चमरासुर उपन्यास शमोएल अहमद बोरिंग रोड पर पिछली बार अक्षरधाम जैसा पंडाल बना था जो लगभग पैंसठ फुट लम्बा और पचपन फुट चौड़ा था | माँ अजरिया की मूर्ति बारह
चमरासुर उपन्यास शमोएल अहमद
चमार से घास भी जलती है ....!
चमरासुर शेर से जलता है ! शेरों वाला खिलौना हाथ आ जाए तो गर्दन मरोड़ देता है और धुँध में कहीं छवि सी उभरती है ....महिषासुर के सीने में पैवस्त त्रिशूल की नोक और शेर पर सवार सिंहासिनी....| पिछले साल दशहरा में उसने कोई पचीस शेरों की गर्दन मरोड़ी थी |
दशहरा के मेले में वो दिनभर घूमता रहता था | पंडाल से पंडाल के चक्कर लगाता और जहां कहीं शेरों वाला खिलौना नज़र आता खरीद लेता और उसकी गर्दन मरोड़कर फेंक देता |
बोरिंग रोड पर पिछली बार अक्षरधाम जैसा पंडाल बना था जो लगभग पैंसठ फुट लम्बा और पचपन फुट चौड़ा था | माँ अजरिया की मूर्ति बारह फुट ऊँची थी | पंडाल में और भी मूर्तियाँ थीं | देवी माँ के नारों से पंडाल गूँज रहा था | चमरासुर ने उस दिन कोई दस शेरों की...... |
बोरिंग रोड से ज्यादा भीड़ डाकबंगला चौक पर नज़र आई | सुबह दस बजे ही देवी के पट खुल गये थे | लोग दर्शन के लिए उमड़ पड़े थे | शाम तक तांता लग गया | कोतवाली मोड़ से लेकर डाकबंगला चौक तक लोगों का हुजूम था | मनोरंजन करते नाग-नागिन भी नज़र आए | माँ की मूर्ति आशीर्वाद मुद्रा में बनाई गयी थी | सजावट में सबसे ज़्यादा ई.एल.डी. बल्ब का इस्तेमाल हुआ था | काँच की चूड़ियां, रंगीन कपड़ों और शीशों से सजा पंडाल सब के आकर्षण का सबब था | रंग बिरंग के कुमकुमो की सजावट से सड़कें रौशन थीं | चौराहे से लेकर कोतवाली तक त्वरण द्वार बनाए गये थे | त्वरण द्वार पर बिजली के बल्ब से बनी भगवान् बुद्ध की मूर्ति स्थापित की गयी थी | राजपूत औरतें जेवर से सुसज्जित हाथ में तलवार लिए गरबा कर रही थीं.... सोने का गले में लटकता एक एक किलो का झूमर....और फटी फटी आँखों से घूरते दलित ....!
और चमरासुर गुस्से से खौल रहा था.....
‘’ तुम्हें पता है इन्होंने तुम्हारे बहादुर राजा का धोखे से कत्ल किया और तुम हत्यारे के जश्न में शामिल हो ....? ‘’
चमरासुर अशोक राजपथ की तरफ मुड़ गया | इससे लगी गलियों की सजावट रॉलेक्स और रंगीन बल्बों से की गयी थी | छोटे छोटे कुमकुमो से भी बोर्ड पर आकृति उभारी गयी थी | चिरैयाटांड में बाँस की कमचियों से बना पंडाल सबके आकर्षण का केंद्र था | हीरानंद गली के मोड़ पर भारत माता का बड़ा सा पोस्टर कुमकुमों से सजाया गया था जिसे देखने के लिए लोग झुण्ड के झुण्ड में आ रहे थे | इसी पंडाल के एक पोस्टर में मुख्यमंत्री को रावण के रूप में दिखाया गया था और राम बना विपक्ष का नेता तीर से निशाना साध रहा था | लेकिन इसी के करीब मुख्यमंत्री का एक और पोस्टर था जिसपर जूते का हार लटक रहा था | चमरासुर को ये पोस्टर पसंद नहीं आए | लेकिन उसने महसूस किया कि मुख्यमंत्री के लिए ये जनता जनार्दन का आक्रोश है | असल में लक्ष्मीपुर बाथे गाँव में सवर्णों की सेना ने दिसम्बर ९६ में उनसठ दलितों को गोलियों से भून दिया था | दलितों को ज़ुल्म के विरोध में आवाज़ उठाने की ये सजा थी जिसमें राजनेताओं और सवर्णों का हाथ था | शासन करने वाली सियासी जमात ने अमीरदास कमीशन बैठाया | इस कमीशन से ऊँची जात वालों को खतरा था | ‘’ इमारत ‘’ की मांग थी कि कमीशन को भंग किया जाए | इस मुख्यमंत्री ने पहले चरण के अपने शासन में कमीशन को भंग कर दिया |चमरासुर अवसाद से भर गया | ये दलितों का पंडाल था और दलित खुद अपने हत्यारे के जश्न में डूबे थे | वो राजधानी लौट आया |
राजधानी के बीचोंबीच पीले रंग की गगनचुम्बी इमारत है | यहाँ धूप और हवा का गुज़र है | यहाँ सत्ताधारी पलते हैं और फजा जादुई है | जो यहाँ की सीढियाँ चढ़ता है उसके नाख़ून बढ़ने लगते हैं | लेकिन इमारत की छाया में दूरतक अँधेरा है | ये अँधेरा सदियों से फैला हुआ है | उत्तर की तरफ जो बस्ती अन्धेरे में डूबी हुई है वहाँ चमरासुर रहता है |
चमरासुर ज़ात का चमार है....काला भुजंग....बाल खड़े खड़े...सर कटोरे की तरह गोल ...! उसने जे एन यू से समाजशास्त्र में पी एच डी की है | चमरासुर को महिषासुर से श्रद्धा है | वो खुद को असुर कहता है ...महिषासुर का वंशज ...! जब जे एन यू में पढ़ता था तो महिषासुर की खोज की थी |
‘’ महिषासुर मैसूर के राजा था | उनके नाम पर ही मैसूर शहर का नाम पड़ा| आदि ग्रन्थों में गलतबयानी से काम लिया गया है कि इनका क़त्ल चामुंडेश्वरी देवी के हाथों हुआ | इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता | महिषासुर की मूर्ति पर गौर कीजिये | इनके एक हाथ में तलवार और दूसरे में साँप है | साँप प्रकृति का प्रतीक है यानी वे प्रकृति के अनुरूप जिंदगी गुजारते थे | पशुओं की सुरक्षा और औरतों का सम्मान करते थे | महिषासुर एक इन्साफ पसंद बादशाह थे | हिन्दुस्तान के बहुत से शहरों में इनके मंदिर हैं | ‘’
लेकिन चमरासुर गाँधी से खुश नहीं है | हरिजन नाम क्यों दिया ? हम भगवान् के बेटे हैं और सवर्ण क्या शैतान के बेटे हैं ? हम हरि के जने हैं इसलिए हरि का चरण स्पर्श करने नहीं देते | गाँधी ने अम्बेडकर का विरोध किया था | चमरासुर अम्बेडकर के आन्दोलन को फिर से जिंदा करना चाहता है | वो मनुवादियों से लोहा लेने का हौसला रखता है |
और दालचपाती हँसती है |
शमोएल अहमद |
दालचपाती इमारत की जन्मी है | दालचपाती की जुल्फें लम्बी हैं जो एडियाँ छूती हैं | पंजे पीछे की तरफ मुड़े हुए हैं | आगे की तरफ चलती है तो लगता है पीछे खिसक रही है और पीछे खिसकती है तो कदम मानो आगे की तरफ बढ़ते हैं | हँसती है तो फूल गिरते हैं | जुल्फें लहराती है तो मोती बरसते हैं | इसकी जुल्फें सत्ताधारियों के कंधे पर लहराती रहती हैं | बीच प्रदेश से गुजरी तो जुल्फें चौगान के कंधों पर लहरा गईं | चौगान का दामन मोतियों से मालामाल हुआ और मैं हैरान हूँ ....!
मैं हैरान हूँ कि चौगान की भाँजी डिप्टी कलक्टर हो गयी है |
उस दिन घर का नौकर सब्जी का झोला लिए ड्राइंगरूम से नहीं गुज़रता तो भाँजी डिप्टी कलक्टर नहीं होती | उस दिन मामा ने भाँजी की आँखों में राजवंशी तेवर देखे थे |
बात उन दिनों की है जब चौगान अपने प्रदेश का मुखिया नहीं था | वो अजगर मंडली का सक्रिय सदस्य था | हर बार चुनाव में हिस्सा लेता लेकिन जीत नसीब में नहीं लिखी थी | उसकी एक बहन नासिक में ब्याही गयी थी | वो बहन से मिलने गया हुआ था | भाँजी को देखा ड्राइंगरूम में उदास बैठी है | उसको डिप्टी कलक्टरी का शौक़ था लेकिन इस बार भी स्टेट प्रतियोगिता की परीक्षा में फेल हो गयी थी | इससे पहले वो दो बार फेल हो चुकी थी | चौगान भाँजी की दिलजोई में लगा था कि नौकर सब्जी का झोला लिए सामने से गुज़रा और वो आग-बगुला हो गयी | पाँव से चप्पल निकाली और कई चप्पल नौकर को जड़ दिए |
‘’ हरामजादा ! तेरी इतनी हिम्मत कि ड्राइंगरूम से गुज़रता है ? देख नहीं रहा है कि हम यहाँ बैठे हैं ? तू बैकडोर से क्यों नहीं गया ? ‘’
माँ ने बेटी का समर्थन किया कि कितना भी समझाओ ये दलित समझते ही नहीं , सामने के दरवाज़े से अंदर आना चाहते हैं | मामा खुश हुआ कि भाँजी के तेवर राजवंशी हैं | मामा को उसके चेहरे पर ‘ माँ अजरिया ‘ सा तेज नज़र आया | देवी अजरिया ने राक्षसों का वध किया था | भाँजी भी असुरों को सबक सिखाएगी | उसने निश्चय किया कि भाँजी को प्रशासक बना कर रहेगा |
उन दिनों सत्य साई बाबा पर आफत थी | महंत देवदास उन्हें मुसलमान साबित करने पर उतारू थे | साईं बाबा के मंदिर में देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी थीं |महंत जी को आपत्ति थी कि देवी देवताओं के साथ साईं की आरती नहीं उतारी जा सकती | उनहोंने फरमान जारी किया कि साईं के भक्तों को गंगा स्नान करने नहीं दिया जाएगा | लेकिन फरमान का कोई असर नहीं हुआ | लोग-बाग़ उसी श्रद्धा से मंदिर आते जाते रहे |
बहन को शिकायत थी कि महंत देवदास ने बाबा को अपमानित किया | उनको भगवान् मानने से इनकार किया और भक्तों पर गंगास्नान तंग किया | बहन की बात सुनकर भाई मुस्कराते हुए बोला था कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि भक्तों की संख्या बढ़ गयी और ये कि पहले की तरह सभी गंगास्नान करते हैं | बहन खुश हुई थी कि महंत जी का कद छोटा हुआ | वो साईं बाबा को साक्षात भगवान् मानती थी और उसको श्रद्धा थी कि बाबा से जो माँगो मिलेगा | चौगान भी अपना भाग्य आजमाना चाहता था | उसने बाबा के दर्शन किये और मनौती मांगी कि अगर चुनाव में जीत गया और प्रदेश का मुखिया हो गया तो बाबा को सोने का मुकुट पहनाएगा |
- शेष अगले अंक में
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