दोस्ती से, प्यार की उमंग वृक्ष के जड़ों जैसा मजबूत थे हम, मिट्टी सा कोमल तू, सिंचा मे प्यार की पानी खान देख मछली, तुम्हें देख मे भीतर चाहता की नन्हे खरगोश बदले में रहू वह क्या सोचा, क्या पाया आश्चार्य चकित हुआ मन द्वेष किया होट ने मेरे आँखों से वह अनुभव कभी न पाया ॥१॥
दोस्ती से, प्यार की उमंग
वृक्ष के जड़ों जैसा मजबूत थे हम,
मिट्टी सा कोमल तू, सिंचा मे प्यार की पानी
खान देख मछली, तुम्हें देख मे भीतर
चाहता की नन्हे खरगोश बदले में रहू वह
क्या सोचा, क्या पाया आश्चार्य चकित हुआ मन
द्वेष किया होट ने मेरे आँखों से वह अनुभव कभी न पाया ॥१॥
शरीर हमेशा कहता, साथ रहना चाहता तुम्हारा
दुनिया की सभी बात नासमझ करू
विश्वास मेरे पर बढ़ाना तू निराशा कभी न करूँ
उस मुस्कुराहट देखते में नहीं रहना अपने आप का
देख तुम्हें डरता कि यह दिल दौड़ बाहर न आ जाएँ ॥२॥
घर आएँ तुम्हारा तेरी अतुपस्थित, चंचल मेरा मन
दोस्ती की दोर टूठती प्रेम की बन रही
गिल्लू जैसा तुम्हें खोज करता न देखने पर
मोर तो नहीं हूँ में प्यार करूँ जैसे लोग मोर को करते
भटका मन को राह दिखाती यह नयन तेरा ॥३ ॥
अलग हम क्यो? ऐसा अनहोनी क्या हुई?
लाल गुलाब की तारीफ भी मनाई है क्या!
गुस्सा नहीं, प्यार उमड़ रहा तेरे पर
वक्त आने पर, तेरे माँग में ही भरू
सात जन्म ही क्यों, जन्म कोई भी हो साथ रहने का करता वादा ॥४॥
फितूर बना हूँ तेरा
जिंदगी के क कश, चार आँखों का मिलनतुम्हें देख यह दिल संतुलित खोता
दिमाग यह सोचता, उस हँसी को मेहफूस रखू?
उस हस्त तुम्हारी, दूध भी मलाई बने छुने ॥१ ॥
मिलते है सब पर तुमसे वह अनुभव!…
में गुबारा बन, साथवे आसमान पहुँचता
गला कहती वह लवज़; रिवाईड कर हस्ता अपने आप
दिल दौड़ना सिर्फ तुम्हारे लिए ॥२ ॥
तुम्हारी झूटन खान भी स्वादिष्ट भोग मुझे
जब तुम समाजाती मुझ में,
हर नस शरीर का धडकता, चीरता हर दर्द
होट की शिकायत रही, फूल पंकुडी चूंब न सका
पहचान दोस्ती से बुना संबंध, प्रेम को पुकारा
दोस्ती प्रेम में, पानी दूध में एक ही चाहे अलग करे कितना
सीदे मुँह पर बोलती तू, बच्चे सा मन
तेज़ धार सा पत्तर भुर भुरा बर्फ से लिपटा॥४ ॥
हम एक हो या नहीं हमारा चाहत तो कभी हो सकी कम?
चाहता तो हाथ बाहो में रख गुमाता ही रहूँ
हर गृहण काल, साथ रहता; डगमगाओ नहीं
सात फेरे तो न ली, प्यार का राह हर जन्म में ॥५ ॥
तुम न हो फिर भी, मेरे पास…
हर साँस में भरी यादे तुमसे जो न किसी के साथ
हवा जो विलोम करता, खोता तेरे पर सा अधिकार
आजाद पंछी तू तेरे आनंद में, में मंढक सा फुदकता
वह कदम तेरे साथ, चाहता फिर से चल सकू ॥१॥
पुष्प सा आकृषित, पाने का प्रयास तो सब
जो तू नील आगस, में लहरता पतंग
बादल होगा तुम्हें सुंदर कितने विश्वासू उन में?
दिल न माना तेरे वास्ते प्यार करना छोड़ना ॥२॥
अनुभव कहते, "बड तू जीवन में कितना जीयेगा भ्रम में"
में न बडा न घटा, प्रेम गेहरा होता गया
हिफाजत तेरी, गूँडा भी में ही दोस्त भी
त्याग करता अपने को, मुक्त करना तुम्हें क्रोध से ॥३॥
जीवन के द्विचक्र में, क्या बनोगी तू मेरी साथी?
अकेला कसे पसंद! सुई या धागे को?
कौन दे सकता तुझे वह प्रकाश कष्ठ काम में?
मौत को खुशी से स्वागत करू, इस प्यार को कभी विदा न कर सकू ॥४ ॥
कक्ष से बाहर आती तू, चाहता घंटी ही न बजे
देखता में चौराहीपर, बिना दारु का नशा मिलता
चाय तो में जरूर तुम को हर ख़्वाब तेरी रंग दू हुजूर
छात्र तक तो हम साथ, जीवन का जहाज लिखै एक होकर ॥५ ॥
तेरी खयाल ! भुलादू साँस लेना भी…
अलविदा करता तुम्हें ना चाहकर भी
खा लेगा मिट्ठा हम दोनों को शुभ दिन में
पर वह शण बिताया साथ रखू याद हर जन्म
इस रगो में बस तेरी ही खयालो में बेहेगया ॥१॥
हर जगह साथ चले हम दिखती तू मुझे हर कही
पसंद, नापसंद तेरी, पता होकर भी दिया वह पत्र
"हम न मिले तो" दो प्रेमी दूर हो मगर विछडते नही
अनिर्धरित प्यार की हल खोज करती हर बार ॥२॥
फूल तो सब होते पर तू तो उसकी द्रव हो
रहेंगे हम आनंदमै एक नन्हे गोसले में
इस हस्त से बिनबोली कार्य करू तेरे ख़ातिर
शाकाहारी, तथा माँस भी होगी हम दोनों के यहाँ ॥३ ॥
दोस्ती का सुकून, प्यार का जुनून … मिलाव का मिसाल हम दो
खुली आसमान पर चलते हम, डूडते डाक घर
लिफाफा तो और दिया कुछ कदम साथ
अब तो स्वागत कर इस प्रेम को तेरे भीतर वह अनुभव कभी न महसूस कर तू ॥४ ॥
कुछ और लमहे तेरे पास बिता सकु, काश!
तषरीफ रखता अपने को, काँच के उस पार आँखों के सामने
तेरी गाली की अंदाज़ भी गूंजता हर बार
हम दोनों कई पे मिल जाएँगे एक दिन
इस उम्मीद पर ही हूँ ज़िंदा ॥१ ॥
सोचना, तेरे हर आलस रहू में उस के भीतर
वही सिर जब तू जाता, चाय की हर नुसके में वास करू
सुपारी का पान सा जीवन में गुलकंद सा आऊँ
साथ हम चलते, तेरी होटों को सुनते ॥२॥
जुदाई को नही रोकाऊँ मुलाकात तो होगी
निजीव चहरा देख, उत्तेजित होता अपने आप ही
नास्तिक में, हर प्रभात काल सूर्य से माँगू तुम्हें ही
पक्षु, पत्ते, हवा सभी, इस मिलन में अभी से हो खुश ॥३॥
रखता हूँ मुँह में हर तीखी ज़ाय्का
बंबई चाट दिखाऊँ उस शौकीन पेट को
हर कार्य तेरे, कर में जीवन संत्रप्त पता
भेंट तेरे से, फूटता अंहोनी उर्जा का बोंब भीतर ॥४॥
देखता तुम्हें चोरी करके में, सच्ची में
इस दिल को कभी न समजा यह मन, पर मन ने दिल को पूरी छूट
जो भरोसा कुद से, करना तू मुझे भी उसमें शामिल…
क्या तुमसे दिवानो की तरह प्रेम करना विश्वासघात का कारण? उत्तर माँगता अमर उम्मीद ॥५॥
- SHARATH MOHAN CHANDAVARKAR
College: Canara Degree College Mangalore 575003
Education: Bachelors of science
State: Karnataka
Country: India
Phone: +91-9448409035
Email: sharathchandavarkar246@gmail.com
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