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तुम कब जाओगे अतिथि पाठ
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तुम कब जाओगे अतिथि पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ तुम कब जाओगे, अतिथि लेखक शरद जोशी जी के द्वारा लिखित है | इस पाठ में लेखक ने ऐसे व्यक्तियों की व्यंग्यात्मक ढंग से ख़बर ली है, जो अपने किसी परिचित या रिश्तेदार के घर बिना कोई पूर्व सूचना दिए चले आते हैं और फिर जाने का नाम ही नहीं लेते | भले ही उनका ज्यादा समय तक टिके रहना मेज़बान के लिए तकलीफ़ देय ही क्यूँ न हो |प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक अतिथि सत्कार से ऊबकर उसे अपने मन की भावना से संबोधित करते हुए कहते हैं कि आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर यह प्रश्न बार-बार मन में घुमड़ रहा है --- तुम कब जाओगे, अतिथि ? तुम जानते हो, अगर तुम्हें हिसाब लगाना आता है कि यह चौथा दिन है, तुम्हारे सतत् आतिथ्य का चौथा भारी दिन ! पर तुम्हारे जाने की कोई सम्भावना प्रतीत नहीं होती | अब तुम लौट जाओ, अतिथि ! तुम्हारे जाने के लिए यह उच्च समय है | क्या तुम्हें तुम्हारी पृथ्वी नहीं पुकारती ?
आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि अतिथि ! तुम्हें देखते ही मेरा बटुआ काँप गया था | फिर भी हमने मुस्कुराहट के साथ तुम्हारा स्वागत किया था | मेरी पत्नी ने तुम्हें सादर नमस्ते किया था | रात के भोजन को मध्यम-वर्गीय डिनर में बदल दिया था | सोचा था कि तुम दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाज़ी की छाप अपने हृदय में बसाकर एक अच्छे अतिथि की तरह चले जाओगे |परन्तु, ऐसा नहीं हुआ | तुम यहाँ आराम से सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे | उधर मैं तुम्हारे सामने कैलेण्डर की तारीखें बदल-बदलकर तुम्हें जाने का संकेत दे देता रहा हूँ |
आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि तीसरे दिन तो तुमने कपड़े धुलवाने की फ़रमाइश कर दी | पत्नी ने सुना तो वह भी आँखें तरेरने लगी | जब चौथे दिन कपड़े धुलकर आ गए, तो फिर भी तुम डटे रहे | अतिथि ! तुम्हें देखकर फूट पड़ने वाली मुस्कुराहट धीरे-धीरे फीकी पड़कर अब लुप्त होने लगी है | ठहाकों के रंगीन गुब्बारे, जो कल तक इस कमरे के आकाश में उड़ते थे, अब नज़र नहीं आते | बार-बार यह प्रश्न उठ रहा है --- तुम कब जाओगे, अतिथि ?
आगे प्रस्तुत पाठ के अनुसार, बातचीत के सभी विषय समाप्त हो गए हैं | दोनों खुद में मग्न होकर पढ़ रहे हैं | आपसी सौहार्द समाप्ति के कगार पर है | सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो चुकी है | अब भोजन में खिचड़ी बनने लगी है | लेखक कहते हैं कि घर को स्वीट होम कहा गया है, परन्तु तुम्हारे होने से घर का स्वीटनेस खत्म हो गया है | अब तुम चले जाओ वर्ना मुझे मजबूरन ‘गेट आउट' कहना पड़ेगा | माना कि तुम देवता हो, किंतु मैं तो आदमी हूँ | मनुष्य और देवता अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते | तुम लौट जाओ अतिथि ! इसी में तुम्हारा देवत्व सुरक्षित रहेगा | उफ ! तुम कब जाओगे, अतिथि...?
शरद जोशी का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के लेखक शरद जोशी जी हैं | इनका जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन में 21 मई 1931 को हुआ था | कुछ समय तक जोशी जी सरकारी नौकरी में कार्यरत् रहे, तत्पश्चात् इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया | जोशी जी अपने आरम्भिक साहित्यिक दौर में कुछ कहानियाँ लिखीं, तत्पश्चात् पूर्ण रूप से व्यंग्य-लेखन ही करने लगे | हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने वाले प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी जी का भी स्थान महत्वपूर्ण है | लेखक जोशी जी व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अलावा हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे |इनकी प्रमुख व्यंग्य-कृतियाँ हैं --- किसी बहाने, परिक्रमा, जीप पर सवार इल्लियाँ, रहा किनारे बैठ, दूसरी सतह, प्रतिदिन, तिलस्म |
दो व्यंग्य नाटक हैं --- एक था गधा और अंधों का हाथी | एक उपन्यास --- मैं, मैं, केवल मैं, उर्फ़ कमलमुख बी.ए. ...||
तुम कब जाओगे अतिथि के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 अतिथि कितने दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, अतिथि चार दिनों से लेखक के घर पर रह रहा है |
प्रश्न-2 पति-पत्नी ने मेहमान का स्वागत कैसे किया ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, पति ने स्नेह-भीगी मुस्कराहट के साथ गले मिलकर और पत्नी ने सादर नमस्ते कहकर अतिथि का स्वागत किया |
प्रश्न-3 तीसरे दिन सुबह अतिथि ने क्या कहा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, तीसरे दिन सुबह अतिथि ने धोबी से कपड़े धुलवाने की बात कही |
प्रश्न-4 लेखक अतिथि को कैसी विदाई देना चाहता था ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक अतिथि को एक भावभीनी व सम्मानजनक विदाई देना चाहता था | लेखक चाहता था कि जब अतिथि वापस जाए तो पति-पत्नी दोनों उसे स्टेशन तक छोड़कर आए |
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पाठ में आए निम्नलिखित कथनों की व्याख्या कीजिए ---
प्रश्न-5 अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति लेखक 'शरद जोशी' जी के द्वारा लिखित पाठ 'तुम कब जाओगे, अतिथि' से ली गई हैं | इस पंक्ति से तात्पर्य यह है कि जब लेखक ने अतिथि को देखा, तब उन्हें अपने खर्च बढ़ने का आभास हो गया था | इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए लेखक ने कहा कि अंदर ही अंदर कहीं मेरा बटुआ काँप गया |
प्रश्न-6 अतिथि सदैव देवता नहीं होता, वह मानव और थोड़े अंशों में राक्षस भी हो सकता है |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति लेखक 'शरद जोशी' जी के द्वारा लिखित पाठ 'तुम कब जाओगे, अतिथि' से ली गई हैं | इस पंक्ति से आशय यह है कि हमारी संस्कृति में अतिथि को देवता समतुल्य माना गया है | परन्तु, यही अतिथि जब अधिक दिन तक हमारे घरों में रह जाए तो वह बोझ सा लगने लगता है और कहीं न कहीं थोड़े अंशों में राक्षस प्रतीत होने लगता है |
प्रश्न-7 लोग दूसरे के होम की स्वीटनेस को काटने न दौड़ें |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति लेखक 'शरद जोशी' जी के द्वारा लिखित पाठ 'तुम कब जाओगे, अतिथि' से ली गई हैं | इस पंक्ति से आशय यह है कि हर व्यक्ति अपने घर को सजाता-संवारता है, सुख-शान्ति स्थापित करता है | अपने-अपने घरों को स्वीट होम बनाता है | लेकिन जब कोई व्यक्ति (अतिथि) आकर रहने लगता है, तो कहीं न कहीं वह घर का स्वीटनेस को काटने दौड़ने जैसा लगता है |
प्रश्न-8 मेरी सहनशीलता की वह अंतिम सुबह होगी |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति लेखक 'शरद जोशी' जी के द्वारा लिखित पाठ 'तुम कब जाओगे, अतिथि' से ली गई हैं | इस पंक्ति से आशय यह है कि अतिथि लेखक के घर पर चार दिनों से अड्डा जमाया हुआ था | आगे उसके जाने का कोई तय वक्त या दिन भी लेखक को समझ नहीं आ रहा था | इसलिए लेखक कहते हैं कि यदि कल भी अतिथि नहीं गया तो लेखक अपनी सहनशीलता खो देगा तथा अतिथि को गेट आउट बोलने में तनिक भी देरी नहीं करेगा |
प्रश्न-9 एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर साथ नहीं रहते |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति लेखक 'शरद जोशी' जी के द्वारा लिखित पाठ 'तुम कब जाओगे, अतिथि' से ली गई हैं | इस पंक्ति से आशय यह है कि अतिथि को देवता समतुल्य माना जाता है | इसलिए लेखक अपने अतिथि को बताना चाह रहा है कि एक देवता और एक मनुष्य अधिक देर तक साथ नहीं रह सकते |
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प्रश्न-10 कौन-सा आघात अप्रत्याशित था और उसका लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जब तीसरे दिन अतिथि ने धोबी से कपड़े धुलवाने की बात कही तो लेखक के लिए ये अप्रत्याशित आघात था | धोबी को कपड़े धुलने देने का अर्थ था कि अतिथि अभी जाना नहीं चाहता | जबकि लेखक को लगा था कि वे चले जाएंगे | इस आघात का लेखक पर यह प्रभाव पड़ा कि वह अतिथि को राक्षस समझने लगा | लेखक में अतिथि-सत्कार की ऊष्मा समाप्त होने लगी | लेखक अतिथि को घर से जबरदस्ती निकालने की बात भी सोचने लगा |
प्रश्न-11 'संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना' --- इस पंक्ति से आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखिए |
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, 'संबंधों का संक्रमण के दौर से गुज़रना' --- इस पंक्ति से तात्पर्य है आपसी संबंधों में परिवर्तन आना | वास्तव में, शुरुआती लम्हों में अतिथि के साथ लेखक के जो सौहार्दपूर्ण संबंध थे, वे दो दिनों के पश्चात् कहीं न कहीं घृणा और तिरस्कार में परिवर्तित होने लगे थे | लेखक के घर में उसकी मर्ज़ी के खिलाफ जब अतिथि अत्यधिक दिन रुक गया तो उसकी आर्थिक स्थिति में बदलाव आने लगा और धीरे-धीरे उनके आपसी संबंध में खटास पैदा होने लगे |
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प्रश्न-12 निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्याय लिखिए --- चाँद ज़िक्र आघात ऊष्मा अंतरंग
उत्तर- शब्दों के दो-दो पर्याय -
चाँद -- शशि, मयंक
ज़िक्र -- उल्लेख, व्याख्या
आघात -- चोट, घायल
ऊष्मा -- गर्मी, ताप
अंतरंग -- आंतरिक, अंदरूनी
प्रश्न-13 निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए ---
(क) हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने जाएँगे | (नकारात्मक वाक्य)
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(ख) किसी लॉण्ड्री पर दे देते हैं, जल्दी धुल जाएँगे | (प्रश्नवाचक वाक्य)
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(ग) सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो रही थी | (भविष्यत् काल)
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(घ)इनके कपड़े देने हैं | (स्थानसूचक प्रश्नवाची)
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(ङ)कब तक टिकेंगे ये ? (नकारात्मक)
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उत्तर- वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित -
(क)- हम तुम्हें स्टेशन तक छोड़ने नहीं जाएँगे |
(ख)- क्या किसी लॉण्ड्री पर दे देने से जल्दी धुल जाएँगे ?
(ग)- सत्कार की ऊष्मा समाप्त हो जाएगी |
(घ)- इनके कपड़े बिजली मार्केट में देना है |
(ङ) ये अब नहीं टिकेंगे |
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तुम कब जाओगे अतिथि पाठ के शब्दार्थ
• ऊष्मा – गरमी
• संक्रमण – एक स्थिति या अवस्था से दूसरी में प्रवेश
• निर्मूल – मूल रहित
• सौहार्द – मैत्री
• गुँजायमान – गूँजता हुआ
• एस्ट्रॉनाट्स – अंतरिक्ष यात्री
• निस्संकोच – बिना संकोच के
• सतत – लगातार
• आतिथ्य – आवभगत
• अंतरंग – घनिष्ठ या गहरा
• छोर – किनारा
• आघात – चोट
• मार्मिक – हृदय को छूने वाला
• भावभीनी – प्रेम से ओतप्रोत
• अप्रत्याशित – आकस्मिक
• सामीप्य – निकटता
• कोनलों – कोनों से |
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