अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले

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अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले निदा फ़ाज़ली Ab Kahan Doosre Ke Dukh Mein Dukhi Hone wale अब कहाँ दूसरे के दुःख मे दुखी होने वाले Class 10 Hind

अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले - निदा फ़ाज़ली



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अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले summary सारांश 


प्रस्तुत पाठ अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले , लेखक निदा फ़ाज़ली साहब के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखक निदा फ़ाज़ली साहब ने मानव द्वारा निर्मित स्वार्थपरक अत्याचारों का चित्रण किया है | प्रस्तुत पाठ में यह बताने का प्रयास किया गया है कि किस तरह मानव की अमिट भूख ने धरती के तमाम जीव-जन्तुओं के साथ खुद के लिए भी मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है | आगे लेखक निदा फ़ाज़ली साहब कहते हैं कि ईसा से 1025 वर्ष पूर्व एक बादशाह थे, जिनका नाम बाइबिल के अनुसार 'सोलोमेन' था और कुरआन के अनुसार में 'सुलेमान' था | वे केवल मानव जाति के ही राजा नहीं थे, बल्कि सभी छोटे-बड़े पशु-पक्षी के भी हाकिम थे | उन्हें इन सबकी भाषा का इल्म था | 

आगे निदा फ़ाज़ली साहब कहते हैं कि एक बार  बादशाह सुलेमान अपने लश्कर के साथ एक रास्ते से गुज़र रहे थे | उस रास्ते में कुछ चीटियाँ घोड़ों की टापों की आवाज़ सुनी तो डरकर एक एक-दूसरे से कहा --- 'आप जल्दी से अपने-अपने बिलों में चलो, फ़ौज़ आ रही है...' | बादशाह सुलेमान चिटियों की बातें सुनकर कुछ दूर पर ही रुक गए और चिटियों को संबोधित करते हुए बोले --- 'घबराओ नहीं, सुलेमान को ख़ुदा ने सबका रखवाला बनाया है | मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ, सबके लिए मुहब्बत हूँ |' चिटियों ने भी बादशाह सुलेमान के हक़ में दुआ की और बादशाह सुलेमान अपनी मंजिल की ओर रवाना हो गए | 

आगे लेखक निदा फ़ाज़ली साहब ऐसी ही एक और दास्तान का जिक्र करते हुए कहते हैं कि सिंधी भाषा के महाकवि शेख अयाज़ ने अपनी आत्मकथा में लिखा है --- एक रोज जब उनके पिता कुएँ से नहाकर वापस घर आए तो उनकी माँ ने उनके लिए भोजन परोसा | उन्होंने रोटी का एक कौर तोड़ा ही था, तभी उन्हें अपने बाजू पर एक काला च्योंटा रेंगता दिखाई दिया | वे तुरंत भोजन छोड़कर उठे और सबसे पहले उस बेघर हुए च्योंटे को वापस उसके घर यानी कुएँ पर जाकर छोड़ आए | 
अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
निदा फ़ाज़ली

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बाइबिल और दूसरे ग्रंथों में 'नूह' नामक एक पैगम्बर का जिक्र मिलता है, जिनका असली नाम 'लशकर' था, लेकिन अरब इलाके में इस पैगम्बर को 'नूह' नाम से जाना जाता है, क्योंकि नूह पूरी जिंदगी रोते रहे | एक समय की बात है, पैगम्बर नूह के सामने से एक घायल कुत्ता गुजरा | वैसे इस्लाम में कुत्ते को गन्दा या नापाक माना जाता है, इसलिए नूह ने उसे गंदे कुत्ते की संज्ञा देकर दूर जाने को कहा | उस कुत्ते ने इस दुत्कार को सुनकर उत्तर दिया --- न मैं अपनी मर्ज़ी से कुत्ता हूँ और न तुम अपनी पसंद से इंसान हो | 
हम दोनों को बनाने वाला एक ही है | उस कुत्ते के इस मार्मिक बातों को सुनकर पैगम्बर नूह दुखी हो गए और पूरी ज़िंदगी रोते हुए काटे | प्रस्तुत पाठ में एक अंश में यह भी बताया गया है कि महाभारत काल में भी एक कुत्ते ने पांडव युधिष्ठिर का साथ अंत तक निभाया था | 

आगे लेखक कहते हैं कि यह धरती किसी एक की नहीं हो सकती | इस धरती पर सभी जीव-जंतुओं, पशु, नदी, पहाड़ सबका समान अधिकार है | लेखक कहते हैं कि एक समय था, जब लोग संयुक्त रूप से रहना पसंद करते थे | परन्तु, अब छोटे-छोटे डिब्बे जैसे घरों में सिमटकर रह गए हैं | मानव पहले संसार जैसे परिवार को तोड़ा, फिर खुद टुकड़ों में बँटकर एक-दूसरे से दूर रहने लगा है | लेखक कहते हैं कि कहीं न कहीं बढ़ती हुई आबादी के कारण समंदर को पीछे हटना पड़ रहा है | पेड़ों को रास्ते से हटाना पड़ रहा है, जिस कारण फैले प्रदूषण ने पक्षियों को भगाना शुरू कर दिया है | प्रकृति की भी अपनी सहनशक्ति होती है | जिसके दुष्परिणाम के रूप में हम कई बार जलजले, अत्यधिक गर्मी, सैलाब आदि के रूप में देखते हैं | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि उनकी माँ कहा करती थीं कि शाम ढलने पर पेड़ से पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए, वे रोते हैं | दीया-बत्ती के समय फूल नहीं तोड़ना चाहिए | आगे लेखक की माँ कहती हैं कि दरिया पर कभी जाओ तो सलाम करो, कबूतरों को मत सताया करो और मुर्गे को परेशान मत करो, क्योंकि वह सुबह-सुबह अज़ान देकर हम सभी को उठाता है | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आगे लेखक कहते हैं कि उनका मकान ग्वालियर में था | मकान के दालान के रोशनदान पर कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया था | एक बार एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया था | तत्पश्चात्, जब लेखक की माँ ने दूसरा अंडा बचाने के उद्देश्य से आगे बढ़ी तो भूलवश उनसे दूसरा अंडा भी फूट गया | आगे लेखक कहते हैं कि माँ ने इसकी माफ़ी के लिए दिन भर बिना कुछ खाए-पिए नमाज़ अदा करती रहीं | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, आगे लेखक कहते हैं कि वर्तमान में वे मुंबई के वर्सोवा में रहते हैं | एक समय था जब यहाँ परिंदे, पेड़ और दूसरे जानवर रहते थे | लेकिन अब यहाँ शहर कायम हो चुका है | अन्य पशु-पक्षी इस शहर को छोड़कर जा चुके हैं, जो नहीं जा पाए, वे इधर-उधर ही डेरा डाले रहते हैं | 

प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक के फ्लैट में भी दो कबूतरों ने अपना घोंसला बनाया है | कबूतरों का घर में दिन-भर आना-जाना करना, इससे लेखक और उनकी पत्नी को परेशानी होती थी | इसलिए लेखक ने जाली लगाकर उन कबूतरों को बाहर कर दिया था | आगे लेखक मार्मिकतापूर्ण भाव से कहते हैं कि अब दोनों कबूतर खिड़की के बाहर बैठे उदास रहते हैं, क्योंकि अब न बादशाह सुलेमान हैं और न ही लेखक की माँ है, जिनको इन कबूतरों की फ़िक्र हो...|| 


निदा फ़ाज़ली का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक निदा फ़ाज़ली साहब हैं | इनका जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था | इनका बचपन वर्तमान मध्यप्रदेश के ग्वालियर में बिता | निदा फ़ाज़ली साहब उर्दू के साठोत्तर पीढ़ी के महत्वपूर्ण व प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं | 

इन्होंने आम बोलचाल की भाषा में कविता लिखी और उसे इतनी सरलता से रचा कि उनकी कविता किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर जाती हैं | इन्हें अपनी गद्य रचनाओं में शेर-ओ-शायरी पिरोकर थोड़े में बहुत कुछ कह देने में महारत हासिल है | 

निदा फ़ाज़ली साहब अपने किस्म के अकेले गद्यकार माने जाते हैं | ये फिल्म उद्योग से भी सम्बन्धित हैं | इनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्य हैं --- 

पुस्तक ---  खोया हुआ सा कुछ, तमाशा मेरे आगे, लफ्जों का पुल | 
आत्मकथा --- दीवारों के पार, दीवारों के बीच | 
पुरस्कार --- खोया हुआ सा कुछ के लिये 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार...||  



अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे क्यों धकेल रहे थे ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बड़े-बड़े बिल्डर समुद्र को पीछे इसलिए धकेल रहे थे, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के कारण ज़मीनें कम पड़ गई थीं | 

प्रश्न-2 लेखक का घर किस शहर में था ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक का घर 'ग्वालियर'  शहर में था | 

प्रश्न-3 जीवन कैसे घरों में सिमटने लगा है ? 

उत्तर- 
एक समय ऐसा था, जब हम संयुक्त परिवार में मिलजुलकर रहा करते थे | लेकिन अब आपसी कलह के कारण घर विभाजित होने लगा है | धीरे-धीरे एकल परिवारों का चलन होने के कारण जीवन घरों में सिमटने लगा है | 

प्रश्न-4 अरब में लशकर को नूह के नाम से क्यों याद करते हैं ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, अरब में लशकर को नूह के नाम से इसलिए याद करते हैं, क्योंकि उन्हें सदा दूसरों के दुःख से दुःख का एहसास होता था | उनसे किसी की मुसीबत देखी नहीं जाती थी | उनके मन में करूणा का भाव प्रवाहित होता था | नूह को ईश्वर का दूत या पैगम्बर के रूप में भी जाना गया है | 

प्रश्न-5 लेखक की माँ किस समय पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं और क्यों ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक की माँ शाम होने के बाद पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए मना करती थीं,  क्योंकि लेखक की माँ के अनुसार, उस समय वे पत्ते रोते हैं | 

प्रश्न-6 प्रकृति में आए असंतुलन का क्या परिणाम हुआ ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, प्रकृति में आए असंतुलन का अनेक परिणाम हुआ | जैसे --- अत्यधिक गर्मी, भूकंप, असमय बारिश, साइकलोन, अतिवृष्टि और साथ में अनेक प्रकार की बिमारियाँ | 

प्रश्न-7 लेखक की माँ ने पूरे दिन रोज़ा क्यों रखा ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि उनका मकान ग्वालियर में था | मकान के दालान के रोशनदान पर कबूतर के एक जोड़े ने अपना घोंसला बना लिया था | एक बार एक बिल्ली ने उचककर दो में से एक अंडा फोड़ दिया था | तत्पश्चात्, जब लेखक की माँ ने दूसरा अंडा बचाने के उद्देश्य से आगे बढ़ी तो भूलवश उनसे दूसरा अंडा भी फूट गया | आगे लेखक कहते हैं कि माँ ने इसकी माफ़ी के लिए दिन भर बिना कुछ खाए-पिए नमाज़ अदा करती रहीं | 

प्रश्न-8 लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक किन बदलावों को महसूस किया | पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने ग्वालियर से बंबई तक विभिन्न बदलावों को महसूस किया | जैसे --- वे पूर्व में ग्वालियर में रहते थे | तत्पश्चात्, बम्बई के वर्साेवा में रहने लगे थे | पहले के घर बड़े-बड़े होते थे, दालान और आंगन हुआ करते थे, लेकिन अब डिब्बे जैसे घर देखने को मिलते हैं | एक समय था, जब सब मिलजुलकर रहते थे, लेकिन अब सब अलग-अलग रहते हैं | जनसंख्या वृद्धि के कारण रहने के लिए स्थानों की कमियाँ हो गई हैं | पहले के लोग पक्षियों के घोंसले का ध्यान रखा करते थे, पर अब उनके आने के रास्ते लोग बंद कर देते हैं | 

प्रश्न-9 बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

उत्तर- 
वास्तव में देखा जाए तो बढ़ती हुई आबादी के कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है | जनसंख्या वृद्धि के कारण वनों की कटाई हो रही है | समुद्रस्थलों को भी छोटा किया जा रहा है | पशु-पक्षियों के आवास उजड़ते जा रहे हैं | इसी असंतुलन के कारण प्राकृतिक आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं | कहीं बाढ़, कहीं भूकंप, कहीं तूफान, कभी गर्मी, कभी तेज़ वर्षा इत्यादि चुनौतियों से निरन्तर सामना करना पड़ रहा है | अत: इस तरह बढ़ती हुई आबादी का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ा है | 

प्रश्न-10 समुद्र के गुस्से की क्या वजह थी ? उसने अपना गुस्सा कैसे निकाला ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, समुद्र के गुस्से की यह वजह थी कि पिछले कई वर्षों से बिल्डर समुद्र को पीछे धकेल रहे थे | उसकी ज़मीन पर कब्जा कर ले रहे थे | परिणामस्वरूप, समुद्र सिमटता जा रहा था | लेखक के अनुसार, समुद्र पहले अपनी टाँगें समेटी,  फिर उकडू बैठा, फिर खड़ा हो गया | तत्पश्चात्, जगह कम पड़ने के कारण उसे गुस्सा आ गया | समुद्र ने अपना गुस्सा निकालने के लिए तीन जगहों पर जहाज फेंक दिए | एक बांद्रा मे कार्टर रोड के सामने, दूसरा वार्ली के समुद्र के किनारे और तीसरा गेट वे ऑफ इंडिया पर टूट-फूट गया | 

प्रश्न-11 मट्टी से मट्टी मिले,
खो के सभी निशान,
किसमें कितना कौन है,
कैसे हो पहचान

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता हैं ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'निदा फ़ाज़ली' साहब के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से निदा फ़ाज़ली साहब कहना चाहते हैं कि हम सभी प्राणी मट्टी से ही बने हैं और अंत में हमारा शरीर उसी मट्टी में विलीन हो जाता है | यह हमें ज्ञात नहीं रहता कि उस मट्टी में कौन-कौन से मट्टी मिली हुई है, मतलब मनुष्य में कितनी मनुष्यता है और कितनी पशुता, इससे मनुष्य अनजान रहता है | 

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भाषा अध्ययन
प्रश्न-12 उदारण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों में कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित कीजिए और उनके नाम रिक्त स्थानों में लिखिए ; जैसे --- 

(क)- माँ ने भोजन परोसा | कर्ता

(ख)- मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ | ......................
(ग)- मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया | ......................
(घ)- कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे | ......................
(ङ)- दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो | ......................

उत्तर- कारक चिह्नों को पहचानकर रेखांकित - 

(क)- माँ ने भोजन परोसा | (कर्ता)

(ख)- मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ | (संप्रदान)

(ग)- मैंने एक घर वाले को बेघर कर दिया |  (कर्म)

(घ)- कबूतर परेशानी में इधर-उधर फड़फड़ा रहे थे (अधिकरण)

(ङ)- दरिया पर जाओ तो उसे सलाम किया करो | (अधिकरण) 

प्रश्न-13 नीचे दिए गए शब्दों के बहुवचन रूप लिखिए ---  चींटी, घोड़ा, आवाज़, बिल, फ़ौज, रोटी, बिंदु, दीवार, टुकड़ा | 

उत्तर- शब्दों के बहुवचन रूप -

• चींटी - चीटियाँ
• घोड़ा - घोड़ें
• आवाज़ - आवाज़ें
• बिल - बिल
• फ़ौज - फ़ौजियों 
• रोटी - रोटियाँ
• बिंदु - बिंदुओं 
• दीवार - दीवारें
• टुकड़ा - टुकड़े

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Ab Kahan Doosron Ke Dukh Mein Dukhi Hone wale word meaning


• अज़ीज़ - प्रिय
• मज़ार - दरगाह
• गुंबद - मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारे के ऊपर बनी गोल छत जिसमें आवाज़ गूँजती है
• अज़ान - नमाज़ के समय की सूचना जो मस्जिद  की छत या दूसरी ऊँचे जगह पर खड़े होकर दी जाती है
• डेरा - अस्थायी पड़ाव
• हाकिम - राजा या मालिक
• लश्कर (लशकर) - सेना या विशाल जनसमुदाय
• लक़ब - पदसूचक नाम
• प्रतीकात्मक - प्रतीकस्वरुप
• दालान - बरामदा
• सिमटना - सिकुड़ना
• जलजले - भूकम्प
• सैलाब - बाढ़
• सैलानी - ऐसे पर्यटक जो भ्रमण कर नए-नए विषयों के बारे में जानना चाहते हैं  | 

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अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले
अब कहाँ दूसरे के दुख से दुखी होने वाले निदा फ़ाज़ली Ab Kahan Doosre Ke Dukh Mein Dukhi Hone wale अब कहाँ दूसरे के दुःख मे दुखी होने वाले Class 10 Hind
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