हमारी जान जाते जाते बची और मैडम पूरी बत्तीसी निपोरे जा रही थी...ट्रेन चल पड़ी थी पर मेरे मोबाइल फोन पर से जैस्मीन वाली परफ्यूम की खुशबू अब भी आ रही था
रात की आखिरी मेट्रो
आखरी मेट्रो पकड़ कर जीटीवी नगर से साकेत आना था करीब रात के 11:35 बज चुके थे मेट्रो आने का समय डिस्प्ले पर 10 मिनट की देरी से शो कर रहा था...पूरा मेट्रो स्टेशन खाली था मेरे से करीब 10 मीटर की दूरी पे एक बुरखा पहने लड़कीं वो भी मेट्रो का इन्तेजार कर रही थी ...उससे जैसमीन वाली इत्र की जबरदस्त खुशबू आरही थी ..फरवरी का महीना था तो ठंड भी बहुत था... तभी हवा के झोंका लिये मेट्रो स्टेशन में प्रवेश कर गई..मेट्रो में ज्यादा भीड़ नही थीं इक्के दुक्के लोग पहले से चढ़े थे तो सीट आराम से मिल गया वो बुरखे वाली लड़की भी बगल सीट पर बैठी थी..काश्मीरी गेट , नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर थोड़ा थोड़ा भीड़ उतर गया और बचाखुचा भीड़ राजीव चौक पर ...अब इस डब्बे में सिर्फ मैं और वो ...बस दोनो ही बैठे थे..उससे उठने वाली खुशबू अब पूरे बन्द डब्बे में गमगमाने लगा..नजर उसके तरफ जाता और फिर झुक जाता..उसका पूरा शरीर कवर था.. फेस पर भी हल्का वाला पर्दा था.. जिससे वो अंदर से सबकुछ देख लेती थी पर बाहर से उसे कोई नही देख सकता..फिर भी ऐसा लग रहा था कि वो मुझे रुक रुक कर मुझे देख रही थी..
रात की आखिरी मेट्रो |
मैं मुस्कुराता हुआ मोबाइल में खो गया कि अचानक कान में आवाज आई मेरे फोन का नेटवर्क काम नही कर रहा तो क्या आप मुझे एक कॉल करवा देंगे.. मैं हड़बड़ा सा गया न जाने वो कब मेरे इतने करीब आकर कान के पास बोली थी...मैं झट से उसे फोन लॉक ओपन करके पकड़ा दिया .वो नम्बर मिलाकर बात करने लगी..बात की सुरुआत तक तो दुआ सलाम सही ही समझ आया..फिर न जाने क्या हुआ...उसकी आवाज एकदम से बदलने लगा..अब वो किसी बात पर हंसी और इतनी भयानक चीत्कार भरी हंसी की डर के मारे मेरा होंश उड़ गया..क्योकि वैसा आवाज मैंने जीवन मे हॉरर मूवी में सुना था... राज फ़िल्म और वीराना फ़िल्म की भूतिया हीरोइन की हंसी जैसी...अब उसका बात करने का रुख और बदला अब वो और जोर जोर से मोटे आवाज में बात कर-कर के हंसे जा रही थी..डर के मारे मेरा हाथ पैर फूलने लगा अब मैं मन ही मन सोंचा एक फोन की बलि दे ही दूँ जिंदा रहा तो कई और फोन खरीद लेंगे...मैं फोन को उसी के पास छोडकर दूसरे डब्बे की ओर भागा... उसमें पहले से चार आदमी के करीब बैठे थे पर वे सब अपने अपने फोन में मस्त थे..मुझमें फिर भी थोड़ा सा जान आया...ग्रीनपार्क स्टेशन आ चूका था ..,गेट खुला तो मै स्टेशन की तरह देखने लगा तभी फिर कान में आवाज आया...अरे आप यहाँ फोन छोडकड यहां क्यो आ गए ...मुझे फिर से पसीने छूटने लगे डर के मारे...,मैं हकलाय पर कुछ बोलने से रहा... अब मैं जोर से चीखकर बचाने की गुहार लगाना चाहता था पर जैसे जुबान को लकवा मार गया था आवाज निकल ही नही रहा था...
तब तक फिर से उधर से फोन उसके परिवार का फोन मेरे फोन पर आया अब फिर वो किसी के फोन पर बाते करने लगी और अगले बार फिर वही आवाज और हँसी... इतनी जोर की हंसी की उस डब्बे में सारे लोग चीखकर भागने लगे...वो लड़कीं सबको भागते देख रुक गई...मुझे भी भागता देख मेरा हाथ पकड़कर बोली रुकिए प्लीज..अब तो मैं बेहोश ही होने वाला था...तभी वो अपने चेहरे से बुरखा उठा दी...सामने कयामत की खूबसूरत लड़कीं थी फिर भी मैं बोल पड़ा तुम चुड़ैल हो ..भगवान के लिये छोड़ो मुझे ..अब मेरा हनुमान चालीसा भी जारी था... वो हंसने लगी पर अब हंसी बदल गया था... लड़कीं नॉर्मल होते हुए बोली सुनिए मैं कोई भूत, चुड़ैल, जिन्न नही हूँ वो तो मेरी फूफी का छोटा बेटा नही सोता तब मुझे कॉल किया जाता और उसी वजह से मुझे डरावनी आवाज और वैसी खतरनाक वाली हंसी हंसना पड़ता ..तब वो कहीं जाकर डर कर सोता हैं..पर माफ करिये आप सभी डर गए मेरी वजह से..मेरा अब चेहरा न हंसने लायक था और न ही रोने लायक ..बस उससे फोन लिया और अपने गंतव्य साकेत पर उतर गया...मैं चुपचाप स्वचलित सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगा और एक बार मुड़कर देखा वो लड़कीं अब भी गेट पर खड़ी थी..मुझे देखकर फिर से मुस्कुरा दी..जीवन मे पहली बार किसी खुबसूरत से मुस्कुराते चेहरे को देखकर लगा कि उसके सारे दांत मुक्का मारकर गिरा दूँ... हमारी जान जाते जाते बची और मैडम पूरी बत्तीसी निपोरे जा रही थी...ट्रेन चल पड़ी थी पर मेरे मोबाइल फोन पर से जैस्मीन वाली परफ्यूम की खुशबू अब भी आ रही था और उसी रात से मेरा आखरी मेट्रो पकड़ने वाला आदत छूट गया .
- विकास शुक्ल
COMMENTS