हस्तक्षेप श्रीकांत वर्मा की कविता Class 11 Hindi Antra कविता की व्याख्या अर्थ Hastakshep class 11 question and answers Shrikant Verma ki Kavita प्रश्न
हस्तक्षेप - श्रीकांत वर्मा की कविता
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हस्तक्षेप कविता की व्याख्या अर्थ
कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाय,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हस्तक्षेप' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'श्रीकांत वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मगध में शासन करने वाले शासक लोगों पर अन्याय करती है। मगध की शासन व्यवस्था निरंकुश है। वहाँ की कोई भी प्रजा डर से विरोध नहीं करता है। कोई एक अावाज़ तक नहीं उठाता | सब कहते हैं कि विरोध करने से मगध की शांति भंग हो जाएगी। यदि मगध को बनाए रखना है तो उसके अस्तित्व को बनाए रखना है, मगध में शांति होना जरूरी है। अगर कोई आवाज़ उठाता है तो अशांति फैलेगी | मगध में शांति होना ही चाहिए क्योंकि मगध का अस्तित्व बना रहेगा तो मगध में शांति भी होगी | इसलिए कवि कहते हैं 'मगध है तो शांति भी है' |
श्रीकांत वर्मा |
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाय
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हस्तक्षेप' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'श्रीकांत वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मगध में अत्याचार और अन्याय इतना बढ़ गया है कि कोई डर से बिल्कुल भी अपनी आवाज़ नहीं उठाता | इसलिए कि कहीं मगध की व्यवस्था में कोई आँच न आ जाए | मगध की व्यवस्था में कोई रुकावट न हो। क्योंकि मगध की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए, अगर मगध में व्यवस्था ठीक नहीं रहेगी तो लोग आख़िर क्या कहेंगे, मगध पर हँसेंगे लोग। लेकिन कवि कहते हैं लोगों का तो काम ही है कहना | लोग तो ये भी कहते हैं कि मगध अब तो नाम का मगध रह गया है, किंतु इसका अस्तित्व तो मिट चुका है | यहाँ अत्याचार और आतंक फैल चुका है | यहाँ के शासक निरकुंश हैं |
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाय
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप –
वैसे तो मगधनिवासियो
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से –
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हस्तक्षेप' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'श्रीकांत वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मगध में अन्याय के खिलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठाता है। कोई इस अन्याय को रोकता भी नहीं है | कोई बोलता तक नहीं, लोग डरते हैं कि ऐसा करने से मगध में रोक-टोक करने की परम्परा बन जाएगी। एक बार अगर टोकने की परम्परा बन गई तो मगध में विरोध कभी नहीं रूक पाएगा। हस्तक्षेप करने का नियम बन जायेगा। कवि कहते हैं मगध वासी भले ही हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। विरोध करने से कतराते हैं, लेकिन मगध वासी कब तक विरोध से बचे रहेंगे एक न एक दिन जरूर विरोध करना होगा। शोषण को रोकने के लिए आवाज उठानी ही पड़ेगी |
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुजरता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है –
मनुष्य क्यों मरता है?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हस्तक्षेप' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'श्रीकांत वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि अगर अन्याय और शोषण के खिलाफ़ कोई विरोध नहीं करता तो नगर के बीच में गुजरता हुआ मुर्दा भी उठ कर सवाल करता है और हस्तक्षेप करता है और पूछता है मनुष्य क्यों मरता है ? एक दिन मगध में भी कोई न कोई विरोध भी करेगा, अन्याय को रोकने के लिए आवाज उठाएगा |
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श्रीकांत वर्मा का जीवन परिचय
श्रीकांत वर्मा जी का जन्म सन् 1931 में बिलासपुर (अविभाजित मध्यप्रदेश) में हुआ था। इनकी आरंभिक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई थी | सन् 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. करने के बाद, वर्मा जी ने एक पत्रकार के रूप में अपना सहित्यिक जीवन शुरू किया। उन्होंने श्रमिक, कृति, दिनमान और वर्णिक आदि पत्रों में काम किया। वर्मा जी की रचनाएँ मनुष्य जीवन के गहराईयों से सम्बंधित है | उनकी कविताओं में समय और समाज की विसंगतियाँ और विद्रपताओं के प्रति क्षोभ का स्वर प्रकट हुआ है। भटका मेघ, दिनारम्भ, मायादर्पण, जलसाघर, और मगध उनके चर्चित काव्य संग्रह है। शुरुआत में इनकी रचनाएँ अपने जमीन और ग्राम्य-जीवन की गंध को अभिव्यक्त करते थे। लेकिन उनकी रचना जलसा घर शहरीकरण के खिलाफ़ एक करारा प्रहार है। इनकी रचनाओं में शोषित-उत्पीड़त और बर्बरता के आतंक को स्प्ष्ट रूप से चित्रित किया गया है। उनकी अंतिम रचना मगध तत्कालीन शासक वर्ग के त्रास और उसके अंधकारमय भविष्य को बहुत प्रभावी ढंग से रेखांकित करता है। उन्होंने आधुनिक जीवन का यथार्थ चित्रण किया है। उनकी रचना आम बोलचाल वाली, सरल व सरस है। उन्होंने अपनी रचनाओं में तत्सम-तद्भव शब्दों का प्रयोग किया है |इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- झाड़ी संवाद, दूसरी बार, जिरह, अपोलो का रथ, फैसले का दिन, बीसवीं शताब्दी के अंधेरे में...||
हस्तक्षेप कविता का सारांश
प्रस्तुत पाठ हस्तक्षेप कवि श्रीकांत वर्मा जी के द्वारा रचित है | इस कविता में कवि ने मगध की सत्ता की निरंकुशता एवं क्रूरता का वर्णन किया है कवि के अनुसार व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए उसमें कभी-कभी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। वरना व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। जिस शासन में लोग शोषित एवं पीड़ित होते हैं उस शासन में हस्तक्षेप की बहुत ज्यादा जरूरत होती है, ताकि हो रहे अन्याय और अत्याचार को ख़त्म किया जा सके | इस कविता में ऐसे तन्त्र व्यवस्था का वर्णन है, जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है | इस कविता में कवि से सवाल के ऊपर सवाल उठाए हैं और हो रहे अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ नहीं उठाने पर करारा व्यंग्य किया है | इसमें कवि कहते हैं कि जब अत्याचार और शोषण बढ़ जाता है, तब मुर्दा भी हस्तक्षेप करता है तो ऐसे समाज में ज़िंदा मनुष्य क्यों चुप बैठा है। हो रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ क्यों नहीं उठता है। इसमें कवि ने जनतांत्रिक व्यवस्था पर करारा व्यंग्य किया है...||हस्तक्षेप कविता के प्रश्न उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 मगध के बहाने ‘हस्तक्षेप’ कविता किस व्यवस्था की ओर इशारा कर रही है ?
उत्तर- मगध के बहाने हस्तक्षेप कविता आज के आधुनिक युग में जो अन्याय और शोषण हो रहा है। उस पर कटाक्ष किया है और इसके माध्यम से लोगों को अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और उसका विरोध करने की बात कही है | ताकि अत्याचार न बढ़े, अन्याय को बढ़ावा न मिले। हमेशा अन्याय का विरोध करना चाहिए। कवि ने जिसमें जनतांत्रिक व्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए इशारा किया है |
प्रश्न-2 छींक, चीख और टोक व्यवस्था को बनाए रखने में बाधक कैसे है ?
उत्तर- कवि के अनुसार अगर कोई अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है। बोलता है, उसे रोकने के लिए टोकता है तो मगध की व्यवस्था भंग हो जाएगी, मगध में अशांति फैल जाएगा और टोकने की परम्परा बन जाएगी, जो इसलिए लोग हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं | यही कारण है कि छींक, चीख और टोक मगध की व्यवस्था को बनाये रखने में बाधक है |
प्रश्न-3 मगध निवासी हस्तक्षेप से क्यों कतराते हैं ?
उत्तर- मगध निवासी हस्तक्षेप से इसलिए कतराते हैं, क्योंकि उनको लगता है कि अगर हम विरोध करेंगे तो मगध की शांति भंग हो जाएगी। यहाँ की व्यवस्था में रुकावट आएगी एवं टोकने से रोक-टोक करने का रिवाज बन जायेगा, जिससे मगध को हानि होगी और मगध का अस्तित्व संकट में आ जाएगा |
प्रश्न-4 मुर्दे के हस्तक्षेप करने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- मुर्दे के हस्तक्षेप करने से तात्पर्य यह है कि अगर अन्याय और शोषण बढ़ जाएगा तो उस समय नगर का मुर्दा भी उठ कर प्रश्न करेगा कि इंसान क्यों मरता है ? क्योंकि अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाना ही चाहिये, ताकि अन्याय को रोका जा सके |
(क)- कोई छींकता तक नहीं
उत्तर- इसमें कवि कहते हैं कि मगध के अन्याय के खिलाफ़ कोई आवाज़ नहीं उठाता है | उस निरंकुश दरबार में हो रहे शोषण को सब अनदेखा कर रहे हैं, लेकिन उसके विरुद्ध कोई अपनी आवाज़ नहीं उठाता है |
(ख)- कोई चीखता तक नहीं
उत्तर- इस पंक्ति में कवि का कहना है कि कोई भी मगध में हो रहे अत्याचार को रोकता क्यों नहीं है ? उसके विरुद्ध कोई भी नहीं बोलता है। किसी की भी आवाज़ नहीं निकलती | सब डरते हैं कि मगध की व्यवस्था में रुकावट आएगी |
(ग)- कोई टोकता तक नहीं
उत्तर- इस पंक्ति में कवि मगध के लोगों से कहते हैं कि इस राज्य में हो रहे शोषण को कोई टोकता नहीं है | सब अन्याय को सहन कर लेते हैं। इसके खिलाफ़ कोई भी नहीं बोल पाता , सब डरते हैं कि राज्य में टोकने का नियम बन जाएगा |
प्रश्न-6 'मगध है तो शांति है' -- इस पंक्ति का आशय स्प्ष्ट कीजिए |
उत्तर- इस पंक्ति से कवि का आशय यह है कि यदि मगध के अस्तित्व को बनाए रखना है तो मगध में शांति होना जरूरी है। अगर कोई आवाज़ उठाता है तो अशांति फैलेगी | मगध में शांति होना ही चाहिए, क्योंकि मगध का अस्तित्व बना रहेगा तो मगध में शांति भी होगी | इसलिए कवि कहते हैं 'मगध है तो शांति भी है' |
प्रश्न-7 'मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’ – के माध्यम से कवि क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर- 'मगध अब कहने को मगध है, रहने को नहीं’ – के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि अब मगध में पहले की तरह प्रजा के लिए कार्य नहीं होता है | अब मगध का अस्तित्व ख़त्म हो चुका है। मगध में अन्याय और शोषण होता है | लोगों को प्रताड़ित किया जाता। अब मगध, मगध नहीं रहा उसका अस्तित्व बदल गया है |
प्रश्न-8 'मनुष्य क्यों मरता है ?'---- पँक्ति में निहित व्यंग्य स्प्ष्ट कीजिए |
उत्तर- कवि कहते हैं कि जब अन्याय, अत्याचार, और शोषण बढ़ता है तो पीड़ित व्यक्ति अर्थात मुर्दा भी प्रश्न करता है और पूछता है कि आख़िर इंसान क्यों मरता है ? इसमें कवि ने अनाचार के खिलाफ़ स्प्ष्ट व्यंग्य किया है |
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हस्तक्षेप कविता से संबंधित शब्दार्थ
• हस्तक्षेप - रोकना, प्रश्न उठाना
• रिवाज - चलन, प्रथा, परम्परा
• कतराओ - बचो, सामने ना आओ
• टोकता - रोकना, बोलना
• दखल - रुकावट होना |
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