naye ilake mein khushboo rachte hai haath प्रश्न उत्तर अर्थ भावार्थ व्याख्या class 9 Hindi Sparsh नए इलाके में खुशबू रचते हैं हाथ question answerNCERT
नए इलाके में खुशबू रचते हैं हाथ CBSE Class 9 Hindi Sparsh
नए इलाके में कविता का अर्थ नए इलाके में, खुशबू रचते हैं हाथ NCERT Class 9 Hindi Chapter 13 Explanation Question Answers नए इलाके में कविता के प्रश्न उत्तर नए इलाके में कविता के कवि कौन है नए इलाके में कविता का भावार्थ Naye ilake Mein naye ilake mein class 9 question answer नए इलाके में नए इलाके में class 9 class 9 Hindi Sparsh hindi poem naye ilake me नए इलाके में explanation cbse hindi poem खुशबू रचते हैं हाथ कविता के कवि का नाम है khushboo rachte hain haath class 9 naye ilake mein khushboo rachte hai haath
नए इलाके में कविता का अर्थ भावार्थ व्याख्या
इन नए बसते इलाकों में
जहाँ रोज बन रहे हैं नए-नए मकान
मैं अकसर रास्ता भूल जाता हूँ
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नए इलाके में' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि शहर में नए बन रहे इलाकों में रोज ही नए-नए घर और बिल्डिंग बन रहे हैं। इन नए घर को देखकर मैं हमेशा आते-जाते रास्ता भूल जाता हूँ।
(2) धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढ़हा हुआ घर
और जमीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बाएँ
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंगवाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंजिला
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नए इलाके में' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि नए बन रहे इलाकों में नए-नए मकान देखकर मैं रास्ता भूल जाता हूँ, आस-पास जो पुराने निशान थे वो भी धोखा दे जाते हैं। पहले के जो पीपल के पेड़ थे उसको देखने की कोशिश करता हूँ | इधर-उधर ताकता फिरता हूँ। फिर वो गिर कर टूटे हुए घर को खोजता हूँ। उस खाली जमीन के रास्ते को भी ढूँढता हूँ, जहाँ से मुझे बाँए की तरफ़ मुड़ना होता है। फिर दो मकान के बाद बिना रंग वाला लोहे का दरवाजा लगा हुआ एक मंजिल का घर था। अर्थात् कवि शहर में बहुत सारे नए बन रहे मकानों को देखकर आपने घर के रास्ते को भूल जाते हैं और पुराने निशानियों को याद करके अपना घर का रास्ता ढूंढ़ते हैं |
(3) और मैं हर बार एक घर पीछे
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
यहाँ रोज कुछ बन रहा है
रोज कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नए इलाके में' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जब भी मैं अपने घर पुराने रास्तों को याद करके घर जाने की कोशिश करता हूँ तो मैं हर बार एक घर पीछे चला जाता हूँ या अपने घर से दो घर आगे डगमगाते हुए चला जाता हूँ। इन इलाकों में हर दिन कुछ न कुछ बनता और टूटता रहता है। ऐसे में अपने याददाश्त पर भरोशा करना मुश्किल है।
अरुण कमल |
(4) एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैसाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही है उपाय कि हर दरवाजा खटखटाओ
और पूछो – क्या यही है वो घर?
समय बहुत कम है तुम्हारे पास
आ चला पानी ढ़हा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देखकर।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नए इलाके में' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि इस नए इलाके में एक ही दिन में सब कुछ इतना परिवर्तित हो जाता है कि गुजरा कल पुराना जैसा लगने लगता है। ऐसा लगता है मानो मैं बसंत ऋतू में गया था और पतझड़ के महीनों में वापस आया हूँ। बैसाख में गया था और भादों के महीने में लौट कर आया हूँ। कमल जी कहते हैं कि अब एक ही रास्ता है अपने घर को पहचानने का की हर दरवाजा खटखटा कर पूछो की क्या यही है वो घर जहाँ मैं रहता हूँ। अब तो समय भी बहुत कम है मेरे पास आकाश में बादल छाए हैं, बारिश होने वाली है, अब तो बस यही आशा है कि कोई जान-पहचान का आदमी मुझे पहचान ले और मुझे पुकारकर घर के ऊपर से देखकर अंदर बुला ले।
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खुशबू रचते हैं हाथ कविता का अर्थ व्याख्या
कई नालों के पार
कूड़े करकट
के ढ़ेरों के बाद
बदबू से फटते जाते इस
टोले के अंदर
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'खुशबू रचते हैं हाथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि जो अगरबत्तियाँ लोग इस्तेमाल करते हैं अपने घरों में खुशबु बिखराने के लिए पूजा पाठ करने के लिए वो अगरबत्तियाँ वहाँ बनता है, जहाँ नए गालियों के बीच में नाली के पास, गन्दे स्थानों में कूड़े-कचरे के ढेर में कारखाना बना होता है। वहाँ काम वाले लोग इतने गन्दे स्थान पर रहकर नालियों के बदबू को सहकर भी अपना काम करते हैं और दूसरों के घरों के लिए अपने हाथों से खुशबुदार अगरबत्तियाँ बनाकर उन तक पहुँचाते हैं |
(2) उभरी नसोंवाले हाथ
घिसे नाखूनोंवाले हाथ
पीपल के पत्ते से नए नए हाथ
जूही की डाल से खुशबूदार हाथ
गंदे कटे पिटे हाथ
जख्म से फटे हुए हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'खुशबू रचते हैं हाथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि अगरबत्ती के कारखानों में काम करने वाले लोगों का हाथ कई तरह का होता है उभरी हुई नसों वाला हाथ, घिसे नाखूनों वाले हाथ, और छोटे बच्चों के पीपल की कोमल पत्तियों की जैसे हाथ, जूही की डाल की तरह खुशबुदार हाथ, गंदे कटे-फटे हाथ, जख़्म से भरे हुए हाथ, इसी तरह के न जाने कितने लोगों के हाथ दूसरों के लिए खुशबु से महकाने वाली अगरबत्ती अपने हाथों से बनाते हैं। और खुद कितने तकलीफ़ से गुजरते रहते हैं |
(3) यहीं इस गली में बनती हैं
मुल्क की मशहूर अगरबत्तियाँ
इन्हीं गंदे मुहल्लों के गंदे लोग
बनाते हैं केवड़ा गुलाब खस और रातरानी अगरबत्तियाँ
दुनिया की सारी गंदगी के बीच
दुनिया की सारी खुशबू
रचते रहते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ
खुशबू रचते हैं हाथ।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'खुशबू रचते हैं हाथ' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'अरुण कमल' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि अगरबत्तियों का कारखाना छोटी सी बस्ती में कूड़े-कचरे के ढेर में होता है और पूरी दुनिया की मशहुर अगरबत्तियाँ यहीं इसी गली में बनती है। और इसी मुहल्ले में रहने वाले वही गन्दे लोग बनाते हैं। केवड़ा, गुलाब, खस, रातरानी, की खुशबू महकाने वाले अगरबत्तियाँ इसी कचरे के ढेर में बनते हैं | दुनिया की सारी खुशबु यही गन्दे हाथों से बनता है यही गन्दा हाथ पूरे दुनिया को खुशबु से महकाता है।
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अरुण कमल का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के रचयिता कवि अरुण कमल जी हैं | इनका जन्म बिहार के रोहतास जिले के नासरीगंज में 15 फरवरी सन् 1954 को हुआ था। कमल जी पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत थे। इनको उनकी कविता "नए इलाके में" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया | कमल जी को और भी कई सम्मानों एवं पुरस्कारों से नवाज़ा गया | इन्होंने कविताओं के साथ-साथ कई पुस्तक और रचनाओं का भी अनुवाद किया और ये निबन्ध, कहानियां भी लिखते थे। कमल जी की कविताओं में बोलचाल की भाषा, खड़ी बोली के नए बिंब, एवं लय-छंदों का समावेश मिलता है। इनकी लेखनी में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का वर्णन मिलता है। कमल जी की कवितायें जितनी आपबीती है उतनी ही जगबीती भी। इनकी कविताओं में जीवन-प्रसंगों को बड़ी ही कुशलता और सहजता से रूपान्तरित किया गया है। कलम जी की कविता में वर्तमान शोषण कारी व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश, नफरत और उसे पलटकर एक नई व्यवस्था निर्मित करने की ललक हमेशा दिखाई देती है। इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- सबूत, अपनी केवल धार, पुतली में संसार, (चार कविता संग्रह) तथा कविता और समय (आलोचनात्मक कृति)। इनके अलावा इन्होंने मायकोव्यस्की की आत्मकथा और जंगल बुक का हिंदी में अनुवाद और हिंदी के युवा कवियों के कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद किया जो 'वॉयसेज' नाम से प्रकाशित हुआ...||नए इलाके में summary
प्रस्तुत पाठ नए इलाके में और खुशबु रचते हाथ अरुण कमल जी के द्वारा रचित है | प्रथम कविता नए इलाके में कवि ने शहरों के बदलतें माहौल के बारे में बताया है कि यहाँ हर रोज नए-नए इमारत बनते-टूटते हैं | हर बिता हुआ कल पुराना लगने लगता है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है |अपने स्मृतियों पर भी भरोसा नहीं है यहाँ इतना परिवर्तनशील है कि कवि खुद ही अपने घर का रास्ता भूल जाता और सारे पुराने निशान भी मिट जाते हैं | कवि नए बदलते समय को बहुत सुंदर और सहज तरीके से वर्णन कर कविता के माध्यम से बताया है।खुशबु रचते हाथ पाठ का सारांश
दूसरी कविता 'खुशबु रचते हाथ' के माध्यम से कवि ने उन कमजोर, बेबस, लाचार मजदूरों के बारे में बताने का प्रयास किया है, जो गन्दी बदबूदार, नलियों के किनारे, कूड़े के ढेर के बीच छोटी सी बस्ती में रहकर दूसरों के लिए अगरबत्तियाँ बनाते हैं और उनका घर महकाकर खुद कितने गन्दे और बदबूदार जगह में जीवन जीते हैं, इस व्यवस्था के बारे में कवि ने पाठकों को बताया है उन मजदूर के हाथ कटे-फटे, जख़्मी, कोमल, खून से भरे हुए होते हैं लेकिन दूसरों के घरों में वो बेबस मज़दूर खुशबु बिखराने का काम करते हैं | आख़िर कब तक ये गन्दी जगहों में जीवन बसर करते रहेंगे गरीब वर्ग के लोगों के लिए कोई न्यायिक व्यवस्था होनी चाहिए। ये गरीब हाथ ना जाने कितने लोगों के घरों को खुशबु से महकाते हैं...||
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नए इलाके में कविता के प्रश्न उत्तर
(1)- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-(क) नए बसते इलाके में कवि रास्ता क्यों भूल जाता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, नए बसते इलाके में कवि रास्ता इसलिए भूल जाता है क्योंकि वहाँ हर रोज नए-नए घर बनते और टूटते रहते हैं। इसलिए कवि को अपने घर का रास्ता कही ढूढ़ने पर भी नज़र नहीं आता है |
प्रश्न-(ख) कविता में कौन-कौन से पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में पीपल का पेड़, ढहा हुआ मकान, लोहे का बिना रंगवाला फाटक का एक मंजिला घर, जमीन का टुकड़ा आदि पुराने निशानों का उल्लेख किया गया है।
प्रश्न-(ग) कवि एक घर पीछे या दो घर आगे क्यों चल देता है ?
उत्तर- कवि हर दिन बन रहे नए-नए मकान को देखकर अपने घर के रास्ते को भूल जाता है यहाँ मानो ऐसा लगता है कि बसंत ऋतु में गया था और महीनों बाद पतझड़ में वापसी हुआ है | कवि बदलते हुए मुहल्ले में घर का रास्ता भूलकर कभी एक घर पीछे तो कभी आगे चला जाता ।
प्रश्न-(घ) ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादो को लौटा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- ‘वसंत का गया पतझड़’ और ‘बैसाख का गया भादो को लौटा’ से अभिप्राय यह है की बदलते हुए इलाकों में वापस आओ तो लगता है कि महीनों के बाद घर लौट कर आया हूँ |
प्रश्न-(ङ) कवि ने इस कविता में ‘समय की कमी’ की ओर क्यों इशारा किया है ?
उत्तर- कविता के इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि बारिश होने वाली है आसमान में बादल छाए हुए हैं और मैं घर का रास्ता भूल गया हूँ | ज्यादा समय नहीं है काश मुझे कोई परिचय का व्यक्ति पुकार ले और अपने घर में जगह दे-दे क्योंकि इस बदलते इलाके में कवि अकसर अपने घर का रास्ता भूल जाया करते हैं। इसलिए कवि को डर लगता है कि उनके पास ज्यादा समय नहीं है | इसी कारण से 'समय की कमी' की ओर इशारा किया गया है।
प्रश्न-(च) इस कविता में कवि ने शहरों की किस विडंबना की ओर संकेत किया है ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता में शहरों की उस विडंबना की ओर संकेत किया गया है, जिसमें लोग खो गए हैं | हर रोज शहर बदलता है, रोज नए इमारत बनते और टूटते हैं। कुछ भी इस शहर में स्थायी नहीं है, सब शहर की चकाचौंध में कँही घूम गए हैं।
योग्यता-विस्तार
प्रश्न-1पाठ में हिंदी महीनों के कुछ नाम आए हैं। आप सभी हिंदी महीनों के नाम क्रम से लिखिए-
उत्तर- हिंदी महीनों के नाम क्रम -
चैत्र , बैसाख ,ज्येष्ठ , आषाढ़ ,श्रावण ,भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक ,मार्गशीर्ष, पौष, माघ,फाल्गुन |
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खुशबू रचते हैं हाथ कविता के प्रश्न उत्तर
(2)-खुशबू रचते हैं हाथ
(1)- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ----
प्रश्न-(क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ कहाँ रहते हैं ?
उत्तर- अगरबत्ती बनाने वाले लोगों के हाथ को कवि ने खुशबु रचने वाले हाथ कहा है, खुशबु रचने वाले हाथ तंग गलियों में, बदबूदार नाले के किनारे और कूड़े-कचरे के ढेर में रहते हैं। अगरबत्ती बनाने का कारखाना शहरों के छोटे से बस्ती में होता है और वहीं के लोग अगरबत्तियाँ बनाते हैं। उनकी परिस्थिति बहुत ही दयनीय होती है।
प्रश्न-(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है ?
उत्तर- कविता में कई तरह के हाथों की चर्चा हुई है। अगरबत्ती के कारखानों में काम करने वाले लोगों के हाथ कई तरह का होता है | उभरी हुई नसों वाला हाथ, घिसे नाखूनों वाले हाथ, और छोटे बच्चों के पीपल की कोमल पत्तियों की जैसे हाथ, जूही की डाल की तरह खुशबुदार हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, जख़्म से भरे हुए हाथ, इसी तरह के न जाने कितने लोगों के हाथ दूसरों के लिए खुशबु से महकाने वाली अगरबत्ती अपने हाथों से बनाते हैं। औऱ खुद कितने तकलीफ़ से गुजरते रहते हैं |
प्रश्न-(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ?
उत्तर- कवि के अनुसार अगरबत्ती पूरी दुनियाँ में खुशबु बिखराता है, लोगो के घरों में ,मंदिरों में पूजा पाठ के लिए। ये अगरबत्तियाँ गरीब और छोटी बस्ती में वाले लोगों के हाथों से बना होता है इसलिए कवि ने खुशबु रचते हाथ कहा है।
प्रश्न-(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है ?
उत्तर- जहाँ अगरबत्तियाँ बनती है वहाँ का माहौल अत्यंत गंदा होता है। गंदे नाले से उठती बदबू, चारों ओर कूड़े के ढेर से उठती बदबू फैली होती है। इस बदबू से ऐसा लगता है जैसे नाक फट जाएगी। यहाँ का माहौल अगरबत्ती की खुशबु के ठीक विपरीत होता है |
प्रश्न-(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर- इस कविता का मुख्य उद्देश्य गरीब तबके के लोगों की दयनीय स्थिति के बारे में बताना है, जो दुनियाभर भर में खुशबु बिखराते हैं वो स्वयं कितने मुश्किलों का सामना करके अगरबत्तियाँ बनाते हैं। खुद छोटे से बस्ती में रहकर दूसरों के घर खुशबु महकाने वाले मजदूर कितनी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं।
प्रश्न-(क) ‘खुशबू रचनेवाले हाथ’ कैसी परिस्थितियों में तथा कहाँ कहाँ रहते हैं ?
उत्तर- अगरबत्ती बनाने वाले लोगों के हाथ को कवि ने खुशबु रचने वाले हाथ कहा है, खुशबु रचने वाले हाथ तंग गलियों में, बदबूदार नाले के किनारे और कूड़े-कचरे के ढेर में रहते हैं। अगरबत्ती बनाने का कारखाना शहरों के छोटे से बस्ती में होता है और वहीं के लोग अगरबत्तियाँ बनाते हैं। उनकी परिस्थिति बहुत ही दयनीय होती है।
प्रश्न-(ख) कविता में कितने तरह के हाथों की चर्चा हुई है ?
उत्तर- कविता में कई तरह के हाथों की चर्चा हुई है। अगरबत्ती के कारखानों में काम करने वाले लोगों के हाथ कई तरह का होता है | उभरी हुई नसों वाला हाथ, घिसे नाखूनों वाले हाथ, और छोटे बच्चों के पीपल की कोमल पत्तियों की जैसे हाथ, जूही की डाल की तरह खुशबुदार हाथ, गंदे कटे-पिटे हाथ, जख़्म से भरे हुए हाथ, इसी तरह के न जाने कितने लोगों के हाथ दूसरों के लिए खुशबु से महकाने वाली अगरबत्ती अपने हाथों से बनाते हैं। औऱ खुद कितने तकलीफ़ से गुजरते रहते हैं |
प्रश्न-(ग) कवि ने यह क्यों कहा है कि ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ ?
उत्तर- कवि के अनुसार अगरबत्ती पूरी दुनियाँ में खुशबु बिखराता है, लोगो के घरों में ,मंदिरों में पूजा पाठ के लिए। ये अगरबत्तियाँ गरीब और छोटी बस्ती में वाले लोगों के हाथों से बना होता है इसलिए कवि ने खुशबु रचते हाथ कहा है।
प्रश्न-(घ) जहाँ अगरबत्तियाँ बनती हैं, वहाँ का माहौल कैसा होता है ?
उत्तर- जहाँ अगरबत्तियाँ बनती है वहाँ का माहौल अत्यंत गंदा होता है। गंदे नाले से उठती बदबू, चारों ओर कूड़े के ढेर से उठती बदबू फैली होती है। इस बदबू से ऐसा लगता है जैसे नाक फट जाएगी। यहाँ का माहौल अगरबत्ती की खुशबु के ठीक विपरीत होता है |
प्रश्न-(ङ) इस कविता को लिखने का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर- इस कविता का मुख्य उद्देश्य गरीब तबके के लोगों की दयनीय स्थिति के बारे में बताना है, जो दुनियाभर भर में खुशबु बिखराते हैं वो स्वयं कितने मुश्किलों का सामना करके अगरबत्तियाँ बनाते हैं। खुद छोटे से बस्ती में रहकर दूसरों के घर खुशबु महकाने वाले मजदूर कितनी कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं।
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नए इलाके में कविता पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• रातरानी - एक सुगंधित फूल
• मशहूर - प्रसिद्ध
• ढहा - गिरा हुआ, ध्वस्त
• फाटक - दरवाजा
• ठकमकाता - धीरे-धीरे, डगमगाते हुए
• स्मृति - याद
• वसंत - छह ऋतुओं में से एक
• पतझड़ - एक ऋतु जब पेड़ों के पत्ते झड़ते हैं
• वैसाख (वैशाख) - चैत (चैत्र) के बाद आने वाला महीना
• भादों - सावन के बाद आने वाला महीना
• अकास (आकाश) - गगन
• कूड़ा-करकट - रद्दी, कचरा
• टोले - छोटी बस्त
• शख्म - घाव, चोट
• मुल्क - देश
• केवड़ा - एक छोटा वृक्ष जिसके फूल अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध हैं
• खस - पोस्ता
• इलाका - क्षेत्र
• अकसर - प्रायः, हमेशा
• ताकता - देखता |
- मनव्वर अशरफ़ी
जशपुर (छत्तीसगढ़)
manowermd@gmail.com
Nice bro
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