Bihari ke Dohe Class 10 Hindi Sparsh Book Chapter 3

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बिहारी के दोहे कक्षा 10



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बिहारी सतसई के दोहे की व्याख्या


सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात | 
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बिहारी श्रीकृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि पीले वस्त्र में सुसज्जित साँवले-सलोने श्रीकृष्ण ऐसे सुशोभित हो रहे हैं, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह-सुबह सूर्य की किरणें पड़ रही हों | 

(2)- कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ | 
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि ग्रीष्म ऋतू की अत्यधिक ताप ने संसार को तपोवन बना दिया है | परिणामस्वरूप, इस भयंकर गर्मी अर्थात् विपत्ति से बचने के लिए शत्रु भी अपनी शत्रुता भुलाकर एक-दूसरे के साथ रहने लगे हैं | जैसे साँप, मोर और बाघ साथ-साथ रहने लगे हैं | अत: जानवर भी अपने-अपने द्वेषों को भुलाकर तपस्वी जैसा व्यवहार करने लगे हैं | 

Bihari ke Dohe
बिहारीलाल 
(3)- बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ | 
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि गोपियों के मन में श्रीकृष्ण से बात करने की इच्छा है, जिसके कारण उन्होंने कृष्ण की बाँसुरी या मुरली छुपा दी हैं | गोपियाँ कृष्ण से मुरली ना चुराने की बात कहती हैं और उनकी मुरली देने से इनकार करती हैं | 

(4)- कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत,खिलत, लजियात | 
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बिहारी जी ने लोगों के मध्य में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम का इजहार करते हैं, उसे बताने का प्रयास किया है | नायक यानी कृष्ण अपनी नायिका से नैनों के इशारे से ही बात करते हुए मिलने को कहते हैं, जिसे नायिका मना कर देती है | तत्पश्चात्, इशारों में ही दोनों के बीच रूठने-मनाने का एहसास आरम्भ होता है | बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका लज्जा से भर जाती है | 

(5)- बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह | 
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों में कवि बिहारी जी ने जेठ यानी गर्मी के महीने की दोपहर के समय का चित्रण किया है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि इस समय धूप इतनी तेज होती है कि आराम के लिए कहीं छाया भी नसीब नहीं होती | ऐसा प्रतीत होता है, जैसे गर्मी से बचकर विश्राम हेतु वह भी कहीं चली गई हो | 

(6)- कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात | 
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बिहारी जी उस नायिका के मनोदशा को दिखाने की चेष्टा कर रहे हैं, जिसका प्रियतम उससे दूर है | नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है | संदेश लिखते समय उसे लज्जा आ रही है | तत्पश्चात्, नायिका यह भी कहती है कि किसी संदेशवाहक से भी सन्देश नहीं भिजवा सकती, क्योंकि उससे दिल की बात कहने में लज्जा आती है | इसलिए नायिका, नायक को संबोधित करते हुए कहती है कि अब तुम्हीं मेरे हृदय की बात महसूस करो की मैं क्या चाहती हूँ | 

(7)- प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ | 
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ || 

भावार्थ -प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों में कवि बिहारी जी श्रीकृष्ण से विनती करते हुए कह रहे हैं कि आप द्विजराज-कुल में पैदा हुए हैं तथा अपनी इच्छा से ब्रज आए | आप मेरे सारे कष्टों को हर लें | 

(8)- जपमाला , छापैं , तिलक सरै न एकौ कामु | 
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि बिहारी के दोहे से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि सिर्फ माला थाम कर जपने और तिलक लगा कर आडम्बर करने से कुछ नहीं होता | मन तो काँच की तरह होता है, जो व्यर्थ में नाचता रहता है | कवि अपनी बातों पर जोर देते हुए कहते हैं कि दिखावा को छोड़ अगर सच्चे मन से ईश्वर की आराधना की जाए तो काम अवश्य बनता है | 



बिहारीलाल का जीवन परिचय कक्षा 10

कवि बिहारी का जन्म सन् 1595 ई. में ग्वालियर में हुआ था | इनकी मृत्यु सन् 1663 ई. में हुआ था | जब कवि बिहारी सात-आठ बरस के थे, तब इनके पिताजी ओरछा चले गए, जहाँ पर इन्होंने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पायी | यहीं पर बिहारी रहीम के संपर्क में भी आये | कवि बिहारी का कुछ वर्ष जयपुर में भी बीता | कवि बिहारी का स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था | बिहारी रसिक जीव थे, पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी | 
              
लोक ज्ञान और शास्त्र ज्ञान के साथ ही बिहारी का काव्य ज्ञान भी अच्छा था | रीति का उन्हें भरपूर ज्ञान था | बिहारी की एक ही रचना 'सतसैया' उपलब्ध है, जिसमें करीब 700 दोहे संगृहीत हैं | कवि बिहारी की कविता श्रृंगार रस की है, नायक-नायिका की वे चेष्टाएँ, जिन्हें 'हाव' कहते हैं, इनमें पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं...|| 



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प्रस्तुत पाठ या दोहे कवि 'बिहारी' के द्वारा रचित है | इस संकलित दोहों में सभी प्रकार की छटाएँ हैं | प्रस्तुत दोहों से ज्ञात होता है कि कवि बिहारी कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ भरने की कला में निपुण हैं | बिहारी मुख्य रूप से श्रृंगारपरक दोहों के लिए जाने जाते हैं | किन्तु, उन्होंने लोक-व्यवहार, नीति-ज्ञान आदि विषयों पर भी लिखा है...| 


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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 

प्रश्न-1 छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जब गर्मी के दिनों में अत्यधिक गर्मी होती है तथा धरती की तपिश बढ़ जाया करती है, तब छाया भी बेअसर हो जाया करती है | ऐसा प्रतीत होता है मानो छाया भी छाया ढूँढ़ रही हो | 

प्रश्न-2 बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है 'कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात' --- स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'बिहारी' के 'दोहे' से उद्धृत हैं |इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बिहारी जी उस नायिका के मनोदशा को दिखाने की चेष्टा कर रहे हैं, जिसका प्रियतम उससे दूर है | नायिका कहती है कि उसे कागज़ पे अपना सन्देश लिखा नहीं जा रहा है | 

संदेश लिखते समय उसे लज्जा आ रही है | तत्पश्चात्, नायिका यह भी कहती है कि किसी संदेशवाहक से भी सन्देश नहीं भिजवा सकती, क्योंकि उससे दिल की बात कहने में लज्जा आती है | इसलिए नायिका, नायक को संबोधित करते हुए कहती है कि अब तुम्हीं मेरे हृदय की बात महसूस करो की मैं क्या चाहती हूँ | 

प्रश्न-3 सच्चे मन में राम बसते हैं --- दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- कवि बिहारी जी कहते हैं कि सिर्फ माला थाम कर जपने और तिलक लगा कर आडम्बर करने से कुछ नहीं होता | मन तो काँच की तरह होता है, जो व्यर्थ में नाचता रहता है | कवि अपनी बातों पर जोर देते हुए कहते हैं कि दिखावा को छोड़ अगर सच्चे मन से ईश्वर की आराधना की जाए तो काम अवश्य बनता है | 

प्रश्न-4 गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं ? 

उत्तर- गोपियाँ श्रीकृष्ण का ध्यान अपनी तरफ करना चाहती हैं | किन्तु, कृष्ण अपनी मुरली के धुन में खोए रहते हैं | इसलिए गोपियाँ कृष्ण का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए उनकी बाँसुरी छिपा देती हैं | 

प्रश्न-5 बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है ? अपने शब्दों में लिखिए | 

उत्तर- कवि बिहारी के अनुसार, सबकी उपस्थिति में भी सांकेतिक माध्यम से अर्थात् अपने हाव-भाव का इस्तेमाल करके बात की जा सकती है | प्रस्तुत दोहे में एक प्रसंग में कवि बिहारी जी ने लोगों के मध्य में भी दो प्रेमी किस तरह अपने प्रेम का इजहार करते हैं, उसे बताने का प्रयास किया है | 

नायक यानी कृष्ण अपनी नायिका से नैनों के इशारे से ही बात करते हुए मिलने को कहते हैं, जिसे नायिका मना कर देती है | तत्पश्चात्, इशारों में ही दोनों के बीच रूठने-मनाने का एहसास आरम्भ होता है | बाद में दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल जाते हैं तथा नायिका लज्जा से भर जाती है | 



बिहारी के दोहे कक्षा 10 का शब्दार्थ 


• भौन - भवन
• सघन - घना
• पैठि - घुसना
• सदन–तन - भवन में
• लुकाइ - छुपाना
• सौंह - शपथ
• भौंहनु - भौंह से
• नटि - मना करना
• रीझत - मोहित होना
• खिझत - बनावटी गुस्सा दिखाना
• मिलत - मिलना
• खिलत - खिलना
• लजियात - लज्जा आना
• कागद - कागज़
• सँदेसु - सन्देश
• हिय - हृदय
• द्विजराज - चन्द्रमा, ब्राह्मण
• सुबस - अपनी इच्छा से
• केसव - श्री कृष्ण
• केसवराइ - बिहारी कवि के पिता
• जपमाला - जपने की माला
• छापैं - छापा
• मन–काँचै - कच्चा मन
• साँचै - सच्ची भक्ति वाला
• सोहत - अच्छा लगना
• पीतु - पिला
• पटु - वस्त्र
• नीलमनि सैल - नीलमणि का पर्वत
• आतपु - धुप
• बसत - बसना
• अहि - साँप
• तपोबन - वह वन जहाँ तपस्वी रहते हैं
• दीरघ–दाघ - भयंकर गर्मी 
• निदाघ - ग्रीष्म ऋतू
• बतरस - बातचीत का आनंद
• मुरली - बाँसुरी  | 



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