जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन सुकरात को जहर दिया जा रहा है ,जहर बांटा जा रहा है ,सभी उसके मित्र रो रहे हैं लेकिन सुकरात उठ-उठकर जहर पीसने वाले से प
जानने की जिज्ञासा से भरा युवा मन
लेकिन हम आजकल सीखने की प्रवृति ही खो चुके हैं । अगर हम 40 के उम्र पर कुछ सीखने की बात करते हैं तो लोग कहने लगते हैं कि अब आपकी सीखने की आयु नहीं है ,उम्र खत्म हो चुकी है ,अब आप जो हैं ,वही आप जीवन में बने रहें । ज्यादा दिमाग लगाने की कोई जरूरत नहीं है । अब आपकी बच्चे की सीखने की उम्र है । ऑर इस तरह से जो व्यक्ति सीखने की लालसा लिए कुछ जानना चाहता है उसे समाज ,लोग उसके मन में एक निराशा का भाव भर देते हैं ,जो सरासर गलत है । सीखने की कोई उम्र नहीं होती है ,जब आपका मन युवा हो ,जवान हो ,लालसा से भरा हो तो आप बेशक अपने मन पसंद की चीजें सीख सकते हैं ,ऑर सीखना भी चाहिए । प्रकृति हमें हर पल कुछ नया करने को प्रेरित करती है ।युवा का कोई संबंध शरीर की अवस्था से नहीं है ,उम्र से जवान होने का कोई भी संबंध नहीं है । युवा होने का मतलब है मन की जीवित अवस्था ।
कविवर रवीन्द्रनाथ के बारे में उल्लेख है कि एक दिन उनके एक मित्र ने कहा कि तुम महाकवि हो ,तुमने छह हजार गीत लिखे, जो संगीत से पिरोये जा सकते हैं ,तुमसे बड़ा कोई कवि दुनिया में कभी नहीं हुआ । इतना सुनते हीं रवीन्द्रनाथ के आँखों से आँसू बहने लगे । उन्होने ने कहा –क्या कहते हो ,मैं तो परमात्मा से प्रार्थना कर रहा हूँ कि अभी मैंने गीत गाये कहाँ हैं ,अभी तो साज को ठीक –ठाक किया हूँ ऑर विदा का क्षण आ गया । मरने की उम्र में रवीन्द्रनाथ कहते हैं कि अभी मैंने गीत गाया नहीं हूँ, अभी बहुत सा गीत गाना बाकी है ,बहुत कुछ सीखना है ,बहुत कुछ करना है । यही सीखने की आदत मनुष्य को जवान बनाती है । चाहे वह शरीर की अवस्था जो हो ,लेकिन हमेशा सीखने को तत्पर ,कुछ जानने के लिए उत्साहित ,कुछ कर गुजरने की हिम्मत ,कुछ पाने की आशा मानव को नवचित्त का निर्माण करती है।
जब हम जीवन की कठिनाई में होते हैं ,संघर्षो के बाद एक नया जीवन का अनुभव होता है ऑर उन हालातों से बाहर निकलते हैं, तो मन एकदम नयी ऊर्जा से भर जाता है । ऑर अगर हम कठिन हालातों से निकालना नहीं सीखते हैं ,ऑर यह मान लेते हैं कि यह हमारे वश की बात नहीं है , यही मेरी नियति है ,तो जीवन निराशा से भर जाता है जो मन से जवान है ,वह पार हो जाता है ,हम हालातों को जान लेते हैं ,उससे पार हो ही जाते हैं ,लेकिन जानने या उससे लड़ने से पहले हम जानना बंद कर देते हैं । हम अपनी मन ,बुद्धि ठप कर देते हैं ,मन से नया कुछ करने की कोशिश नहीं करते हैं ,मन को ताजा करने के बारे में नहीं सोचते हैं बल्कि सिर्फ संग्रह बढ़ाते चले जाते हैं । ऑर वह संग्रह ज्ञान की ,शास्त्र की,सिद्धांतों की ,परम्पराओं की , किताबें की,जो की सभी दिमाग एवं मन में भरता जाता है । ऑर नया सीखने की लालसा से वंचित हो जाते हैं ।
हमें चाहिए मन को युवा रखें ,कुछ नया सीखें ,कुछ नयी खोज ,नयी बातें सीखने की ,जानने की ,चाहे हालात जो भी हो मन को सीखने की इच्छा से तैयार रखना चाहिए । यही मन शांत होता है ,यही मन नया होता है ,नवीन होता है । ऑर विपरीत परिस्थितियों से जूझने के लिए तैयार होता है । चाहे उम्र कोई भी हो ,हालात कैसी भी हो ,मन जवान ,नयी ऊर्जा से सरावोर ही जीवन में कुछ कर गुजरने के लिए तत्पर होता है ।
जे आर पाठक (लेखक )जल्द प्रकाशित मेरी पुस्तक –‘चंचला ‘
जे आर पाठक (लेखक )जल्द प्रकाशित मेरी पुस्तक –‘चंचला ‘
- ज्योति रंजन पाठक
शिक्षा – बी .कॉम (प्रतिष्ठा )
पिता –श्री बृंदावन बिहारी पाठक
संपर्क नं -8434768823
वर्तमान पता –रांची (झारखंड )
Very good
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