विश्व दुलारी बनती हिन्दी (हिंदी दिवस पर विशेष लेख) यह एक संयोग ही होता है कि प्रतिवर्ष जब हम हमारी दुलारी भाषा हिंदी का उत्सव 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाते हैं, उसी समय सम्पूर्ण भारत अपने पूर्वजों को तर्पण देने वाले श्राद्धपक्ष का पालन कर रहा होता है। बहुतेरे अज्ञानीजन परिहास का जामा पहनाकर या फिर सीधे सीधे हिंदी के अपमान के लिए हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में होने वाले उत्सवों को हिंदी के श्राद्ध की संज्ञा देकर स्वयं को प्रकाण्ड समझने का स्वांतःसुख पा लेते हैं।
विश्व दुलारी बनती हिन्दी
(हिंदी दिवस पर विशेष लेख)
यह एक संयोग ही होता है कि प्रतिवर्ष जब हम हमारी दुलारी भाषा हिंदी का उत्सव 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रुप में मनाते हैं, उसी समय सम्पूर्ण भारत अपने पूर्वजों को तर्पण देने वाले श्राद्धपक्ष का पालन कर रहा होता है। बहुतेरे अज्ञानीजन परिहास का जामा पहनाकर या फिर सीधे सीधे हिंदी के अपमान के लिए हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में होने वाले उत्सवों को हिंदी के श्राद्ध की संज्ञा देकर स्वयं को प्रकाण्ड समझने का स्वांतःसुख पा लेते हैं। लेकिन उस असहनीय पीड़ा को शायद ही वे कभी अनुभूत कर पाते हों, जो उनके हिंदी के प्रति श्राद्धभाव की बात से असंख्य हिंदीप्रेमियों को हो जाती है, वे हिंदीप्रेमी जिनके लिए हिंदी उनकी दुलारी भाषा है। मैं भी उनमें से एक हूं, जो ऐसी शूलसिक्त टिप्पणियों से बेहद आहत होती हूं। भारतीय संस्कृति में श्राद्ध मृत व्यक्तियों के लिए अपनाया गया धार्मिक विधान है, जिसमें उन्हें भी श्रृद्धासहित स्मरण किया जाता है। हिंदी की जन्मदात्रीभाषा संस्कृत तो स्वयं अमरभाषा देवभाषा है, तो हिंदी तो जन्मजात अमर्त्य है, उसका तर्पण से संबंध जोड़ना भी अतिनिंदनीय कृत्य है।
विश्व दुलारी बनती हिन्दी |
हिंदी को जब अपने ही लोगों द्वारा और अपने ही देश में घर की मुर्गी दाल बराबर जैसे मुहावरों का सामना करना पड़ा, तो अपनी अमर्त्य मेधा के बल पर हिंदी ने अंतरराष्ट्रीय रुख किया और विश्व की पांच प्रमुख भाषाओं में अपना स्थान सुनिश्चित किया। हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के तौर पर प्रतिष्ठित करने में फरवरी 2008 में मॉरिशस में स्थापित किया गया विश्व हिंदी सचिवालय भी बड़ी भूमिका निभा रहा है। दुनियाभर में फैले अप्रवासी हिंदीप्रेमी भारतीयों के प्रयास भी स्तुत्य हैं। आंकड़ों पर अविश्वास करने वालों का कुछ नहीं किया जा सकता या कि ऐसे अविश्वासी प्रवृत्ति के लोगों के लिए दुनिया में कोई हल नहीं है। वे तो अंतरराष्ट्रीय अंतरसरकारी संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा हिंदी के लिए किए गए सम्मान कार्यों को भी यह कहकर खारिज कर देते हैं कि हिंदी आजतक भी उसकी आधिकारिक भाषा नहीं बन सकी है। यहां तक कि विश्व में एक बड़ा समूह उन लोगों का भी बनता जा रहा है, जो संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता कम होने की बात तक करने लगा है। यह कहना बिल्कुल सही है, कि भारत के अतिप्रयासों के बावजूद भी हिंदी संयुक्तराष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन सकी है, परंतु इसके पीछे बहुतेरे कारण और परिस्थितियां हैं। लेकिन उन तथ्यों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि संयुक्त राष्ट्र अपने कार्यक्रमों का यू एन रेडियो वेबसाईट पर हिंदी भाषा में भी प्रसारण करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदी की वैश्विक लोकप्रियता को स्वीकारते हुए 2018 में हिंदी न्यूज बुलेटिन की शुरुआत की, वहीं 2019 में हिंदी में न्यूज वेबसाइट भी लांच की है। इससे हिंदी एशिया की वह पहली भाषा बनी है, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा न होने के बावजूद यह सम्मान मिला है।
हाथ कंगन को आरसी क्या? आज विश्व दर्पण पर हिंदी की डिजिटल रुप सौंदर्य छवि कौन नहीं देख रहा है? इंटरनेट पर हिंदी की परिधि विस्तार पाती जा रही है, सोशल मीडिया की ऐसी कोई शाखा नहीं है, जिसमें हिंदी
का प्रयोग न हो रहा हो। ब्लॉग्स को लांघते हुए हिंदी फेसबुक और ट्विटर पर परचम लहरा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी काफी पहले से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हिंदी का उपयोग करता आ रहा है। हिंदी समाचारपत्रों की वेबसाइटों से देश-विदेश के करोड़ों पाठकों को हिंदी ने जोड़ा है। इंटरनेट पर हिंदी के बढ़ते प्रयोग का आंकलन करते हुए सर्च इंजन गूगल का अनुमान सामने आया है कि हिंदी में इंटरनेट पर जानकारियों को पढ़ने वाले लोगों की संख्या प्रति वर्ष 94 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। निकट भविष्य में ऐसा सुखद समय भी आ सकता है जब इंटरनेट पर हिंदी का उपयोग करने वालों की संख्या अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषाओं के प्रयोक्ताओं से अधिक हो जाए। ऐसा इसलिए कह सकते हैं कि एक और अनुमान आंकड़ा सामने आया है जो दर्शाता है कि अंग्रेजी भाषा का उपयोग करने वालों की संख्या प्रतिवर्ष 17 प्रतिशत कम हो रही है। गूगल के अनुसार 2021 तक इंटरनेट पर 20.1 करोड़ लोग हिंदी का उपयोग करने लगेंगे। ऐसे ही आंकड़ों की सत्यता एक ओर जहां हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता की परिचायक है, वहीं प्रतिद्वंदिता की मानसिकता के शिकार भाषाकुंदों को हिंदी के तर्पण की निम्नता तक गिरते देखा जा सकता है। ये तो वे लोग हैं जो तर्पण की मूल अवधारणा को भी मनोरंजन के दायरों में रखते संकोच नहीं कर रहे हैं, जिनके लिए मृत पूर्वज महज दिवंगत देह से अधिक कुछ नहीं है, अन्यथा श्राद्ध परिहास का विषय तो कतई नहीं है और हिंदी दिवस समारोहों को श्राद्धपक्षीय अनुष्ठानों से जोड़कर हिंदी को मृतभाषा मानने वालों का उपचार असंभव है। अलबत्ता ऐसी निम्नसोच वालों से सच्चे हिंदी प्रेमियों को हृदयविदीर्ण होने की भी आवश्यकता नहीं है। बल्कि यह सोचकर और देखकर प्रसन्न अवश्य होना चाहिए कि आधुनिक डिजिटल दौर में कई ऐसे डिजिटल साधन उभरे हैं, जिनके कारण भारत के अहिंदीभाषियों और विश्व के कितने ही देशों के लोगों ने इनके माध्यम से हिंदी को सीखना आरंभ कर दिया है। हिंदी सिखाने वाले ऐसे एपों में ड्रॉप्स: लर्न हिंदी, डुओलिंगो, गूगल ट्रांसलेट, हेलोटॉक, लर्न हिंदी फ्री, मेमराइज़, मॉण्डली, रोज़ेट स्टोन, सिम्पली लर्न हिंदी, टेंडेम आदि एप काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। इनके अलावा भी सैकड़ों ऐसे मोबाइल एप आते जा रहे हैं, जिन्होंने हिंदी सीखने वाले वैश्विक विद्यार्थियों की संख्या बढ़ा दी है। भारत में भी तीव्रगति से मोबाइल इंटरनेट प्रयोगकर्ता बढ़ रहे हैं, जो हिंदी के विस्तार में बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। निःसंदेह वह दिन दूर नहीं जब हिंदी समस्त विश्व की दुलारी और प्यारी भाषा बनेगी।
डॉ. शुभ्रता मिश्रा |
-डॉ. शुभ्रता मिश्रा, गोवा
ईमेल- shubhrataravi@gmail.com
मोबाइल- 8975245042
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