नींद उचट जाती है कविता नरेन्द्र शर्मा Neend Uchat Jaati Hai class 11 explanation कविता की व्याख्या summary कविता के प्रश्न उत्तर cbse ncert class 11
नींद उचट जाती है कविता नरेन्द्र शर्मा
नींद उचट जाती है कविता की व्याख्या भावार्थ
जब-तब नींद उचट जाती हैपर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?
देख-देख दुःस्वप्न भयंकर,
चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर;
पर भीतर के दुःस्वप्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
नींद उचट जाती है |
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि कभी-कभी रात में नींद खुल जाती है, लेकिन क्या रात में किसी की नींद खुल जाने के बाद रात कटती है या एक बुरे समय के जैसा पूरी रात ही ख़राब हो जाती है। इसमें कवि ने समाज में जागृति, विकास और चेतना का अभाव को बताया है | जैसे समाज में जागृति ना होने से पूरा समाज अँधेरे में डूब जाता है।
कवि कहते है कि रात में भयंकर बुरा सपना देखकर मैं चौक कर उठ जाता हूँ। उस भयंकर सपने से डरकर मेरी नींद उचट जाती है। लेकिन मेरे अंदर जो बुरे सपने हैं, उससे कहीं ज्यादा दर्दनाक अँधेरा तो बाहर छाया हुआ है | समाज में कोई विकास, और जागृति नही हैं, बस चेतना और जागृति आने की आश होती है | लेकिन जो समाज में कभी आती नहीं है |
देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिंता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब-जब श्वान शृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में कोई जागृति नहीं है | समाज में अँधेरा छाया हुआ है | यह अँधेरा देख आँखों को तकलीफ़ होती है। मन मे बुरे ख्याल आते हैं। चिंता से प्राण सूखने लग जाते हैं, जब-जब यह अँधेरा बढ़ता है। पूरी तरह से सन्नाटा गहरा होने लगता है | चारों ओर खमोशी होती है, लेकिन जब-जब कुत्ते और सियार भौंकने लगते हैं, तब-तब मन मे शंका और भय की भावना होती है। इसके बाद सुनहरी सुबह भी आँखों को नहीं भाती है |
मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निंद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में घोर अँधेरा देख मन करता है की फिर से गहरी नींद में सो जाऊँ जब तक कि समाज में अँधेरा रहेगा जागृति नही आएगी तब तक मैं स्थिर रहूँ ,जब तक धरती में रात है तब तक विराम रहूँ, यह सोचते-सोचते कवि को नींद नही आती है और बेचैन होकर करवट बदलते रहते हैं रात भर।
करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि रात भर करवट बदलते रह गया लेकिन अँधेरा नहीं जा रहा है | सुबह ही नहीं हो रही है, कवि का मन उतावला से पागल हो रहा है, पूरी रात नयन जाग रहे थे | पलक तक नहीं झपकी, पुतलियाँ तक स्थिर हो गई थी, ऐसा लग रहा था, जैसे यह समय रुक सा गया हो, सांस यह आशा में अटकी हुई है कि जल्दी सुबह हो जाए, मन सुबह के आश में रात भर भटकती है |
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंद्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ नींद उचट जाती है कविता से उद्धृत हैं, जो कवि नरेन्द्र शर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैं सोया नहीं हूँ जब तक समाज में जागृति नहीं आ जाती मुझे नींद कैसे आएगी, संसार से अभी यह भयवाह अँधेरा गया नही है। इस अँधकार भरे धरती पर कोई उजाले का फेरा लगा रहा है । लेकिन अन्तदृष्टि के आगे से अँधेरे का चट्टान हट नही पता है। समाज के लिए अंतदृष्टि उजाले की खोज करता है। लेकिन समाज से अभी अँधेरा दूर नही हुआ है।
से एम.ए. की उपाधि लिया। सन् 1943 में वे मुंबई चले गए और वहाँ फिल्मों के लिए गीत और संवाद लिखने का कार्य करते रहे। शर्मा जी मूल रूप से गीतकार हैं। इनकी भाषा सरल व प्रवाहपूर्ण है। संगीतात्मकता एवं स्पष्टता इनके गीतों की विशेषता है। उनके अधिकांश गीत यथार्थ वादी दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। उन्होंने प्रकृति के सौंदर्य का बहुत ही अनूठा चित्रण किया है। उन्होंने प्रेम की भाव और व्याकुलता तथा प्रकृति की कोमल सुंदरता को विशेष रुप से दर्शया है। जिसके कारण उन्हें एक अलग पहचान मिली है। जो गीत उन्होंने फिल्मों के लिए लिखें हैं, वे गीत साहित्यिकता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं। शर्मा जी जीवन के अंतिम समय तक फिल्मों से जुड़े हुए थे | उनके अंतिम दौर की रचनाएँ आध्यात्मिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि लिए हुए हैं। इन्होंने आम जन-जीवन से जुड़ी कहानियाँ एवं कविताएँ लिखी हैं। समाज की बुराइयों, विषमताओं को इन्होंने अपनी कविताओं में लिखकर व्यक्त किया है। इन्होंने छायावादी एवं प्रगतिवादी दोनों प्रकार की ही कविताएँ लिखी हैं। नरेन्द्र शर्मा जी की मृत्यु सन् 1989 को हृदय की गति रुकने के कारण हुई थी |
इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, हंसमाला, रक्त चंदन, कदली वन, द्रौपदी, प्यासा निर्झर आदि...||
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 कवि ने भीतर के दुःस्वप्नों से अधिक भयावह किसे माना है और क्यों ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, कवि ने भीतर के दुःस्वप्नों से अधिक भयावह बाहर के अँधेरे को माना है। क्योंकि समाज में कोई विकास और जागृति नहीं है, बस चेतना और जागृति आने की आश होती है समाज में लेकिन कभी आती नहीं है |
प्रश्न-2 किस तरह की आश कवि को रात भर भटकाती है और क्यों ?
उत्तर- कवि समाज में छाये अँधेरे रात को लेकर चिंतित है कि कब समाज में विकास होगा ? कब समाज में जागृति और चेतना आएगी ? समाज का उत्थान कब होगा ? ये सब सोच-सोच कर कवि को नींद नहीं आती है | नयन जागते रहते हैं, सांस भी इसी आश में थम गई है और मन की चिंता कवि को रात भर भटकाती रहती है |
प्रश्न-3 कवि चेतन से फिर जड़ होने की बात क्यों करता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कवि समाज की स्थिति को देखकर सोचते हैं कि मैं फिर से गहरी नींद में सो जाता हूँ, जब तक धरती में रात होगी तब तक मैं स्थिर हो जाता हूँ | जब तक कि समाज जागृत और विकसित नहीं हो जाता है, उस समय तक मैं विराम हो जाता हूँ |
प्रश्न-4 'अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है!' इस पंक्ति में 'अंतर्नयन' और 'तम की शिला' से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- 'अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है!' इस पंक्ति से कवि का तात्पर्य यह है कि मेरे अंतर्दृष्टि से अँधेरे का जो चट्टान है, वह हट नहीं रहा है। अर्थात् समाज में अभी जागृति नहीं आयी है |
प्रश्न-5 आशय स्प्ष्ट कीजिए ---
(क)- आती नहीं उषा……………………. आहट आती है!
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में कोई विकास और जागृति नहीं है, बस चेतना और जागृति आने की आश होती है समाज में लेकिन कभी आती नहीं है |
(ख)- जागृति नहीं अनिद्रा मेरी……………. भव-निशा अँधेरी!
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि मैं सोया नहीं हूँ, जब तक समाज में जागृति नहीं आ जाती मुझे नींद कैसे आएगी | संसार से अभी यह भयवाह अँधेरा गया नहीं है। समाज अभी जागृत नहीं हुआ है |
(ग)- करवट नहीं………………….. में अक्षम!
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि रात भर करवट बदलते रह गया लेकिन अँधेरा नहीं जा रहा है | सुबह ही नहीं हो रही है, कवि का मन उतावलापन से पागल हो रहा है |
• दुश्चिंता - दुख देनेवाली चिंता
• भीत भावना - भय और शंका की भावना
• निमिष - क्षण, पल
• तम- अँधेरा
• श्वान- कुत्ता
• श्रृगाल - सियार
• भोर - सुबह
• अकुलाहट - बेचैनी
• भव-निशा - संसार रूपी भयावह रात
• चकफेरी - चारों ओर चक्कर काटना
• अंतर्नयनों - अंतदृष्टि |
देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिंता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब-जब श्वान शृगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में कोई जागृति नहीं है | समाज में अँधेरा छाया हुआ है | यह अँधेरा देख आँखों को तकलीफ़ होती है। मन मे बुरे ख्याल आते हैं। चिंता से प्राण सूखने लग जाते हैं, जब-जब यह अँधेरा बढ़ता है। पूरी तरह से सन्नाटा गहरा होने लगता है | चारों ओर खमोशी होती है, लेकिन जब-जब कुत्ते और सियार भौंकने लगते हैं, तब-तब मन मे शंका और भय की भावना होती है। इसके बाद सुनहरी सुबह भी आँखों को नहीं भाती है |
मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निंद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में घोर अँधेरा देख मन करता है की फिर से गहरी नींद में सो जाऊँ जब तक कि समाज में अँधेरा रहेगा जागृति नही आएगी तब तक मैं स्थिर रहूँ ,जब तक धरती में रात है तब तक विराम रहूँ, यह सोचते-सोचते कवि को नींद नही आती है और बेचैन होकर करवट बदलते रहते हैं रात भर।
करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
थिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'नींद उचट जाती है' कविता से उद्धृत हैं, जो कवि 'नरेन्द्र शर्मा' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि रात भर करवट बदलते रह गया लेकिन अँधेरा नहीं जा रहा है | सुबह ही नहीं हो रही है, कवि का मन उतावला से पागल हो रहा है, पूरी रात नयन जाग रहे थे | पलक तक नहीं झपकी, पुतलियाँ तक स्थिर हो गई थी, ऐसा लग रहा था, जैसे यह समय रुक सा गया हो, सांस यह आशा में अटकी हुई है कि जल्दी सुबह हो जाए, मन सुबह के आश में रात भर भटकती है |
जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंद्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ नींद उचट जाती है कविता से उद्धृत हैं, जो कवि नरेन्द्र शर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैं सोया नहीं हूँ जब तक समाज में जागृति नहीं आ जाती मुझे नींद कैसे आएगी, संसार से अभी यह भयवाह अँधेरा गया नही है। इस अँधकार भरे धरती पर कोई उजाले का फेरा लगा रहा है । लेकिन अन्तदृष्टि के आगे से अँधेरे का चट्टान हट नही पता है। समाज के लिए अंतदृष्टि उजाले की खोज करता है। लेकिन समाज से अभी अँधेरा दूर नही हुआ है।
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नरेन्द्र शर्मा जीवन परिचय
प्रस्तुत पाठ या कविता के लेखक नरेन्द्र शर्मा जी हैं | इनका का जन्म सन् 1923 में उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर जिले के जहाँगीरपुर गाँव में हुआ था। इन्होंने गाँव में ही प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण किया तथा शर्मा जी ने प्रयाग विश्वविद्यालयनरेन्द्र शर्मा |
इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, हंसमाला, रक्त चंदन, कदली वन, द्रौपदी, प्यासा निर्झर आदि...||
नींद उचट जाती है कविता का सारांश मूल भाव
प्रस्तुत पाठ नींद उचट जाती है कवि नरेन्द्र शर्मा जी के द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने ऐसी लम्बी रात का वर्णन किया है, जिसमें डरावने सपने देखकर आधीरात में नींद खुल जाती है और नींद ख़राब हो जाती है | पूरी रात जागना पड़ता है। यह लम्बी रात का अँधेरा समाप्त ही नहीं होता है | कवि को उम्मीद है कि कोई किरण नज़र नहीं आती है। इस कविता में कवि ने अँधेरे के माध्यम से समाज के स्तर पर विकास, जागृति और चेतना अभाव को बताने का प्रयास किया है तथा बुरे स्वप्न के निराशा का चित्रण हुआ है। कवि इस कविता में समाज की जागृति, और विकास चाहते हैं तथा अँधेरे से मुक्त होकर रौशनी का द्वार खोलने की बात कहते हैं |कवि जीवन में दोनों स्तर के अंधेरे को दूर करने की बात करते हैं | वह चाहते हैं कि समाज में जागृति, चेतना फैले और सभी के जीवन से अंधेरा दूर हो जाए...||नींद उचट जाती है कविता के प्रश्न उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 कवि ने भीतर के दुःस्वप्नों से अधिक भयावह किसे माना है और क्यों ?
उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, कवि ने भीतर के दुःस्वप्नों से अधिक भयावह बाहर के अँधेरे को माना है। क्योंकि समाज में कोई विकास और जागृति नहीं है, बस चेतना और जागृति आने की आश होती है समाज में लेकिन कभी आती नहीं है |
प्रश्न-2 किस तरह की आश कवि को रात भर भटकाती है और क्यों ?
उत्तर- कवि समाज में छाये अँधेरे रात को लेकर चिंतित है कि कब समाज में विकास होगा ? कब समाज में जागृति और चेतना आएगी ? समाज का उत्थान कब होगा ? ये सब सोच-सोच कर कवि को नींद नहीं आती है | नयन जागते रहते हैं, सांस भी इसी आश में थम गई है और मन की चिंता कवि को रात भर भटकाती रहती है |
प्रश्न-3 कवि चेतन से फिर जड़ होने की बात क्यों करता है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, कवि समाज की स्थिति को देखकर सोचते हैं कि मैं फिर से गहरी नींद में सो जाता हूँ, जब तक धरती में रात होगी तब तक मैं स्थिर हो जाता हूँ | जब तक कि समाज जागृत और विकसित नहीं हो जाता है, उस समय तक मैं विराम हो जाता हूँ |
प्रश्न-4 'अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है!' इस पंक्ति में 'अंतर्नयन' और 'तम की शिला' से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- 'अंतर्नयनों के आगे से शिला न तम की हट पाती है!' इस पंक्ति से कवि का तात्पर्य यह है कि मेरे अंतर्दृष्टि से अँधेरे का जो चट्टान है, वह हट नहीं रहा है। अर्थात् समाज में अभी जागृति नहीं आयी है |
प्रश्न-5 आशय स्प्ष्ट कीजिए ---
(क)- आती नहीं उषा……………………. आहट आती है!
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि कहते हैं कि समाज में कोई विकास और जागृति नहीं है, बस चेतना और जागृति आने की आश होती है समाज में लेकिन कभी आती नहीं है |
(ख)- जागृति नहीं अनिद्रा मेरी……………. भव-निशा अँधेरी!
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि मैं सोया नहीं हूँ, जब तक समाज में जागृति नहीं आ जाती मुझे नींद कैसे आएगी | संसार से अभी यह भयवाह अँधेरा गया नहीं है। समाज अभी जागृत नहीं हुआ है |
(ग)- करवट नहीं………………….. में अक्षम!
उत्तर-प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि रात भर करवट बदलते रह गया लेकिन अँधेरा नहीं जा रहा है | सुबह ही नहीं हो रही है, कवि का मन उतावलापन से पागल हो रहा है |
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नींद उचट जाती है कविता से संबंधित शब्दार्थ
• दुश्चिंता - दुख देनेवाली चिंता
• भीत भावना - भय और शंका की भावना
• निमिष - क्षण, पल
• तम- अँधेरा
• श्वान- कुत्ता
• श्रृगाल - सियार
• भोर - सुबह
• अकुलाहट - बेचैनी
• भव-निशा - संसार रूपी भयावह रात
• चकफेरी - चारों ओर चक्कर काटना
• अंतर्नयनों - अंतदृष्टि |
हां इसलिए हैं आंखें ठीथकी अंधेरा कब चल जा
जवाब देंहटाएंकब समाज की आंख खुलेगी और निखार आएगा
नींद में व्याकुल सपना हमको याद दिलाने आती
सोच में व्याकुल अपने मन एकाग्र नहीं कर पाए।
रचनाकार की रचनाएं अपने आप में निराली हैं
दुनिया में सुख शांति रहे संदेश यही दे डाली हैं।