भ्रमर और पुष्प प्राक्कथन - प्रस्तुत कविता में भँवरे और फूल के प्रथम प्रेमालाप के दृश्य का चित्रण किया गया है । उड़ रहा भ्रमर था आसमान में , मद मस्
भ्रमर और पुष्प
अनजानी थी राह मगर , उम्मीद भरा उत्सुकता के पथ पर ।।
सहसा दृष्टि गई उपवन पर , शोभायमान था जो फूलों से ।
आ रही मधुर आवाज वहाँ पर , सरवर के राजित कूलों से ।।
गतिमान गगन से नीचे हो कर , उपवन समीप वह जा पहुँचा ।
कातर दृष्टि लिये नयनों में , जिज्ञासु बना वह आ पहुँचा ।।
रस भरा सुगन्धित सुमन कोश में , उसका मैं संज्ञान करूँ ।
आदेश तुम्हारा हो मुझको , तो जी भर उसका पान करूँ ।।
काला और कलूटा हूँ प्रेयसि , पर तुम्हें चाहने वाला हूँ ।
अहसास मधुर करके सोचो , मैं प्रेमी क्या मतवाला हूँ ।।
मैं मधुकर तुम सुमन सखी सी , जन्मों का हममें नाता है ।
मुस्कान तुम्हारी पंखुड़ियों की , अन्तःस्थल तक भाता है ।।
मैं सुमन आपकी हूँ प्यारे , हो गई प्रीति है तुझसे ।
बोलो खुलकर बोलो मिलिंद , अब क्या चाहत है मुझसे ।।
मकरन्द महकता मकरन्द कोश का , मुझको तरसाता है ।
मँड़रा रहा तुम्हारे उपर ,जी मेरा ललचाता है ।।
हे सुमन पुहुप हे कुसुम पुष्प , तुममें कितना श्रृंगार भरा ।
प्रचन्ड प्रेम की ज्वाला तुममें , प्रेम अग्नि अंगार भरा ।।
आकर्षक रंगों में सजती , रूप निराला है तेरा ।
पूर्ण समर्पण देख लिया अब , हूँ एकमात्र चाही तेरा ।।
मैं इतराता कालेपन पर , तुम मकरन्द लिये रहती हो ।
धूप छाँव भी सहती रहती , रंग बिरंगी सजती हो ।।
जब होगा सूर्यास्त धरा पर , पंखुड़ियों में भर सो जाना ।
होते ही ऊषाकाल जगत में , प्रेयसि मुझको बाहर लाना ।।
हैं स्वीकार तुम्हारी बात सभी , पर पल पल साथ निभाना तुम ।
प्रीति हमारी अमर रहेगी , गीत प्रीति के गाना तुम ।।
सहसा दृष्टि गई उपवन पर , शोभायमान था जो फूलों से ।
आ रही मधुर आवाज वहाँ पर , सरवर के राजित कूलों से ।।
गतिमान गगन से नीचे हो कर , उपवन समीप वह जा पहुँचा ।
कातर दृष्टि लिये नयनों में , जिज्ञासु बना वह आ पहुँचा ।।
भ्रमर और पुष्प |
रस भरा सुगन्धित सुमन कोश में , उसका मैं संज्ञान करूँ ।
आदेश तुम्हारा हो मुझको , तो जी भर उसका पान करूँ ।।
काला और कलूटा हूँ प्रेयसि , पर तुम्हें चाहने वाला हूँ ।
अहसास मधुर करके सोचो , मैं प्रेमी क्या मतवाला हूँ ।।
मैं मधुकर तुम सुमन सखी सी , जन्मों का हममें नाता है ।
मुस्कान तुम्हारी पंखुड़ियों की , अन्तःस्थल तक भाता है ।।
मैं सुमन आपकी हूँ प्यारे , हो गई प्रीति है तुझसे ।
बोलो खुलकर बोलो मिलिंद , अब क्या चाहत है मुझसे ।।
मकरन्द महकता मकरन्द कोश का , मुझको तरसाता है ।
मँड़रा रहा तुम्हारे उपर ,जी मेरा ललचाता है ।।
हे सुमन पुहुप हे कुसुम पुष्प , तुममें कितना श्रृंगार भरा ।
प्रचन्ड प्रेम की ज्वाला तुममें , प्रेम अग्नि अंगार भरा ।।
आकर्षक रंगों में सजती , रूप निराला है तेरा ।
पूर्ण समर्पण देख लिया अब , हूँ एकमात्र चाही तेरा ।।
मैं इतराता कालेपन पर , तुम मकरन्द लिये रहती हो ।
धूप छाँव भी सहती रहती , रंग बिरंगी सजती हो ।।
जब होगा सूर्यास्त धरा पर , पंखुड़ियों में भर सो जाना ।
होते ही ऊषाकाल जगत में , प्रेयसि मुझको बाहर लाना ।।
हैं स्वीकार तुम्हारी बात सभी , पर पल पल साथ निभाना तुम ।
प्रीति हमारी अमर रहेगी , गीत प्रीति के गाना तुम ।।
- पंडित रूद्र नाथ चौबे ("रूद्र")
सहायक अध्यापक-- पूर्व माध्यमिक विद्यालय रैसिंह पुर , शिक्षा क्षेत्र -- तहबरपुर , जनपद -- आजमगढ़ ,
ग्राम-- ददरा , पोस्ट-- टीकपुर , जनपद-- आजमगढ़ , उत्तर प्रदेश ( भारत)
सम्पर्क सूत्र -- 9450822762
अति सुन्दर रचना
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