आर्य कौन, कहां से आए ? आर्य कौन है? आर्य कहां से आए? यह आज भी पहेली है, कोई नही बुझा पाए हैं, यह गुत्थी खुलती नही, कोई खोल नही पाए हैं,
आर्य कौन, कहां से आए ?
आर्य कौन है?
आर्य कहां से आए?
यह आज भी पहेली है,
कोई नही बुझा पाए हैं,
यह गुत्थी खुलती नही,
कोई खोल नही पाए हैं,
सभी धारणा भटकाए,
समझा नहीं पाए!
आर्य कौन थे?
आर्य |
आर्य कहां से आए?
आर्य यही उग आए थे,
यहीं आर्यावर्त बसाए थे,
पूरी वसुधा में छाए थे,
धरा में स्वर्ग बसाए,
आर्य भारतवर्ष के!
आर्य यही के थे,
आर्य नही बाहर के,
आर्य नही कोई जाति,
यह भारतीय संस्कृति,
आर्य संज्ञा है गुणवाची,
मानव में लग जाती
अच्छा, बुरा बताती!
ये मानव की प्रवृत्ति,
पशु से मानव होने की,
यह मेरी नही है उक्ति
रामायण में आदिकवि
वाल्मीकि की लेखनी
कहती, ब्राह्मण पुत्र
रावण अनार्य थे,
विभीषण आर्य!
आर्य;अर्य का पुत्र,
अर्य है ईश्वर की संज्ञा,
पाणिनि का कहना अर्य आर्य
अर्यस्वामी वैश्ययो:' यास्क की
निरुक्त उक्ति आर्य ईश्वरपुत्र,
स्वामीपन, अनुशासन पुत्रवत्
माने, बड़ों को पूज्य समझे,
उसे आर्य; श्रेष्ठ कहते!
ऋग्वेद का उद्घघोष सुनो
ॐ ‘ईन्द्रं वर्धन्तो अप्तुर: कृण्वन्तो
विश्वमार्यम अपघ्नन्तो अराव्ण:'
आत्म विकास करो दिव्य गुणों से,
दुर्भावना को मिटाकर, विश्व को
आर्य; श्रेष्ठ बनाकर विचरो,
अच्छाई विकसित करके
सबको श्रेष्ठ करो!
आर्य वही जो
कर्तव्य कर्माचरण करे,
महर्षि वशिष्ठ का कहना है
‘कर्तव्यमाचरण कार्यम् आर्य
इत्यभि धीयते तिष्ठति प्रकृताचारे'
प्राकृतिक नियम का पालन करे,
जीव जगत और प्रकृति से
सदा अनुकूल व्यवहार करे,
मनुर्भव:की उक्ति को,
चरितार्थ करे!
वैदिक ऋषियों ने कहां कहा
कि उनकी जाति है आर्यों की?
उन्होंने ठानी सबको आर्य बनाने की,
वो कहते मैं अत्रि, मैं मरीचि, मैं भृगु
मैं कश्यप, मैं अंगिरा, मैं अगस्त्य,
मैं वशिष्ठ हूं, वे कहते 'कृण्वन्तो
विश्वमार्यम' वे आर्य बनाते थे,
आर्य नही कोई जाति ना वंश!
धर्म चाहे जितना भी हो
उपासना तो सूर्य,चन्द्र की होती,
वंश चाहे जितना हो, कुल दो हीं
सूर्य-चन्द्र कुल, सूर्यकुल मरीचि पुत्र
कश्यप के पुत्र सूर्य से, चन्द्रकुल अत्रि
पुत्र चंद्र से चला, इन दो कुलों का ही
पहले-पहल आर्यीकरण हुआ था इनके हीं
वंशज आर्यपुत्र कहलाए, किन्तु मूल
प्रवर्तक ऋषिगण आर्य नही कहलाते
जैसे बुद्ध,जिन बौद्ध,जैन नही थे!
अस्तु आर्य नहीं जाति
नही धर्म,नही वंश, नही वर्ण,
बस एक अभियान,एक विशेषण
एक विचार धारा, एक भावना
एक दर्शन मानव को पशु से
उपर उठाकर, ज्ञान संस्कार
देकर मनुष्य बनाने का,
‘वसुधैव कुटुंबकम' भाव
जगाने का,गोरे काले
रंगभेद को मिटाने का!
आर्य नही जाति आज जैसी,
आर्य कहके वंश परम्परा नही रही,
ऋषि संततियों ने नही कही मैं आर्य,
वे माता-पिता, पूर्वजों के नाम कहते
जैसे भार्गव,राघव, यादव, काश्यप आदि
वे झा, सिंह, मंडल,दास उपाधिधारी
नही थे,आज सी स्थिति नही थी,
तब जाति नही बनी थी!
तब सभी वर्ण, रंग,,नस्ल,
आर्य, अनार्य, दैत्य,दानव,यक्ष
गंधर्व, किन्नर,किरात,मंगोल,नाग
वानर,,राक्षस, पिशाच आदि जन में
रक्त रिश्तेदारी, वैवाहिक संबंध होता
था बिना किसी भेदभाव के, यद्यपि
वर्चस्व की कबिलाई लड़ाई होती थी
रिश्तों में, धर्म अधर्म विचार से!
विश्व की पहली कृति
ऋग्वेद की ऋचाएं हैं, जिसमें
ईश्वर आराधना, प्रकृति का चित्रण,
भौगोलिक वर्णन, सप्तसिंधु, सरस्वती
उपत्यका,हिम शिखर, सोम सुधा रस
यज्ञ,होम,सप्तर्षि आदि ऋषियों का
चिंतन मनन मंत्रण, इन्द्र, वरुण,
अग्नि, सूर्य आदि देवगणों को
समर्पित वैदिक ऋचाएं और
गायत्री मंत्र विश्वामित्र का!
आर्य होने की दावेदारी
ईरानी, जर्मनी, आर्मेनियाई
और बहुत सारे यूरोपीय देश करते,
किन्तु आर्यों की कृति चारो वेद, एक सौ
आठ उपनिषद,ब्राह्मण,आरण्यक, अठारह
पुराण,श्रुति,स्मृति,सुक्त,निरुक्त, संहिता,
रामायण,महाभारत भारत के सिवा
कहां-कहां है? कोई भी देश
साक्ष्य में दिखलाए तो!
छोड़ो अंग्रेजों को पढ़ना,
उनके पूर्वाग्रही लेखन को
उद्धरित करना,सारी सामग्री
अंतर साक्ष्य,बहिर्साक्ष्य भारत में
संचित है, रचित है, लिखित है
आर्यों का चित्र-चरित्र, धर्म-कर्म,
संस्कृति,व्यक्तित्व, दर्शन
और कहीं है भी क्या?
आर्यों का चरित्र चरैवेति है
भारत का आर्य विश्व में विचरे
वैदिक, बौद्ध,जैन,सिख बनकर,
आगम, निगम,रामायण, गीता,
गुरुवाणी ज्ञान लेकर, देकर
विश्व गुरु बना, भारतीय
विश्व गुरु के बच्चे हैं
सच्चे आर्य बनें फिर
चाहे गोरे,चाहे काले
सभी आर्य संतान!
मातृ-पितृ भक्त राम,
मातृ-पितृ पीड़ाहारी कृष्ण
मानव दुःख कातर बुद्ध,जिन
गुरु नानक से गुरु गोविंद, दयानंद
पृथ्वी राज,प्रताप,शिवा आजाद,भगत,
असफाक,तिलका,विरसा,गांधी और भी
वीर आर्य थे,सभी आर्य बन सकते
आर्य होने के लिए नहीं जरूरी
कभी धर्म और जाति होती!
---विनय कुमार विनायक
दुमका, झारखण्ड-814101.
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