हुसैन की कहानी अपनी जुबानी - मकबूल फिदा हुसैन

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हुसैन की कहानी अपनी जुबानी  पाठ का सारांश 

प्रस्तुत पाठ या आत्मकथा हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी लेखक व मशहूर चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन जी के द्वारा लिखित है | यह पाठ लेखक के जीवन से संबंधित दो भागों में विभाजित है | पहला बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल व दूसरा रानीपुर बाज़ार है | 
                   

बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल

प्रस्तुत पाठ हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी का प्रथम भाग बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल शीर्षक से उल्लेखित है | इस भाग में लेखक अपने विद्यार्थी जीवन से जुड़ी बात करते हैं | यहीं पर उनकी रचनात्मक प्रतिभा को हौसला मिला और उनकी प्रतिभा निखरकर सामने आई | जब लेखक के दादा चल बसे, तो लेखक दिनभर अपने दादा के कमरे में बंद रहने लगा | घर वालों से उसकी बात-चीत भी लगभग बंद रहने लगी | इसलिए उसके अब्बा ने उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में इस उम्मीद से दाखिला करवाया दिया कि वहाँ पर लड़कों के साथ पढ़ाई के अलावा मज़हबी तालीम, रोज़ा, नमाज़, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीज़गी के बारह तरीके सीख जाएगा | 

हुसैन की कहानी अपनी जुबानी - मकबूल फिदा हुसैन
मकबूल फिदा हुसैन

जब लेखक को बोर्डिंग स्कूल कैम्पस के हवाले कर दिया जाता है तथा वह बोर्डिंग स्कूल का हिस्सा बन जाता है, तो वहाँ पर उसकी दोस्ती छह लड़कों से होती है, जो एक-दूसरे के करीब हो जाते हैं | बाद में लेखक और उनके दोस्त अलग-अलग दिशाओं में बंट गए | लेखक के पाँच दोस्तों में से एक 'मोहम्मद इब्राहीम गौहर अली' डभोई का अत्तर व्यापारी बन गया | दूसरा 'अरशद' सियाजी रेडियो की आवाज़ बन गया, जो गाने और खाने का बहुत शौकीन है | तीसरा 'हामिद कंबर हुसैन' कुश्ती और दंड-बैठक का शौकीन, खुश-मिजाज, गप्पी और बात में बात मिलाने में उस्ताद | चौथा 'अब्बास जी अहमद' | पाँचवाँ 'अब्बास अली फ़िदा' | 


स्कूल में मकबूल ने ड्राइंग मास्टर द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाई चिड़िया या पक्षी को अपने स्लेट पर हू-ब-हू बनाकर तथा दो अक्टूबर को 'गांधी जयंती' के मौके पर गांधी जी का पोर्ट्रेट ब्लैक बोर्ड पर बनाकर अपनी जन्मजात व बेहतरीन कला का परिचय दिया और सबका दिल जीत लिया | 


रानीपुर बाज़ार

प्रस्तुत पाठ हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी का दूसरा भाग रानीपुर बाज़ार शीर्षक से उल्लेखित है | इस भाग में लेखक से अपने पारिवारिक या पुश्तैनी व्यवसाय को स्वीकार करने की अपेक्षा की जाती है | किंतु यहाँ भी हुसैन साहब के अंदर का कलाकार उनसे चित्रकारी कराता ही रहता है | 

जब रानीपुर बाजार में चाचा मुराद अली की दुकान पर लेखक को बैठाया जाता है और उससे व्यवसाय के तकनीक सीखने की अपेक्षा की जाती है, तब वह वहाँ भी बैठकर कहीं न कहीं ड्राइंग और पेंटिंग के बारे में सोचता व बनाता रहता है | हुसैन साहब दुकान पर बैठे-बैठे आने-जाने वालों की तस्वीर व चित्र चित्र बनाता रहता | कभी गेहूं की बोरी उठाए मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच बनाता, कभी घुंघट ताने मेहतरानी का, कभी बुर्का पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच आदि बनाता रहता | 

एक बार की बात है, कोल्हापुर के शांताराम की फ़िल्म ‘सिंघगढ़’ का पोस्टर, रंगीन पतंग के कागज पर छपा, मराठा योद्धा, हाथ में खिंची तलवार और ढाल देखकर हुसैन साहब को भी ऑयल पेंटिंग बनाने का ख़्याल आया | इस पेंटिंग को बनाने के लिए उनके अंदर इतना जुनून समा गया कि उन्होंने अपनी किताबें बेंचकर ऑयल पेंटिंग कलर खरीदा तथा चाचा की दुकान पर बैठकर अपनी पहली पेंटिंग बनाई | चाचा बहुत नाराज हुए | हुसैन के अब्बा से भी शिकायत किए | लेकिन जब अब्बा ने हुसैन की पेंटिंग देखी तो हुसैन का चित्रकारी के प्रति समर्पण को देखकर उसे गले लगा लिया | 

एक दफा की घटना है, जब हुसैन साहब इंदौर सर्राफ़ा बाज़ार के करीब तांबे-पीतल की दुकानों की गली में 'लैंडस्केप' बना रहे थे, वहीं पर उनसे 'बेंद्रे साहब' भी ऑनस्पॉट पेंटिंग करते दिखे | हुसैन साहब को बेंद्रे साहब की टेकनिक बहुत पसंद आई | इस इत्तेफाकी मुलाक़ात के बाद हुसैन साहब अकसर बेंद्रे के साथ 'लैंडस्केप' पेंट करने जाया करते | 

एक रोज मकबूल यानी हुसैन साहब ने बेंद्रे साहब को अपने पिता से मिलवाया | बेंद्रे साहब ने हुसैन साहब के अब्बा से हुसैन के काम के बारे में बात की | परिणामस्वरूप, मकबूल के पिता ने मुंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मंगवाए | 

हुसैन के अब्बा की रोशनखयाली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नज़रअंदाज़ कर गई और बेंद्रे के मशवरे पर उसने अपने बेटे की तमाम रिवायती बंदिशों को तोड़ फेंका और कहा --- "बेटा जाओ, और ज़िंदगी को रंगों से भर दो...||" 

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मकबूल फ़िदा हुसैन का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक मकबूल फ़िदा हुसैन जी हैं | हुसैन साहब जाने-माने चित्रकार तथा लेखक थे | वे अपने शुरुआती जीवन को इस कहानी के माध्यम से पेश किए हैं | वे बचपन से ही क्रियात्मक बुद्धि के थे | हुसैन साहब का कला के क्षेत्र में बेहद प्रमुख स्थान है | उन्हें चित्रकला का सशक्त स्तंभ भी माना जाता है | हुसैन साहब फिल्म जगत के लिए भी अनेक प्रकार के विज्ञापन, होर्डिंग आदि बनाए, जो उनकी ज़्यादा प्रसिद्धि का कारण बना | उन्होंने ऑयल पेंटिंग का भी बड़ी ख़ूबसूरती और सलीके से प्रयोग किया, जो कला फिल्म जगत में विवादों का हिस्सा भी रहा | मगर कोई भी विवाद उनकी हिम्मत को तोड़ नहीं पाया | हुसैन साहब को 1966 में पद्म श्री और 1973 में पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है...|| 


हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है | फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, कैसे ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है | फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं, क्योंकि क्योंकि उन सब में कहीं न कहीं एक कलाकार की सोच विद्यमान थी | पाँचों की मित्रता स्वार्थरहित थी | सभी को एक-दूसरे पर भरोसा था | 

प्रश्न-2 आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक अपने दादा की मौत से अत्यधिक दुखी थे | दादा की मौत की ख़बर ने लेखक को गुमसुम कर दिया था | इसलिए लेखक किसी से बात-चीत तक नहीं करता था | लेखक कई दिनों तक दादा के कमरे में ही बंद रहा | दादा की पुरानी अचकन पहनकर वह उन्हीं के बिस्तर पर लेटा रहता था | वह अपने दादा के पास ही सोने का एहसास करता | अत: उक्त तमाम बातों से ज्ञात होता है कि उसे दादा से विशेष लगाव था | 

प्रश्न-3 'लेखक जन्मजात कलाकार है |' --- इस आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है ? 

उत्तर- 
'लेखक जन्मजात कलाकार है |' --- इस आत्मकथा में सबसे पहले तब उद्घाटित होता है, जब बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में उसके ड्राइंग शिक्षक मोहम्मद अतहर ने ब्लैक बोर्ड पर सफेद चॉक से एक बड़ी-सी चिड़िया बनाई और लड़कों से कहा कि अपनी-अपनी स्लेट पर इस चिड़िया की नकल करो | एम. एफ.  हुसैन साहब ने उस चिड़िया को बिल्कुल उसी तरह से बना दिया, जैसे उसके शिक्षक मोहम्मद अतहर ने ब्लैक बोर्ड पर बनाई थी | 

प्रश्न-4 दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मकबूल के भीतर का कलाकार उसके पेंटिंग व ड्राइंग करने के कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है | पेंटिंग से मकबूल को अत्यधिक लगाव व प्यार था | वह दुकान पर बैठे-बैठे आने-जाने वालों की तस्वीर व चित्र बनाता रहता | कभी गेहूं की बोरी उठाए मजदूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच बनाता, कभी घुंघट ताने मेहतरानी का, कभी बुर्का पहने औरत और बकरी के बच्चे का स्केच आदि बनाता रहता | 

प्रश्न-5 प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फ़र्क आया है ? पाठ के आधार पर बताएँ | 

उत्तर- वास्तविक तौर पर देखा जाए तो प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में काफी अंतर आया है | पहले के दौर में किसी वस्तु का प्रचार-प्रसार के लिए लोग घर-घर जाकर अपनी वस्तु का विज्ञापन किया करते थे | ढोल-नगाड़े आदि बजाकर उसके विषय में घोषणा किया करते थे | कई बार नुक्कड़-नाटक आदि के माध्यम से भी वस्तु का विज्ञापन जोर-शोर से किया जाता था | परन्तु, अब के दौर में किसी वस्तु का प्रसार-प्रचार का जिम्मा अख़बार, टेलीविज़न, इंटरनेट, मैगजीन, रेडियो, मोबाइल आदि ने ले लिया है | 

प्रश्न-6 कला के प्रति लोगों का नज़रिया पहले कैसा था ?  उसमें अब क्या बदलाव आया है ? 

उत्तर- सच तो ये है कि पहले कला के प्रति लोगों का नज़रिया यह था कि कला को लोग राजा-महाराजा और अमीरों या धनवानों का शौक मानते थे | वास्तव में कला उस समय आम आदमी का पेट नहीं भर सकती थी | लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता चला गया | कला के प्रति लोगों का नज़रिया बदलता चला गया | कलाकारों का विशेष रूप से सम्मान किया जाने लगा | फिर चाहे वह जिस किसी भी तबके से ताल्लुक़ रखने वाले कलाकार हो | कला अमीरी-गरीबी के भाव से ऊपर उठकर लोगों के दिलों में जगह बनाने लगी | वर्तमान में कला जीविका का उत्तम साधन बन गई है | 

प्रश्न-7 इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बातें उभरकर आई हैं ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित बातें उभरकर आई हैं --- 

• जब मकबूल के पिता को एहसास हुआ कि उसका बेटा दादा की मौत से उबर नहीं पाया है, तो उन्होंने उसे डांटने के बजाय उसके साथ नर्मी से पेश आए | उन्होंने यह सोचकर लेखक का दाख़िला बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल में करवा दिया गया कि जगह और परिवेश बदल जाने से उसे अपने दादा के दुख को भुलाने में आसानी होगी | अत: इससे मालूम पड़ता है कि लेखक के पिता एक समझदार और सुलझे हुए इंसान थे | 

• लेखक के पिता ने बेटे की प्रतिभा को हमेशा हौसला देते रहे | वे बेटे की कला देखकर कायल हो गए और उन्होंने उसे उसी क्षण गले से लगा लिया |उन्होंने बेन्द्रे साहब के कहने पर बेटे के लिए ऑयल पेंटिंग का पूरा सामान मँगवा दिया | अत: इससे मालूम पड़ता है कि वे कला के प्रति जागरूक किस्म के इंसान थे तथा हुनर व प्रतिभा को पहचानते थे | 

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हुसैन की कहानी अपनी जुबानी पाठ से संबंधित शब्दार्थ 



• रिवायती - पारंपरिक 
• सिजदा - खुदा के आगे सिर झुकाना, माथा टेकना 
• स्केच - चित्र 
• अत्तर (अतर) - सुगंध, इत्र 
• पाकीज़गी - पवित्रता, शुद्धता
• मज़हबी - धर्म विशेष से संबंध रखने वाली/वाला 
• रोशन खयाली - आज़ाद खयाली, खुले दिमाग का 
• मेहतरानी - सफाई का काम करने वाली स्त्री 
• पोर्ट्रेट - हाथ की बनी तसवीर 
• दिलकश - मन को लुभाने वाला 
• अरके तिहाल - यूनानी दवा का एक नाम 
• हीले - टालमटोल, बहाने 
• टिंटेड पेपर - चित्रकला में प्रयुक्त होने वाला कागज़  | 



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