बचपन की यादें प्राक्कथन - प्रस्तुत कविता में बचपन के "शैशवावस्था" का चित्रण किया गया है। भूल गया था अपना बचपन, ना जानें मित्रों ! कब का। पड़ी नजर जब अपने शिशु पर, मेरा बचपन आ टपका ।।1।। गैर नहीं था मुझको कोई, सब जन मेरे अपने थे । गोंद मिले माँ की हर पल , बस केवल ये सपने थे ।।2।। नहीं गिला या शिकवा कोई, ना ही कोई उलझन थी । पय पान करूँ पीयूष सदृश , बस चाहत ये क्षन क्षन थी ।।3।। खेल खेल कर मिट्टी से जब, तन धूमिल हो जाता था । तब आती माँ डन्डे लेकर , देख उसे डर जाता था ।।4।। क्रोधातुर माँ को देखा जब , रो उठा और चिल्लाया ।
बचपन की यादें
प्राक्कथन - प्रस्तुत कविता में बचपन के "शैशवावस्था" का चित्रण किया गया है।
भूल गया था अपना बचपन, ना जानें मित्रों ! कब का।
पड़ी नजर जब अपने शिशु पर, मेरा बचपन आ टपका ।।1।।
गैर नहीं था मुझको कोई, सब जन मेरे अपने थे ।
गोंद मिले माँ की हर पल , बस केवल ये सपने थे ।।2।।
नहीं गिला या शिकवा कोई, ना ही कोई उलझन थी ।
पय पान करूँ पीयूष सदृश , बस चाहत ये क्षन क्षन थी ।।3।।
खेल खेल कर मिट्टी से जब, तन धूमिल हो जाता था ।
तब आती माँ डन्डे लेकर , देख उसे डर जाता था ।।4।।
क्रोधातुर माँ को देखा जब , रो उठा और चिल्लाया ।
बचपन की यादें |
तन को साफ किया आँचल से , आँचल से आँसू साफ किया ।
मत रो मेरे लल्ला प्यारे , मैंने तुमको माफ किया ।।6।।
बना घरौंदा मिट्टी का था, मिट्टी का ही खाना था ।
बिस्तर था मिट्टी का ही , मिट्टी से उसे सजाना था ।।7।।
खेल रहा था मिट्टी से जब, पड़ गया एक बिल से पाला ।
पानी ले ले अपने हाथों , पूरा बिल ही भर डाला ।।8।।
तभी वहाँ से निकला एक, भयंकर काला विषधर ।
प्रलयंकर था फन उसका, पर तनिक न थी मुझको डर ।।9।।
कभी उठाता फन फैलाकर, कभी मरोड़ गिराता था ।
कभी अगल तो कभी बगल हो,मैं देख उसे हरषाता था ।।10।।
हो चला रोमांचित तन मेरा, रग रग में पुलकन छाई ।
पकड़ू और मरोड़ू फन उसका, यह बात हृदय में आई ।।11।।
चला पकड़ने हरषित होकर, तबतक माँ मेरी चीख उठी ।
दौड़ो दौड़ो पकड़ो लल्ला को, ध्वनि गुंजित चहुंओर उठी ।।12।।
इस तरह खेलते मिट्टी जल से, शैशव मेरा बीत गया ।
हुआ बिलीन शून्य में शैशव, ना जानें किस ओर गया ।।13।।
आज खोजते फिरते उसको, जन सम्मुख ये रच डाला ।
आ गया समझ अब भलीभाँति, वह पन कभी न मिलने वाला ।।14।।
"बचपन की यादें" भाग-- 2
प्राक्कथन-- प्रस्तुत कविता में ग्रामीण अँचल में व्यतीत हुई बाल्यावस्था का चित्रण किया गया है।
वो दिन भी क्या खूब सुहाने थे, जब मिट्टी से खेला करते थे ।
माँ की घुड़कन, डाँट पिता की,चुप चुप झेला करते थे ।।1।।
जब वर्ष पाँच होने को आया, अवसर पाकर माँ बोली।
रूद्र नाथ चौबे |
पिता चले ले साथ मुझे , जहाँ गाँव का विद्यालय ।
नाम लिखाया पहली में , पर तनिक ना भाया विद्यालय ।।3।।
पंडित जी बाऊसाहब मुंशी को, देख देख डर जाता था।
तनिक तेज आवाजें उनकी , सुनकर भय खाता था ।।4।।
धीरे धीरे पहली कक्षा में माहौल पठन का प्रारम्भ हुआ ।
अक्षर गिनती और पहाड़ा, मत्रा सब आरम्भ हुआ ।।5।।
पंडित जी गाकर गीत माध्यम से , अभ्यास कराते थे।
बेहद लगता अच्छा मुझको , जब गाकर पाठ पढ़ाते थे ।।6।।
दशहरा दिवाली झूलों का मौसम, औ त्यवहारों की बेला में।
होता बन्द विद्यालय मेरा , मन लग जाता खेला में ।।7।।
समय समय पर खेल निराले, पल पल खेले जाते थे ।
समय समय पर भोजन पानी, हँसते और हँसाते थे ।।8।।
सुबह सुबह जब खुलतीं आँखें, भागा भागा बाहर आता ।
पाकर अपनी मित्रमंडली, मन ही मन अति हरषाता ।।9।।
खेल कौन सी होगी भयिया, मुझको जल्दी बतलाओ ।
आँखमिचौली , ढुकवुल ,पीकुल,क्या तनिक न देर लगाओ ।।10।।
सारे मित्रों में थे भोले हम, इसलिए हमेशा फँस जाते।
खेल शुरू कोई भी होती, हम चाल न एक समझ पाते ।।11।।
सूटुर बालीबाल कबड्डी, हाकी क्रिकेट कौड़िन्ना ।
गोंटी कुश्ती कसरत होती, रहते हर पल चौकन्ना ।।12।।
- पंडित रूद्र नाथ चौबे ("रूद्र")
सहायक अध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय रैसिंह पुर, शिक्षा क्षेत्र-- तहबरपुर, आजमगढ़।
ग्राम-- ददरा, पोस्ट-- टीकपुर, जनपद-- आजमगढ़ ( उत्तर प्रदेश )
सम्पर्क सूत्र--9450822762
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