NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर मधुर मेरे दीपक जल मधुर मधुर मेरे दीपक जल कविता का अर्थ मधुर मधुर मेरे दीपक जल CBSE Class 10 Hindi
NCERT Class 10 Hindi Sparsh Chapter 6 मधुर मधुर मेरे दीपक जल
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मधुर मधुर मेरे दीपक जल का भावार्थ व्याख्या
(1)- मधुर-मधुर मेरे दीपक जल !
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित कविता मधुर मधुर मेरे दीपक जल से उद्धृत हैं | कवयित्री अपने प्रियतम रूपी ईश्वर की भक्ति में श्रद्धापूर्वक डूब जाना चाहती हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी अपने अंदर प्रकाशमान आस्था रूपी दीपक को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम निरन्तर हर दिन, हर क्षण, युगों-युगों तक जलते रहो, ताकि मेरा प्रियतम रूपी ईश्वर के प्रति जो विश्वास और श्रद्धा है, उसका डोर कभी न टूटे | कवयित्री आगे कहती हैं कि मेरे प्रियतम का पथ सदा आलोकित होता रहे |
(2)- सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन !
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित कविता मधुर मधुर मेरे दीपक जल से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी अपने तन अथवा शरीर को संबोधित करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार धूप (पूजा-पाठ के समय उपयोग में आने वाला एक प्रकार का सुगंधित तत्व) स्वयं जलकर पूरे संसार को सुगंधित करता है, ठीक उसी प्रकार तुम भी अपने अच्छे और सच्चे कर्मों से इस जगत को सुगंधित करो | आगे कवयित्री महादेवी वर्मा जी मोम का उदाहरण पेश करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार मोम स्वयं जलकर सारे वातावरण को प्रकाशित करता है, ठीक उसी प्रकार कवयित्री तन रूपी मोम से आह्वान व अनुरोध करती हैं कि वो भी जलकर अपने अंदर के अहंकार को नष्ट करे | आगे कवयित्री कहती हैं कि तन रूपी मोम के जलने तथा अहंकार रूपी बुराईयों के पिघलने से चारों ओर का वातावरण आलोकित होकर फैल जाए, फिर इसके लिए शरीर रूपी मोम का कण-कण ही क्यूँ न गल जाए | कवयित्री अपने विश्वास व आस्था रूपी दीपक को प्रफुल्लित होकर जलते रहने को आह्वान करती हैं |
(3)- सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण
विश्व-शलभ सिर धुन कहता 'मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल' !
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित कविता मधुर मधुर मेरे दीपक जल से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी कहना चाहती हैं कि लोगों में ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव है | सारे नए कोमल प्राणी, जो परमात्मा से अनभिज्ञ हैं, वे आस्था के दीपक को संसार में ढूंढ रहे हैं | परन्तु, उन्हें कहीं कुछ भी हासिल नहीं पा हो रहा है | परिणामस्वरूप, कवयित्री अपने आस्था रूपी दीपक से आह्वान कर रही हैं कि तुम्हें आस्था के प्रति विश्वास की ज्योत आलोकित करनी होगी, ताकि उनके आस्था रूपी ज्योत भी आलोकित हो जाएँ | आगे उक्त पंक्तियों में संसार रूपी पतंगा पश्चाताप करते हुए अपने दुर्भाग्य पर रो रहा है कि ईश्वर की उपासना की ज्योत में मैं आखिर अपने अहंकार को क्यों नहीं ख़त्म कर सका | आगे कवयित्री पतंगे को मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से वह आस्था रूपी दीपक को सिहर-सिहर कर जलने के लिए आह्वान करती है |
(4)- जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित कविता मधुर मधुर मेरे दीपक जल से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि नभ में अनगनित तारे हैं | परन्तु, वे सभी स्नेह-हीन लग रहे हैं | इन सभी में ईश्वर की भक्ति और आस्था का कोई अस्तित्व नहीं है, जिसके कारण ये सभी भक्ति रूपी प्रकाश देने में सक्षम नहीं है | जिस तरह सागर का जल जब गर्म होता है, तब भाप बनकर आकाश में बिजली से घिरा हुआ बादल में बदल जाता है | ठीक उसी तरह इस संसार में भी चारों ओर लोग ईर्ष्या-द्वेष, छल-कपट से घिरे रहते हैं | आगे कवयित्री कहती हैं कि जिन लोगों में आस्था रूपी दीपक आलोकित होता है, वे बादलों की तरह शांत होकर शीतल जल बरसाते हैं | लेकिन ईर्ष्या-द्वेष अथवा विभिन्न बुराईयों वाले लोग पल भर में बिजली की तरह नष्ट हो जाते हैं | इसलिए उक्त पंक्तियों के माध्यम से कवियित्री दीपक को हँस-हँसकर निरन्तर जलने को कह रही हैं, ताकि ईश्वर भक्ति का पथ प्रकाशमान होता रहे तथा लोग उस सत्य पथ पर चलते रहें |
महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
कवयित्री महादेवी वर्मा जी का जन्म सन् 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में हुआ था | इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई थी | उल्लेखनीय है कि कवयित्री महादेवी वर्मा जी मिडिल में पूरे प्रांत में अव्वल आईं और छात्रवृत्ति की हक़दार भी बनी थीं | यह सिलसिला कई कक्षाओं तक चलता रहा |
महादेवी वर्मा |
एक समय ऐसा भी आया कि इन्होंने बौद्ध भिक्षुणी बनने की चाहत रखी, परन्तु महात्मा गांधी के आह्वान पर सामाजिक कार्यों में जुट गईं | नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ ही इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया | कवयित्री महादेवी वर्मा जी ने छायावाद के अन्य चार रचनाकारों में से भिन्न अपना एक विशिष्ट स्थान कायम किया | इनका सभी काव्य वेदनामय था |
11 सितम्बर 1987 को कवयित्री का देहावसान हो गया | भारत सरकार ने 1956 में उन्हें पद्मभूषण अलंकरण से अलंकृत किया था तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित सभी महत्वपूर्ण पुरस्कार से कवयित्री नवाजी जा चुकी हैं | इनका कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं ---
• गद्य रचनाएं --- स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार, चिंतन के क्षण, अतीत के चलचित्र और श्रृंखला की कड़ियाँ |
• काव्य कृतियाँ --- बारहमासा, सांध्यगीत, दीपशिखा, प्रथम आयाम, अग्नि रेखा, यामा, नीहार, रश्मि, नीरजा इत्यादि...||
मधुर मधुर मेरे दीपक जल कविता का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कविता मधुर-मधुर मेरे दीपक जल कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है | इस कविता के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी विश्वास रूपी दीपक को जलाकर ईश्वर प्राप्ति के मार्ग को प्रकाशमान करना चाहती हैं | कवयित्री अपने अंदर के अहंकार को समाप्त करके अपने प्रियतम तक पहुँचना चाहती हैं | कवयित्री के अनुसार, हम आपसी ईर्ष्या एवं द्वेष का त्याग करके ही सच्ची भक्ति के मार्ग पर चल सकते हैं...||
मधुर मधुर मेरे दीपक जल कविता का प्रश्न उत्तर
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 प्रस्तुत कविता में 'दीपक' और 'प्रियतम' किसके प्रतीक हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में दीपक 'ईश्वर के प्रति आस्था व विश्वास का' और प्रियतम 'ईश्वर' का प्रतीक है |
प्रश्न-2 दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, दीपक से इस बात का आग्रह किया जा रहा है कि वह निरंतर जलता रहे क्योंकि कवयित्री का हृदय सदा अपने प्रियतम रूपी ईश्वर के प्रति भक्ति व श्रद्धा का भाव प्रकट करता रहे |
प्रश्न-3 विश्व-शलभ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, विश्व-शलभ दीपक के साथ इसलिए जल जाना चाहता है, क्योंकि वह भी जलकर या स्वयं को न्योछावर करके प्रकाशमान होना चाहता है |
प्रश्न-4 आपकी दृष्टि में मधुर-मधुर मेरे दीपक जल कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है ---
(क) शब्दों की आवृति पर |
(ख) सफल बिंब अंकन पर |
उत्तर- यदि इस कविता के सौंदर्य की बात करें तो इस कविता की सुंदरता कहीं न कहीं दोनों पर निर्भर है |
प्रश्न-5 कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, कवयित्री अपने प्रियतम रूपी ईश्वर का पथ आलोकित करना चाह रही हैं |
प्रश्न-6 कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं ?
उत्तर - प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से प्रतीत इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि ये सिर्फ स्वयं के लिए ही रौशन हैं, दूसरों को ये रौशन करने में असमर्थ हैं | कवयित्री के भावानुसार यहाँ तारों की तुलना मुनष्यों से की गई है, जिनके मध्य आपसी स्नेह व भाईचारा ख़त्म हो चुका है | सभी स्वार्थमय जीवन जीने में जुटे हैं |
प्रश्न-7 पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ या कविता के अनुसार, पतंगा अपना सिर धुनकर अपने क्षोभ को व्यक्त कर रहा है | पतंगा सोचता है कि वह भी इस आस्था रूपी दीपक की लौ के साथ जलकर ईश्वर में विलीन क्यों नहीं हो गया |
प्रश्न-8 मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस, कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को क्यों कहा है ? स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, 'मधुर-मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस' , कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से जलने को इसलिए कहा है, क्योंकि वह लोगों को प्रोत्साहित करना चाहती हैं | वह चाहती हैं कि चाहे परिस्थितियाँ कितना भी कठिन से कठिन क्यूँ न हो दीपक हमेशा जलता रहे और उनके प्रियतम रूपी ईश्वर का मार्ग आलोकित करता रहे | इसलिए कवयित्री महादेवी वर्मा जी दीपक को कभी प्रसन्नता के साथ, मधुरता के साथ, कभी उत्साह के साथ, तो कभी काँपते हुए जलते रहने का आह्वान करती हैं |
मधुर मधुर मेरे दीपक जल कविता का शब्दार्थ
• नित - नित्य
• उर - हृदय
• पुलक - रोमांच
• नूतन - नए
• ज्वाला-कण - आग के कण
• शलभ - पतंगा
• सिहर - कांपना
• असंख्यक - अनेक
• स्नेहहीन - प्रेम रहित
• विद्युत - बिजली
• प्रियतम - सबसे अधिक प्रिय, परमात्मा
• आलोकित - प्रकाशित
• सौरभ - सुगंध
• विपुल - विशाल
• मृदुल - कोमल
• सिंधु - सागर
• अपरिमित - असीमित
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