मेरे आत्मीय मित्र श्री विजय कुमार जी ,भारत सरकार मे कई मंत्रालयो मे अच्छे ओहदे पर रहे है ।नि:संदेह वह इतिहास और संस्कृति की गहरी जानकारी
देशभक्ति का सच्चा दस्तावेज : वंश भास्कर
( भेडै सदैव अहिन्सक होती है , पर भेडिए नही )
मेरे आत्मीय मित्र श्री विजय कुमार जी ,भारत सरकार मे कई मंत्रालयो मे अच्छे ओहदे पर रहे है ।नि:संदेह वह इतिहास और संस्कृति की गहरी जानकारी रखते हैं ।उन्होंने मुझसे वंश भास्कर का वर्णन किया तो मैं चकित रह गया। यह ग्रंथ सूरजमल मिश्रण द्वारा पिंगल भाषा में( पुरानी राजस्थानी ) रचा गया वंश भास्कर नामक ग्रंथ है , जिसे वेदो के समतुल्य माना गया है। डॉ ओंकार नाथ चतुर्वेदी ( charans.org)चारण समागम के अनुसार के अनुसार इसे कर्नल टॉड के बाद राज्य आश्रय के बिना , स्वयं की प्रभा से उज्ज्वल व्यक्तित्व के धनी सूरजमल मीसड द्वारा लिखा गया , जिन का जन्म बूंदी रियासत के हरणा गांव में 19अक्टूबर 1815 में हुआ था। वंश भास्कर नाम की कृति को अक्षय कीर्ति का आधार स्तंभ माना गया है। सूरजमल मीसड (मिश्र) द्वारा लिखा गया राजा की प्रशस्ति में चंपू काव्य का उदाहरण है। महाकवि ने वीर सतसई , छंद भमूल, धातु रूपावली , बलवंत विलास आदि अन्य पुस्तकै लिखी है ।गुलामी करने वाले राजपूत शाषको को भी अनेक पत्रो के माध्यम से धिक्कारा है ।
राजा रामसिंह ने कवि को उनके वंश से संबंधित उनके पूर्वजों से संबंधित रचना करने के लिए अनुमति तो दे दी , कवि का कहना था कि वह जो लिखेगा सच ही लिखेगा। अच्छाई के साथ-साथ बुराई भी लिखेगा अर्थात उस प्रबंध में उसका भी समावेश किया जाएगा। कवि ने ऐसा ही किया, उन्होंने वर्तमान शासक का वृत्त भी उसमें जोड़ दिया ।फलस्वरूप नोकझोक मे उन पर प्रतिबंध लगा दिए गये । कुछ स्थिति चुगलखोरो की वजह से बिगडी ।
कवि को बुलाया गया। राजा रामसिंह ने कहा," दूसरों की बुराई करने में ऐसे समझे कि हम कि जैसे मिश्री खा रहे है , हमने आपको अपने पूर्वजों के बारे में यह छूट दी थी कि जो भी कमी है लिख दीजिए , लेकिन आपने तो हमारी ही बुराई लिख मारी और अपनी बुराई को सुनना जहर के घूंट पीने के बराबर है ।"
चम्पू , श्रव्य काव्य का एक भेद है। गद्य-पद्य के मिश्रित् काव्य को चम्पू कहते हैं।
वंश भास्कर |
हालाँकि काव्य की इस विधा का उल्लेख साहित्यशास्त्र के प्राचीन आचार्यों- भामह, दण्डी, वामन आदि ने नहीं किया है। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है- "नल चम्पू" जिसकी रचना त्रिविक्रमभट्ट ने 10वीं शताब्दी में की। इसके बाद भोजराज का चम्पू रामायण, सोमदेव सूरि का यशःतिलक, कवि कर्णपूर का आनन्दवृन्दावन भी उल्लेखनीय है। हिन्दी में मैथिलीशरण गुप्त की "यशोधरा" को चम्पू काव्य माना जाता है।राजपूत अपनी तीन चीजें कभी किसी को नही देते एक - तलवार , दूसरी- घोड़ा , प्रिय वस्तु।
एक बार उदयपुर के महाराणा ने कभी इन सुकवि मिश्रा जी को बुलाया और दरबार में कुछ सुनाने की इच्छा कहीं। महाराणा ने कहा कि मैं आपकी यश की गाथा बहुत सुन चुका हूं अब आपको आंखों से भी देख लिया आप कुछ सुनाइए। इस पर कवि ने कहा कि सभी सरदारों से दरबार में तलवारें ले ली जाए और उनको बंद करके कमरे में रखा दिया जाए क्योंकि सुनाने के क्रम मे युद्ध होने का अंदेशा है । कवि की इच्छा अनुसार ऐसा ही किया गया। इसके बाद कवि ने वीर सतसई से सुनाना प्रारंभ किया कि , जब मां अपने बच्चे को पालने में सुलाती है, तो वह इस बात की बच्चे को ताकीद करती है कि, "चाहे जान भले ही चली जाए लेकिन , अपनी जमीन कभी किसी को मत देना।"
वह दोहा ये है : -
"इला न दैणी आपणी,
हालरियो हुलराय ।
पूत सिखावै पालणे,
मरण बडाई माय ।।"
इसके बाद वहां आपस में धक्का-मुक्की हाथापाई और घूसे क बौछार हो गयी और काफी लहूलुहान हो गए , क्योंकि जो बात कही गई थी , तत्कालीन समय में चुभ गई थी कि लोग अंग्रेजों के गुलाम हो गए , उनसे तो वह झांसी की रानी अच्छी थी जो स्वाभिमान पूर्वक अपनी जमीन की रक्षा करते हुए बलिदान हो गई , यह है सच्चा प्रेम, देश प्रेम । वंश भास्कर से पहले ही सूर्यमल मिश्रण की चारों ओर कीर्ति पताका लहरा रही थी। यह वह कवि थे जिन्होंने राज्यश्री को ठुकरा दिया।
चम्पू श्रव्य काव्य का एक भेद है, अर्थात गद्य-पद्य के मिश्रित् काव्य को चम्पू कहते हैं,चम्पूकाव्य परंपरा का प्रारम्भ हमें अथर्व वेद से प्राप्त होता है| हिन्दी में यशोधरा (मैथिलीशरण गुप्त) को चम्पू-काव्य कहा जाता है, क्योंकि उसमें गद्य-पद्य दोनों का प्रयोग हुआ है ।
सच्चे देश प्रेमी को अत्यंत दुख के दिन झेलने पड़े ।उनके राजा ही ने उनको कई बार कैद करा दिया और इन सब दबावों के बावजूद इस कवि ने वंश भास्कर अपूर्ण छोड़ दिया ।
उनकी मृत्यु (30 जून 1868 )के उपरांत दत्तक पुत्र ने यह कार्य पूरा किया। लेकिन यह एक सच्चे देशभक्त का दस्तावेज है और मेरी राय में हम सभी नागरिकों को अपने इतिहास के अतीत की घटनाओं की बारीकी से परख करनी और इन घटनाओ को याद में रखा जाना चाहिए । अलख जगाने के लिए यह जरूरी है ।यह हमारे समाज की सच्ची धरोहर है और श्रुति व स्मृति से संरक्षण और समृद्धि की जानी चाहिए ।
क्षेत्रपाल शर्मा , संपर्क : 19/17, शान्तिपुरम, सासनी गेट आगरा रोड अलीगढ 202001
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