' जी के द्वारा रचित कविता 'पथिक' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि पथिक कहता है - संसार के स्वामी अर्थात् ईश्वर के मधुर गीत पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद भी हँसने लगता है | पथिक प्रकृति का सुन्दर चित्रण करते हुए कहता है कि वृक्ष विविध पत्तों व फूलों से अपने तन को सजा लेते हैं | पक्षियों से भी खुशी सँभाली नहीं जाती और वे सुंदर प्राकृतिक दृश्य पर मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं | फूल भी सुख रूपी आनंद के साथ साँस लेकर पूरे वातावरण को सुगंधित कर देते हैं |
• अंतरिक्ष - आकाश
• सानु - समतल भूमि
• आत्म-प्रलय - स्वयं को भूल जाना
• विश्व-विमोहनहारी - संसार को मुग्ध करने वाली
• वारिद-माला - गिरती हुई वर्षा की लड़ियाँ
• रत्नाकर - सागर
• मलयानिल - मलय पर्वत (जहाँ चंदन वन है) से आने वाली शीतल, सुगंधित हवा
• कँगूरा - बुर्ज़, गुंबद
• असवारी - सवारी
• प्रतिक्षण - हर समय, हर वक़्त
• नूतन - नया, नवीन
• वेश - रूप, चेहरा
• रंग-बिरंग - रंगीन, विभिन्न रंगों का
• निराला - अनोखा
• रवि - सूर्य, सूरज, दिनकर
• सम्मुख - सामने, प्रत्यक्ष
• थिरक - नाच, उछलना-कूदना
• नभ - आकाश, गगन
• नील - नीला
• मनोहर - सुंदर, मनोरम
• घन - बादल
• बिचरूं - विचरण करना
• हौसला - उत्साह
• विस्तृत - फैली हुई
• महिमामय - महान
• जलनिधि - सागर
• बिंब - छवि
• कमला - लक्ष्मी
• कंचन - सोना, स्वर्ण
• कांत - सुंदर, खूबसूरत
• निज - अपना
• निर्भय - निडर
• दृढ़ - मजबूत
• गंभीर - गहरा
• अनुराग - प्रेम, प्यार
• कल्याणी - मंगलकारिणी
• तम - अँधेरा
• अर्द्ध - आधा
• निशा - रात्री
• जग - संसार, जगत
• सस्मित - मुसकराता हुआ
• मृदु - कोमल
• विमुग्ध - प्रसन्न
• विहँस - हँसना
• वृक्ष - पेड़
• विविध - कई तरह के, विभिन्न प्रकार के
• गिरि - पहाड़
• कुंज - वनस्पतियों का झुरमुट
• नीर - पानी
• तट - किनारा (समुद्र का)
• तृण - घास
• तरु - पेड़
• जलद - बादल
• उज्ज्वल - उजली, सफ़ेद
• बानी - वाणी
• स्थिर - ठहरा हुआ
• सुखकर - सुखदायी
• पुष्प - फूल
• तन - शरीर, बदन
• हर्ष - खुशी,
• सानंद - आनंद सहित
• उपवन - बाग |
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Yeah link muje bhot achi lgi
जवाब देंहटाएंVery nice ❤️
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