प्रेम के कर्णफूल साहित्य सम्मलेन में उससे भेंट हुई थी, बहुत अलग व्यक्तित्व था उसका, वाकपटुताऔर बोलने में जो सौंदर्य था, उसे देखकर लगता तुम्हारे
प्रेम के कर्णफूल
साहित्य सम्मलेन में उससे भेंट हुई थी, बहुत अलग व्यक्तित्व था उसका, वाकपटुताऔर बोलने में जो सौंदर्य था, उसे देखकर लगता मानो वाग देवी सरस्वती उसके कंठ में हो, उसके सौंदर्य में वृद्धि करते उसके कर्ण से झूलते झुमके, उसकी हर भाव भंगिमा से सबको अवगत कराते मानो नृत्य कर रहें हो, एक सप्ताह तक चलने वाले इस साहित्यिक सम्मलेन में अब प्रतिदिन ही उससे भेंट हो जाती, उसने इस सम्मलेन में मुख्य वक्ता का पद संभाला था, आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण था, आज मेरा काव्य पाठ था, जैसे ही मंच से मेरा नाम पुकारा गया मैं हतप्रभ सा रह गया, आज वहाँ मीरा नहीं थी, थोड़ी देर मैं स्वयं को संभाल ही पाया था, कि फिर से मेरा नाम पुकारा गया, श्याम सुन्दर तिवारी जी मंच पर काव्य पाठ करने आ रहें हैं, निरंतर तालियों की आवाज़ से मेरी चेतना वापिस आयी, मंच पर पहुंचकर मैंने सबका अभिवादन किया, और सबको झुककर प्रणाम करते हुए अपनी कविता के विषय 'प्रेम ' पर अपनी रचना पढ़नी शुरू की -
तुम्हारे प्रति प्रेम को
जब किया मैंने आत्मसात
प्रेम सरोवर में खिल उठे
नन्ही कुमुदनी के कुसुम संग पात
मेरी मौन प्रार्थना के निमंत्रण
तुम्हारी स्वीकृति की प्रतीक्षा में
भावनाओं को छलते प्रतिक्षण
तुम्हारे कमनीय नैनों के वो बाण
नितदिन कर देते मेरा हृदय बांध
आशाओं के सरोवर में
मेरी पीड़ा के थे कई अश्रू प्रमाण
प्रेम की अनुभूति |
मैं अपना काव्य पाठ कर मंच से अपने स्थान पर वापिस आया. और आँख मूंदकर कुछ विचार कर रहा था, मानों काव्य पाठ तो पूरा हो गया हो, पर काव्य रचना शायद अधूरी ही रह गयी, मैंने अपने हाथों मैं सिमटे से कर्ण फूलों को देखा, किसी को भेंट देने के लिये इन कर्ण फूलों का उपहार आज अपनी अस्वीकृत किये जाने के भय से कितना शांत हो गया हो. मीरा का आज वहाँ उपस्थित ना होना मेरी चिंता से ज्यादा मेरे संदेह को बढ़ा रहा था, यद्यपि प्रेम में संदेह का स्थान शून्य होना चाहिए, पर इस प्रेम का अनुभव अभी मैंने ही किया था तो मुझे संदेह और भय दोनो ही अनुभव हो रहें थे, प्रतीक्षारत नैन अब वहाँ से विदा लें चुके थे, प्रेमनगर क्षेत्र के इस साहित्य सम्मलेन में मैंने अपनी उपस्थिति एक काव्य पाठक के रूप में दर्शायी थी, क्यूकि अभी एक सप्ताह ही बीता था मुझे यहाँ बतौर जिलाधिकारी के रूप में नियुक्त हुए, लेकिन मेरे काव्य के प्रति इस प्रेम को मैं छुपा ना सका और इस सम्मलेन की व्यवस्था को देखने के साथ मैं यहाँ काव्य पाठ करने भी आ पंहुचा .
मीरा से मेरा परिचय एक प्रखर वक्ता के रूप में ही था, इसके अतिरिक्त मेरा कोई परिचय उनसे था नहीं स्वाभाव से मैं बहुत महिलाओ का आदर करने वाले व्यक्तियों में से था, इसलिए मीरा जी के बारे में किसी से पूछना अच्छा नहीं लगा, पर कहते हैं ना जहाँ चाह वहाँ राह, आज एक दीक्षांत समारोह के कार्यक्रम में जाने का अवसर या यूँ कहें की आज मुझे भाग्य वश प्रेम में दीक्षा मिलने वाली थी, मैं जैसे ही महाविद्यालय के कार्यक्रम में पंहुचा मेरे द्वारे खरीदी गयी भेंट की प्रतीक्षा आज पूरी होती दिख रही थी, महाविद्यालय की प्राचार्य और उनके साथ खड़ी महिला प्रोफेसर ने स्वागत करते हुए मुझे पुष्प भेंट किये मेरा परिचय जब संगीत प्रोफेसर मीरा जी से हुआ, तो मुझे लगा की श्याम की प्रतीक्षा और उसके जीवन को मिलने वाला प्रेम का दीक्षांत का आज बसंतोत्सव हैं। कार्यक्रम शुरू होने पर सबसे पहले अतिथि के रूप में मेरा व्याख्यान था, मंच पर पहुंचने पर मीरा जी के द्वारा जब अतिथि सत्कार स्वरुप मुझे पुष्प माला पहनाई गयी तभी मुझे अनुभूति हुई के इस प्रेम पर तो प्रकृति ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है, अब क्यों संकोच करना. कार्यक्रम के दौरान ही मैंने मीरा जी को उपहार दे दिया , मीरा जी को देते समय मैंने कहा की ये साहित्य सम्मलेन से प्रतीक्षारत मेरे प्रेम का जीवंत शिलालेख हैं, अगर हो सके तो इसे अपनी स्वीकृति की मुहर दे, ये एक डीएम का आदेश हैं, इसमें देरी नहीं होनी चाहिए.
मेरे मुरझाये प्रतीक्षारत प्रेम पुष्प
बसंतोत्सव के आगमन पर
प्रेम से सींचे जाने को
प्रियतम तैयार बैठे हैं।
🙏 श्वेता पाण्डेय
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