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आरोहण कहानी संजीव
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आरोहण कहानी का सारांश
यह कहानी पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले दो भाइयों की है | भूप सिंह और रूप सिंह | एक दिन रूप सिंह साहब के साथ घर छोड़कर भाग जाता है भूप सिंह उसे रोकने की बहुत कोशिश करता है, लेकिन वह भूप दादा (बड़े भईया) को धक्का दे कर चला जाता है। भूप दादा नीचे गिर जाते हैं। रूप सिंह कपूर साहब के साथ शहर जाकर ट्रेनिग सेंटर में पहाड़ो में चढ़ना सिखाने का काम करता है, जो आज कल के लोग पर्वतारोही कहलाते हैं | जैसे बछेंद्री पाल जी कुछ इसी तरह के लोगों को वह पहाड़ में चढ़ने की ट्रेनिग देता है, जिसके लिए उसे चार हजार रुपए वेतन मिलती है सरकार की ओर से । रूप सिंह पूरे ग्यारह वर्ष के बाद अपने गाँव वापस आता है। रूप सिंह गाँव आने के बाद एक अजीब किस्म का लाज, झिझक और अपनत्व घेरने लगता है कि कोई उससे ये ना पूछ ले कि वह इतने दिन तक कहाँ था और अब क्यों आया है। उसके साथ कपूर साहब का बेटा शेखर कपूर भी आते हैं। जो दूसरे आई. ए. एस. ट्रेनी हैं। लेकिन बस स्टॉप से रूप सिंह का गाँव पहाड़ों के ऊपर पहाड़ी के उस पार है और पैदल जा नहीं सकते, इसलिए एक दुकानदार से जाने का साधन पूछते हैं तो वह दुकानदार एक बच्चे को उन्हें छोड़ने के लिए कहते हैं। जिसके पास दो घोड़े हैं हीरू और बुरु नाम के बच्चा गुमसुम उदास सा बैठा रहता है। लेकिन दुकान दार के कहने पर वह चला जाता है | रास्ते में शेखर पहाड़ियों की सुंदरता और उजली धूप देखकर देखते ही रह जाते हैं |
पहाड़ों के नीचे से सूपिन नदी की कल-कल बहने की आवाज़ के साथ-साथ किसी बाली उम्र की लड़की की मधुर गीत गाने की आवाज़ सुनाई देती है, जिसे सुनकर वे फुलकित हो जाते हैं। पहाड़ों की सुंदरता और पेड़-पौधों की हरियाली देखते ही मन को मोह लेने वाली होती है। जाते-जाते वे उस बच्चे को उसके विषय में कुछ पूछना चाहते हैं लेकिन महीप उनके बातों को टाल देता है, उनके सवालों का कोई जवाब नहीं देता है। शेखर उसे बेरोजगार देने के लिए अपने साथ ले जाने की बात करता है लेकिन महीप का कोई जवाब नहीं होता है। आगे मैदानी भाग में पहुँचते ही एक सकरा रास्ता मिलता है, जहाँ सामने से बकरियां आ रही होती, वहाँ उन दोनों की नज़र एक कमसिन लड़की को देखने में लगी होती है, जिसे देखकर शेखर का मन उमड़ने लगता है। कुछ समय के बाद वे गाँव पहुँच जाते हैं | जहाँ रूप सिंह तिरलोक नामक बूढ़े से उसके भाई भूप सिंह के बारे में पूछता है | यह बताते हुए की मैं रूप सिंह हूँ जो ग्यारह साल पहले भाग गया था। तब बूढ़ा उससे सवाल करता है कि तुम इतने दिनों तक कहाँ थे ? और क्या करते थे ? तब रूप सिंह उन्हें अपने बारे में बताता है, मैं पहाड़ चढ़ना सिखाता हूँ और मुझे उस काम के चार हजार रुपये तनख़्वाह मिलती है, तब वह हंस पड़ता है कि इस काम का कौन पैसा देता है ? सरकार मूर्ख है क्या। क्योंकि यह काम वहाँ के लिए आम बात है उनके दिनचर्या में होता रहता है |
संजीव की कहानी आरोहण |
पहाड़ों के नीचे से सूपिन नदी की कल-कल बहने की आवाज़ के साथ-साथ किसी बाली उम्र की लड़की की मधुर गीत गाने की आवाज़ सुनाई देती है, जिसे सुनकर वे फुलकित हो जाते हैं। पहाड़ों की सुंदरता और पेड़-पौधों की हरियाली देखते ही मन को मोह लेने वाली होती है। जाते-जाते वे उस बच्चे को उसके विषय में कुछ पूछना चाहते हैं लेकिन महीप उनके बातों को टाल देता है, उनके सवालों का कोई जवाब नहीं देता है। शेखर उसे बेरोजगार देने के लिए अपने साथ ले जाने की बात करता है लेकिन महीप का कोई जवाब नहीं होता है। आगे मैदानी भाग में पहुँचते ही एक सकरा रास्ता मिलता है, जहाँ सामने से बकरियां आ रही होती, वहाँ उन दोनों की नज़र एक कमसिन लड़की को देखने में लगी होती है, जिसे देखकर शेखर का मन उमड़ने लगता है। कुछ समय के बाद वे गाँव पहुँच जाते हैं | जहाँ रूप सिंह तिरलोक नामक बूढ़े से उसके भाई भूप सिंह के बारे में पूछता है | यह बताते हुए की मैं रूप सिंह हूँ जो ग्यारह साल पहले भाग गया था। तब बूढ़ा उससे सवाल करता है कि तुम इतने दिनों तक कहाँ थे ? और क्या करते थे ? तब रूप सिंह उन्हें अपने बारे में बताता है, मैं पहाड़ चढ़ना सिखाता हूँ और मुझे उस काम के चार हजार रुपये तनख़्वाह मिलती है, तब वह हंस पड़ता है कि इस काम का कौन पैसा देता है ? सरकार मूर्ख है क्या। क्योंकि यह काम वहाँ के लिए आम बात है उनके दिनचर्या में होता रहता है |
इतने में किसी की आने की आहट आती है पहाड़ी के ऊपर से धुँधला सा दिखाई देता है | वह और कोई नहीं भूप सिंह है। उनके चेहरे में ताजगी भरी होती है | एक अलग सी चमक होती है | चुस्त और फुर्तीला कद-काठी का। उसके नीचे आते ही तिरलोक सिंह भूप सिंह को रूप सिंह से मिलाता है और उसके दोस्त शेखर से भी। गाँव वालों से भूप सिंह के बेटे के बारे में पता चलता है | उसका बेटा वही बच्चा है, जो उनको छोड़ने आया था | महीप लेकिन वह वहाँ से जा चुका होता है। भुप सिंह उसके बेटे को देखकर ही नीचे आता है। लेकिन वह जा चुका होता है। रूप सिंह और शेखर को भूप दादा घर चलने को कहते हैं दोनों भूप दादा के साथ जाते हैं वह पहाड़ी के ऊपर रहता है वहाँ चढ़ते-चढ़ते वह दोनों थक जाते हैं। तब भूप दादा एक-एक करके दोनों को सहारा देकर ऊपर चढ़ाते हैं। भूप दादा को देखकर रूप सिंह हैरान रह जाते हैं। ऊपर जाते ही उनके भाभी से मुलाकात होती है। दोनों आराम करते हैं सुबह उठने के बाद जब सब नास्ता करने बैठते हैं तब दोनों भाई आपस में बात करते हैं | हाथ में भूँजा हुआ भट्ठा होता है और भूप सिंह अपने बीती हुई बात बताता है कि कैसे भू-स्खलन होने से पूरा गाँव बर्बाद हो गया और माँ-बाबूजी मलबे में दब गए | मैं ऊपर छानी में था तो बच गया लेकिन इन्हीं आँखों से उनको दबते हुए मौत का मंज़र देखता रहा | उस वक्त तेरी बहुत याद आयी अगर तू होता, तो सब बच जाता दोनों मिलकर माँ-बाबूजी और खेत सब बचा लेते लेकिन तू तो मुझे अकेला छोड़ भाग गया था | उसके बाद मैंने शादी कर ली और धीरे-धीरे सब ठीक हो गया | हमने कुछ खेतों को मलबे हटाकर खेती करना शुरू कर दिया। सब ठीक चल रहा था लेकिन तेरी भाभी शैला पेट से थी कुछ काम नहीं कर पाती थी | इसलिए मैंने दूसरी शादी करके नीचे से दूसरी औरत उठा लाया लेकिन शैला को ना जाने क्या सुझा उसने मुझे और हमारे बच्चे महीप को छोड़कर सूपिन नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली महीप ने भी मुझे गुनहगार मानकर मुझे छोड़कर चला गया।
रुप सिंह सब सुनकर दंग रह गया और भाई को बोला कि मेरे साथ शहर चलो हम साथ रहेंगे, लेकिन भूप सिंह ने मना कर दिया वह अपनी ज़मीन और पहाड़ों को छोड़कर नहीं जाना चाहता था | उसने बोला कि मैंने झरनों की धार मोड़कर खेतों में पानी की व्यवस्था की है। पत्थरों का कटाव किया है। बहुत कड़ी मेहनत के बाद यह घर बन पाया है | इसे छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊँगा यहाँ मेरे माँ-बाबूजी है मेरे पूर्वजों की आत्मा यहाँ बसी हुई है ? मुझे भी यहीं रहना है। तुमलोगों ने मेरे साथ बहुत इंसाफ किया है | अब मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो यह कहते हुए वह रोने लगा और रूप को जाने से मना कर दिया ।
इस काहानी में लेखक ने दोनों भाइयों के अलग-अलग चरित्र का वर्णन किया है और एक पहाड़ी स्त्री के इमानदारी और उसके बलिदान का मार्मिक चित्रण हुआ है। यह पाठ पहाड़ों में रहने वाले लोगों की दिनचर्या उनके जीवन शैली भाषा बोली, उनकी सोच का बयान करती हुई पाठक को ओत-प्रोत करने वाली कहानी है। पर्वतारोहण के लिए पाठ सिख देने वाली और लाभदायक है। लेखक पर्वतीय प्रदेशों के मनोभाव और शहर के लोगों के मनोभाव को इस पाठ के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है...||
नाम था। हंस नामक पत्रिका में इनकी कहानियाँ अधिकतर प्रकाशित होती थी। इनकी कहानियों और उपन्यासों में आँचलिक भाषा का प्रभाव अधिक दिखाई देता है। संजीव जी की भाषा में अलग ही तरह की रवानगी देखने को मिलती है, जो पाठक को उनकी रचनाओं से बांध कर रखती है। इन्होंने अपनी रचनाओं में शब्दों का सटीक प्रयोग किया है। संजीव जी की भाषा में बहुत कड़ी पकड़ थी, जिससे इनकी एक अलग पहचान है। कहानी एवं उपन्यास दोनों विधाओं में उन्होंने समान रूप से क्रियाशीलता एवं दक्षता का परिचय दिया है। अब तक उनके 12 कहानी संग्रह और 10 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा संजीव जी हंस पत्रिका के कार्यकारी संपादक रह चुके हैं।
संजीव जी को पहल कथा सम्मान, सुधा कथा सम्मान, हिंदी साहित्य के सबसे बड़े (ग्यारह लाख रुपये के) तीन सम्मान में से एक सम्मान श्री लाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया है | इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं --- तीस साल का सफ़रनामा, आप यहाँ हैं, भूमिका और अन्य कहानियाँ, दुनिया की सबसे हसीन औरत, प्रेतमुक्ति, प्रेरणास्रोत और अन्य कहानियाँ, ब्लैक होल, डायन और अन्य कहानियाँ | किसनगढ़ के अहेरी, जंगल जहाँ शुरु होता है, सावधान ! नीचे आग है, सूत्रधार, धार आदि...||
प्रश्न-1 यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं, किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी ?
उत्तर- यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक घेरने लगी थी, क्योंकि उसके मन में वह सोच रहा था कि कहीं कोई उससे ये ना पूछ ले की तू इतने दिन कहाँ रहा और इतने सालों के बाद वापस किस लिए आया है तो उनको मैं क्या जवाब दूँगा, क्योंकि रूप सिंह घर से भाग गया था और पूरे ग्यारह वर्ष के बाद घर वापस लौटा था |
प्रश्न-2 पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है ? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए |
उत्तर- पत्थर की जाति से लेखक का आशय पत्थर के प्रकार से है। पत्थर निम्नलिखित प्रकार के होते हैं --
• ग्रेनाइट - यह कठोर होता है और यह चट्टान भूरी होती है |
• बेसाल्ट - इस पत्थर का निर्माण ज्वालामुखी से निकले लावा से होता है।
• बलुआ पत्थर - यह बालू से बनाता है |
• संगमरमर - यह चूना पत्थर के बदलने से बनता है। यह मुलायम होता है |
• परतदार पत्थर - यह परतों में पाया जाता है, जो बारिक कणों से बनता है |
प्रश्न-3 महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था ?
उत्तर - प्रस्तुत पाठ के अनुसार महीप अपने विषय में कुछ पूछे जाने पर उस बात को टाल देता था, क्योंकि महीप को रूप सिंह की बाते सुनकर पता चल गया था कि वह उसका चाचा है। अतः जब भी रूप सिंह महीप से उसके विषय में कुछ पूछता था, तो महीप बात को टाल देता था। महीप अपने माँ के साथ हुए अन्याय को भुला नहीं था। उसकी माँ ने अपने पति द्वारा दूसरी स्त्री से शादी कर लेने के कारण आत्महत्या कर ली थी। इससे वह दुःखी था और अपने पिताजी भूप से भी नाराज था। उसने इसी कारण अपना घर छोड़ दिया था और खुद मेहनत करके जीवन यापन करता था अपने पिता जी से दूर |
प्रश्न-4 बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा ?
उत्तर- पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ो में चढ़ना कोई बड़ी बात नहीं होती है | वहाँ रहने वाले लोगों की दिनचर्या का एक भाग होता है पहाड़ो में चढ़ना। और उस क्षेत्र में तो सरकार उन्हें इसके लिए कोई नौकरी नहीं देती है। जब बूढ़े तिरलोक को रूप सिंह ने बताया कि वह शहर में पहाड़ पर चढ़ना सिखाता है, तो वह हैरान रह गया। उसे इस बात की हैरानी थी कि रूप सिंह जिस नौकरी की इतनी तारीफ़ कर रहा है, वो तो बस पहाड़ में चढ़ना सिखाना है, जो यहाँ का हर व्यक्ति जानता है और बस इतनी सी बात के लिए उसे चार हज़ार महीना मिलता है। उसे लगा कि सरकार मूर्खता भरा काम कर रही है। इतने छोटे से काम के लिए चार हज़ार महीना वेतन के रूप में मिलने वाली बात उसे हैरान करने लगी। क्योंकि यह पार्वती इलाकों में आम बात होती है |
प्रश्न-5 रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूप सिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था ?
उत्तर- रूप सिंह शहर में पहाड़ों में चढ़ना जरूर सीखता था। लेकिन कोई रस्सी या अन्य किसी औजार की सहायता से ही वह पहाड़ में चढ़ पाता था। बिना किसी सहारे वह पहाड़ में कदापि नहीं चढ़ पाता था। लेकिन भूप दादा तो पहाड़ो में रहने वाले आम आदमी थे, जिनका रोज ही ऊपर-नीचे चढ़ना, उतरना होता था। वो भी बिना किसी सहारे के और जब रूप सिंह घर आया था तो भूप ने ही ऊपर चढ़ते समय उसे खुद ही सहारा देकर ऊपर ले गया था। यह देखकर रूप सिंह भूप के सामने खुद को बौना महसूस कर रहा था |
प्रश्न-6 शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नई ज़िंदगी की कहानी लिखी ?
उत्तर- भूप ने सबसे पहले पहाड़ के आस-पास का वह मलबा हटाया, जो भूस्खलन के कारण आया था। शैला और भूप दोनों ने साथ मिलकर खेतों को ढलवा बनाया ताकि बर्फ उसमें अधिक समय तक जम न पाए। जब खेत तैयार हो गए, तो उनके सामने पानी की समस्या थी। अतः उन्होंने झरने का रुख मोड़ने के बारे में विचार किया। इस तरह से उनके खेतों में पानी की समस्या हल हो सकती थी। फिर समस्या आई कि गिरते पानी से पहाड़ को कैसे काटा जाए। यह बहते पानी में संभव नहीं था। बारिश के मौसम के बाद पहाड़ को काटना आरंभ किया। क्वार के मौसम में झरना जम जाता था और सुबह धूप के कारण धीरे-धीरे पिघलता था। इस स्थिति में सरलतापूर्वक काम किया जा सकता था। अंत में सफलता पा ही ली और झरने का रुख खेतों की ओर किया जा सका। सर्दियों के समय में झरना जम जाता था, तो उसे आग की गर्मी से पिघला देते और खेतों में पानी का इतंज़ाम करते। इस तरह उन्होंने अपनी मेहनत से नई ज़िंदगी की कहानी लिखी। और कड़ी मेहनत के बाद वे एक नई ज़िंदगी की शुरुवात करने में सफल हुए |
प्रश्न-7 सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको घोड़े पर सवार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मज़दूरों के बारे में सोचते हैं ?
उत्तर- हम भी बाल मजदूरों के बारे में सोचते हैं। हमारे आस- पास बहुत कम उम्र के मासूम बच्चे होटल में, बाजार में, गैराज में और अन्य स्थानों में काम करते हैं। वे बच्चे अपने पढ़ाई-लिखाई करने के उम्र में पेट की प्यास बुझाने के लिए काम कर लेते हैं, ताकि दो वक्त का खाना मिल जाए हमें उन मासूमों की मदद करनी चाहिए | उनसे मजदूरी करवाने के बजाय उनके लिए कुछ कारगार कदम उठाना चाहिए, जिससे उन बच्चों का भविष्य सुधर जाए और पढ़ लिख कर कुछ अच्छा कर सके उन बच्चों के लिए सही कदम उठाने से ही देश आगे बढ़ेगा और बाल मजदूर की समस्या ही नहीं रहेगी |
प्रश्न-8 पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं! उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए |
उत्तर- भूप दादा की चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं ---
• वह एक मेनहती व्यक्ति हैं | उन्होंने हमेशा मेहनत करके ही जीवन यापन किया और पहाड़ों को ही अपना घर मानकर भू-स्खलन से उजड़े स्थान को फिर से बसाया, और खेती करके अपनी पत्नि शैली के साथ मिलकर सब ठीक कर दिया |
• भूप दादा दृढ़ निश्चयी थे। उन्होंने बहुत कठिनाई से जीवन जिया लेकिन कभी हार नहीं मानी |
• वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अपने मुश्किल दिनों में उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया बल्कि कठिन परिश्रम किया |
• हमेशा अपने आप को मजबूत बनाये रखा हर मुश्किल परिस्थितियों का डट कर सामना करते थे |
प्रश्न-9 इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है ? उस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए |
उत्तर- इस कहानी को पढ़कर मेरे मन में पहाड़ों की स्त्रियों के लिए दयनीय छवि बनती है। पहाड़ो में रहने वाली स्त्रियां बहुत मेहनती तथा ईमानदार होती हैं। प्रस्तुत पाठ में शैला भूप सिंह के साथ मिलकर असंभव को संभव बना देती है। पत्थर को काटकर पानी का रुख तक बदल देती है | भूप के हर मुश्किल वक्त में शैला हमेशा सामने खड़ी रहती है लेकिन अंत में अपने पति के धोखे से हार जाती है। वह सबकुछ करने में सक्षम है, लेकिन पुरुष से उसे इसके बदले धोखा ही मिलता है। उसके रहते हुए भी किसी और स्त्री को घर ले आता है और उससे शादी कर लेता है, जिसके कारण शैला मानसिक और शारिरिक कष्ट झेलती है। वह अपने पति से ईमानदारी की आशा नहीं रख सकती है। जब मजबूर हो जाती है, तो आत्महत्या कर लेती है। इससे स्प्ष्ट होता है कि पहाडों में स्त्री को केवल काम करने के योग्य समझा जाता है इससे ज्यादा उनको और कोई मान-सम्मान नहीं दिया जाता। जो अत्यंत दयनिय है |
• खतो-किताबत - पत्र-व्यवहार
• मुकम्मिल - स्थायी
• खासमखास - अंतरंग , अतिविशिष्ट
• तौहीन - बेइज्जती
• जर्द - पिला पड़ना
• इंपोर्टेड - आयातित
• दरियाफ्त - जानकारी प्राप्त करना, पता लगाना
• ह्याँ - यहाँ
• घाट बटी - पहाड़ के पार जाने का रास्ता
• चंदोव - शामियाना, चादर
• दरकना - फटना
• पगुराना - जुगाली करना
• पैबंद - थेगली
• सूपिन - नदी का नाम
• अस्फुट - अस्पष्ट
• कुहेड़ी - कुहरा
• घसेरी - घसवाली
• डांडियाँ - पहाड़ियाँ
• हिलांस - एक पक्षी का नाम
• ना बास - न बसना
• गफलत - गलतफहमी, असावधानी
• अनुतप्त - पछतावे से भरी
• रॉक पिटन - चट्टान में गड्डा करना
• ड्रिल - खोदना
• लैंड स्लाइड - भू-स्खलन
• संभ्रांत - कुलीन, खानदानी, रईस
• मशगूल - व्यस्त, लगा हुआ
• शिनाख्त - पहचान
• शख्शियत - व्यक्तित्व
• तिलस्म - जादू
• वजूद - अस्तित्व
• हिलकोरे - स्वर लहरी
इस काहानी में लेखक ने दोनों भाइयों के अलग-अलग चरित्र का वर्णन किया है और एक पहाड़ी स्त्री के इमानदारी और उसके बलिदान का मार्मिक चित्रण हुआ है। यह पाठ पहाड़ों में रहने वाले लोगों की दिनचर्या उनके जीवन शैली भाषा बोली, उनकी सोच का बयान करती हुई पाठक को ओत-प्रोत करने वाली कहानी है। पर्वतारोहण के लिए पाठ सिख देने वाली और लाभदायक है। लेखक पर्वतीय प्रदेशों के मनोभाव और शहर के लोगों के मनोभाव को इस पाठ के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास किया है...||
संजीव का जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ के लेखक संजीव जी हैं। संजीव जी का जन्म सन् 1947 में ग्राम बांगरकलाँ, जिला-सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था। संजीव जी ने बी.एस.सी. तक की शिक्षा प्राप्त की थी | समकालीन कहानी लेखन के क्षेत्र में इनका प्रमुखसंजीव |
नाम था। हंस नामक पत्रिका में इनकी कहानियाँ अधिकतर प्रकाशित होती थी। इनकी कहानियों और उपन्यासों में आँचलिक भाषा का प्रभाव अधिक दिखाई देता है। संजीव जी की भाषा में अलग ही तरह की रवानगी देखने को मिलती है, जो पाठक को उनकी रचनाओं से बांध कर रखती है। इन्होंने अपनी रचनाओं में शब्दों का सटीक प्रयोग किया है। संजीव जी की भाषा में बहुत कड़ी पकड़ थी, जिससे इनकी एक अलग पहचान है। कहानी एवं उपन्यास दोनों विधाओं में उन्होंने समान रूप से क्रियाशीलता एवं दक्षता का परिचय दिया है। अब तक उनके 12 कहानी संग्रह और 10 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अलावा संजीव जी हंस पत्रिका के कार्यकारी संपादक रह चुके हैं।
संजीव जी को पहल कथा सम्मान, सुधा कथा सम्मान, हिंदी साहित्य के सबसे बड़े (ग्यारह लाख रुपये के) तीन सम्मान में से एक सम्मान श्री लाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया है | इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं --- तीस साल का सफ़रनामा, आप यहाँ हैं, भूमिका और अन्य कहानियाँ, दुनिया की सबसे हसीन औरत, प्रेतमुक्ति, प्रेरणास्रोत और अन्य कहानियाँ, ब्लैक होल, डायन और अन्य कहानियाँ | किसनगढ़ के अहेरी, जंगल जहाँ शुरु होता है, सावधान ! नीचे आग है, सूत्रधार, धार आदि...||
आरोहण कहानी के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं, किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक क्यों घेरने लगी ?
उत्तर- यूँ तो प्रायः लोग घर छोड़कर कहीं न कहीं जाते हैं, परदेश जाते हैं किंतु घर लौटते समय रूप सिंह को एक अजीब किस्म की लाज, अपनत्व और झिझक घेरने लगी थी, क्योंकि उसके मन में वह सोच रहा था कि कहीं कोई उससे ये ना पूछ ले की तू इतने दिन कहाँ रहा और इतने सालों के बाद वापस किस लिए आया है तो उनको मैं क्या जवाब दूँगा, क्योंकि रूप सिंह घर से भाग गया था और पूरे ग्यारह वर्ष के बाद घर वापस लौटा था |
प्रश्न-2 पत्थर की जाति से लेखक का क्या आशय है ? उसके विभिन्न प्रकारों के बारे में लिखिए |
उत्तर- पत्थर की जाति से लेखक का आशय पत्थर के प्रकार से है। पत्थर निम्नलिखित प्रकार के होते हैं --
• ग्रेनाइट - यह कठोर होता है और यह चट्टान भूरी होती है |
• बेसाल्ट - इस पत्थर का निर्माण ज्वालामुखी से निकले लावा से होता है।
• बलुआ पत्थर - यह बालू से बनाता है |
• संगमरमर - यह चूना पत्थर के बदलने से बनता है। यह मुलायम होता है |
• परतदार पत्थर - यह परतों में पाया जाता है, जो बारिक कणों से बनता है |
प्रश्न-3 महीप अपने विषय में बात पूछे जाने पर उसे टाल क्यों देता था ?
उत्तर - प्रस्तुत पाठ के अनुसार महीप अपने विषय में कुछ पूछे जाने पर उस बात को टाल देता था, क्योंकि महीप को रूप सिंह की बाते सुनकर पता चल गया था कि वह उसका चाचा है। अतः जब भी रूप सिंह महीप से उसके विषय में कुछ पूछता था, तो महीप बात को टाल देता था। महीप अपने माँ के साथ हुए अन्याय को भुला नहीं था। उसकी माँ ने अपने पति द्वारा दूसरी स्त्री से शादी कर लेने के कारण आत्महत्या कर ली थी। इससे वह दुःखी था और अपने पिताजी भूप से भी नाराज था। उसने इसी कारण अपना घर छोड़ दिया था और खुद मेहनत करके जीवन यापन करता था अपने पिता जी से दूर |
प्रश्न-4 बूढ़े तिरलोक सिंह को पहाड़ पर चढ़ना जैसी नौकरी की बात सुनकर अजीब क्यों लगा ?
उत्तर- पर्वतीय क्षेत्रों में पहाड़ो में चढ़ना कोई बड़ी बात नहीं होती है | वहाँ रहने वाले लोगों की दिनचर्या का एक भाग होता है पहाड़ो में चढ़ना। और उस क्षेत्र में तो सरकार उन्हें इसके लिए कोई नौकरी नहीं देती है। जब बूढ़े तिरलोक को रूप सिंह ने बताया कि वह शहर में पहाड़ पर चढ़ना सिखाता है, तो वह हैरान रह गया। उसे इस बात की हैरानी थी कि रूप सिंह जिस नौकरी की इतनी तारीफ़ कर रहा है, वो तो बस पहाड़ में चढ़ना सिखाना है, जो यहाँ का हर व्यक्ति जानता है और बस इतनी सी बात के लिए उसे चार हज़ार महीना मिलता है। उसे लगा कि सरकार मूर्खता भरा काम कर रही है। इतने छोटे से काम के लिए चार हज़ार महीना वेतन के रूप में मिलने वाली बात उसे हैरान करने लगी। क्योंकि यह पार्वती इलाकों में आम बात होती है |
प्रश्न-5 रूप सिंह पहाड़ पर चढ़ना सीखने के बावजूद भूप सिंह के सामने बौना क्यों पड़ गया था ?
उत्तर- रूप सिंह शहर में पहाड़ों में चढ़ना जरूर सीखता था। लेकिन कोई रस्सी या अन्य किसी औजार की सहायता से ही वह पहाड़ में चढ़ पाता था। बिना किसी सहारे वह पहाड़ में कदापि नहीं चढ़ पाता था। लेकिन भूप दादा तो पहाड़ो में रहने वाले आम आदमी थे, जिनका रोज ही ऊपर-नीचे चढ़ना, उतरना होता था। वो भी बिना किसी सहारे के और जब रूप सिंह घर आया था तो भूप ने ही ऊपर चढ़ते समय उसे खुद ही सहारा देकर ऊपर ले गया था। यह देखकर रूप सिंह भूप के सामने खुद को बौना महसूस कर रहा था |
प्रश्न-6 शैला और भूप ने मिलकर किस तरह पहाड़ पर अपनी मेहनत से नई ज़िंदगी की कहानी लिखी ?
उत्तर- भूप ने सबसे पहले पहाड़ के आस-पास का वह मलबा हटाया, जो भूस्खलन के कारण आया था। शैला और भूप दोनों ने साथ मिलकर खेतों को ढलवा बनाया ताकि बर्फ उसमें अधिक समय तक जम न पाए। जब खेत तैयार हो गए, तो उनके सामने पानी की समस्या थी। अतः उन्होंने झरने का रुख मोड़ने के बारे में विचार किया। इस तरह से उनके खेतों में पानी की समस्या हल हो सकती थी। फिर समस्या आई कि गिरते पानी से पहाड़ को कैसे काटा जाए। यह बहते पानी में संभव नहीं था। बारिश के मौसम के बाद पहाड़ को काटना आरंभ किया। क्वार के मौसम में झरना जम जाता था और सुबह धूप के कारण धीरे-धीरे पिघलता था। इस स्थिति में सरलतापूर्वक काम किया जा सकता था। अंत में सफलता पा ही ली और झरने का रुख खेतों की ओर किया जा सका। सर्दियों के समय में झरना जम जाता था, तो उसे आग की गर्मी से पिघला देते और खेतों में पानी का इतंज़ाम करते। इस तरह उन्होंने अपनी मेहनत से नई ज़िंदगी की कहानी लिखी। और कड़ी मेहनत के बाद वे एक नई ज़िंदगी की शुरुवात करने में सफल हुए |
प्रश्न-7 सैलानी (शेखर और रूप सिंह) घोड़े पर चलते हुए उस लड़के के रोज़गार के बारे में सोच रहे थे जिसने उनको घोड़े पर सवार कर रखा था और स्वयं पैदल चल रहा था। क्या आप भी बाल मज़दूरों के बारे में सोचते हैं ?
उत्तर- हम भी बाल मजदूरों के बारे में सोचते हैं। हमारे आस- पास बहुत कम उम्र के मासूम बच्चे होटल में, बाजार में, गैराज में और अन्य स्थानों में काम करते हैं। वे बच्चे अपने पढ़ाई-लिखाई करने के उम्र में पेट की प्यास बुझाने के लिए काम कर लेते हैं, ताकि दो वक्त का खाना मिल जाए हमें उन मासूमों की मदद करनी चाहिए | उनसे मजदूरी करवाने के बजाय उनके लिए कुछ कारगार कदम उठाना चाहिए, जिससे उन बच्चों का भविष्य सुधर जाए और पढ़ लिख कर कुछ अच्छा कर सके उन बच्चों के लिए सही कदम उठाने से ही देश आगे बढ़ेगा और बाल मजदूर की समस्या ही नहीं रहेगी |
प्रश्न-8 पहाड़ों की चढ़ाई में भूप दादा का कोई जवाब नहीं! उनके चरित्र की विशेषताएँ बताइए |
उत्तर- भूप दादा की चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं ---
• वह एक मेनहती व्यक्ति हैं | उन्होंने हमेशा मेहनत करके ही जीवन यापन किया और पहाड़ों को ही अपना घर मानकर भू-स्खलन से उजड़े स्थान को फिर से बसाया, और खेती करके अपनी पत्नि शैली के साथ मिलकर सब ठीक कर दिया |
• भूप दादा दृढ़ निश्चयी थे। उन्होंने बहुत कठिनाई से जीवन जिया लेकिन कभी हार नहीं मानी |
• वे स्वाभिमानी व्यक्ति थे। अपने मुश्किल दिनों में उन्होंने किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया बल्कि कठिन परिश्रम किया |
• हमेशा अपने आप को मजबूत बनाये रखा हर मुश्किल परिस्थितियों का डट कर सामना करते थे |
प्रश्न-9 इस कहानी को पढ़कर आपके मन में पहाड़ों पर स्त्री की स्थिति की क्या छवि बनती है ? उस पर अपने विचार व्यक्त कीजिए |
उत्तर- इस कहानी को पढ़कर मेरे मन में पहाड़ों की स्त्रियों के लिए दयनीय छवि बनती है। पहाड़ो में रहने वाली स्त्रियां बहुत मेहनती तथा ईमानदार होती हैं। प्रस्तुत पाठ में शैला भूप सिंह के साथ मिलकर असंभव को संभव बना देती है। पत्थर को काटकर पानी का रुख तक बदल देती है | भूप के हर मुश्किल वक्त में शैला हमेशा सामने खड़ी रहती है लेकिन अंत में अपने पति के धोखे से हार जाती है। वह सबकुछ करने में सक्षम है, लेकिन पुरुष से उसे इसके बदले धोखा ही मिलता है। उसके रहते हुए भी किसी और स्त्री को घर ले आता है और उससे शादी कर लेता है, जिसके कारण शैला मानसिक और शारिरिक कष्ट झेलती है। वह अपने पति से ईमानदारी की आशा नहीं रख सकती है। जब मजबूर हो जाती है, तो आत्महत्या कर लेती है। इससे स्प्ष्ट होता है कि पहाडों में स्त्री को केवल काम करने के योग्य समझा जाता है इससे ज्यादा उनको और कोई मान-सम्मान नहीं दिया जाता। जो अत्यंत दयनिय है |
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आरोहण कहानी पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• खतो-किताबत - पत्र-व्यवहार
• मुकम्मिल - स्थायी
• खासमखास - अंतरंग , अतिविशिष्ट
• तौहीन - बेइज्जती
• जर्द - पिला पड़ना
• इंपोर्टेड - आयातित
• दरियाफ्त - जानकारी प्राप्त करना, पता लगाना
• ह्याँ - यहाँ
• घाट बटी - पहाड़ के पार जाने का रास्ता
• चंदोव - शामियाना, चादर
• दरकना - फटना
• पगुराना - जुगाली करना
• पैबंद - थेगली
• सूपिन - नदी का नाम
• अस्फुट - अस्पष्ट
• कुहेड़ी - कुहरा
• घसेरी - घसवाली
• डांडियाँ - पहाड़ियाँ
• हिलांस - एक पक्षी का नाम
• ना बास - न बसना
• गफलत - गलतफहमी, असावधानी
• अनुतप्त - पछतावे से भरी
• रॉक पिटन - चट्टान में गड्डा करना
• ड्रिल - खोदना
• लैंड स्लाइड - भू-स्खलन
• संभ्रांत - कुलीन, खानदानी, रईस
• मशगूल - व्यस्त, लगा हुआ
• शिनाख्त - पहचान
• शख्शियत - व्यक्तित्व
• तिलस्म - जादू
• वजूद - अस्तित्व
• हिलकोरे - स्वर लहरी
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