कबीर अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे Antara kabeer parichay CBSE संदर्भ प्रसंग व्याख्या full hindi explanation are in duo raah na paye kabir
अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे
कबीर अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे कबीर अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे कविता 1 अरे इन दोहुन राह न पाइ Antara kabeer parichay CBSE class 11th kabir poem अरे इन दोहुन राह न पाई class11 कबीरदास जी के दोहे कबीर class 11 Kavita NCERT Kavita in doun rah n pai are in dohun rah na pai कक्षा 11 हिन्दी साहित्य कबीर बालम आओ हमारे गह रे important question full एक्सप्लेन कबीर kabir ji संदर्भ प्रसंग व्याख्या अंतरा भाग 1 सप्रसंग व्याख्या Class 11 hindi sahitya Antra bhag 1 are in duo raah na paye kabir Kabir bhajan kabir ke dohe in hindi with meaning कबीर के पद class 11 kabeer das ke pad of aroh book kavya khand poem1 kabir Class 11 kabir ke pad full hindi explanation
कबीरदास का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के रचयिता कबीरदास जी हैं। कबीर दास जी का जन्म काशी में सन् 1398 में हुआ था। कबीरदास जी स्वामी रामानन्द के शिष्य थे। इनका पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा दम्पती ने किया था। कबीर जी ने विधिवत शिक्षा ग्रहण नही किया था। लेकिन शुरुआत से ही संतो और फकीरों की संगत में रहते थे। उन्होंने कहा भीहै मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहि नहि हाथ। लेकिन इनके पास उच्च कोटि का ज्ञान और मनाचिन्तन की अद्भूत प्रतिभा थी। कबीर जी निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानमार्गी शाखा के कवि थे। इनके काव्य रचनाओं में धर्म के बाह्याडम्बरों का विरोध किया गया है और ये जातिपात एवं धार्मिक पक्षपाथ का खंडन करते थे। कबीर जी जातिपात के भेदभाव मिटाकर इंसानियत सिखाना चाहते थे। हमेशा मानव की मनुष्यता को जगाने में प्रयासरत रहते थे। उन्होंने सदैव हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया व आपसी बैर को भुलाकर प्रेम से रहने का उपदेश दिया।
कबीर जी के काव्य में गुरु-भक्ति, ईश्वर-प्रेम, ज्ञान तथा वैराग्य, सत्संग और साधु-महिमा, आत्म-बोध और जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। इनकी रचनाएँ बहुत सरल एवं सहज है इनकी रचनाओं में सरल भाषा के साथ-साथ भावों का अनूठा संगम मिलता है जो पाठक को भावविभोर कर देता है। इनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी' व 'पंचमेल खिचड़ी' कहा जाता है। उनकी भाषा में ब्रज, पूर्वी हिन्दी, पंजाबी, अवधी व राजस्थानी भाषाओं का मिश्रण देखने को मिलता है। कबीर ने अपनी बात 'सबद' व 'साखी' शैली में कही है। कबीर की एकमात्र रचना 'बीजक' के रूप में मिलती है। इसके तीन अंग है- साखी, सबद व रमैनी।कबीर जी की रचना अनुभवों से परिपूर्ण होने के कारण विश्वसनीय और प्रामाणिक है। कबीरदास जी ने अपने जीवन के अंतिम समय मगहर में रहकर अपना देह सन् 1518 को त्याग दिया। उन्होंने निर्वाण को प्राप्त कर लिया। कबीरदास जी की प्रमुख कृतियाँ- साखी, सबद, रमैनी, बीजक, आदि...||
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई।
बेस्या के पायन-तर सोवै यह देखो हिंदुआई।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी मुर्गा खाई।
खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिं में करै सगाई।
बाहर से इक मुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई।
सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठीं घर-भर करै बड़ाई।
हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई।
कहैं कबीर सुनों भाई साधो कौन राह द्वै जाई।
भावार्थ - प्रस्तुत 'पद' कवि "कबीरदास" जी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि हिन्दू मुस्लिम दोनों अपनी-अपनी धर्म को श्रेष्ठ मानकर बड़ाई कर रहे हैं |
कबीर अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे पाठ का सारांश
प्रस्तुत पद के रचयिता कबीरदास जी हैं। प्रथम पद में कवि हिन्दू और मुसलमान के धर्म में फैले बाह्याडंबर और कुरीतियों का आलोचना करते है और उनके आस-पास हो रहे छुआछूत का कड़ा विरोध करते हैं। इसमें कवि हिन्दू और मुसलमान के धर्म के नाम पर हो रहे पाखंड का घोर निंदा करते हैं | दूसरे पद में कबीर प्रेमिका के प्रेम वियोग की प्यास को बता रहे हैं। जिसमें एक प्रेमिका अपने प्रेमी के विरह में बार-बार मिन्नते कर रही हैं और अपने प्रेमी तक अपना संदेश पहुँचाना चाहती है, क्योंकि प्रेमिका का हाल बेहाल हो गया है | अब प्रेमी के वियोग में जान पर बन आयी है। इसमें कवि ने दांपत्य जीवन और प्रेम की महत्व हो बताया है...||अरे इन दोहुन राह न पाए सप्रसंग व्याख्या
अरे इन दोहुन राह न पाई |हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई।
बेस्या के पायन-तर सोवै यह देखो हिंदुआई।
मुसलमान के पीर-औलिया मुर्गी मुर्गा खाई।
खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिं में करै सगाई।
बाहर से इक मुर्दा लाए धोय-धाय चढ़वाई।
सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठीं घर-भर करै बड़ाई।
हिंदुन की हिंदुवाई देखी तुरकन की तुरकाई।
कहैं कबीर सुनों भाई साधो कौन राह द्वै जाई।
भावार्थ - प्रस्तुत 'पद' कवि "कबीरदास" जी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि हिन्दू मुस्लिम दोनों अपनी-अपनी धर्म को श्रेष्ठ मानकर बड़ाई कर रहे हैं |
मुसलमान धर्म के गुरू, अल्लाह के पैग़म्बर, फकीर भी जीवित प्राणियों को मारकर खा जाते हैं। तो ये कैसे लोग हैं जो खुद को अल्लाह का बंदा या मानने वाले समझते हैं | मुसलमानों में अपने ही 'मौसी' की बेटी से शादी किया जाता है घर के ही रिश्तों में सगाई और शादी करते हैं | घर में मरे हुए माँस लाकर उसको अच्छे से साफ-सफाई करके बहुत ही लजीज बनाकर उसे घर के सब लोग औरत बच्चे एक साथ मिलकर बड़े ही स्वाद लेकर तारीफ कर-कर के खाते हैं।
कबीर जी कहते हैं हमने हिंदुओं की भी बड़ाई और हिन्दू धर्म के मान पतिष्ठा को देखा और तुरकियों की भी तुरकाई को देख लिया, लेकिन दोनों का चरित्र साफ नहीं है। पता नहीं ये किस रास्ते का अनुसरण करेंगे |
बालम आवो हमारे गेह रे की व्याख्या
बालम, आवो हमारे गेह रे।तुम बिन दुखिया देह रे।
सब कोई कहै तुम्हारी नारी, मोकों लगत लाज रे।
दिल से नहीं लगाया, तब लग कैसा सनेह रे।
अन्न न भावै नींद न आवै, गृह-बन धरै न धीर रे।
कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे।
है कोई ऐसा पर-उपकारी, पिवासों कहै सुनाय रे।
अब तो बेहाल कबीर भयो है, बिन देखे जिव जाय रे।।
भावार्थ - प्रस्तुत पद कवि कबीरदास जी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि प्रेमिका अपने प्रेमी के विरह में मिन्नते कर रही है | अपने प्रेमी तक सन्देश पहुँचाना चाहती है। कहती हैं की साजन अब घर आ जाओ तुम्हारे बिना मेरा शरीर बीमार सा लगता है। सारे लोग मुझे तुम्हारी पत्नि कहकर पुकारते हैं। और मैं शर्म से पानी-पानी हो जाती हूँ। बालम अगर तुम्हें दिल से नहीं लगाया तो यह कैसा प्रेम है, तुम्हारे बिना ना नींद आती है ना तो भूख लगती है और ना ही घर के कामों में मन लगता है | घर में मेरे पाँव ठहरते नहीं हैं। प्रेमिका को उसका सजना इतना प्यारा लगता है, जैसे प्यासे को पानी की चाह होती है। प्रेमिका कहती है कि क्या कोई ऐसा परोपकारी मनुष्य है जो यह संदेश मेरे पिया को जा कर सुना दे। कबीर कहते हैं कि प्रेमिका की हालत अब ऐसी हो गई है कि अपने बालम के याद में जान जा रही है |
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कबीर अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे के प्रश्न उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 कबीर ने किस 'राह' की ओर संकेत किया है ?
उत्तर- कबीर जी कहते हैं कि हिन्दू-मुसलमान अपने-अपने धर्म का बड़ाई कर रहे हैं। आडम्बर में डूबे हुए हैं | पता नहीं ये किस रास्ते में जाएँगे, लेकिन ये रास्ता भटक गए हैं और अंधविश्वास की तरफ़ बढ़ रहे हैं | अत: कबीर जी ने आडम्बर के रास्ते की ओर संकेत किया है |
प्रश्न-2 पहले पद में कबीर ने हिंदुओं और मुसलमानों की किन आडंबरों और कुरीतियों की निंदा की है ?
उत्तर- पहले पद के अनुसार, इसमें कवि दोनों ही धर्मों के आडम्बरों और कुरीतियों की निंदा करते हुए कहते हैं कि हिन्दू अपने-आप का बड़ाई करते हैं लेकिन अपना मटका तक किसी और जाति के लोगों को छूने तक नहीं देते। परन्तु वेश्याओं के पैर के पास सोते हैं उनके पैरों का दासी तक बन जाते हैं। यह कैसे हिंदू हुए जो किसी को अछुत मानकर उसे पानी तक नहीं पिलाते लेकिन वैश्या के पास जाकर भी वो हिंदू लोग अशुद्ध नहीं होते।
मुसलमान धर्म के गुरू, अल्लाह के पैग़म्बर, फकीर भी जीवित प्राणियों को मारकर खा जाते हैं। तो ये कैसे लोग हैं जो खुद को अल्लाह का बंदा या मानने वाले समझते हैं | मुसलमानों में अपने ही 'मौसी' की बेटी से शादी किया जाता है घर के ही रिश्तों में सगाई और शादी करते हैं | घर में मरे हुए माँस लाकर उसको अच्छे से साफ-सफाई करके बहुत ही लजीज बनाकर उसे घर के सब लोग औरत बच्चे एक साथ मिलकर बड़े ही स्वाद लेकर तारीफ कर-कर के खाते हैं।
कबीर जी कहते हैं हमने हिंदुओं की भी बड़ाई और हिन्दू धर्म के मान पतिष्ठा को देखा और तुरकियों की भी तुरकाई को देख लिया, लेकिन दोनों का चरित्र साफ नहीं है। पता नहीं ये किस रास्ते का अनुसरण करेंगे |
प्रश्न-3 दूसरे पद में वर्णित प्रियतम के विरह में विरहिणी की दारुण सदा का वर्णन अपने शब्दो में कीजिये |
उत्तर- दूसरे पद में वर्णित प्रियतम के विरह में विरहिणी की दारुण सदा का वर्णन कुछ इस प्रकार है कि प्रेमिका अपने प्रेमी के विरह में मिन्नते कर रही है | अपने प्रेमी तक सन्देश पहुँचाना चाहती है। कहती है की साजन अब घर आ जाओ तुम्हारे बिना मेरा शरीर बीमार सा लगता है। सारे लोग मुझे तुम्हारी पत्नि कहकर पुकारते हैं। और मैं शर्म से पानी-पानी हो जाती हूँ। बालम अगर तुम्हें दिल से नहीं लगाया तो यह कैसा प्रेम है, तुम्हारे बिना ना नींद आती है ना तो भूख लगती है और ना ही घर के कामों में मन लगता है घर में मेरे पाँव ठहरते नहीं हैं। प्रेमिका को उसका सजना इतना प्यारा लगता है, जैसे प्यासे को पानी की चाह होती है। प्रेमिका कहती है क्या कोई ऐसा परोपकारी मनुष्य है, जो यह संदेश मेरे पिया को जा कर सुना दे। कबीर कहते हैं कि प्रेमिका की हालत अब ऐसी हो गई है कि अपने बालम की याद में जान जा रही है |
प्रश्न-4 निम्नलिखित पक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिये ---
(क)- हिंदुन की……………….ह्वै जाई।।
उत्तर- प्रस्तुत पद कवि कबीरदास जी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते है कि हमने हिंदुओं की भी बड़ाई और हिन्दू धर्म के मान पतिष्ठा को देखा और तुरकियों की भी तुरकाई को देख लिया, लेकिन दोनों का चरित्र साफ नहीं है। पता नहीं ये किस रास्ते का अनुसरण करेंगे। हिन्दू मुस्लिम दोनों अपनी-अपनी धर्म को श्रेष्ठ मानकर बड़ाई कर रहें है। इसमें कवि ने दोनों ही धर्मों के आडम्बरों और कुरीतियों की कड़ाई से नींदा की है |
(ख) सब कोई…………………….सनेह रे।।
उत्तर- प्रस्तुत पद कवि कबीरदास जी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि सारे लोग मुझे तुम्हारी पत्नि कहकर पुकारते हैं और मैं शर्म से पानी-पानी हो जाती हूँ। बालम अगर तुम्हें दिल से नहीं लगाया तो यह कैसा प्रेम है, तुम्हारे बिना ना नींद आती है ना तो भूख लगती है और ना ही घर के कामों में मन लगता है घर में मेरे पाँव ठहरते नहीं हैं। इसमें कवि ने प्रेमिका के विरह को स्प्ष्ट किया है जो अपने प्रेमी तक अपना संदेश पहुँचाना चाहती है |
प्रश्न-5 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे' पंक्ति में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर- 'कामिन को है बालम प्यारा, ज्यों प्यासे को नीर रे' --- इस पंक्ति में "दृष्टांत" अलंकार है |
प्रश्न-6 दूसरे पद को पढ़कर कबीर की प्रेम की भावना पर टिप्पणी लिखिए ?
उत्तर- दूसरे पद में प्रेमिका अपने प्रेमी के विरह में मिन्नते कर रही है अपने प्रेमी तक सन्देश पहुँचाना चाहती है। कहती है की साजन अब घर आ जाओ तुम्हारे बिना मेरा शरीर बीमार सा लगता है। सारे लोग मुझे तुम्हारी पत्नि कहकर पुकारते हैं। और मैं शर्म से पानी-पानी हो जाती हूँ। बालम अगर तुम्हें दिल से नहीं लगाया तो यह कैसा प्रेम है, तुम्हारे बिना ना नींद आती है ना तो भूख लगती है और ना ही घर के कामों में मन लगता है घर में मेरे पाँव ठहरते नहीं हैं। प्रेमिका को उसका सजना इतना प्यारा लगता है जैसे प्यासे को पानी की चाह होती है। प्रेमिका कहती है क्या कोई ऐसा परोपकारी मनुष्य है जो यह संदेश मेरे पिया को जा कर सुना दे। कबीर कहते हैं कि प्रेमिका की हालत अब ऐसी हो गई है कि अपने बालम की याद में जान जा रही है |
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अरे इन दोहुन राह न पाई बालम आवो हमारे पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• कामिन -- प्रेमिका
• सनेह -- स्नेह
• बड़ाई - तारीफ करना
• गागर -- मिट्टी का बर्तन
• पायन-तर -- पैर के पास, पैरों पर
• पीर -- गुरु, आध्यात्मिक शिक्षक, साधना मे मार्गदर्शक, अल्लाह के पैगम्बर
• औलिया -- संत, महात्मा, फकीर
• खाला -- मौसी, माँ की बहन
• जेंवन -- जीमना , भोजन करना
• तुरकन -- बाहर से आये हुए मुसलमान शासक
• गेह -- घर |
Mast
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जवाब देंहटाएंNice Lesson But Exam is near today Exam 😔😔😔😔
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