Meera ke Pad मीरा के पद Class 10 Sparsh Hindi NCERT

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Meera ke Pad मीरा के पद Class 10 Sparsh Hindi NCERT



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मीरा के पद की व्याख्या class 10  


(1)- हरि आप  हरो  जन  री  भीर | 
द्रोपदी  री  लाज  राखी, आप  बढ़ायो  चीर | 
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर | 
बूढ़तो  गजराज  राख्यो , काटी कुण्जर पीर | 
दासी  मीराँ  लाल  गिरधर , हरो  म्हारी भीर | 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री 'मीरा' के 'पद' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री मीरा अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि  हे प्रभु ! अब आपके सिवा कोई सहारा नहीं, आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें | 

आपने ही तो निर्वस्त्र हो रहे द्रोपदी की लाज बचाई थी | आपने ही तो अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह रूप धारण किया था | आपने ही तो डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाया था | कवयित्री मीरा विनती करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु ! हे गिरिधर लाल ! आप मेरी पीड़ा भी दूर कर मुझे मुक्ति दीजिए | 

(2)- स्याम म्हाने चाकर राखो जी, 
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखोजी | 
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ | 
बिन्दरावन री कुंज गली में , गोविन्द लीला गास्यूँ | 
चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची | 
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी | 
मोर मुगट पीताम्बर सौहे , गल वैजन्ती माला | 
बिन्दरावन में धेनु चरावे , मोहन मुरली वाला | 
ऊँचा ऊँचा महल बणावं, बिच बिच राखूँ बारी | 
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ , पहर कुसुम्बी साड़ी | 
आधी रात प्रभु दरसण , दीज्यो जमनाजी रे तीरां | 
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर , हिवड़ो घणो अधीराँ || 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री 'मीरा' के 'पद' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री मीरा अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्याम ! मेरे प्रभु ! आप मुझे अपनी दासी बना
मीरा के पद
मीरा के पद
लीजिए | मैं आपके लिए बाग लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें | कम से कम मैं रोज आपके दर्शन तो कर लूँगी | आगे कवयित्री कहती हैं कि मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीलाओं के गुणगान करुँगी | ताकि इस तरह से कृष्ण के दर्शन, स्मरण और भाव-भक्ति तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी |

आगे कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु मोरपंखों का बना हुआ मुकुट से सुशोभित हैं | उनके तन पर पीले वस्त्र हैं | गले में वनफूलों की माला सुशोभित हो रही है | वे वृन्दावन में गायें चराते हुए मनमोहक मुरली बजाते हैं | उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं | उस महल में कवयित्री मीरा बीच-बीच में सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनाना चाहती हैं | कवयित्री कुसुम्बी साड़ी पहनकर अपने प्रभु का दर्शन करना चाहती हैं | 

कवयित्री मीरा अपने प्रभु कृष्ण से विनती करते हुए कहती हैं कि आप अर्द्ध रात्रि के समय मुझे यमुना (एक नदी का नाम) के किनारे अपने दर्शन देकर मुझे कृतार्थ कर दें | हे मेरे गिरधर, मेरा मन आप से मिलने को बेहद व्याकुल है | 



मीराबाई का जीवन परिचय 

एक मान्यता के अनुसार, कवयित्री मीराबाई का जन्म 1503 ई. में जोधपुर के चोकड़ी गाँव में हुआ माना जाता है | इनकी बाल्यावस्था में ही माँ का देहांत हो गया था | महज 13 बरस की उम्र में मेवाड़ के महाराणा साँगा के कुँवर भोजराज से उनका विवाह हुआ था | विवाह के कुछ ही वर्ष पश्चात् पहले पति, फिर पिता और एक युद्ध के दौरान श्वसुर का भी देहांत हो गया | तत्पश्चात्, भौतिक जीवन से निराश होकर मीरा ने घर-परिवार त्याग दिया और वृंदावन में डेरा डालकर पूर्ण रूप से कृष्ण के प्रति समर्पित हो गई | 

मीरा संत रैदास की शिष्या थीं | मीरा हिन्दी और गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं | इनके पद पूरे उत्तर भारत सहित बिहार, गुजरात और बंगाल तक प्रचलित हैं | मीरा के पदों की भाषा में ब्रज, राजस्थानी और गुजराती का मिश्रण पाया जाता है तथा खड़ी बोली, पंजाबी और पूर्वी के प्रयोग भी नज़र आ जाते हैं...|| 



Meera ke Pad Class 10 Summary 

प्रस्तुत पाठ या पद, कवयित्री मीरा के द्वारा रचित है | भौतिक जीवन से निराश होकर मीरा ने घर-परिवार त्याग दिया और वृंदावन में डेरा डालकर पूर्ण रूप से कृष्ण के प्रति समर्पित हो गई थी | मीरा गिरिधर गोपाल के अनन्य और एकनिष्ठ प्रेम से अभिभूत होकर हो उठी थीं | इस पाठ में संकलित दोनों पद कवयित्री मीरा के अाराध्य को संबोधित है | मीरा अपने अाराध्य की क्षमताओं व शक्तियों का गुणगान और स्मरण करती हैं | तो उन्हें उनके कर्तव्य भी याद दिलाने में जरा भी देर नहीं करतीं | कवयित्री मीरा अपने आराध्य से मनुहार भी करती हैं, लाड़ भी लड़ाती हैं तो अवसर आने पर उलाहना देने से भी नहीं चूकतीं...|| 



मीरा के पद प्रश्न उत्तर 



(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए --- 

प्रश्न-1 पहले पद में मीरा ने हरि से अपनी पीड़ा हरने की विनती किस प्रकार की है ? 

उत्तर- अपने पहले पद में कवयित्री मीरा अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि  हे प्रभु ! अब आपके सिवा कोई सहारा नहीं, आप ही अपने भक्तों की पीड़ा हरें | आपने ही तो निर्वस्त्र हो रहे द्रोपदी की लाज बचाई थी | आपने ही तो अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह रूप धारण किया था | आपने ही तो डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाया था | कवयित्री मीरा विनती करते हुए कहती हैं कि हे प्रभु ! हे गिरिधर लाल ! आप मेरी पीड़ा भी दूर कर मुझे मुक्ति दीजिए | 

प्रश्न-2 दूसरे पद में मीराबाई श्याम की चाकरी क्यों करना चाहती हैं ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- कवयित्री मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के नजदीक रहने के लिए उनकी चाकरी करना चाहती हैं | कवयित्री मीरा अपने प्रिय भगवान श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहती हैं कि हे श्याम ! मेरे प्रभु ! आप मुझे अपनी दासी बना लीजिए | मैं आपके लिए बाग लगाऊँगी , जिसमें आप विहार कर सकें | कम से कम मैं रोज आपके दर्शन तो कर लूँगी | आगे कवयित्री कहती हैं कि मैं वृंदावन के कुंजों और गलियों में कृष्ण की लीलाओं के गुणगान करुँगी | ताकि इस तरह से कृष्ण के दर्शन, स्मरण और भाव-भक्ति तीनों बातें मेरे जीवन में रच–बस जाएँगी | 

प्रश्न-3 मीराबाई ने श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन कैसे किया है ? 

उत्तर- कवयित्री मीरा श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि मेरे प्रभु मोरपंखों का बना हुआ मुकुट से सुशोभित हैं | उनके तन पर पीले वस्त्र हैं | गले में वनफूलों की माला सुशोभित हो रही है | वे वृन्दावन में गायें चराते हुए मनमोहक मुरली बजाते हैं | 

प्रश्न-4 मीराबाई की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए | 

उत्तर- मीराबाई की भाषा शैली सरल, सहज और आम बोलचाल की भाषा है | इनकी भाषा में ब्रज, गुजराती और राजस्थानी का मिश्रण पाया जाता है | कहीं-कहीं पर पंजाबी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है | कवयित्री मीरा के पद लयबद्ध हैं और गेय शैली का प्रयोग किया गया है | रूपक तथा अनुप्रास अलंकार का खूबसूरत प्रयोग मिलता है | 

प्रश्न-5 वे श्रीकृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या कार्य करने को तैयार हैं ? 

उत्तर- कवयित्री मीरा श्रीकृष्ण को पाने के लिए निम्नलिखित कार्य करने को तैयार हैं --- 

• कवयित्री मीरा कृष्ण की दासी बनने को तैयार है |
•  कवयित्री मीरा अपने आराध्य कृष्ण के लिए बाग-बगीचे लगाना चाहती हैं | 
• कवयित्री मीरा वृंदावन की गलियों में श्रीकृष्ण की लीलाओं का गुणगान करना चाहती हैं | 
• कवयित्री मीरा कुसुम्बी रंग की साड़ी पहनकर अाधी रात को कृष्ण से मिलना चाहती हैं | 

(ख) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए --- 

(1)- हरि आप हरो जन री भीर | 
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर | 
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री 'मीरा' के 'पद' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में मीरा ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण के भक्तों के प्रति 'दयामय' रूप का वर्णन किया है | राजस्थानी और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है | 'हरि' शब्द में श्लेष अलंकार है | भाषा में कोमलता व सरलता लाने के लिए कुछ शब्दों में परिवर्तन किया गया है जैसे --- शरीर का सरीर | प्रस्तुत पद में गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है | 

(2)- बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर | 
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री 'मीरा' के 'पद' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों की भाषा सरल है तथा 'दास्यभक्ति' रस का इस्तेमाल हुआ है | यहाँ राजस्थानी और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है | 'काटी कुण्जर' में अनुप्रास अलंकार है तथा 'पीर-भीर' तुकांत पद हैं | 

उक्त पंक्तियों में देखा जाए तो प्रथम पंक्ति में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग किया गया है तथा गेयात्मक शैली में लिपिबद्ध है | 

(3)- चाकरी में दरसण पास्यूँ , सुमरण पास्यूँ खरची | 
भाव भगती जागीरी पास्यूँ , तीनू बाताँ सरसी | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवयित्री 'मीरा' के 'पद' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों में 'दास्यभक्ति' रस का इस्तेमाल हुआ है |  राजस्थानी और ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है | 'भाव-भगती' में अनुप्रास अलंकार है |  'खरची-सरसी' तुकांत पद हैं तथा गेयात्मक शैली का इस्तेमाल हुआ है | 

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भाषा अध्ययन 

(1)- उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए --- 

उदाहरण − भीर − पीड़ा/कष्ट/दुख; री − की

चीर ...............  बूढ़ता ...............
धर्यो ............... लगास्यूँ .............
कुण्जर .............घणा ................
बिन्दरावन .........सरसी ...............
रहस्यूँ ..............हिवड़ा ...............
राखो .............. कुसुम्बी .............

उत्तर- शब्दों के प्रचलित रूप - 

• चीर - वस्त्र 
• बूढ़ता - डूबना
• धर्यो - धारण
• लगास्यूँ - लगाना
• कुण्जर - हाथी
• घणा - बहुत
• बिन्दरावन - वृंदावन
• सरसी - अच्छी
• रहस्यूँ - रहूँगीं
• हिवड़ा - हृदय
• राखो - रखना
• कुसुम्बी - केसरिया  | 



मीरा के पद कक्षा 10 पाठ का शब्दार्थ 


• काटी - मारना 
• लाल गिरधर - श्री कृष्ण 
• म्हारी - हमारी
• स्याम - श्री कृष्ण 
• चाकर - नौकर 
• रहस्यूँ - रह कर 
• नित - हमेशा 
• दरसण - दर्शन 
• जागीरी - जागीर , साम्राज्य 
• कुंज - संकरी 
• पीताम्बर - पीले वस्त्र 
• धेनु - गाय 
• बारी - बगीचा 
• पहर - पहन कर 
• तीरा - किनारा 
• अधीरा - व्याकुल होना  
• हरि - श्री कृष्ण 
• जन - भक्त 
• भीर - दुख- दर्द 
• लाज - इज्जत 
• चीर - साड़ी , कपडा 
• नरहरि - नरसिंह अवतार 
• सरीर - शरीर 
• गजराज - हाथियों का राजा ऐरावत 
• कुञ्जर - हाथी  | 



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