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तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र - प्रहलाद अग्रवाल
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तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र , लेखक प्रहलाद अग्रवाल जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ के माध्यम से लेखक प्रहलाद अग्रवाल ने गीतकार शैलेन्द्र जी के द्वारा निर्मित पहली और आख़िरी फिल्म तीसरी कसम के बारे में उल्लेख किया है | लेखक आगे कहते हैं कि जब राजकपूर जी की फिल्म 'संगम' सफलता के पैमाने पर खरी उतरी तो इस सफलता ने राजकपूर जी को आत्मविश्वास से भर दिया | यही कारण है कि उन्होंने एक साथ चार फिल्मों के निर्माण की घोषणा कर दी | जो इस प्रकार हैं --- मैं और मेरा दोस्त, सत्यम शिवम सुंदरम, अजंता और मेरा नाम जोकर | सन् 1965 में राजकपूर साहब 'मेरा नाम जोकर' का निर्माण शुरू किया तो इसके एक भाग के निर्माण में 6 वर्ष का समय लग गया | इसी दौरान 1966 में कवि शैलेंद्र की फ़िल्म 'तीसरी कसम' भी प्रदर्शित हुई | लेखक प्रहलाद अग्रवाल जी के अनुसार, इस फिल्म में हिंदी साहित्य की अत्यंत मार्मिक कथा-कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता और सशक्तता से उतारा गया है | लेखक अग्रवाल जी कहते हैं कि यह फिल्म नहीं बल्कि सैल्यूलाइड पर लिखी गई एक कविता थी |
तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र |
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, इस फ़िल्म के लिए राजकपूर साहब ने शैलेन्द्र से केवल एक रूपया लिया | देखा जाए तो राजकपूर साहब ने इस फ़िल्म की असफलताओं से शैलेंद्र को आगाह किया था | फिर भी शैलेन्द्र ने यह फिल्म बनाई , क्योंकि उनके नज़रिए से धन-संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण अपनी आत्मसंतुष्टि थी | महान और उत्कृष्टता से सजी फिल्म होने पर भी तीसरी कसम को प्रदर्शित करने के लिए बहुत मुश्किल से वितरक मिले | जबकि
फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे सितारे मौजूद थे | शंकर जयकिशन जैसे संगीतकार का संगीत भी था | वैसे फिल्म के सारे गाने पहले ही लोकप्रियता बटोर चुके थे, मगर अफ़सोस कि फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था, क्योंकि फिल्म की संवेदना समझना लोगों के लिए मुश्किल काम था | इसलिए यह फ़िल्म कब आई और इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई, पता ही न चला |
लेखक प्रहलाद अग्रवाल जी के अनुसार, शैलेंद्र जी की फ़िल्म 'तीसरी कसम' को 'राष्ट्रपति स्वर्णपदक' से नवाजा गया | यह फ़िल्म बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा सर्वश्रेष्ठ फिल्म और कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित होने का गौरव हासिल किया है | मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में भी इस फिल्म को पुरस्कृत किया गया |
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, शैलेन्द्र जी बीस सालों से इंडस्ट्री में अपनी उपस्थिति कायम रखे थे | वे वहाँ के तौर-तरीके से भी अवगत थे | किन्तु, वे वहाँ के रिवाज़ों में उलझकर अपनी आदमियत को कभी खोने नहीं दिया | लेखक के अनुसार, 'तीसरी कसम' फ़िल्म उन चुनिंदा फिल्मों में से है, जिसमें साहित्य-रचना के साथ मुकम्मल न्याय किया गया है | यह फिल हकीकत की दुनिया का पूरा स्पर्श कराती है | इस फिल्म में दुःख का चित्रण भाव को उजागर किया गया है | मुकेश जी की आवाज़ में शैलेन्द्र का गीत - सजनवा बैरी हो गए हमार चिठिया हो तो हर कोई बाँचै भाग ना बाँचै कोय... अदिव्तीय बन गया | वास्तव में कहें तो यह अभिनय के दृष्टिकोण से यह राजकपूर की जिंदगी का सबसे खूबसूरत फ़िल्म है | 'तीसरी कसम' में राजकपूर ने जो अभिनय किया है, वो उन्होंने 'जागते रहो' में भी नहीं किया है | वास्तव में देखा जाए तो तीसरी कसम पटकथा मूल कहानी के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु ने खुद लिखी थी | कहानी का हर भाग फ़िल्म में स्पष्ट रूप से चित्रित किया गया है | लेखक प्रहलाद अग्रवाल जी आगे कहते हैं कि इस फिल्म में ऐसा लगता है मानो राजकपूर अभिनय नहीं कर रहा है, वह हीरामन ही बन गया है | इस दौरान राजकपूर अभिनय के उच्च शिखर पर कायम थे | वे एशिया के सबसे बड़े शोमैन के रूप में स्थापित हो चुके थे...||
प्रहलाद अग्रवाल का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के लेखक प्रहलाद अग्रवाल जी का जन्म 1947 में मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था | इन्होनें हिंदी से एम.ए. तक शिक्षा हासिल की | वर्तमान में सतना (मध्यप्रदेश) के शासकीय स्वसाशी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रध्यापन का कार्य कर रहे हैं और फिल्मों के विषय में बहुत कुछ लिख चुके हैं | आगे भी इसी क्षेत्र में लिखने को संकल्पित हैं | प्रहलाद अग्रवाल जी का किशोरकाल से ही हिंदी फिल्मों के इतिहास और फिल्मकारों के जीवन और अभिनय के बारे में विस्तार से जानने और उस पर चर्चा करने का शौक रहा | इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- मैं खुशबू, सांतवाँ दशक, तानशाह, सुपर स्टार, राज कपूर: आधी हकीकत आधा फ़साना, प्यासा: चिर अतृप्त गुरुदत्त, उत्ताल उमंग: सुभाष घई की फिल्मकला, ओ रे माँझी: बिमल राय का सिनेमा और महाबाजार के महानायक: इक्कीसवीं सदी का सिनेमा, कवि शैलन्द्र: जिंदगी की जीत में यकीन...||
तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ?
उत्तर- ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है ---
• मास्को फ़िल्म फेस्टिवल में भी पुरस्कृत |
• राष्ट्रपति स्वर्णपदक से सम्मानित किया गया |
• बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा
सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के पुरस्कार से सम्मानित किया गया |
प्रश्न-2 शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, शैलेंद्र ने अपने जीवन में मात्र एक ही फ़िल्म का निर्माण किया | ‘तीसरी कसम’ ही उनकी पहली व अंतिम फ़िल्म के रूप में जानी जाती है |
प्रश्न-3 राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए |
उत्तर- फ़िल्मों के नाम
• प्रेमरोग
• मैं और मेरा दोस्त
• सत्यम् शिवम् सुंदरम्
• संगम
• मेरा नाम जोकर
• अजन्ता |
प्रश्न-4 राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय यह कल्पना भी नहीं की थी कि फ़िल्म के आधे या पहले भाग के निर्माण में ही छह वर्ष का वक़्त लगेगा |
प्रश्न-5 फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे ?
उत्तर- फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को आँखों से बात करनेवाला कुशल किस्म का अभिनेता और कला-मर्मज्ञ मानते थे |
प्रश्न-6 ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ में ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि इस फ़िल्म के माध्यम से हिंदी साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर सार्थकता से उतारने की कोशिश की गई है |
प्रश्न-7 ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार इसलिए नहीं मिल रहे थे, क्योंकि इस फिल्म में किसी भी प्रकार के अनावश्यक फ़िल्मी मसाले नहीं डाले गए थे |
प्रश्न-8 ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं’ - इस कथन से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- ‘शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं --- इस कथन से आशय यह है कि राजकपूर साहब अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाने में असमर्थ थे, जिसकी पूर्ति बड़ी कुशलता तथा खूबसूरती से शैलेंद्र जी ने किया है | राजकपूर जी की भावों को गीतों में ढालने का काम शैलेंद्र जी ने बखूबी किया है |
प्रश्न-9 लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है | शोमैन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है | शोमैन से आशय यह है कि एक ऐसा व्यक्ति जो अपने कला-गुण, व्यक्तित्व और आकर्षण की वजह से हर जगह प्रसिद्धि पाता हो | जो भीड़ में भी बिल्कुल अलग पहचान रखता हो | राजकपूर साहब अपने समय में एक महान फ़िल्मकार थे | उनके निर्देशन में अनेक फ़िल्में प्रदर्शित हुई थीं | राजकपूर साहब को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि उनकी फ़िल्में शोमैन से संबंधित सभी मानदंडों को पूरी करती थीं |
प्रश्न-10 फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति इसलिए की क्योंकि उनका ख्याल था कि दर्शक चार दिशाएँ तो समझते हैं, लेकिन दस दिशाओं के ज्ञान से दर्शक भ्रमित हो सकते हैं |
प्रश्न-11 राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई ?
उत्तर- राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म इसलिए बनाई, क्योंकि वे इस फिल्म को बनाने के पक्ष में थे और अपने फैसले पर अडिग थे | एक भावुक कवि होने के नाते वे अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति इस फ़िल्म के माध्यम से करना चाहते थे | उन्हें धन के बजाए, आत्मसंतुष्टि की लालसा थी |
प्रश्न-12 लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है ?
उत्तर- वास्तव में, 'तीसरी कसम' फणीश्वरनाथ रेणु की रचना ‘मारे गए गुलफाम’ पर बनी है | इस फिल्म में मूल कहानी को परिवर्तित नहीं किया गया है |
प्रस्तुत फिल्म में साहित्य की मूल आत्मा को पूरी तरह से सुरक्षित रखा गया था | इसलिए हम कह सकते हैं कि ‘तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है |
प्रश्न-13 फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए |
उत्तर- फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ---
• एक निर्माता के रूप में शैलेंद्र जी जीवन की मार्मिकता को बेहद सार्थकता से एवं अपने कवि हृदय की पूर्णता को बड़ी ही तन्मयता के साथ पर्दे पर उतारने की कोशिश की है |
• शैलेंद्र जी ने राजकपूर की सर्वोत्कृष्ट भूमिका को शब्दों का आधार देकर उसे प्रभावशाली तरीके से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है |
• शैलेंद्र जी ने फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के माध्यम से जीवन के आदर्शवाद और भावनाओं को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया |
• शैलेंद्र जी की फ़िल्म ‘तीसरी कसम' को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म घोषित किया गया और विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया |
प्रश्न-14 'उनके गीत भाव-प्रवण थे- दुरूह नहीं' --- आशय स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'उनके गीत भाव-प्रवण थे - दुरूह नहीं' , इससे आशय यह है कि शैलेंद्र जी के द्वारा लिखे गए गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे | उन गीतों में गहराई थी | उनके गीत जन सामान्य की भावनाओं से मेल खाते थे | उनकी गीतों की भाषा सहज और सरल थी | शैलेंद्र जी के गीतों को सुनकर ऐसा आभास होता है, मानो हृदय को सुकून मिल रहा हो |
प्रश्न-15 'व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है' --- आशय स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है', इससे आशय यह है कि व्यथा या किसी प्रकार की चुनौती रूपी दुख हमें पराजित नहीं कर सकता बल्कि वह दुःख तो हमें मजबूत बनाकर आगे बढ़ने का हौसला देता है | चुनौतियों से ही व्यक्ति दृढ़ बन पाता है |
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भाषा अध्ययन
प्रश्न-16 पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए ---
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना
उत्तर- मुहावरों से वाक्य
• चेहरा मुरझाना --- शोक की ख़बर सुनते ही उनका चेहरा मुरझा गया |
• चक्कर खा जाना --- सोने से भरा घड़ा पाकर अमीत तो एक पल के लिए चक्कर ही खा गया |
• दो से चार बनाना – उसने सट्टे में दो से चार बना लिया |
• आँखों से बोलना --- वह अपने अभिनय के दौरान आँखों से बोलती है |
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तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र पाठ के कठिन शब्द / शब्दार्थ
• त्रासद - दुःख
• ग्लोरिफाई - गुणगान
• वीभत्स - भयावह
• जीवन-सापेक्ष - जीवन के प्रति
• धन-लिप्सा - धन की अत्यधिक चाह
• प्रक्रिया - प्रणाली
• बाँचै - पढ़ना
• भाग -भाग्य
• भरमाये - भम्र होना
• समीक्षक - समीक्षा करने वाला
• कला-मर्मज्ञ - कला की परख करने वाला
• चर्मोत्कर्ष - ऊँचाई के शिखर पर
• खालिस - शुद्ध
• भुच्च - निरा
• किंवदंती - कहावत
• कलात्मकता - कला से परिपूर्ण
• संवेदनशीलता - भावुकता
• शिद्दत - तीव्रता
• अनन्य - परम
• तन्मयता - तल्लीनता
• पारिश्रमिक - मेहनताना
• याराना मस्ती -दोस्ताना अंदाज़
• आगाह - सचेत
• नामज़द - विख्यात
• नावाकिफ - अनजान
• इकरार - सहमति
• मंतव्य - इच्छा
• उथलापन - नीचा
• अभिजात्य - परिष्कृत
• भाव-प्रवण - भावों से भरा हुआ
• दूरह - कठिन
• उकडू - घुटनों से मोड़ कर पैर के तलवों के सहारे बैठना
• सूक्ष्मता - बारीकी
• स्पंदित - संचालित करना
• लालायित - इच्छुक
• टप्पर-गाडी - अर्ध गोलाकार छप्परयुक्त बैलगाड़ी
• लोक-तत्व - लोक सम्बन्धी
• अंतराल - के बाद
• अभिनीत - अभिनय किया गया
• सर्वोत्कृष्ट - सबसे अच्छा
• सैल्यूलाइड - कैमरे की रील में उतार चित्र पर प्रस्तुत करना
• सार्थकता - सफलता के साथ |
बहुत सुन्दर
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