पतझर में टूटी पत्तियाँ NCERT Solutions Class 10 Hindi Sparsh

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पतझर में टूटी पत्तियाँ  - रवीन्द्र केलेकर


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गिन्नी का सोना

प्रस्तुत पाठ के उप-शीर्षक गिन्नी का सोना लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | इस प्रसंग के माध्यम से लेखक कहते हैं कि गिन्नी का सोना और शुद्ध सोना अलग-अलग होता है | आमतौर पर देखा जाए तो गिन्नी के सोने में थोड़ा सा ताँबा का अंश मिलाया जाता है, जिसकी वजह से यह ज्यादा चमकदार हो जाता है | जबकि शुद्ध सोने की अपेक्षा गिन्नी का सोना अधिक मजबूत भी होता है | 

परिणामतः ज्यादातर औरतें इसी के गहनें बनाया करती हैं | आगे लेखक कहते हैं कि ठीक इसी तरह शुद्ध सोने के समान ही शुद्ध आदर्श भी होते हैं | लेकिन कुछ लोग शुद्ध सोने रूपी आदर्श में व्यावहारिकता का थोड़ा सा ताँबा मिलाकर चलते हैं, जिन्हें हम 'प्रैक्टिकल आइडीयालिस्ट' के नाम से जानते हैं | आगे लेखक कहते हैं कि वक़्त के साथ-साथ उनके आदर्श भी पीछे हटने लगते हैं और व्यावहारिक सूझबूझ का ही वर्चस्व हो जाता है | अर्थात् सोना पीछे रह जाता है और केवल ताँबा आगे रह जाता है | लेखक के अनुसार, गाँधीजी बिल्कुल 'प्रैक्टिकल इडीयालिस्ट' थे | गांधीजी कभी अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं, बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाकर उसकी अहमियत बढ़ा देते थे | अर्थात् गाँधीजी सोने में ताँबा मिलाकर नहीं, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ा देते थे | आगे लेखक कहते हैं कि व्यवहारवादी लोग हर काम को लाभ-हानि के आधार पर करते हैं | खुद ऊपर चढ़ें और साथ में दूसरों को भी ऊपर ले चलें, यह काम तो केवल आदर्शवादी लोगों ने ही किया है | जबकि व्यवहारवादी लोग तो सिर्फ समाज को नीचे गिराने का काम करते रहे हैं...||  
          

झेन की देन summary

प्रस्तुत पाठ के उप-शीर्षक झेन की देन लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | इस प्रसंग के माध्यम से लेखक कहते हैं कि वे एक बार जापान की यात्रा पर गए हुए थे | जब वे अपने एक दोस्त से पूछे कि यहाँ के लोगों को कौन सी बीमारी अत्यधिक होती है ? तो लेखक के सवाल पर उनके मित्र ने जवाब दिया 'मानसिक रोग' | आगे लेखक कहते हैं कि जापान के 80 प्रतिशत लोग मनोरोगी हैं | लेखक ने जब इस रोग का कारण जानना चाहा तो उन्हें अपने मित्र के द्वारा पता चला कि जापानियों के जीवन की रफ़्तार अत्यधिक बढ़ गई है | लोग चलते नहीं बल्कि दौड़ते हैं | अर्थात् महीनों का काम एक दिन में पूरा करने की कोशिश करते हैं | परिणामस्वरूप, एक समय ऐसा आता है, जब दिमाग़ी तनाव बढ़ जाता है | तत्पश्चात्, दिमाग़ काम करना बंद कर देता है और इस प्रकार मानसिक रोगी की संख्या बढ़ते चले जाते हैं | शाम के वक़्त जापानी दोस्त लेखक को 'टी-सेरेमनी' में ले गए | 

पतझर में टूटी पत्तियाँ NCERT Solutions Class 10 Hindi Sparsh
रवीन्द्र केलेकर

यह एक प्रकार का चाय पीने की विधि है, जिसे जापान में 'चा-नो-यू' कहते हैं | जहाँ पर लेखक अपने मित्र के साथ गए थे, वह एक छः मंजिली इमारत थी, जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारों वाली और चटाई की ज़मीन वाली एक खूबसूरत पर्णकुटी थी | बाहर पानी से भरा मिटटी का बर्तन था, जिससे उन्होंने हाथ-पाँव धोए | अंदर में बैठे 'चाजीन' ने उठकर उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह की ओर इशारा किया | तत्पश्चात्, उसने अँगीठी सुलगाकर उसपर चायदानी रखी | लेखक को सारी क्रियाएँ खूब भा रही थीं | वातावरण इतना शांत था की चाय का उबलना भी स्पष्ट कानों में गूँज रहा था | जैसे ही चाय तैयार हुई, चाजीन ने चाय को प्यालों में भरा और उसे तीनो दोस्तों के सामने पेश कर दिया | प्रस्तुत पाठ के अनुसार, वे लोग ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद को लगभग डेढ़ घंटे तक पीते रहे | लेखक को ऐसा आभास हो रहा था, मानो वे अनंतकाल में जी रहे हों | उन्हें सन्नाटे की भी आवाज़ स्पष्ट सुनाई देने लगी थी | चाय पीते-पीते लेखक के दिमाग से दोनों काल विलुप्त हो गए थे | सिर्फ वर्तमान पल सामने था, जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था | लेखक के अनुसार, वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए | सही मानो में असल जीना किसे कहते हैं, लेखक को उस दिन एहसास हुआ...|| 



पतझर में टूटी पत्तियाँ summary सारांश 

प्रस्तुत पाठ पतझर में टूटी पत्तियाँ लेखक रवीन्द्र केलेकर जी के द्वारा लिखित है | लेखक रवीन्द्र केलेकर जी इस पाठ में दो प्रसंगों का उल्लेख किए हैं | पहले प्रसंग में लेखक 'गिन्नी का सोना' नामक शीर्षक के माध्यम से हमें उन लोगों से परिचित कराते हैं, जो इस संसार को निरन्तर रहने और जीने योग्य बनाए हुए हैं | 

दूसरे प्रसंग में लेखक 'झेन की देन' नामक शीर्षक के माध्यम से हमें ध्यान की उस पद्धति को स्मरण कराता है, जो बौद्ध दर्शन में मौजूद है | इसी पद्धति की वजह से आज भी जापान के लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के दरम्यान कुछ सुकून का समय निकालने में सफल हो जाते हैं | 


रवीन्द्र केलेकर का जीवन परिचय  

प्रस्तुत पाठ के लेखक रवीन्द्र केलेकर जी हैं | इनका जन्म 7 मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में हुआ था | रवीन्द्र जी अपने छात्र जीवन से ही गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए | रवीन्द्र केलेकर जी की अनुभव से परिपूर्ण टिप्पणियों में अपनी चिंतन की विशेष मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्य तक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है | गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात रवीन्द्र केलेकर जी ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध पक्षों, मान्यताओं और व्यकितगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में पेश किया है | रवीन्द्र केलेकर जी ने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया है | कोंकणी और मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार रवीन्द्र केलेकर की कोंकणी में पच्चीस, मराठी में तीन, हिन्दी और गुजराती में भी कुछेक पुस्तकें प्रकाशित हैं | 

लेखक रवीन्द्र केलेकर जी की प्रमुख कृतियाँ - 
कोंकणी में उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली ओथांबे | मराठी में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला और हिंदी में पतझड़ में टूटी पत्तियाँ | 

पुरस्कार ---  गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार...|| 



पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ के प्रश्न उत्तर  


प्रश्न-1 शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है ? 

उत्तर- 
वास्तव में, शुद्ध सोने में किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं होती और यदि शुद्ध सोने में थोड़ा सा ताँबा मिला दिया जाता है, तो वह गिन्नी का सोना में परिवर्तित हो जाता है | 

प्रश्न-2 प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट किसे कहते हैं ? 

उत्तर-  
वास्तव में जो लोग आदर्शवादी कहलाते हैं और बाद में व्यवहार के समय उन्हीं आर्दशों को तोड़-मरोड़ कर अवसर का लाभ उठाते नज़र आते हैं | दरअसल, प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट ऐसे ही व्यक्ति को कहते हैं | 

प्रश्न-3 लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात इसलिए कही है, क्योंकि जापानी लोग उन्नति की दौड़ में अव्वल हैं | वे महीने भर का काम एक दिन में ही पूरा करने की सोच रखते हैं | 

प्रश्न-4 जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जापान में चाय पीने की विधि को 'चा-नो-यू' कहते हैं | 

प्रश्न-5 शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ में शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है, क्योंकि शुद्ध सोने में किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती है तथा ताँबे से सोना मजबूत तो हो जाता है,  लेकिन शुद्धता ख़त्म हो जाती है | ठीक इसी प्रकार व्यवहारिकता में शुद्ध आर्दश समाप्त हो जाते हैं | 

प्रश्न-6 टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, टी-सेरेमनी में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था | क्योंकि भाग-दौड़ की ज़िदंगी से दूर भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता दूर हटकर शांतिमय वातावरण में कुछ समय बिताना इस जगह का उद्देश्य था | 

प्रश्न-7 चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया ? 

उत्तर - प्रस्तुत पाठ के अनुसार, चाय पीने के बाद लेखक ने एहसास किया कि उसका दिमाग सुन्न होता जा रहा है, उसकी सोचने की शक्ति धीरे-धीरे मंद हो रही है | परिणामस्वरूप, उसे सन्नाटे की आवाज़ भी सुनाई देने लगी थी | सिर्फ वर्तमान पल सामने था, जो की अनंतकाल जितना विस्तृत था | लेखक के अनुसार, वर्तमान ही सत्य है और हमें उसी में जीना चाहिए | सही मानो में असल जीना किसे कहते हैं, लेखक को उस दिन एहसास हुआ...|| 

प्रश्न-8 गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी | गाँधीजी कई आन्दोलन चलाए --- दांडी मार्च, सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन,  असहयोग आन्दोलन आदि | उन्होंने अहिंसा के पथ पर चलकर पूर्ण स्वराज की स्थापना की | इसलिए गाँधीजी के साथ देश का हर नागरिक खड़ा था | परिणामस्वरूप, इनके नेतृत्व का नतीजा भी था कि अंतत: हमें आजादी नसीब हुई | 

प्रश्न-9 आपके विचार से कौन से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं ? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रांसगिकता स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर - 
वास्तव में देखा जाए तो सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, परोपकार की भावना, परहित, सहिष्णुता, नैतिकता आदि ऐसे शाश्वत मूल्यों में शामिल हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं | इन शाश्वत मूल्यों की आवश्यकता आज भी समाज को उतना ही है, जितना पहले हुआ करता था | 

प्रश्न-10 लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए | लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए | लेखक ने ऐसा इसलिए कहा होगा, क्योंकि हम ज्यादातर भूत और भविष्य काल के उलझनों में खोए रहते हैं, जबकि असल में दोनों काल मिथ्या है | हमारे सामने जो वर्तमान है, उसी को सत्य मानकर जीना चाहिए | 

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भाषा अध्ययन
प्रश्न-11 नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए --- 

(क)सफल.................
(ख)विलक्षण.................
(ग)व्यावहारिक.................
(घ)सजग.................
(ङ)आर्दशवादी.................
(च)शुद्ध.................

उत्तर- 
विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा

(क)- सफल - सफलता
(ख)- विलक्षण - विलक्षणता
(ग)- व्यावहारिक - व्यावहारिकता
(घ)- सजग - सजगता
(ङ)- आर्दशवादी - आर्दशवादिता
(च)- शुद्ध - शुद्धता 

प्रश्न-12 नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए --- 

(क)- शुद्ध सोना अलग है | 
(ख)- बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए | 

ऊपर दिए गए वाक्यों में 'सोना' का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में 'सोना' का अर्थ है धातु 'स्वर्ण'। दूसरे वाक्य में 'सोना' का अर्थ है 'सोना' नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए --- 

उत्तर, कर, अंक, नग

उत्तर- 
(क)- उत्तर
        • सभी प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है | 
        • माया उत्तर दिशा की ओर गई है | 

(ख)- कर
        • कर देना हमारा कर्तव्य है | 
        • विधायक जी के कर-कमलों से दीप
          प्रज्ज्वलित किया गया | 

(ग)- अंक 
       • तुम्हें अच्छे अंको से पास करना होगा | 
       • शिशु अपनी माँ के अंक में सुरक्षित महसूस
         करता है | 

(घ)- नग
        • मुझे दो नग टी.वी. चाहिए | 
       • एवरेस्ट एक बड़ा नग है | 

प्रश्न-13 नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए --- 

(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है | 
       2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं | 

(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था | 
       2. उसमें पानी भरा हुआ था | 

(ग) 1. चाय तैयार हुई | 
      2. उसने वह प्यालों में भरी | 
      3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए | 

उत्तर- 
वाक्यों से मिश्र वाक्य - 

(क) यह चाय पीने की एक विधि है जिसे जापानी चा-नो-यू कहते हैं | 
(ख) बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था | 
(ग) जब चाय तैयार हुई तो उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी | 



पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ का  शब्दार्थ 


• स्पीड - गति
• टी-सेरेमनी - जापान में चाय पिने का विशेष आयोजन
• चा-नो-यू - जापान में टी सेरेमनी का नाम
• दफ़्ती - लकड़ी की खोखली सड़कने वाली दीवार जिस पर चित्रकारी होती है
• पर्णकुटी - पत्तों से बानी कुटिया
• बेढब से - बेडौल सा
• चाजीन - जापानी विधि से चाय पिलाने वाला
• व्यावहारिकता - समय और अवसर देखकर काम  करने की सूझ
• प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट - व्यावहारिक आदर्श
• बखान - बयान करना
• सूझ-बुझ - काम करने की समझ
• स्तर - श्रेणी
• के स्तर - के बराबर
• सजग - सचेत
• शाश्वत - जो बदला ना जा सके
• शुद्ध सोना - बिना मिलावट का सोना
• गिन्नी का सोना - सोने में ताँबा मिला हुआ
• मानसिक - दिमागी
• मनोरुग्न - तनाव कर कारण मन से अस्वस्थ
• प्रतिस्पर्धा - होड़  | 



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