कल्याणकारी राज्य पर समकालीन परिचर्चा भारत एक कल्याणकारी राज्य है।कल्याण राज्य का अर्थ फौजी या पुलिस राज से नहीं है। इसका सीधा सा अर्थ है कि कानून का शासन अर्थात रुल ऑफ लॉ सर्वोपरि होगा।अर्थात जो कानून एक के लिए है वही सबके लिए, समान रुप से लागू होगा। इसके तरह-तरह के निर्वचन और अर्थ करने से कोई लाभ नही है।कानून सब का राजा है ।
कल्याणकारी राज्य पर समकालीन परिचर्चा
भारत एक कल्याणकारी राज्य है।कल्याण राज्य का अर्थ फौजी या पुलिस राज से नहीं है। इसका सीधा सा अर्थ है कि कानून का शासन अर्थात रुल ऑफ लॉ सर्वोपरि होगा।अर्थात जो कानून एक के लिए है वही सबके लिए, समान रुप से लागू होगा। इसके तरह-तरह के निर्वचन और अर्थ करने से कोई लाभ नही है।कानून सब का राजा है ।
चुनावी वादे
चुनाव की प्रक्रिया गोपनीय है , मगर लोग हैं कि इसको गोपनीय रहने नहीं देना चाहते ।चुनाव के समय नेता लोग सारे बहुत सारे वादे करते हैं और जनता को गुमराह करते ऐसा लगता है कि जैसे उनके पास कोई जादुई ताकत हो और ऐसी छड़ी उनके हाथ आ गई हो जिससे वह समस्याओं का समाधान तत्काल कर देंगे लेकिन निराशा और मृग तृष्णा के अलावा कुछ जनता को दे नहीं पाते पाते।
जैसे, एक उदाहरण के तौर पर मै कहूंगा के पिछले चुनाव में एक वादा जनता से किया गया था के अमुक पार्टी
विदेशी बैको मे जमा धन , घर वापस लाएगी और हर एक के खाते में जमा करेगी लेकिन देशो के बीच की हुई संधियो , प्रचलित वित्त कानून के चलते ऐसा मुमकिन हो ही नहीं सकता था लेकिन जनता को स्वार्थ की खातिर उन्होने भटका दिया, और छल से वोट बटोर लिए ।
कल्याणकारी राज्य |
दूसरे कुछ नेता और कुछ मीडिया वाले भैया लोग कहते सुनाई पडते हैं न्यायपालिका तो स्वतंत्र हैं लेकिन विधायिका और कार्यपालिका एक है और मिलजुल कर कार्य कर रही अर्थात यह एक दूसरे से प्रथक नहीं है । यही ध्यान देने की बात है कि ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि कार्यपालिका और विधायिका दोनो एक है, दोनों ही अलग अलग है ।कारण है जनप्रतिनिधि पहले समय में केवल प्रतिनिधि हुआ करते थे , सुविधा भोगी नही और जनता की समस्याओं को अधिकारियों के सम्मुख रखते थे लेकिन आज उस के विपरीत आचरण होने से , उनकी घुसपैठ के चलते कहीं किसी विभाग मे काम ठीक से होने नही दिया जाता , धन बल , बाहुबल के चलते यह दबाव बनाते हैं , कि मैं तो कहूंगा , कि , कही -कही , एक दृष्टि से सारी ड्यूटी सरकारी नोकरो की ,स्थानीय विधायक ,स्थानीय सांसद को खुश कर देने भर से है और उसी में उसकी ड्यूटी पूरी हो जाती है।कानून बनाना और उनका उसी भाव के साथ अमल कराना दोनो पृथक पृथक कार्य है और
दोनो कार्य स्वतंत्र है , एक दूसरे के अधीन तो बिल्कुल नहीं है।संविधान भारतीय संविधान एक ऐसा कानून है, सबसे अनूठा है । इसमें लिखित संविधान ही सर्वोच्च हे ।भारत मे , विद्यमान मे, संसद से ऊपर संविधान है , संविधान में आवश्यकतानुसार परिवर्तन तो किया जा सकता है लेकिन इसके मूलभूत ढांचे को बरकरार रखते हुए ही संशोधन करने होंगे वही वैध हैं, अवेध हे। एक लेख मे,आजकल मे ,मेंहदी रता जी ने ऐसा कहा ।
तालाब से मछली बाजार तक
समाज से लोक सेवक निकलते हैं और जनप्रतिनिधि भी निकलते हैं और दोनों के ही योगदान को समाज नहीं भुला सकता लेकिन आजकल गला काट प्रतिस्पर्धा में यह देखने में आ रहा है कि ढांचागत व्यवस्था को भी स्वार्थी तत्व ध्वस्त कर देना चाहते हैं । यही स्थिति समाज के लिए ठीक नहीं है न तो समाज में ईमानदार सच्चरित्र और निर्दलीय लोगों का सम्मान हो पा रहा है, बल्कि उनकी उपेक्षा भी हो रही है। समाज को जो भी, बदले में , प्रहार करेगा उसकी भी एक दिन दुर्गत जरूर होगी अभी मैंने देखा कि एक जन सेवकएक सरकारी सेवक से कह रहा था क्या मुख्यमंत्री 18 घंटे काम कर सकता है, तो आप क्यों नहीं कर सकते यह सामंतवादी सोच है , यह सामंतवादी विचार है। इसलिए कि कार्य विधि सम्मत और कार्यालय के संबंध निर्धारित समय नियत है , जगजाहिर उसके अलावा भी यदि कोई काम लेना चाहता है तो उसको बताना पड़ेगा और पूर्व सूचना देनी होगी किसी की मर्जी , मनमर्जी अथवा थोपने से चलेगा नहीं समाज में तो पहले से ही कई लोग लड़के को शादी के समय बेचने के चक्कर में झूठ बोलते और आगे भी प्रताड़ित करते हैं और भी कई तरह से शोषण संबंधी कई शिकायत समाज के लिए हितकारी नहीं है कहते है कि मछली सिर से सडती है , सिर से इसलिए सड़ ती है उसका विचार सड़ा हुआ हो जाता है इस तरह कुछ व्यक्ति https://www.facebook.com/1447015898910715/posts/2713519778926981 हैं वह समाज के उपयोगी हो नहीं सकते। इस समय बच्चे की असमय मृत्यु और गीदड़ और गिद्ध की भी बात याद आती है कि केवल सूर्य क अस्त होने की बाट दोनों ही जोह रहे हैं तो इस तरह की मानसिकता जब मनुष्य में पनपती है तो समाज के लिए दुखदायी होती है ,कि समाज में बुरे आदमियों का बहिष्कार हो लेकिन ऐसा होता नहीं ।
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झक्कास मराठी नाटककार श्री विजय तेंदुलकर ने गिद्ध, शांतता राखा कोर्ट चालू आहे, सखाराम बाइन्डर इन सब बातों की जो कि समाज को निगल रही है, निगले जा रही है, समाज में गंदगी फैला रही है उस पर विचार किया था और हिंदी में व्यंग के माध्यम से, श्रीलाल शुक्ल जी के कृतित्व ने किया है इस बात की याद दिलाता है कि समाज में यह कुफ़र जोर से फैला हुआ है ।अपनों पर ही इन कुरीतियों की समाप्ति के लिए प्रहार किया जाना नितांत आवश्यक है। कुछ-कुछ यही भाव धूमिल की कविता गिद्ध में है जिसमें कहा गया है गिद्ध की संगत चील, कव्वे और हिंसक जानवरों से है और उसका चाव भी घाव देखने में है ।
राजनेता यह कहकर आते है कि वे जनता के सेवक है और उन्ही के अधिकार पर सवार होकर आते है उनका कोई परिश्रम नहीं होता , पर वे तरह तरह के सुरक्षा घेरे मे चलते है और किसानों का ( जनता ) दुर्भाग्य है कि वे दर दर भटकते रहते है ।जो प्रतियोगी परीक्षा पास करते है और जो साहित्य सृजन करते है वे राष्ट्र निर्माण मे सच्चा योगदान देते है । इसके बाद उद्योगपति व व्यापारी आते है पर हालत यह है कि वे सभी अधिकारी / कर्मचारियों को गली देते रहते है , जब कि दोष राजनेता का झलक रहा होता है ।
न्यायपालिका
वैसे तो हर सरकार , अंदर खाने की बात से, न्याय पालिका में भी अपने जज बिठाने की फिराक में रहती ही है और बोलो तो , वही सदैव, आज भी रहती है, लेकिन सरकार की मंशा न्यायपालिका को भी प्रभुत्व में लाने की है, इसलिए ऑल दिल्ली जुडी शियल अकेडमी की बात रखी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की वर्चस्वता बरकरार रखी हमें इन और नेताओं के व्यवहार के ऊपर हमें रचित तिवारी के प्रसंग ही चाहिए आंध्र प्रदेश में जिन 3 को तत्काल ही मार गिराया गया उस पर न्याय पालिका के शीर्ष अधिकारी विचलित हुए जरूर , रोज रोज की तारीख होने से जो गरीबों का गला घोट आ जाता है और न्याय व्यवस्था पर यह प्रहार होता है और जो सदियों पुराना एडवोकेट एक्ट है उस में बदलाव की क्या कभी किसी ने जरुरत नहीं समझी उसी तरह फौरी न्याय का उदाहरण कानपुर का विकास दुबे आदि का एनकाउन्टर है ।
आंखों दिखते गरीबों के अधिकारों को दबाया जाता है और जो दबंग है प्रभावशाली है, नोबेल हे वे अधर्म से उन का शोषण किए जा रहे हैं तब न्याय और समानता की बात ऐसे में कैसे की जा सकती है विधायिका और कार्यपालिका मैं पुलिस की भूमिका पर भी गौर करना लाजिमी है प्रकाश सिह के विचार सर्वोच्च न्यायालय मे गौर तलब थे ।
अभिव्यक्ति की आजादी और सोशल मीडिया
इस विषय में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि जैसा किसी ने टीवी के लिए कहा कि यह ईडियट बॉक्स है बिल्कुल सही है लाभ से ज्यादा यह हानी कर चुका है वह हानि नजर आए या नहीं भी आए और फेस बुक , ट्विटर , टेलीग्राम , इंस्टाग्राम और न जाने कितने एप युवकों को लाती बना चुके और करीब करीब सत्यानासी जैसे है , प्राइवेसी हनन से लेकर डाटा चोरी की जाने तक । ( सन्दर्भ अतिरा नायर ,सितंबर 20 , मेकर्स इंडिया, ब्लैक मिरर) कुछ प्रश्न ही गलत होते है , कुछ प्रश्नो के जवाब दिया जाना भी गलत होता है और कुछ प्रश्नौ के जवाब जानना भी जरूरी नही होता । बल्कि गलत होता है । बिना कहानी के जीवन में दरअसल कुछ मजा ही नहीं बहुत छोटी होती है और कुछ कहानी बहुत लंबी होती है ध्यान और उपाख्यान जुड़े होते हैं कुछ कहानियां के अभिप्राय सीधे और सरल होते तो कुछ कहानियों के अभिप्राय बहुत ही जटिल होते हैं और परिणाम दूरगामी होते हैं।
शेष अगले अंक में -
संपर्क - क्षेत्रपाल शर्मा
म.सं 19/17 शांतिपुरम, सासनी गेट ,आगरा रोड अलीगढ 202001
मो 9411858774 ( kpsharma05@gmail.com )
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