युवा वर्ग में बढ़ता असंतोष युवा असंतोष के दुष्परिणाम युवा असंतोष क्या है इसके कारणों एवं दुष्परिणामों की व्याख्या कीजिए छात्र असंतोष के कारण भारतीय
युवाओं में बढ़ते असंतोष की भावना Growing Discontent Among the Youth
जात ,धर्म ऑर भाषाई रूढधारणाओं के साथ –साथ हमारे देश में कई ऑर रूढ़िवादी छवियां भी मौजूद हैं । ऐसी हीं एक छवि हमारे युवाओं की भी है कि वे उग्रवादी ,विद्रोही ,क्रांतिकारी ,विवेकहीन ऑर अपरिपक्व होते हैं । यह सही है कि युवा बाहरी प्रभावों के प्रति असंवेनशील होते हैं ,बिना सोचे समझे प्रतिक्रीया कर बैठते हैं ,किसी भी बात का सत्यता बिना जाने उसपर विश्वास कर लेते हैं यूं कहें तो अनुभवहीन होने के कारण किसी तथ्य की परख कम होती है इसी बात का फायदा समाज में गलत लोगो द्वारा युवाओं को बहकाकर उठाते हैं ऑर युवा उस में फंस कर अपनी ऑर समाज ,देश की नुकसान कर बैठते हैं । , परंतु इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि युवा केवल विध्वंस ,हत्या ,आक्रमण में ही विश्वास करते हैं। समाज, सामाजिक संरचना ऑर संस्थाओं से, सामाजिक व्यवस्था में विरोधाभास से ,राजनीति ऑर राजनीतिज्ञों से से पूर्ण रूप से मोहभंग हो चुका है ,तो युवाओं से ही क्यों आशा की जाती है , युवाओं से हीं क्यों उम्मीद की जाती रही है कि वे पारंपरिक नैतिक मूल्यों ऑर ऊंचे आदर्शों के अनुसार चलें? वे किस प्रकार प्रेरणा के लिए तथाकथित आत्मघोषित नेताओं की ओर देख सकते हैं ? वे किस प्रकार अपना आदर्श बनाने के लिए तथाकथित समाज में आदर्शवादी व्यक्ति से प्रेरणा ले सकते हैं।
युवा जब देखते हैं ,कि हमारे नेतागण कहते कुछ हैं करते कुछ ऑर हैं ;जब नेता देश भक्ति ऑर बलिदान की बात करते हैं ऑर खुद आराम का जीवन बिताते हैं ;जब नेता नैतिकता की बाते करते हैं ऑर स्वयं अपराधियों ऑर समाज विरोधी तत्वों में संलिप्त रहते हैं ;जब वे शांति की बात करते हैं ऑर स्वयं दलीय झगड़ों में आनंद लेते हैं ;जब वे गरीबी की बात करते हैं ऑर सदैव उनका समर्थन अमीरों के साथ होता है। तो ऐसे में युवाओं में नाराजगी होना स्वाभाविक हो जाता है ।युवाओं के मन में यह सवाल उठने लगता है कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है , हमारे साथ धोखा हो रहा है । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में युवाओं ने भ्रष्टाचार, असमानता ,शोषण ,राजनीतिक सांठ –गांठ ,पुलिस की नृशंसता ,प्रशासनिक निर्दयता ,धार्मिक कट्टरवाद को बिना किसी सामाजिक विरोध के सहन किया है । वस्तुतः सारे आधुनिक समाजों में इतना अधिक असंतोष होता है ,जो उत्तेजनापूर्ण आंदोलनों के लिए ईंधन का काम करता है । सामाजिक विरोध के कारण आक्रामक ,उत्तेजना पूर्ण क्षोभ ऑर आंदोलन हो सकते हैं । इन आंदोलनों में युवा सत्तारूढ़ व्यक्तियों के साथ बैठकर अपनी समस्याओं पर उनसे चर्चा कर उनकी प्रतिक्रियाओं को बदलने का प्रयास करते हैं ऑर अपने दृष्टिकोण पर उनकी सहमति के लिए दबाब डालते हैं ।
एक साधारण युवा पुरुष व्यक्तिवादी ,कल्पनाशील ऑर प्रतिस्पर्धी होता है । वह सिर्फ मार्गदर्शन की उम्मीद करता है, जिससे उसका जोश ऑर उत्साह नियंत्रित हो सके। युवाओं को एक निर्देश की जरूरत है । प्रौढ़ो , बुजुर्गों को यह तथ्य स्वीकार करना पड़ेगा, यह बात मानना होगा कि युवा समस्याओं का समाधान उन्हे साथ लिए बिना नहीं हो सकता है । इसलिए माता –पिता प्राध्यापकों एवं प्रशासकों को युवाओं का सहयोग प्राप्त करना होगा । ऐसे प्रयत्न किए जाने चाहिए जिसमें युवाओं ऑर प्राध्यापकों ऑर शैक्षणिक प्रशासनिक के दिन –प्रतिदिन के संपर्कों में जो छोटे –छोटे उत्तेजक तत्व उत्पन्न होते हैं ,वे विलीन हो जाए । प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं में एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए , जो छात्रों की सवालों की पहचान करे ऑर उनका समाधान करे । इस प्रकार की व्यवस्थाओं को केवल समस्याओं के भड़क जाने के बाद ही निबटने की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए परंतु ,निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कि ऐसी घटनाएं जिनमें उलझन उत्पन्न होती हैं ,रोकी जा सकें। ऐसी संस्थाओं की निरंतर बैठकें होनी चाहिए । शिकायतों के समाधान के लिए प्रभावी उपाय हो सकते हैं। सभी राजनीतिक दलों में छात्रों के राजनीति में भाग लेने के संबंध में एक आम आचार संहिता पर सहमति होनी चाहिए । यह उन्हें राष्ट्रीय विकास के भविष्य में दायित्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार करेगी।
अब समय आ चुका है कि इस विशाल युवा शक्ति जो अब तक उपेक्षित रही है ,को विकास के लिए एवं सामाजिक अन्याय को हटाने के लिए ऑर राष्ट्रीय समूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए लगाया जाए , अब वह घड़ी आ गयी है कि युवाओं को सामाजिक न्याय एवं विकास के लिए उन्हें आगे करें । युवाओं को राजनीति में भागीदारी के लिए हमारे देश के नेताओं को सोचना चाहिए , सामाजिक कार्यों हेतु उन्हे युवाओं को प्रेरित करें ऑर स्वयं समाज में एक ऐसी मिसाल बनाएं जिससे प्रभावित होकर देश के युवा सामाजिक एवं देश के कार्यों में अपना योगदान देने के लिए सहर्ष तैयार हो जाय । ऑर समाज में फैले असंतोष को समाप्त करने की बात जगह –जगह जाकर बखूबी अपनी बात रख सके । दमन ऑर टकराव के वातावरण के स्थान पर आशा, विश्वास ऑर आस्था के वातावरण की आवश्यकता को समझना चाहिए , साथ ही युवाओं को सामाजिक विकास के लिए उन्हें प्रेरित भी करें । युवाओं में सामाजिक कार्यों में भागीदारी के लिए उन्हे प्रोत्साहित किया जाय ,उनमें राष्ट्रप्रेम ,समाज प्रेम की भावना विकसित किया जाय साथ हीं उन्हे अपनी जिम्मेवारी का एहसास कराया जाय ऑर युवाओं को संगठित ऑर एकजुट करने की पहल की जाय।
युवा वर्ग में बढ़ता असंतोष |
एक साधारण युवा पुरुष व्यक्तिवादी ,कल्पनाशील ऑर प्रतिस्पर्धी होता है । वह सिर्फ मार्गदर्शन की उम्मीद करता है, जिससे उसका जोश ऑर उत्साह नियंत्रित हो सके। युवाओं को एक निर्देश की जरूरत है । प्रौढ़ो , बुजुर्गों को यह तथ्य स्वीकार करना पड़ेगा, यह बात मानना होगा कि युवा समस्याओं का समाधान उन्हे साथ लिए बिना नहीं हो सकता है । इसलिए माता –पिता प्राध्यापकों एवं प्रशासकों को युवाओं का सहयोग प्राप्त करना होगा । ऐसे प्रयत्न किए जाने चाहिए जिसमें युवाओं ऑर प्राध्यापकों ऑर शैक्षणिक प्रशासनिक के दिन –प्रतिदिन के संपर्कों में जो छोटे –छोटे उत्तेजक तत्व उत्पन्न होते हैं ,वे विलीन हो जाए । प्रत्येक शिक्षण संस्थाओं में एक ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए , जो छात्रों की सवालों की पहचान करे ऑर उनका समाधान करे । इस प्रकार की व्यवस्थाओं को केवल समस्याओं के भड़क जाने के बाद ही निबटने की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए परंतु ,निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए कि ऐसी घटनाएं जिनमें उलझन उत्पन्न होती हैं ,रोकी जा सकें। ऐसी संस्थाओं की निरंतर बैठकें होनी चाहिए । शिकायतों के समाधान के लिए प्रभावी उपाय हो सकते हैं। सभी राजनीतिक दलों में छात्रों के राजनीति में भाग लेने के संबंध में एक आम आचार संहिता पर सहमति होनी चाहिए । यह उन्हें राष्ट्रीय विकास के भविष्य में दायित्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार करेगी।
जे आर पाठक -औथर –‘चंचला ‘(उपन्यास ),स्तंभकार
- ज्योति रंजन पाठक
शिक्षा – बी .कॉम (प्रतिष्ठा )
पिता –श्री बृंदावन बिहारी पाठक
संपर्क नं -8434768823वर्तमान पता –रांची (झारखंड )
jyada tar log apni man pasand naukri na milne ke karan hi discontent rehte hai...
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