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शिक्षा का महत्त्व
शिक्षा जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता रहता है ,यह सभी शिक्षा के फलस्वरूप है। शिक्षा ज्ञान की हस्तांतरण की प्रक्रिया है ।शिक्षा के द्वारा ही ज्ञान प्राप्त होता है। शिक्षा व्यापक है जो जीवन पर्यंत चलती रहती है। शिक्षा दो प्रकार की औपचारिक शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा होती है। जो शिक्षा समय और स्थान के बंधन में बंधी होती है वह औपचारिक शिक्षा कहलाती है, जैसे स्कूल, कॉलेज ,विश्वविद्यालय की शिक्षा। जब शिक्षा समय और स्थान से अलग होकर घर, परिवार, समाज में स्वतंत्र रूप से होती है; वह शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा कहलाती है।
शिक्षा का उद्देश्य
जीवन में शिक्षा का महत्व |
शिक्षा को हम विद्या भी कह सकते हैं ।विद्या का वह भाग जो ज्ञात हो जाता है वह ज्ञान है।विद्या या शिक्षा के बारे में कहा गया है कि “विद्या वह है जो अहंकार से मुक्त कर दे”। प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि “शिक्षा वह है जो मनुष्य की त्रुटियों को दूर करती है और उसके लिए सत्य का मार्ग तलाशती है”। महात्मा गांधी जी ने भी शिक्षा के विषय में कहा है कि “शिक्षा वह है जिसमें हृदय ,मस्तिष्क और हाथ तीनों का विकास हो सके अर्थात मन ,शरीर और आत्मा तीनों का ढंग से विकास हो सके। शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक एवं मानवीय गुणों का विकास करना है। शिक्षा के माध्यम या संस्थाएं- मां ,परिवार, समुदाय ,समाज ,राज्य ,विद्यालय और प्रकृति हैं।
बालक को पहली शिक्षा उसकी माता के द्वारा ही प्राप्त होती है ।अतः महात्मा गांधी जी ने भी कहा है “एक शिक्षक को माता जैसा व्यवहार करना चाहिए”। माता के द्वारा शिक्षा बालक को उसके स्पर्श के द्वारा ,भाव के द्वारा ,उसके कार्यों के द्वारा प्राप्त होती है।
प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी ने भी लिखा है -
“कुछ लिखकर सो, कुछ पढ़ कर सो ।
तू जिस जगह से जागा है उस जगह से बढ़कर सो।“
उपरोक्त पंक्तियां बताती हैं कि मनुष्य को सीखने की प्रक्रिया में लगा रहना चाहिए। शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। शिक्षा की व्यवस्था कराना राज्य और केंद्र सरकार दोनों का महत्वपूर्ण कार्य है। स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है “शिक्षा है व्यक्ति की शक्तियों को जाग्रत करती है”।
शिक्षा का अंग्रेजी पर्यायवाची एजुकेशन है। एजुकेशन शब्द की उत्पत्ति लेटिन से हुई है । एजुकेशन शब्द का अर्थ है अंदर से बाहर की ओर ले जाना ।शिक्षा शब्द भी संस्कृत के शिक्ष धातु से निकला है जिसका अर्थ है सीखना । शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो मनुष्य की आंतरिक शक्तियों के स्वाभाविक और सामंजस्य पूर्ण विकास में योगदान देती है ।शिक्षा स्थिर नहीं बल्कि गतिशील प्रक्रिया है ।महान भारतीय दर्शनिक रवींद्र नाथ टैगोर ने भी कहा है कि “शिक्षा वह है जो हमें केवल सूचनाएं ही नहीं देती वरन हमारे जीवन और संपूर्ण सृष्टि में तादात्म्य भी स्थापित करती है।
मानवीय गुणों का विकास
हम प्रतिवर्ष, प्रतिमाह ,प्रति दिन और प्रतिक्षण कुछ न कुछ सीखते रहते हैं,यह सभी शिक्षा के फलस्वरूप है। शिक्षा एक अविरल प्रक्रिया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा व्यक्ति के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक ,शारीरिक ,बौद्धिक व मानवीय गुणों का विकास करती है।
- जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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