राघव का हश्र जू ही को बचपन से ही बहुत लगाव है अपने पड़ोसी अंकल राघव से। बचपन में जूही के अभिभावक बच्चों को राघव के भरोसे छोड़ कर टी वी सीरियल...
राघव का हश्र
जूही को बचपन से ही बहुत लगाव है अपने पड़ोसी अंकल राघव से। बचपन में जूही के अभिभावक बच्चों को राघव के भरोसे छोड़ कर टी वी सीरियल और सिनेमा की शूटिंग देखने जाते थे। आते - आते देर रात हो जाती।
बच्चे देखते कि हॉल में राघव अंकल बैठे हैं, तो सो जाते। पानी, बाथरूम के लिए उठते थे तो हॉल में एक नजर डालकर तसल्ली कर लेते और हेल्प से फारिग होकर फिर सो जाते। राघव के आसपास होने पर बच्चे सुरक्षित व सुकून अनुभव करते थे।
एक बार जब जूही अस्पताल में भर्ती थी, तब पापा और राघव दोनों रात में अस्पताल में ही थे। पापा जूही के पास बैठे थे और राघव कमरे में ही बेंच पर बैठे थे। राघव और पापा दोनों सहमत थे कि पापा के पास जूही को आराम से नींद आ जाएगी।
जूही की आँख खुली तो उसने पापा से पूछा – राघव अंकल कहाँ हैं। जब पापा ने बताया कि राघव अंकल उधर बेंच पर बैठे हैं तब जूही ने कहा - आप जाकर बेंच पर सो जाएँ। राघव अंकल मेरे पास बैठेंगे।
पापा को अच्छा तो नहीं लगा। एक बार जूही को समझाने की कोशिश की, किंतु जब बच्ची नहीं मानी तो बच्ची के लिए मान गए। अब राघव जूही के सिरहाने बैठा हुआ था और पापा बेंच पर लेटे थे।
रात भर जूही अंकल का हाथ पकड़कर सोई। शायद उसे डर था कि कहीँ अंकल चले न जाएँ। जब भी राघव का हाथ जूही के हाथ से अलग होता, वह जाग जाती। जब देखती राघव पास बैठा है तो फिर सो जाती।
सुबह पापा ने यह खबर मम्मी जी तक पहुँचाई।
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जूही और राघव का रिश्ता गहरा होता गया।
राघव की माँ को जूही दादी कहती थी। उनके हाथ के पराठे और आलू भुजिया की जूही खास फरमाइश करती और खाती थी।
फलतः जूही घर पर ढंग से नहीं खाती थी और यह मम्मी की परेशानी की वजह बन रहा था। उन्हें पता नहीं था कि जूही राघव के घर खाकर आ रही है।
एक दिन मम्मी जूही को खोजते - खोजते हुए राघव के घर आई और देखी कि जूही आराम से पराठे व आलू की भुजिया खा रही है। एक तरफ उन्हें खुशी हुई कि जूही चुपचाप कुछ खा तो रही है और दूसरी तरफ नाराजगी भी कि घर में खाती नहीं है, नखरे करती है। उन्हें लगा कि दादी उसे बिगाड़ रही है। मम्मी ने दादी को रोकने की कोशिश की कि जूही को न खिलाएँ जिससे कि वह घर पर खाने लगे।
दादी मम्मी को समझाने लगी कि बच्ची है खाने दो, कैसे मना कर दूँ। मम्मी चुप तो हुई, पर मन नहीं माना उनका। खाने के बाद उसे ले गई।
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अब जूही बड़ी हो रही थी। जो देखती, वही कह जाती थी। उसके मासूम मन को अच्छा बुरा समझता नहीं था।
एक दोपहर जूही अकेली पहली मंजिल से चलकर तीसरी मंजिल तक आ गई और उसने राघव के घर पर बेल बजाया। अकेली? भरी दोपहरी में गर्मी के दिन बात समझ नहीं आई। राघव के घर भी सब सो रहे थे।
उसने जूही से पूछ लिया।अकेले कैसे आ गई? दरवाजा खुला था क्या? मम्मी घर पर नहीं है क्या?
जूही आराम से बोली - हैं न, सो रहे है।
पापा क्या कर रहे हैं?
जूही बोली : बोला ना, दोनों बेडरूम में सो रहे हैं।
राघव को लगा कि समय आ गया कि अब जूही के अभिभावकों को सँभलना चाहिए। दोस्त की हैसियत से, करीबी होने के कारण उन्हे चेता देना चाहिए, ऐसा राघव ने महसूस किया। पता नहीं जूही कब, किसे क्या बता दे और लोग उसका क्या अर्थ निकालें।
राघव ने जूही के पिताजी को बताया कि अब सँभलने के दिन नजदीक आ गए हैं। बिटिया जो देख रही है वह कहने की उम्र में आ गई है। अब सँभलने का काम बड़ों का ही होगा।
जूही के पापा को बात समझ आई और उन्होंने चाहा कि राघव घर चलकर वहाँ अपनी जुबानी भाभीजी को बताए। राघव ने भाभीजी को भी सारी बात बता दिfया।
इस पर तुरंत भाभीजी के तेवर दिख गए। राघव डर गया। उनसे निवेदन कर आया कि जूही को कुछ न कहें, वह अभी नासमझ है। आप ख्याल किया करें। इस उम्र में बच्चे सच बोल जाते हैं पर मतलब नहीं समझते। कहकर उदास राघव अपने घर लौट आया।
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जिसका डर था वही हुआ। बच्ची को पता नहीं डाँटा गया या मारा गया, पर वह दहशत में आ गई। बस। जूही, राघव से दूर - दूर रहने लग गई। राघव का मन बहुत रोया। उसका मन दिन ब दिन परेशान होने लगा। काम में, जिंदगी में किसी में मन नहीं लगता था। रातें रोते - रोते बीत रही थी।
राघव जूही से दूर रह नहीं पा रहा था।
इसके बाद समय के सहारे उसका दर्द घटता गया। वह जूही के बिना जीना सीख रहा था। इस घटनाक्रम से राघव का जूही के घर उठना बैठना भी करीब बंद ही हो गया था।
अगले जन्मदिन पर जूही राघव को न्यौता देने आई। जिससे राघव का मन भर आया। वह जन्मदिन मनाने जूही के घर गया।
तब तक जूही के अभिभावकों को राघव का दु:ख समझ में आ गया था। सभी खुश थे। उसके बाद रिश्ते सुधरते गए। साल भर बाद सब कुछ यथावत हो गया।
सारे आपसी रिश्ते खुशी-खुशी निभने लगे।
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👍🙂
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