चौगान नासिक से लौटा तो चुनाव की तारीख तय हो गयी | उसको बाबा का आशीर्वाद था और पार्टी को कॉर्पोरेट का | हर जगह फूल लहलहाने लगे | चौगान प्रदेश का प्रमुख
चमरासुर उपन्यास (2) / शमोएल अहमद
चौगान नासिक से लौटा तो चुनाव की तारीख तय हो गयी | उसको बाबा का आशीर्वाद था और पार्टी को कॉर्पोरेट का | हर जगह फूल लहलहाने लगे | चौगान प्रदेश का प्रमुख बना | अच्छे दिन आ गये | देश के मुखिया ने दस लाख का सूट पहना और बाबा ने सोने का मुकुट पहना |
मामा भाँजी के सपने को साकार करना चाहता था | वो चाहता था भाँजी फिर से प्रतियोगिता में भाग ले | लेकिन वो महाराष्ट्र की रहने वाली थी | तीन बार फेल होने के बाद वहाँ का दरवाज़ा हमेशा के लिए बन्द हो गया था | वो बीच-प्रदेश की रहने वाली नही थी , इसलिए यहाँ की परीक्षा में भाग नहीं ले सकती थी |
समरथ को नहीं दोष गुसाईं.....
दालचपाती फुसफुसाई ‘’ भाँजी को प्रदेश का शहरी बना दो |’’
मामा भाँजी को प्रदेश ले आया | उसकी आई. डी. बदल दी | आधार कार्ड बदल दिया | वो अब महाराष्ट्र की नहीं थी | वो अब प्रदेश की थी और यहाँ की किसी भी परीक्षा में शरीक हो सकती थी | लेकिन मामा को डर था कि वो फिर इम्तिहान में फेल हो सकती है | उसके मन में आया कि इम्तिहान का प्रवेशपत्र बदला जाएगा और उसकी जगह कोई दूसरा स्कॉलर इम्तिहान देगा | चौगान मुखिया ने ये जिम्मेवारी लक्ष्मीकांत को सौंपी | लक्ष्मीकांत पुराना खिलाड़ी था....मुखिया का चहेता....कभी खननमंत्री हुआ करता था | मुखिया ने उसे शिक्षामंत्री बना दिया था | लक्ष्मीकांत ने शुक्ला को अपना सहायक बनाया | शुक्ला पर अनियमितता के आरोप थे | लोकायुक्त में उस पर मुक़दमा चल रहा था लेकिन जब तक अपराध साबित नहीं हो जाता अपराधी बेक़सूर है | शुक्ला भी बेक़सूर था और शिक्षा मंत्रालय का आफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी नियुक्त हुआ था | लक्ष्मीकांत के इशारे पर चौगान ने पंकज तिवारी को प्रतियोगिता परीक्षा का कंट्रोलर बना दिया और तिवारी ने अपने साले माखनलाल को आनलाइन शाखा का प्रमुख बना दिया | विभाग अब कील-कांटे से दुरुस्त था | लेकिन नेक काम करने जाओ तो कोई न कोई अड़चन आती है | मामा नेक काम में लगा था | वह चाहता था भाँजी किसी तरह डिप्टी कलक्टर हो जाए लेकिन मसला स्कॉलर का था जो भाँजी की जगह इम्तिहान के पर्चे लिख सकता |
और स्कॉलर था चमरासुर....
किसी चीज़ की तलब अगर गहन हो तो वो चीज़ झोली में आ गिरती है | चमरासुर भी चहलक़दमी करता हुआ लक्ष्मीकांत के पास पहुँच गया | असल में चमरासुर को तुर्की बटेर की तलाश रहती थी | वो कबाब का शौकीन था | अकसर लक्ष्मीकांत के निजी फार्म से बटेर खरीदता था | बटेर दूसरी जगहों पर भी मयस्सर थे लेकिन मंत्री के बटेर तुर्की नस्ल के होते जो खाने में लज़ीज़ थे | मंत्री इन्हें हिसार से मंगवाता था | इन्हें अच्छा दाना दिया जाता और बीमारी से बचने के लिए टीके भी लगवाए जाते | गवर्नर साहब भी बटेर बेचते थे लेकिन वहाँ सिक्योरिटी का झमेला था | रजिस्टर में कई जगह इंट्री करानी पडती जिसमें वक़्त लगता | मंत्री के फ़ार्म पर रोक-टोक नहीं थी | फ़ार्म के काउन्टर से कभी भी बटेर खरीदा जा सकता था | इस सहूलियत के चलते मंत्री ने बटेर की कीमत में पाँच रूपये का इजाफा किया था | यहाँ जिंदा बटेर ले जाने की मनाही थी लेकिन गोश्त बनाने की सहूलियत थी | फार्म के एक कोने में बटेरची छुरी और कनस्तर से लैस रहता | एक हाथ से बटेर की गर्दन दबोचता और दूसरे हाथ से छुरी फेरता और कनस्तर में डालकर ऊपर लकड़ी का ढक्कन रख देता | ढबर....ढबर ...ढबर ....कनस्तर की दीवारों से टकराती हुई बटेर के फड़फड़ाने की आवाज़ एक पल के लिए हवा में गूँजती जिसे बटेरची आँखें मूँद कर सुनता | आवाज़ आनी बन्द हो जाती तो छुरी हवा में लहराता....‘’खत्तम... ‘’ फिर मुस्करा कर पूछता ‘’ मुसल्लम या पीस....?
वो हमेशा मुसल्लम लेता और माइक्रोवेव पर इसके कबाब लगाता | गोश्त बनाने की कोई अलग से उजरत नहीं थी लेकिन बटेरची कलेजी अलग कर लेता था | असल में मंत्री को राजवेद की सलाह थी कि सम्भोग-शक्ति बढ़ानी हो तो बटेर की कलेजी खाओ | उसने मंत्री को फ़ार्म में अकसर चहलक़दमी करते हुए देखा था | वो ठिगने कद और मजबूत काठी का आदमी था | हाथ बालों से भरे भरे थे जिसे देखकर एहसास होता कि उसके पंजे मजबूत हैं | उसकी निगाहें मंत्री की निगाहों से मिलतीं तो हाथ उठाकर सलाम करता जिसका जवाब वो सिर की हल्की सी जुंबिश से देता था |
एक दिन उसको मंत्री की सम्भोग-शक्ति का आभास हुआ | वो कोई निजी न्यूज़ चैनल था जहाँ उसने मंत्री को झूला झुलाते देखा | मंत्री दीवार से लग कर खड़ा था और सर के ऊपर किसी राजनीतिज्ञ का चित्र टंगा था | मंत्री ने किसी राह्त-दायक औरत को हाथों पर उठा रखा था | वो कमर से लिपटी झूल रही थी | राहत उठाने का ये अंदाज़ निराला था | ये मंज़र एक पल के लिए स्क्रीन पर उभरा और लुप्त हो गया | चमरासुर अवसाद से भर गया | दूसरे दिन फ़ार्म पहुँचा और कलेजी की माँग की तो बटेरची गुर्राया |
‘’ कलेजी राजघराने के लिए है |’’
चमरासुर ने प्रतिरोध किया कि उसका भी हक बनता है, बटेर उसने खरीदी तो कलेजी भी उसकी हुई | बटेरची ने उछल कर उसकी गर्दन दबोच ली कि हक मांगेगा तो गोलियों से भून दिया जाएगा | चमरासुर ने गर्दन पर नाख़ून की तेज़ चुभन महसूस की | उसने बटेरची का हाथ जोर से झटक दिया |
‘’ गर्दन क्यों पकड़ता है ? ‘’ चमरासुर की आँखें गुस्से से सुर्ख हो गईं |
बटेरची ने गार्ड को आवाज़ दी | गार्ड दौड़ कर आया |
‘’ क्या बात है ? ‘’ गार्ड ने बहुत रुआब से पूछा |
‘’ दादागीरी करता है , इसे मंत्रीजी के पास ले चलो | ‘’
‘’ चलो ! ‘’ गार्ड ने उसका हाथ पकड़ लिया | चमरासुर ने गार्ड का हाथ भी झटक दिया और सख्त लहजे में बोला |
‘’ हाथ क्यों पकड़ते हो ? कोई चोरी नहीं की है, अपना हक माँगा है|
गार्ड उसे लक्ष्मीकांत के पास ले गया |
‘’ हक....?’’ मंत्री ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और हँसने लगा कि ये तो खुद एक बटेर है | मंत्री ने ज़ात पूछी | चमरासुर खामोश रहा |
‘’ कहाँ तक पढाई की है ?’’
‘’ जे. एन. यू . से पी. एच. डी . हूँ | ‘’
‘’ अच्छा...? अम्बेडकर पर लेख लिख कर दिखाओ |’’
वहीँ बैठे बैठे उसने एक संक्षिप्त लेख लिखा | लक्ष्मीकांत को एक संगोष्ठी में भाषण देना था | लेख पढ़ कर वो खुश हुआ | उसे चमरासुर में एक स्कॉलर नजर आया | उसी पल उसने फैसला कर लिया कि एडमिटकार्ड में भाँजी की जगह चमरासुर की तस्वीर होगी | उसने भारी उजरत पर भाँजी को पढ़ाने का प्रस्ताव रखा | जब मालूम हुआ कि भाँजी की जगह खुद उसको इम्तिहान में शरीक होना है तो उसने जेब से मोबाइल निकाल कर देखा और रख लिया | उसके होंठों पर रहस्यमयी मुस्कान फ़ैल गयी | उसने पढ़ाना मंजूर कर लिया |
बंगले के आउटहाउस में उसके रहने की व्यवस्था हो गयी | चमरासुर ने रोज़ नाश्ते में बटेर की भुनी कलेजी की माँग की जो स्वीकार कर ली गयी |
रुक्मिणी खूबसूरत थी | सफेद दमकता हुआ चेहरा...मणि सरीखे होंठ और सुर्मई आँखों की मखमली पलकें....
चमरासुर उसे देखता रह गया....
रुक्मिणी से उसकी मुलाक़ात अम्बेडकर जयंती के एक जलसे में हुई थी | सुजाता भी जलसे में शरीक हुई थी | वो एन.जी.ओ चलाती थी | पिछड़े तबके के लिए उसने एक वेल्फेयर स्टेट की स्थापना की थी | पावर-लॉबी में उसका गुजर था जहाँ से ट्रस्ट के लिए फंड इकटठा करती थी और कल्याण मंत्री के बहुत करीब समझी जाती थी | वो लक्ष्मीकांत के बंगले के भी चक्कर काटती थी जहाँ उसका परिचय चमरासुर से हुआ था | उसको कविता से भी लगाव था और यही वो बात थी जिसने रुक्मिणी को उसके करीब किया था |
रुक्मिणी शायरा थी और अपने तीखे स्वर के लिए जानी जाती थी | वो खुद को मानवतावादी बताती थी | उसका विचार था सारे मुल्कों की सरहदें मिट जानी चाहिए और इंसान को एक डोर से बंधा होना चाहिए | जात-पात को लेकर उसने जलसे में अपने निर्भीक विचारों का परिचय दिया था | रुक्मिणी का जब नाम पुकारा गया था तो उसने माइक सम्भाला था |
‘’ अम्बेडकर जात पात को जड से उखाड़ फेंकना चाहते थे |
उनहोंने महात्मा फुले के शिक्षा सम्बन्धी दृष्टिकोण को
केंद्र में रखकर अपने संघर्ष की शुरुआत की | बाबा साहब
चाहते थे कि दलितों के लिए अलग क्षेत्र न होकर अलग
चुनावी सिस्टम हो लेकिन गाँधीजी ने इनकार कर दिया
और अनशन पर बैठ गये | ये एक बड़ी ऐतिहासिक भूल थी
रिज़र्व क्षेत्रों से दलित तो चुनकर आते हैं लेकिन उन्हें चुनने
वाले बहुसंख्यक होते हैं | दलित के नाम पर बहुसंख्यक अपना
पिट्ठू चुनती है जो इनके वफादार होते हैं | वो दलित का प्रतिनिधत्व नहीं करते | इन्हें बहुसंख्यक ने चुना है | इसलिए ये बहुसंख्यक के बारे में ज्यादा सोचते हैं | इलेक्ट्रोरल सिस्टम में दलित अपने प्रतिनिधि का चुनाव खुद कर सकते थे और तब दलित लीडर को उभरने का मौक़ा मिलता लेकिन गाँधी ने चालाकी की | दलित अभी भी आदिग्रंथ की मानसिक गुलामी कर रहा है | दलित की राजनीति सभी करते हैं लेकिन दलित का नेता कोई नही है | कोई नहीं चाहता कि ज़ात-पात ख़त्म हो | ‘’
जलसे की अध्यक्षता कल्याण मंत्री कर रहे थे | सुजाता और चमरासुर भी मौजूद थे | मंत्री जी ने सुजाता को बुलाकर कहा कि वो इस लडकी से मिलना चाहेंगे | वो अगर उनकी पार्टी में शामिल हो जाए तो उसको प्रेस-सेक्रेटरी का पद मिल सकता है |
रुक्मिणी हॉल से बाहर निकली तो चमरासुर उसके पीछे पीछे चलने लगा | उसकी ये हरकत अनायास थी | उसपर जैसे जादू सा चल गया था | उसको हैरत थी कि एक दलित लड़की इतनी हसीन भी हो सकती है | कुछ दूर जाने के बाद रुक्मिणी अचानक रुकी, पलटकर उसकी तरफ देखा और मुस्कराई |
‘’ तुम महिषासुर के वंशज हो ? ‘’
‘’ तुम्हें कैसे मालूम ? ‘’
‘’ तुम्हें देखकर ऐसा लगा . |’’
‘’ कमाल है | ‘’
‘’ मुझे अकसर विजन होता है ‘’ |
‘’ तुम्हारा एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन ई.एस.पी. बहुत तेज़ है | ‘’
‘’ यही समझो ‘’|
‘’ कुछ और बताओ ‘’|
‘’ तुम एक लड़ाई लड़ोगे ‘’|
‘’ कैसी लड़ाई ? ‘’
‘’ मैं तुम्हें तलवार लहराते हुए देख रही हूँ |’’
‘’ मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है और मेरे पास तलवार भी नहीं है |’’
‘’ हो सकता है मेरा विजन गलत हो ‘’ |
‘’ तुम्हें दोस्त समझूँ ?’’
‘’ श्योर ! ‘’
‘’ हम कहीं चाय पी सकते हैं ?’’
‘’ जरुर ! ‘’
वो एक रेस्तरां में आए | रेस्तरां में कुछ पल खामोशी रही | रुक्मिणी चाय की चुस्कियाँ लेती हुई एकटक मेज़ को घूर रही थी |
‘’ कहीं कुछ देख रही हो ?’’
‘’नहीं तो ...! ‘’ वो हँस पड़ी |
‘’ तुमने सही कहा कि मुझे एक लड़ाई लड़नी है |’’
रुक्मिणी ने उसे सवालिया नज़रों से देखा |
‘’ मैं अम्बेडकर के आन्दोलन को फिरसे चलाना चाहता हूँ | ‘’
‘’ गोया तुम मनुवादियों से लोहा लोगे ‘’
‘’ बिलकुल ! मैं चाहता हूँ ज़ात पात ख़त्म हो |’’
‘’ ऐसा नहीं हो सकता | हिन्दू होने का मतलब किसी ज़ात का होना है मनुस्मृति हिन्दुओं की घुट्ठी में है | ‘’
‘’ मनुस्मृति नें दलितों को हाशिए पर रख दिया है | हम इनके हक की लड़ाई तो लड़ सकते हैं |’’
‘’ ये लड़ाई ज़रूरी है, मैं इसके पक्ष में हूँ |’’
‘’ तुम दलित हो ?’’
‘’ मैं ब्राह्मण हूँ, लेकिन मनुवादी नहीं हूँ | इस लड़ाई में तुम्हारा साथ दूँगी |’’
चमरासुर ने उसे हैरत से देखा | रुक्मिणी मुस्कराई
‘’ मैं मानवता पर यकीन रखती हूँ ‘’ |
चमरासुर ने उसका हाथ चूमा |
‘’ तुमसे बहुत प्रेरणा मिली | ‘’
‘’ अपना नाम तो बताओ | ‘’
‘’ मैं चमरासुर हूँ |’’
मुझे रुक्मिणी त्रिपाठी कहते है | लेकिन मैं अपने नाम के साथ त्रिपाठी की पदवी नहीं लगाती | इससे जातिवाद को बढ़ावा मिलता है |’’
‘’ तुमसे मिलकर ख़ुशी हुई | तुम अपनी बिरादरी की हो |’’
जवाब में रुक्मिणी मुस्कराई और उसकी कलाई पर बंधे हुए लाल पीले धागे की तरफ इशारा करती हुई बोली |
‘’ मैं कैसे यकीन कर लूँ कि तुम ज़ात पात के खिलाफ आन्दोलन चलाना चाहते हो |’’
‘’ क्यों ?’’
‘’ ये धागे गवाही दे रहे हैं कि तुम अपने अचेतन में मनुवादियों की मानसिक गुलामी पर मजबूर हो |’’
चमरासुर के माथे पर बल पड़ गये |
तब रुक्मिणी ने स्पष्ट किया कि कृष्ण भी असुर थे जैसा कि ऋग्वेद में आया है | अनिरुद्ध की शादी वाणासुर की लडकी ऊषा से हुई थी | वाणासुर राजा बली का बेटा था | राजा बली को आर्यों ने छल से मारा था | रक्षा के नाम पर ब्राह्मण तुम्हारी कलाइयों पर लाल पीला धागा बाँधता है और मन्त्र पढ़ता है जिसका अर्थ है‘’ जिस रक्षासूत्र से बली को बाँधा गया था उसी धागे से तुमको बाँधता हूँ | सुदृढ़ रहना, पलट मत जाना ‘’
‘’ ये धागा गुलामी का प्रतीक है, तुम्हारा असुर राजा इससे बाँधा गया और तुम इसे कलाई पर बाँधते हो | ‘’
चमरासुर ने रुक्मिणी के स्वर के तीखेपन को महसूस किया और कलाई का धागा खोल दिया | तब उसने पर्स से फ्रेंडशिप का धागा निकला और चमरासुर की कलाई पर बाँधा और दोस्ती की कसमें खाईं | चमरासुर को आभास हुआ कि रुक्मिणी को दलित समाज के ऊँच नीच का गहरा अनुभव है |
‘’ दलितों को अपना इतिहास जानना चाहिए | मैं अम्बेडकर के इस नजरिये से सहमत हूँ कि दलितों के तार राजपूतों की सूर्यवंशी नस्ल से मिलते हैं | मैंने अम्बेडकर का एक लेख पढ़ा था कि विश्वामित्र के समय में राजपूत और ब्राह्मण में राजपुरोहित होने की होड़ थी | विश्वामित्र राजपूत थे और वशिष्ठमुनि ब्राह्मण | पुरोहित का पद पाने के लिए दोनों में जंग हुई | विश्वामित्र को वशिष्ठमुनि के हाथों मुँह की खानी पड़ी | वशिष्ठ मुनि ने उन राजपूतों का बहिष्कार किया जो विश्वामित्र के प्रभाव में थे | उनके लिए कड़ी सामाजिक प्रतिबन्ध लागू किए | उन्हें उपनयन संस्कार से खारिज कर दिया | आहिस्ता आहिस्ता राजपूत नज़रंदाज़ होने लगे और समय के साथ हाशिए पर आगये और शूद्र में बदल गये | जब मनु पैदा हुए तो इस व्यवस्था को जारी रखा | मनुस्मृति ने दलितों के लिए कड़ी सजाएँ निर्धारित कीं | ‘’
‘’ ये तर्क सही नही है | हम क्यों खुद को राजपूत और ब्राह्मण से जोड़ें ? ये हीनभावना है | हम शूद्र रह कर ही उनसे लोहा लेंगे | ‘’ चमरासुर ने आपत्ति ज़ाहिर की |
बैरा बिल लेकर आया | चमरासुर ने बिल अदा किया | दोनों ने एक दूसरे का फोन नम्बर नोट किया |
चमरासुर लौट कर अपने कमरे में आया तो सुख के एह्सास से ओतप्रोत था | उसको यकीन था कि रुक्मिणी साथ निभाएगी |
- शेष अगले अंक में
Nice Story
जवाब देंहटाएंmaja aa gya wah.
जवाब देंहटाएंNice information
जवाब देंहटाएंNice bhut acha likha
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