दोपहर का भोजन कहानी अमरकांत NCERT Hindi class 11 Dopahar Ka Bhojan

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दोपहर का भोजन अमरकांत



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दोपहर का भोजन कहानी का सारांश

प्रस्तुत पाठ दोपहर का भोजन लेखक अमरकांत जी के द्वारा लिखित है | यह कहानी गरीबी से जूझ रहे एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की दास्तान को बताती है | शिल्प की सादगी और सहज संकेतों के माध्यम से कथा को प्रस्तुत करने की कला का उत्कृष्ट रूप इस कहानी में देखने को मिलता है | वास्तव में देखा जाए तो मुंशीजी के परिवार का संघर्ष भावी उम्मीदों पर टिका हुआ है | सिद्धेश्वरी गरीबी के एहसास को मुखर नहीं होने देती और उसकी आँच से अपने परिवार को बचाए रखती है | 

दोपहर का भोजन कहानी अमरकांत
दोपहर का भोजन कहानी अमरकांत

प्रस्तुत कहानी के अनुसार, सिद्धेश्वरी ने खाना बनाने के बाद चूल्हे को बुझा दिया और दोनों घुटनों के बीच सिर रखकर, शायद पैर की उँगलियाँ या ज़मीन पर चलते चींटे-चींटियों को देखने लगी | यकायक उसे एहसास हुआ कि काफी देर से उसे प्यास लगी है | सिद्धेश्वरी गर्मी के मौसम की दोपहर में भूख से व्याकुल बैठी है | घर में इतना भी खाना नहीं है कि दो रोटी खाकर वह कम से कम अपना पेट भर सके | वह एक लोटा पानी ही पीकर अपनी भूख मिटाने की कोशिश करती है | खाली पेट में सिर्फ पानी उसके कलेजे में लग जाता है और वह लगभग आधे घंटे तक वहीं ज़मीन पर लेट जाती है | तत्पश्चात्, उसके जी में जी आता है | सिद्धेश्वरी उठकर बैठ जाती है, आँखो को मल-मलकर इधर-उधर देखती है | तभी उसकी दृष्टि ओसारे में अध-टूटे खटोले पर सोए अपने छ: वर्षीय लड़के 'प्रमोद' पर पड़ती है, जो कुपोषण के गिरफ़्त में है | सिद्धेश्वरी का लड़का नंग-धड़ंग पड़ा था | उसके गले तथा छाती की हड्डियाँ साफ दिखाई देती थीं | उसके हाथ-पैर बासी ककड़ियों की तरह सूखे तथा बेजान पड़े थे और उसका पेट हंडियाँ की तरह फूला हुआ था | उस बच्चे का मुँह खुला हुआ था | उस पर मक्खियाँ उड़ रही थीं | दोपहर के बारह बज गए हैं और भोजन का वक़्त हो गया है | तभी इतने में बड़ा बेटा 'रामचंद्र' आकर चौकी पर बैठता है, जिसके चेहरे पर निराशा झलक रही है | वह एक दैनिक समाचार-पत्र के दफ़तर में प्रूफ़ रीडर का काम सीखता है और अभी तक वह बेरोजगार है | सिद्धेश्वरी अपने बड़े बेटे रामचंद्र के सामने भोजन परोसती है | रामचंद्र के दो रोटी खा लेने के बाद वह उससे और भी रोटी लेने के लिए पूछती है, किन्तु रामचंद्र भूख न होने का बहाना बनाकर मना कर देता है | 


रामचंद्र खाना खाते वक़्त अपनी माँ सिद्धेश्वरी को संबोधित करते हुए पूछता है --- "मोहन कहाँ है ? बड़ी कड़ी धूप हो रही है |" दरअसल, मोहन सिद्धेश्वरी का मंझला लड़का था | वह अभी अट्ठारह वर्ष का था | सिद्धेश्वरी उससे झूठ बोलती है कि वह अपने मित्र के यहाँ पढ़ने गया है | वह रामचंद्र को खुश करने के लिए यह भी कहती है कि मोहन हर वक़्त उसकी प्रशंसा करता है ताकि वह कुछ देर के लिए अपने दुःख से दूर जा सके और आत्मविश्वास व सुकून के कुछ पल जी सके | 

सिद्धेश्वरी का मंझला लड़का 'मोहन' आते ही हाथ-पैर धोकर पीढ़े पर बैठ गया | वह कुछ साँवला था और उसकी आँखें छोटी थीं | उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे | वह अपने भाई ही की तरह दुबला-पतला था, लेकिन उतना लंबा नहीं था | वह उम्र की अपेक्षा कहीं अधिक गम्भीर और उदास दिखाई पड़ रहा था | सिद्धेश्वरी खाने में उसे भी दो रोटी, दाल और थोड़ी सब्जी परोसते हुए पूछी --- "कहाँ रह गए थे बेटा ? भैया पूछ रहा था |" तभी जवाब में मोहन बोलता है --- "कहीं तो नहीं गया था, यहीं पर था |" सिद्धेश्वरी मोहन से भी झूठ बोलती है कि उसका बड़ा भाई रामचंद्र उसकी बहुत तारीफ़ कर रहा था | यह सुनकर मोहन खुश हो जाता है | सिद्धेश्वरी के कहने पर मोहन थोड़ी दाल पीकर ही पेट भरने का बहाना करता है और रोटी लेने से मना कर देता है | 

तत्पश्चात्, घर के मुखिया और सिद्धेश्वरी के पति 'मुंशी चंद्रिका प्रसाद' आते हैं और राम का नाम लेकर चौकी पर बैठ जाते हैं | उनकी उम्र पैंतालीस वर्ष के लगभग थी, लेकिन पचास-पचपन के लगते थे | शरीर का चमड़ा झूलने लगा था | गंजी खोपड़ी आईने की तरह चमक रही थी | गंदी धोती के ऊपर अपेक्षाकृत कुछ साफ बनियान तार-तार लटक रही थी | सिद्धेश्वरी अपने पति को खाने के लिए देती है | दो रोटी खाने के बाद सिद्धेश्वरी उनसे और रोटी लेने का आग्रह करती हैं, मगर घर की हकीकत से परिचित मुंशीजी मना कर देते हैं | तभी मुंशी जी अपनी पत्नी सिद्धेश्वरी को संबोधित करते हुए पूछते हैं --- "बड़का दिखाई नहीं दे रहा !" पति के सवालों को सम्भालते हुए सिद्धेश्वरी दोनों बेटों की प्रशंसा करती है, ताकि बाप-बेटों में एकजुटता बनी रहे | मुंशी जी के खाने के पश्चात् सिद्धेश्वरी उनकी जूठी थाली लेकर चौके की जमीन पर बैठती है, जिसके हिस्से में केवल एक रोटी ही आती है | इतने में उसकी नज़र उसके छोटे बेटे प्रमोद पर पड़ती है, जो सोया हुआ था | वह उसके लिए आधी रोटी रखकर स्वयं आधी रोटी खाकर पानी पी लेती है | खाना खाते समय सिद्धेश्वरी की आँखों से बहते आँसू उसकी विवशता और लाचारी को बयान कर रहे थे | 

अत: हम कह सकते हैं कि घर में गरीबी की वजह से भूख होते हुए भी सिद्धेश्वरी और उसके परिवार को भर-पेट खाना नसीब नहीं हो पाता | सभी लोग अभावग्रस्त तथा संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए खुश रहने व दिखने की कोशिश करते रहते हैं...|| 


अमरकांत का जीवन परिचय

प्रस्तुत पाठ के लेखक अमरकांत जी हैं | इनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगरा गाँव में 1925 में हुआ था | इनका मूल नाम 'श्रीराम वर्मा' है | इनकी आरंभिक शिक्षा बलिया में हुई थी | तत्पश्चात्, अमरकांत जी इलाहाबाद
अमरकांत
अमरकांत

विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री हासिल की | साहित्य-सृजन में इनकी बचपन से ही रूचि थी | किशोरावस्था तक आते-आते इन्होंने कहानी लेखन प्रारंभ कर दिया था | अमरकांत जी नई कहानी आंदोलन के एक प्रमुख कहानीकार माने जाते हैं तथा इन्होंने अपनी साहित्यिक जीवन की शुरुआत पत्रकारिता से किया था | अमरकांत जी मुख्यतः मध्यमवर्ग के जीवन की वास्तविकता और विसंगतियों को व्यक्त करने वाले कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं | इन्होंने अपनी कहानियों में शहरी और ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण किया है | इनकी शैली की सहजता और भाषा की सजीवता पाठकों को आकर्षित करती है | 

अमरकांत की कहानियों के शिल्प में पाठकों को चमत्कृत करने का प्रयास नहीं है | वे जीवन की कथा उसी ढंग से कहते हैं, जिस ढंग से जीवन चलता है | आंचलिक मुहावरों और शब्दों के प्रयोग से अमरकांत जी की कहानियों में जीवंतता आती है | 

अमरकांत जी की मुख्य रचनाएँ हैं --- जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र-मिलन, कुहासा (कहानी संग्रह) ; सूखा पत्ता, ग्राम सेविका, काले उजले दिन, सुखजीवी, बीच की दीवार, इन्हीं हथियारों से (उपन्यास) हैं | अमरकांत ने बाल-साहित्य भी लिखा है | इस पुस्तक के लिए उनकी कहानी ‘दोपहर का भोजन’ ली गई है | 



दोपहर का भोजन कहानी के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 सिद्धेश्वरी ने रामचंद्र से छोटे भाई मोहन के बारे में क्या-क्या झूठ बोले ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, सिद्धेश्वरी अपने दोनों बेटों के पास एक-दूसरे के बारे में प्रोत्साहित करने वाली बात बोलती है | सिद्धेश्वरी नहीं चाहती है कि रामचंद्र, मोहन को लेकर किसी भी प्रकार की चिंता पाले | वह मोहन के बारे में रामचंद्र के पास बोलती है कि वह किसी मित्र के यहाँ पढ़ने-लिखने गया है | 

सिद्धेश्वरी, रामचंद्र से कहती है कि मोहन उसकी बहुत तारीफ़ करता है, ताकि रामचंद्र अपना दुःख भूलकर कुछ देर के लिए प्रसन्न हो जाए | 

प्रश्न-2 'उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब ना मालूम हुआ कहाँ से उसकी आँखों से टप-टप आँसू चूने लगे' --- इस कथन के आधार पर सिद्धेश्वरी की व्यथा समझाइए | 

उत्तर- 
'उसने पहला ग्रास मुँह में रखा और तब न मालूम कहाँ से उसकी आँखों से टप-टप आँसू चूने लगे' --- इस कथन के आधार पर सिद्धेश्वरी की दयनीय स्थिति का भाव प्रस्फुटित होता है | सिद्धेश्वरी घर के सभी उतार-चढ़ाव को भलीभाँति समझती है, समस्त ज़िम्मेदारियों का बोझ अपने कंधों पर लेती है तथा परिवार के अन्य सदस्यों के बीच कटुता नहीं आने देती | घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण वह साधनों के अभाव में भी परिवार का पेट भरने का प्रयास करती रहती है | सिद्धेश्वरी को इस बात का अत्यंत दुःख है कि घर का हर सदस्य आधे पेट भोजन करके भी पेट भरा होने का नाटक करता है | घर ऐसी पीड़ा को वह दूसरे से साझा नहीं कर पाती है | इसलिए सिद्धेश्वरी की पीड़ा उसकी आँखों से आँसू बनकर निकलती है | 

प्रश्न-3 रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए जो बहाने करते हैं, उसमें कैसी बेबसी है ? स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, रामचंद्र, मोहन और मुंशी जी खाते समय रोटी न लेने के लिए जो बहाने करते हैं, उसमें अभावग्रस्त जीवन का एक दर्दनाक पीड़ा का एहसास छिपा हुआ है | सभी परिवार की वास्तविकता से अच्छी तरह परिचित हैं | उन्हें पता है कि यदि वे और रोटी ले लेंगे तो घर के दूसरे सदस्यों को भूखा रहना पड़ेगा | इसलिए जब रामचंद्र ने कहा कि उसका पेट भर गया है, तो मोहन ने भी रोटी अच्छी न बनी होने का बहाना किया | तत्पश्चात्, मुंशी चंद्रिका प्रसाद जी ने भी बहाना करते हुए कहा कि नमकीन चीजों से उनका मन ऊब गया है | 

प्रश्न-4 मुंशी जी तथा सिद्धेश्वरी की असंबद्ध बातें कहानी से कैसे संबद्ध हैं ? लिखिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कहानी में सभी लोग अभावग्रस्त तथा संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए खुश रहने व दिखने की कोशिश करते रहते हैं | घर में गरीबी की वजह से भूख होते हुए भी सिद्धेश्वरी और उसके परिवार को भर-पेट खाना नसीब नहीं हो पाता | दोपहर के भोजन के वक़्त सिद्धेश्वरी तथा मुंशी जी के द्वारा की गई असंबद्ध बातें किसी न किसी तरह से कहानी से संबंधित है | जब मुंशी जी खाना खा रहे थे, तभी सिद्धेश्वरी कहती है कि ‘मालूम होता है, अब बारिश नहीं होगी |’ इस बात पर मुंशी जी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई | किन्तु, इस बात का संबंध कहानी से कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से है | क्योंकि यदि बारिश नहीं होगी तो अगले वर्ष फिर से अनाज की कमी हो जाएगी और गरीबी में ही जीवन गुजारना पड़ेगा | 

प्रश्न-5 ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- वास्तव में, पूरी कहानी में दोपहर के भोजन से संबंधित दास्तान को चित्रित किया गया है | प्रस्तुत कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी दोपहर का खाना बनाने के पश्चात् अपने पति और बेटों का इंतजार करती है | बारी-बारी उसके पति और बेटे आते हैं और खाना खाते हैं | बड़ी विचित्र और दुखद बात यह है कि घर में भोजन के अभाव के कारण सभी कम खाना खाकर पेट भरने का बहाना करके चले जाते हैं | बाद में सिद्धेश्वरी भी आधी रोटी खाकर पेट भरने की कोशिश करती है | अत: हम कह सकते हैं कि ‘दोपहर का भोजन’ शीर्षक सार्थक है | 

प्रश्न-6 'वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई |' --- आशय स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'अमरकांत' जी के द्वारा लिखित कहानी 'दोपहर का भोजन' से उद्धृत हैं | इन पंक्तियों से आशय यह है कि जब कहानी की नायिका सिद्धेश्वरी दोपहर का भोजन तैयार करने में लगी हुई थी | तब खाना खाने के वक़्त वह भूख से व्याकुल थी | परन्तु, वह खाना नहीं खा सकती क्योंकि घर में भोजन का अभाव था | किसी ने अभी तक खाना खाया भी नहीं था | यही बात सोचते हुए वह अपनी भूख मिटाने के उद्देश्य से अचानक उठी और एक लोटा पानी लेकर पी | इसलिए कहानी में लेखक कहते हैं कि 'वह मतवाले की तरह उठी और गगरे से लोटा भर पानी लेकर गट-गट चढ़ा गई |'

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दोपहर का भोजन कहानी  पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


• ओसारा - बरामदा
• निर्विकार - जिसमें कोई विकार या परिवर्तन न होता हो
• छिपुली - खाने का छोटा बर्तन
• अलगनी - कपडे टाँगने के लिए बाँधी गई रस्सी
• नाक में दम आना - परेशान होना
• जी में जी आना - चैन आ जाना
• व्यग्रता - व्याकुलता, घबराया हुआ
• बर्राक - याद रखना, चमकता हुआ
• पंडूक - कबूतर का तरह का एक प्रसिद्ध पक्षी
• कनखी - आँख के कोने से  | 



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दोपहर का भोजन कहानी अमरकांत NCERT Hindi class 11 Dopahar Ka Bhojan
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