कृषि विभाग से भी इस वर्ष कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। गांव में अब तक कोई अधिकारी दौरा करने नहीं आये हैं। ग्राम सेवक ही कभी-कभी गांव आकर किसानों को कुछ
फसल ख़राबी से किसान हैं परेशान
नए कृषि कानूनों के खिलाफ देशभर में किसानों के साथ सामाजिक संगठनों से लेकर बड़े बड़े राजनीतिक दल विरोध दर्ज करा रहे हैं। वहीं किसान सड़कों पर उतर कर इस बिल को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपनी खड़ी फसलों को कीट पतंगों की प्रकोप से बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं। मौसम की बेरुखी की मार एक बार फिर किसानों पर ही पड़ी हैं। जिसका ख़ामियाज़ा उन्हें पकने की कगार पर पहुंची फसलों पर कीट प्रकोप के रूप में हो रहा है।
कृषि विभाग के अनुसार छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की लगभग 10 प्रतिशत फसलों में कीटों का प्रकोप देखा जा रहा है। जिला मुख्यालय कांकेर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भानुप्रतापपुर ब्लाॅक के ग्राम घोठा के किसान कीटों के कारण अपनी तैयार फसलों को बर्बाद होते देख चिंतित हैं। लगभग 1500 की आबादी वाले इस गांव के लोग कृषि पर ही निर्भर हैं। खेतों में बुआई के समय मौसम की पर्याप्त पानी मिलने से किसानों ने अच्छी पैदावार का अनुमान लगाया था। शुरूआत के कुछ समय मौसम भी कृषि के अनुकूल रहा। लेकिन अगस्त, सितंबर में अच्छी बारिश के बाद अक्टूबर में हो रही बारिश और तेज धूप तथा उमस से फसलों पर कीटों का हमला हो गया है, जिससे धान की खड़ी फसल खराब होने लगी है। फसलों पर तनाछेदक, ब्लाष्ट, भूरा माहो जैसे कई प्रकार की बिमारियों से किसान परेशान हैं। हालांकि इन फसलों को बचाने के लिए अलग-अलग तरह की दवाइयों का छिड़काव भी किया जा रहा है। बावजूद इसके उन्हें राहत मिलती नजर नहीं आ रही है।
गांव के ज्यादातर किसान ग़रीब होने के कारण हर वर्ष कर्ज लेकर खेती करते हैं और फिर फसल बेचकर जो कमाई होती है उससे अपना कर्ज चुकाते हैं। लेकिन इस वर्ष किसानों के सामने कम उत्पादन के साथ ही कर्ज चुकाने की भी समस्या उत्पन्न हो गई है। गांव के बडे़ किसान जो ज्यादा क्षेत्र में खेती करते हैं, उनके लिए इस नुकसान की भरपाई करना संभव है। लेकिन वह किसान जो कम क्षेत्र में खेती करके अपना परिवार चलाते हैं उनके सामने सबसे बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। किसानों ने बताया कि बारिश व बदली से धान की खेतों में कीट का प्रकोप बढ़ गया है। पहले बारिश न होने से धान की खेती प्रभावित हुई और फिर देर से बुआई होने से खेती का काम पिछड़ता गया। सावन में हुई बारिश से ही थोड़ी राहत मिली। निराई के बाद धान के बड़े होते लहलहाते पौधे देखकर किसान प्रफुल्लित हो रहे थे कि अब खेतों में कीट के प्रकोप ने चिंता बढ़ा दी है।
अक्टूबर की शुरूआत से लगातार बारिश होने व बादल छाए रहने से धान के पौधों को धूप नहीं मिल रही है। खेतों
मौसम की बेरुखी की मार |
गांव के ही एक अन्य किसान अंकालराम हुर्रा कहते हैं खेती के लिए मैंने 30 हजार रूपए कर्ज लिया है। पहले सोचा था कि फसल अच्छी होगी तो साल भर के अंदर क़र्ज़ चुका दूंगा। लेकिन मेरे खेतों में 40 से 50 प्रतिशत फसल का नुकसान हुआ है। तो जितना कर्ज लिया हूं उतना शायद पैदावार भी नहीं होगा। मुझे बाकी कर्ज मजदूरी करके ही चुकानी होगी। फसल बीमा से भी कोई उम्मीद नहीं किया जा सकता क्योंकि यहां 2016 का तो बीमा की रक़म अभी तक नहीं मिली है। किसान फगनूराम के अनुसार हम सब अपनी पूरी कमाई व जमा पूंजी धान फसल पर लगा चुके हैं। जब फसल तैयार होने की स्थिति में है, तो कीट प्रकोप एवं विभिन्न प्रकार की बीमारियां होने से हम सभी चिंतित है। कीटनाशक छिड़काव के बाद भी बीमारी से धान फसल को राहत नहीं मिली है, इसका सीधा असर उसकी उत्पादकता पर पड़ेगा।
वहीं गांव के सरंपच राम प्रसाद कावडे़ का कहना है कि कृषि विभाग से भी इस वर्ष कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। गांव में अब तक कोई अधिकारी दौरा करने नहीं आये हैं। ग्राम सेवक ही कभी-कभी गांव आकर किसानों को कुछ बताते थे, लेकिन लाॅकडाउन और कोरोना के कारण इस वर्ष कोई गांव नहीं आया है। मैं स्वयं एक लाख रूपए का कर्ज लेकर खेती किया हूं, लेकिन फसल सही नहीं होने से मुझे भी नुकसान उठाना पडे़गा। इस संबंध में क्षेत्र के ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी किरण कुमार भंडारी ने बताया कि बारिश के बाद तेज धूप और उमस होने के चलते ही फसल में भूरा माहो जैसे कीट लग गए हैं। घोठा गांव के साथ ही यह स्थिति पूरे जिले की है। जिसमें लगभग 10 प्रतिशत फसलों को नुकसान हुआ है। इससे बचने के लिए किसानों को दवाईयों के छिड़काव की जानकारी भी दी जा रही है। उन्होंने बताया कि जिन किसानों ने फसल बीमा कराया है उन्हें 30 प्रतिशत से अधिक के नुकसान होने पर उसका लाभ मिलेगा।
वास्तव में छत्तीसगढ़ में मौसम की पल पल बदलती स्थिति 'भारतीय कृषि को मानसून का जुआ' कहने वाले कथन को एक बार फिर चरितार्थ कर रही है। यानि कमजोर मानसून या अति वर्षा दोनों में फसल का उत्पादन प्रभावित होता है और दोनों ही स्थितियों में नुकसान किसान को ही सहन करना पड़ता है। वर्तमान में कृषि कार्य किसानों के लिए किसी चुनौती से कम नही है। लागत का खर्च भी निकाल पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। बावजूद इसके अन्नदाता लगातार मेहनत करके देश का पेट भर रहे हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों को भी उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में बेहतर कार्य करने की आवश्यकता है। (चरखा फीचर)
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