खिलता कमल - हिंदी कहानी

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खिलता कमल रात बहुत हो चुकी थी, चारों ओर शांति थी l किसी भी तरह की आवाज़ नही थी l कुत्ते भौंक रहे थे l अचानक शास्त्री जी के घर से जोर -जोर से चिल्लाने की आवाज़े आने लगी l रमा ने दरवाज़ा खोलकर देखा l इधर रमा की आहाट सुनकर मालती ने भी अपने खिड़की खोली और देखने लगी l

खिलता कमल 

                 
रात बहुत हो चुकी थी, चारों ओर शांति थी l किसी भी तरह की आवाज़ नही थी l  कुत्ते भौंक रहे थे l अचानक  शास्त्री जी के घर से जोर -जोर से चिल्लाने की आवाज़े आने लगी l रमा  ने दरवाज़ा खोलकर  देखा l इधर रमा की आहाट सुनकर मालती ने भी अपने खिड़की  खोली और देखने लगी  l रमा  मालती से कहने लगी "इन शास्त्री फॅमिली से तो तंग आ गए हैं, हर रोज़ झगड़ा लगा रहता हैं, ना जाने कब बंद करेंगे ये रोज़-रोज़  का नाटक l"मालती  ने सुनके कहा कि "हा आखिर कौन समजाये इन्हे, परसो सोनू के पापा गए थे समझाने के लिए l कहने लगे कि ये हमारे घर का मामला हैं बीच में मत आओ l तो भला कौन समजाएगा, किस बात से लड़ते हैं लोग भगवान ही जाने l खैर छोड़ो हमें क्या पड़ी हैं चलो देर रात हो रही है सो जाते हैं l" हा रमा सही कहती हो चलो l दोनों ने ज़ोर से अपने अपने दरवाज़े लगा दिए l और शास्त्री जी के घर लगातार दो घंटे तक का तमाशा चलता रहा l कोई पड़ौसी इनके विवाद को सुलझाने नहीं  आता l शास्त्रीजी अपने एक लौते बेटे से परेशान हो गए थे l आये दिन  रोज कुछ -न- कुछ तमाशा खड़ा कर देता था l अब उनके लिए एक आदत सी हो गई थी l माँ बेचारी घर के कामों में व्यस्त हो कर ऊब गई थी l बाप और बेटे के इन रोज के तमाशों से वह पड़ोसियों को मुंह नहीं  दिखाती थीं  l एक बार मालती के कहने पर कह दिया था कि आखिर प्रतिदिन किस कारण झगड़ा होता हैं l उस से ये पता चला कि बेटे की बेरोज़गारी l आज का युग ही ऐसा हो गया हैं कि हर घर का ये ममला हो गया हैं l अक्सर माँ को   मालती और रमा  के दबाव में रहना पड़ता l वो रोज उसे ताने सुनाती l घर का पूरा काम कर के घर में ही बैठ जाती कहीं जाती आती नहीं l इन सबमें वह जकड सी गई थी l प्रतिदिन उसे भी इन सब हरकतो की आदत हो गई थी l परन्तु कमल बाज़ नही आता था l हर रोज की यही दिनचर्या होता था l बेचारे माता पिता के नसीब में सुख ही नही था l इस तरह के संतान से वह तंग आ गए थे l  
                
प्रतिदिन अख़बार दरवज़े पर पड़ता था शास्त्रीजी चाय की चुस्की के साथ अख़बार पढ़ा करते थे l रोज की आत्म हत्या की खबरे देखकर शास्त्रीजी का  अंदर से कलेजा जल उठता था   l और कहते "क्या इसीलिए माता पिता इन जैसी औलाद को जन्म देते हैं कि चढ़ जाओ सूली पर यही करना हैं तुम्हे बड़े होकर l "इधर इनकी बातें सुन माता का दिल भी खिन्न हो जाता था और सोचती थी कि कहीं मेरा बेटा भी तनाव में आके कुछ कर ना दे l आज के ज़माने में माता पिता को अपने बच्चों से डरना पड़ रहा हैं l एक समय था बच्चे माता पिता को आँख उठा कर नही देखते थे l ये हर परिवार की विडंबना हो गई हैं l 
     
शास्त्रीजी को एक ही पुत्र था कमल  l जो पड़ा लिखा था परन्तु नौकरी की तलाश में था l चरित्र से अच्छा था अतः माता पिता के साथ व्यवहार सही नही था l शायद यही कारण था कि वो किसी चीज में सफल ना हो पा रहा था l अय्याशी वाला जीवन पसंद था l चाहता तो बहुत कुछ था, घर होगा, गाड़िया होंगी परन्तु मेहनत से दूर था l एक अच्छे जीवन की अभिलाषा करता था lऔर भारी भारी शौक थे l पार्टियों में जाना दोस्तों पर पैसे खर्च करना आदि lइन्ही सब बातों  से शास्त्रीजी परेशान हो गए थे l हर वक्त घर छोड़ कर जाने के धमकियाँ देता रहता था l कमल  ना धार्मिक था और ना ही संस्कारी l 
              
एक दिन की बात हैं,  चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था l सूरज आग बरसा रहा था l घड़ी के काटे बारह की
खिलता कमल
खिलता कमल
तरफ भाग रहे थे l इस सुनसान से  माहौल से एक बारीक़ सी आवाज़ आई -"ओ बेटा उठ जाओ, कब तक सोते रहोगे दिन निकल चूका हैं "l माँ  सोने दो  रात भर सोया नही हूं l उतने में  पिताजी की आवाज़ आई कमल  की अम्मा ऐसे ही बिगाड़ो अपने लाडले को अब तो कमाने की उम्र हो गई हैं, घर मे पड़ा हैं l "आप कमाई होनी चाहिए बाप कमाई नही "l समझ गई l उदहर समर्थ गुस्से से थोड़ी देर सोने भी दो मेरे बच्चे को दिनभर नौकरी की तलाश में घूमता फिरता हैं थक जाता हैं l और रात भर टेंशन लेता हैं lमेरा कमल एक दिन जरूर खिल उठेगा देख लेना l कमल उतने में गुस्से से उठ जाता हैं और किसी से कुछ नहीं कहता l इधर माँ परेशानी स्वर से पिताजी से कहती हैं -"देखो वह आये दिन नौकरी को लेकर परेशान हैं उसके साथ के सभी लोग अपने जीवन में आगे बाद चुके हैं l और तुम ऊपर से बातें सुनाते हो l कहीं वो हाथों से निकल ना जाये कुछ गलत कदम ना उठाये l " इतना डरती हो अपने बेटे  से l हम इसकी उम्र में बहुत कुछ कर गुज़रे हैं l हमारे बुजुर्ग अक्सर कहा करते थे चाहे कितने माता पिता की धनसम्पदा  हो लेकिन खुद लड़के का कुछ होना चाहिए l तुम कहती हो विवाह तो करवा दें तो सुधर जायेगा l पहले लोग पूछेंगे क्या करता हैं लड़का l  वो एक कहावत कहा करते थे "जा बेटा काम कु क्या खायेगा शाम कु "l रहने दो तुम्हारा जमाना हो गया अब आज प्रतियोगिता का समय हैं मेरा बेटा कोशिश कर रहा हैं कहीं ना कहीं लग जायेगा l कमल भोजन कर घर से निकला l दिन भर इधर उधर के चकर काटे l लौट के घर आया l शाम हो चुकी थी l पिताजी द्वार पर बैठे थे l माँ ने पूछा कुछ हुआ क्या बेटा l कमल कुछ ना बोलते हुए कमरे में चला गया l माँ ने खाना लगया और रात सब सो गए l
              
एक दिन ऐसा आया कि कमल अपनी मोटरसाइकल  पर बैठकर  दूर एक खाई में चला गया l इतनी ऊंचाई थी कि कोई नीचे गिर जाये तो हाड़ियाँ तक ना मिले l ऊंचाई पर ठहर कर सोचने लगा एक बार  मैं नीचे गिर गया तो ख़तम हो जायेगा बस सब ख़तम  l जीवन का अंत हो जायेगा सब टेंशन से मुक्त हो जाऊंगा l किसके लिए जी रहा हु मैं l एक कदम आगे बड़ा रहा था कि पीछे से एक आवाज़ आई -"रुक जा ये क्या करने जा रहा हैं तू l"क्या मिलेगा तुझे जीवन का अंत करके बस दो दिन तुझे याद करके रोएंगे सब लोग  lये समाज तुझ जैसे कायर  से पूरा नष्ट हो गया हैं l बस थोड़ा कुछ कम पड़ गया तो चले लटकने कहीं l तुझे जिसने जन्म दिया उनके बारे में सोच l अगर ज़री सी भी इनके प्रति श्रद्धा का भाव रखता हैं तो रुक जा l बस तेरे माता पिता ही होंगे जो अंदर सर टूट जायेंगे l ख़तम हो जायेंगे वो l उन्हें कौन देखेगा l क्या मिलेगा  तुझे l किसके लिए जी रहा हैं तू l तुझे ज्ञात नही l एक ठन्डे दिमाग़ से सोच l पीछे पलट कर कमल ने देखा तो कोई दिखाई नही दिया l कमल आश्चर्य में  रह गया ये आवाज़ किसकी थी आखिर?मैं  आखिर कहाँ आ गया हूं l कमल  ने अपने कदम पीछे ले लिये  l चारों तरफ देखा  और पीछे की तरफ कदमो को  चला  दिया l इतने में माँ की आवाज़ आई "ओ बेटा उठ जाओ सुबह हो गई l" कमल हैरान हो कर उठ खड़ा हो गया l सर को हाथो लगा कर ओह  सपना था ! सच ना था l अच्छा हो गया l अब कमल उठकर अपने सोच पर शर्मिंदा हो गया l ये क्या करने जा रहा था मैं l भगवान मुझे माफ करें मैं  अपने माता पिता को इतना बड़ा धोका दे रहा था l इस सपने से कमल में नई सी ऊर्जा आ गई और अंदर से खिल उठा l सोचने लगा मै वास्तविकता से कोसों दूर था l एक सपने ने मुझे हकीकत से जोड़ दिया l मेरा एक गलत कदम माता पिता को मुझे कितना भारी पड़ता l उतने में माँ ने आवाज़ लगाई बेटा खाना तैयार हैं  आओ जल्दी और लेट हो जाओगे l जी माँ आता हूं...... 
      


Written by Misbah A Hamid Punekar 
130, kmc complex sidheshawar peth solapur.Maharashtra 
9022687773

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