रजनी आश्चर्यचकित हो गई। उसे तोहफे खोलने वाली रात याद आ गई। उधर मोती माँजी के मुख से रजनी को उसके सामने यह बात कहती देख भावुक हो गया। रजनी मोती को एकटक
तोहफा
आज रजनी की शादी थी। उसकी शादी में शरीक होने के लिए मोती करीब एक महीने की छुट्टी लेकर आया था। साथ में शादी संबंधी काम में भी हाथ बँटा रहा था। खुद रजनी ने उसे खास कर कहा था कि शादी के बाद लंबे समय तक साथ रहना शायद न हो पाए, इसलिए वह कुछ समय साथ बिताना चाहती है। वह चाहती थी कि मोती जितने पहले हो सके आ जाए और शादी की रस्मों के बाद ही लौटे।
रजनी का मोती के साथ कोई खून का रिश्ता नहीं था। लेकिन दोनों में खूब बनती थी। उम्र में मोती कोई पंद्रह बरस बड़ा था। रजनी के लिए वह उसके सबसे बड़े भाई की जगह था। परिवार में सबसे अच्छा मेंल-जोल था। वैसे ही रजनी के लिए मोती का अपनापन भी था।
शादी के तीसरे दिन शाम को पार्टी के बाद सामान समेंटकर, बारात घर लौटाकर, मोती को घर आते-आते करीब रात के ग्यारह बज गए थे। पार्टी में खाना तो हो चुका था सो वह हाथ-पैर धोकर, कपड़े बदल कर सोने चला गया। थोड़ी देर में ही रजनी ने उसे जगा दिया और कहा – “मोती, आओ ना बैठक में – गिफ्ट खोलते हैं। सारे बैठे हैं, तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।” थके-हारे मोती की तो हालत ही खराब थी। पलकें खुल ही नहीं रही थीं। सो उसने रजनी को मना कर दिया। रजनी दो - चार बार मिन्नतें करती रही, फिर – “पूरे गिफ्ट खुलने पर उठा लूँगी,” कहते-कहते - रूठ कर चली गई। मोती फिर मना करते हुए सो गया।
अनमोल तोहफा हिंदी कहानी |
उधर मोती शांत सो रहा था और इधर सारा परिवार दामाद जी के साथ बैठकर एक-एक तोहफा खोलते हुए लुत्फ ले रहे थे। अक्सर तोहफों पर “---” की ओर से सप्रेम, या शादी की शुभकामनाओं सहित “---” लिखा रहता था। इसलिए पता चल रहा था कि कौन सा तोहफा किसने दिया है। सो यह चर्चा भी हो रही थी कि रश्मि चाची ने यह गिफ्ट दिया और गौरव अंकल ने यह दिया। कहीं-कहीं आलोचना भी हो जाती थी। टिप्पणी भी कर जाते थे। छाया ने इतना छोटा गिफ्ट दिया । देखो रवि का गिफ्ट कितना सुंदर है - इत्यादि।
यह सब करते-करते रात के करीब दो-ढाई बज गए। जब क्रिया-कलाप समाप्त हुआ और तोहफों की चर्चा चल पड़ी – किसका तोहफा कितना सुंदर है, कौन सा सबसे बढ़िया है। तब अचानक रजनी के मन में बिजली कौंधी। अरे मोती भैया का गिफ्ट तो खोला ही नहीं। पर कोई गिफ्ट तो बचा नहीं है। कहीं छूट तो नहीं गया ? मन मानने को तैयार नहीं था कि भैया ने गिफ्ट दिया ही नहीं हो। असमंजस और कशमकश से घिरते-घिरते जब सँभलना मुश्किल हो गया तो रजनी की आँखों से आँसू छलक ही गए।
सबके सामने न सँभल सकने की वजह से शायद रजनी पूरे झटके से उठी और तमतमाते गुस्से के साथ वह मोती के कमरे में गई। उसे झिंझोड़कर उठाया। आंखें मींचते - मलते जब मोती जग रहा था, तब रजनी ने पूरे गुस्से का इजहार करते हुए सवाल दाग दिए। तुमने मुझे शादी में क्या गिफ्ट दिया ? तेरा गिफ्ट तो नहीं मिल रहा है। नींद की खुमारी में ही मोती कह गया।। कोई गिफ्ट नहीं दिया। शायद रजनी के नयनों को इसी का इंतजार था, जो एकाएक झरने में तबदील हो गए।
रजनी ने अपना ब्रह्मास्त्र प्रयोग किया और कहा – बैठक में माँ और सब इंतजार कर रहे हैं। माँ तुमको बुला रही हैं। रजनी की रोती आवाज उसके कानों में पड़ी। मोती के लिए अब बचना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो गया। सहसा उसकी खुमारी दूर हो गई। माँ को वह तहेदिल से और अपने प्राणों से ज्यादा चाहता था।
वह उठकर नयनों को मलते हुए, बैठक में पहुँचा। वहाँ माँ बैठी थीं पर चुप थीं। पहुँचते साथ सब ने एक साथ सवाल कर दिए। मोती तुमने रजनी को शादी में क्या गिफ्ट दिया ? तुम्हारा गिफ्ट तो मिल ही नहीं रहा है। और सबकी सेनानायक थी, खुद रजनी। मोती का फिर वही जवाब था – कोई गिफ्ट नहीं दिया है, तो मिलेगा कैसे। माँ फिर भी मौन थी। पर सब बार-बार वही सवाल कर रहे थे और मोती वही जवाब दोहरा रहा था। बार-बार वही उत्तर सुनकर रजनी माँ की तरफ मुखातिब हुई कि अब वे ही कुछ करें।
माँ ने कहा, “बेटी, तेरे कहने पर मोती एक महीने की छुट्टी लेकर आया है। तेरी शादी का काम भी सँभाला है, इससे तुझे खुशी नहीं है ? तुझे और भी तोहफा चाहिए। क्यों परेशान हो रही है और मन को खराब कर रही है?” माँ ने मोती से कुछ नहीं पूछा। पर रजनी को संतुष्टि नहीं हुई। उसके अनुसार ऐसा हो ही नहीं सकता कि मोती ने उसे कोई शादी का विशेष तोहफा न दिया हो। गुस्से से बोझिल रजनी जाकर सो गई और साथ ही सभा समाप्त हो गई।
सुबह-सुबह रजनी दामाद जी के साथ ससुराल चली गई। दो दिन बाद मोती भी वापस चला गया। लेकिन इस बीच तोहफे वाली बात किसी ने नहीं छेड़ी। माँ को असलियत का पता था इसलिए उनने भी बात को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा। बात जहाँ की वहाँ रह गई और सब अपने अपने घर पहुँच गए।
मोती का आना-जाना चलता रहा। जब कभी आता तो रजनी से ससुराल जाकर मिल लेता या कोई पर्व-प्रतिष्ठान, शादी-ब्याह का अवसर होता तो दामाद जी के साथ रजनी घर पर आ जाती और मोती से मुलाकात भी हो जाती।
कुछ समय बाद एक बार जब मोती आया तब किसी पूजा के अवसर पर रजनी घर आयी हुई थी। शाम करीब संध्या के वक्त सज-धज कर परंपरानुसार पूजा के लिए मंदिर गई। जब वह पूजा से लौट रही थी तब कुछ ऐसा समाँ बँधा कि बैठक के एक तरफ माँ बैठी हुई थी और दूसरी तरफ कमरे के दरवाजे के भीतर मोती खड़ा था। रजनी चाँदी के हल्दी, चंदन, कुमकुम और इत्र के अष्टलक्ष्मी पात्रों को एक चाँदी की थाल में लिए मंदिर से लौटती हुई बैठक से होकर घर के भीतर जा रही थी। माँ ने उसे आवाज दी और वह एकदम से रुक गई। उसके पायल झनक उठे। उसे समझ ही नहीं आया कि माँ ने उसे क्यों रोका ? उधर सजी-सँवरी आभूषणों से सुसज्जित, हाथ में चाँदी की पूजा सामग्री लिए रजनी को देख मोती प्रफुल्लित हो उठा।
माँ कह रही थी, बेटी इस समय तुम्हारे तन पर और हाथों में जितनी भी चाँदी है ना, वह सब तुम्हारी शादी में मोती की दी हुई है। उस दिन तुम परेशान हो रही थी ना कि मोती ने तुम्हें शादी का क्या तोहफा दिया? यह है वह तोहफा।
रजनी आश्चर्यचकित हो गई। उसे तोहफे खोलने वाली रात याद आ गई। उधर मोती माँजी के मुख से रजनी को उसके सामने यह बात कहती देख भावुक हो गया। रजनी मोती को एकटक निहारने लगी। दोनों का अपनापन अपनी चरम पर पहुँचकर आँखों के रास्ते झलकने लगा। दोनों की आँखें नम हो गई।
उधर भाई-बहन की नम आँखों ने माँ की ममता को भी तर कर दिया। माँ अपनी नम आँखें पोंछती हुई भीतर चली गईं।
बहुत बढ़िया
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