भारत देश के रीति रिवाज प्राक्कथन- अपना भारत वर्ष परम्पराओं और त्योहारों का देश है । यहाँ बारहों महीने में अलग अलग तरह से पृथक् पृथक् त्यवहार और परम्पराएँ मनाई जाती हैं । प्रस्तुत छन्दों में इन्हीं का चित्रण किया गया है । मास-- चैत्र भारत देश महान हवै जँह, बारहों मास आनन्द बुझाला । चैत के मास में चैता गावै सब, सो सुनि के जियरा हरषाला । गेहूं चना अरहर मटरा से, चारिउ कोना घरा भरि जाला । अइसन आपन देश हवै जँह, आपस कै सब बैर भुलाला ।।
भारत देश के रीति रिवाज
प्राक्कथन- अपना भारत वर्ष परम्पराओं और त्योहारों का देश है । यहाँ बारहों महीने में अलग अलग तरह से पृथक् पृथक् त्यवहार और परम्पराएँ मनाई जाती हैं । प्रस्तुत छन्दों में इन्हीं का चित्रण किया गया है ।
मास-- चैत्र
भारत देश महान हवै जँह, बारहों मास आनन्द बुझाला ।
चैत के मास में चैता गावै सब, सो सुनि के जियरा हरषाला ।
गेहूं चना अरहर मटरा से, चारिउ कोना घरा भरि जाला ।
अइसन आपन देश हवै जँह, आपस कै सब बैर भुलाला ।।
मास-- वैशाख
वैशाख के मास में शादी विवाहे क, धूम मचल चहुंओर रहैं।
भारत देश के रीति रिवाज |
साजि के बाजा बजै दुअराँ, मवुरा के महतारी पुजाइ रहैं ।
माँगैलीं नेग औ जोग प्रजा सब, भाभी बुआ के रिझाइ रहैं ।।
मास -- ज्येष्ठ
जेठ महीना में आवै पसीना , त सीना उघारि चलैं लोगवा।
भागल जालैं लोग सबै, धनियां चलैली पिय के सँगवां ।
केतिक दूर हो केतिक दूर हौ , छाँव क ठाँव हवै जँहवां ।
अंगार अपार गिरै नभ से , अरु सूरज जारि रहै तनवां ।।
मास-- अषाढ़ (अ)
व्याकुल हाल बेहाल सबै जन, मास अषाढ़ क बाट निहारैं ।
जन्तु जरैं जस साँवां पकैं सब , रामहि राम हा राम पुकारैं।
बा आगि लगल अब त्राहि मचल, व्याकुल होई के लोग गुहारैं।
निराशा बढ़ै अब आशा घटै ,कबलौं अइसन रही लोग विचारैं ।।
मास -- अषाढ़ (ब)
हाहाकार पुकार धरा से चली , नभ मंडल बादल छाइ रहैं।
घनघोर कठोर हुँकार भरैं , गरजन सुनि बाघ लजाइ रहैं ।
छम छम छन छन छन छन छम छम, पानी के बूँद रिझाइ रहैं ।
ऐसहि बीति आषाढ़ गयल , चकवा चकयी हरषाइ रहैं ।।
मास-- श्रावण
बाढ़त वेग अपार अब बारिश के, घनघोर कठोर हुँकार भरैं बदरा ।
डारिन प झलुआ पड़ि गयिलन, धान रोपावन लगे चतुरा ।
सावन सेज सुहावन लागत, अहिवातिन क हरषै हियरा ।
दूध पिआवैं नागन के सब , अरु लूटि रहे कजरी लहरा ।।
मास-- भादौं
काली घटा का घमण्ड घटा, अरु दादुर आपन शोर सुनावैं ।
मद मस्त मगन नाचैं मोरवा, सधवा सब आपन तीज मनावैं ।
चमकैं जुगुनू चम चम अँधियारन मा,भादौं रात भयावन आवै।
कान्हा जनमलैं रात के बारह बजे,सब लोग उछाह में हरि गुन गावैं ।।
मास-- आश्विन (कुआर)
बारिश कै अब वेग घटल , जस लागत बारिश बुढ़ाइ रहल।
कुआर महीना के अउतै देखा,पितरन देवतन अब द्वार खुलल।
दान करैं पिन्ड दान करैं जन, कुकुरन अरु काग के भाग जगल।
राम विजय दशकन्ध पराजय,राम के लीला अ मेला लगाइ रहल ।।
मास-- कार्तिक
काली घटा कै घमण्ड घटल, नभमंडल में उजियार दिखाला।
बा खेती किसानी के काम बढ़ल,हँसुआ सब खेतन मांहि चलाला।
धान कटैं अरु गेहूं बोवैं सब,कातिक काम के मास कहाला।
दिवाली में दिया जरैं दुअराँ, मस कीड़ा मकोड़ा सबै जरि जाला ।।
रूद्र नाथ चौबे |
गँवना के महीना गहन अगहन,सबके हिय में खुशी छाइ रहल बा।
बाजा अ डोली खोजाये लगल,गँवना के दिन देखा निअराइ रहल बा।
बदलल युग में मोटरकार भयिल,सब लोगन डोली हटाइ रहल बा।
मंगल गीत क शोर सुनाला चहूँ दिश,सासु बहू के उतारि रहल बा ।।
मास -- पौष (पूष)
पूष के माह कहूँ न दिखै कछु,चारिउ ओर अँधेर दिखाला।
कुहरा घनघोर धरा पे भरा, अरु लरिकन के दँतवा कट कटाला ।
पूष के जाड़ से काँप रही धरती, जस लागत बा देहियां गलि जाला।
सब लोग ठरैं अरु त्राहि करैं,अस पाला पड़ै पनियां जमि जाला ।।
मास-- माघ
पावन पुन्य प्रताप क बेला लिए, अब माघ महीना निअराये लगल।
प्रयाग में कुम्भ क मेला लगल,सब देश विदेश से आवे लगल ।
पाँचहुँ स्नान करैं अरु दान , सब जाइके कुम्भ नहाये लगल ।
पाप कटै अरु पुन्य बढ़ै जग में,उहि लोक के मोक्ष बनावे लगल ।।
मास -- फाल्गुन ( फागुन )
फागुन मास बहार बयार कै, शीतल सुगन्ध समीर बहै ।
ढोल बजै फगुआ चौतालन मा,काम बसल मन मांहि रहै ।
मन मोहक फूल लहरालैं चहूँ दिश,ऋतुराज वसंत दिखाइ रहै।
बेधयि अंगन मांहि अनंग सभी के,चर जीव अचर अलसाइ रहैं ।।
- पंडित रूद्र नाथ चौबे ("रूद्र")
सहायक अध्यापक पूर्व माध्यमिक विद्यालय रैसिंह पुर, शिक्षा क्षेत्र-- तहबरपुर, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)
ग्राम--ददरा, पोस्ट-- टीकापुर, जनपद-- आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) भारत
सम्पर्क सूत्र-- 9450822762
riti rivaj par nibandha
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