भारत ऐसा देश था ,जिसने सन 1950 के दशक में एक सरकार –समर्थित परिवार नियोजन कार्यक्रम को विकसित किया था। इन्डोनेशिया ,थाईलैंड तथा दक्षिण कोरिया
मुख्य मुद्दे से दूर हो गया परिवार कल्याण
भारत ऐसा देश था ,जिसने सन 1950 के दशक में एक सरकार –समर्थित परिवार नियोजन कार्यक्रम को विकसित किया था। इन्डोनेशिया ,थाईलैंड तथा दक्षिण कोरिया जैसे विकासशील देशों ,जिन्होंने इनका अनुसरण किया ,के द्वारा सफलतापूर्वक अपनी जनसंख्या को स्थिर कर लिया है किन्तु 70 वर्षों के बाद भारत अभी भी सबसे पीछे चल रहा है । आज परिवार कल्याण हमारी सरकारों के मुद्दे से गायब है । चाहे वे केंद्र सरकार हों या राज्य सरकारें । कहीं भी इसकी चर्चा नहीं होती है । परिवार कल्याण की जगह स्वच्छता अभियान की चर्चा खूब होती है । साल –दर –साल बीत जाता है परंतु परिवार कल्याण कार्यक्रम एवं उसके उपायों की बात किसी के द्वारा नहीं की जाती है । देश के प्रधानमंत्री , राज्य के मुख्यमंत्री या अन्य मंत्रीगण के द्वारा भी इस मुद्दे पर बात नहीं की जाती हैं । क्या जनसंख्या दिवस पर कुछ कार्यकर्मों को आयोजित कर लेने या इस दिन को सप्ताह या पखवाड़ा मनाना ही काफी है।
इन्दिरा गांधी शासन काल के दौरान संजय गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण अभियान तो शुरू किया, लेकिन लोगों की जबरन नसबंदी ऑर महिलाओं की जबरन नलबंदी या प्रलोभन देकर किए गए आपरेशनों से इतना जन आक्रोश फैला कि जनसंख्या नियंत्रण का मुद्दा आपातकाल के अत्याचारों के शोर में ही समा गई । भारत में मुस्लिम वोटरों के नाराज होने के डर से तत्कालीन केंद्र में कांग्रेस की सरकार हिम्मत न कर सकी। जब भी देश में जनसंख्या नियंत्रण की आवाज उठी तो उसे धर्म के साथ जोड़ा गया है । जनसंख्या नियंत्रण एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। विगत कुछ दशकों की राजनीति अनिश्चिता तथा सांप्रदायिक उन्माद के मध्य जनसंख्या विस्फोट की समस्या को पृष्ठभूमि में ढकेल दिया गया है । न राजनीतिक दल अथवा सरकारें उस समस्या पर ध्यान केन्द्रित किए जाने को आवश्यक समझते हुए प्रतीत होते हैं । ऐसा नहीं है कि इस तथ्य पर विद्वानों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं विचारों की कोई कमी है , कि भारत आर्थिक एवं मानवीय विकास की दौड़ में मुख्य रूप से इसलिए पिछड़ रहा है , क्योंकि यह अपनी जनसंख्या की वृद्धि को सीमित करने में बहुत अधिक प्रगति का प्रदर्शन नहीं कर सका है।
हालांकि हम सारी उम्मीद सरकार से करते हैं ऑर स्वयं कुछ नहीं करें इससे काम नहीं होने वाला है । ऐसा भी नहीं है कि परिवार कल्याण का महत्व लोगों ने नहीं समझा हो या परिवार कल्याण पूरी तरह से फेल हो गया हो । वह समय अब चला गया कि एक ही परिवार में आमतौर पर सात –आठ बच्चे हुआ करती थी । न बच्चे पढ़ पाते थे न बच्चे को उचित पोषण आहार उपलब्ध हो पाता था ऑर परिवार का मुखिया अकेला संकट से जूझता रहता था । धीरे –धीरे लोगों ने इस परिवार कल्याण को महत्व को समझा ,लोगों में जागरूकता आई तो परिवार की खुशियाँ अब 2 से 3 बच्चे तक सिमटने लगी हैं । जो लोग छोटे परिवार का महत्व को समझा है उन्होने परिवार कल्याण कार्यक्रम को अपनाया है । ऐसे लोगों को ऑर प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है । समाज में रोल मॉडल बनकर आगे आकर जागरूकता में योगदान देना चाहिए। हर व्यक्ति यह ठान ले वह कम से कम पाँच व्यक्तियों को जागरूक करेगा ,ऑर सीमित परिवार बनाने के लिए उसे प्रोत्साहित करेगा, तो जनसंख्या नियंत्रण करने में अपनी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है ।
आज बढ़ती हुई जनसंख्या इस बात की संकेत देती है कि आज भी परिवार कल्याण कार्यक्रम सुदूर क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पायी है। विभिन्न समुदाय तक इसके महत्व को समझाने में या उन्हे जागरूक करने में सरकार सफल नहीं हो पायी है । केंद्र एवं राज्य सरकारों को इसे प्राथमिकता देकर मुख्य मुद्दा में शामिल करना चाहिए, ऑर दूर –दराज के क्षेत्रों तक इसके महत्व को जन –जन तक पहुंचाना चाहिए । आज भी दूरस्थ क्षेत्रों में ,मजदूरों में ,आदिवासियों में ,अल्पसंख्यक समुदायों में परिवार कल्याण का प्रचार ,अंतराल ,गर्भवती की देखभाल ,टीकाकरन के प्रति जागरूकता के ऑर अधिक प्रयासों की अवश्यकता है । सरकार के साथ –साथ आम नागरिक भी एवं गैर सामाजिक सरकारी संगठनों को भी आगे आकर अपनी भागीदारी देनी होगी । सभी के समुचित प्रयासों से जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में कुछ बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है।
जे आर पाठक -औथर –‘चंचला ‘(उपन्यास )
- ज्योति रंजन पाठक
शिक्षा – बी .कॉम (प्रतिष्ठा )
पिता –श्री बृंदावन बिहारी पाठक
संपर्क नं -8434768823वर्तमान पता –रांची (झारखंड )
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