NCERT Class 11th Hindi Antra Book Chapter 6 Khanabadosh खानाबदोश ओमप्रकाश वाल्मीकि Explanation And Summary

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खानाबदोश ओमप्रकाश वाल्मीकि



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खानाबदोश पाठ का सारांश

प्रस्तुत पाठ या कहानी खानाबदोश लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी के द्वारा लिखित है | इस कहानी के माध्यम से लेखक ने मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण और यातना को चित्रित करने का प्रयास किया है | यह कहानी इस बात की ओर भी इशारा करती है कि मज़दूर वर्ग हमारे समाज की जातिवादी मानसिकता से नहीं उबर पाया है | मज़दूर वर्ग यदि ईमानदारी से मेहनत-मज़दूरी करके इज्ज़त के साथ जीवन जीना चाहता है, तो सूबे सिंह जैसे समृद्ध और ताक़तवर लोग उन्हें जीने नहीं देते | देखा जाए तो कहानी में वास्तविकता उत्पन्न करने में इसके स्थानीय संवाद सहायक बने हैं | 

वाल्मीकि जी ने प्रस्तुत पाठ में मज़दूरों के साथ हो रहे शोषण और अन्याय को बखूबी दर्शाया है | असगर ठेकेदार के साथ मानो और सुकिया गाँव छोड़कर तरक्क़ी की उम्मीद के सहारे ईंट के भट्ठे पर काम करने आए थे | असगर ठेकेदार ने मानो और सुकिया के एक सप्ताह के काम से खुश होकर, उन्हें साँचे पर ईंट पाथने का काम दे दिया था | वहाँ पर ईंटें पकाने के लिए कोयला, बुरादा, लकड़ी और गन्ने की बाली को मोरियों के अंदर डालना होता था। भट्टे पर मोरी का काम सबसे ख़तरनाक था। छोटी सी भी असावधानी मौत की वजह बन सकती थी | 

देखा जाए तो कहीं न कहीं मानो के मन में शारीरिक शोषण का डर, बात न मानने पर प्रतिकूल व्यवहार की घबराहट थी। यदि तरक्की करनी है तो शहर में रहना ही पड़ेगा। पहले महीने ही सुकिया ने कुछ रुपए बचा लिए थे, जिन्हें देखकर मानो भी प्रसन्न थी। उन दोनों ने ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना आरंभ कर दिया था | वैसे भट्ठे पर दिन का समय तो गहमा-गहमी वाला होता था, लेकिन रात होते ही भट्ठा अंधेरे की गिरफ्त में चला जाता था | मानो भट्टे के माहौल से तालमेल नहीं बिठा पाई थी, इसलिए खाना बनाते समय चूल्हे से आती चिट-पिट की आवाज़ में उसे अपने मन की दुश्चिंताओं और आशंकाओं की आवाजें सुनाई देने लगती थीं |

NCERT Class 11th Hindi Antra Book Chapter 6 Khanabadosh खानाबदोश ओमप्रकाश वाल्मीकि Explanation And Summary
ओमप्रकाश वाल्मीकि

उनके साथ भट्टे पर एक छोटी उम्र का लड़का जसदेव भी काम किया करता था। भट्ठे के मालिक मुख़तार सिंह का बेटा सूबे सिंह था | दरअसल, एक रोज सूबे सिंह भट्ठे पर आया। सूबे सिंह के भट्ठे पर आने से भट्ठे का वातावरण ही बदल गया। उसके सामने असगर भी भीगी बिल्ली बन जाया करता था | भट्टे पर किसनी नाम की महिला भी काम किया करती थी, जिसे सूबे सिंह ने अपने जाल में फंसा लिया था। किसनी सूबे सिंह के साथ शहर भी कई दिनों के लिए चली जाती थी। किसनी का पति महेश सबकुछ जानकर भी मन मारकर रह जाता था। किसनी के रहन-सहन बदल गए थे। अब तो उसके पास ट्रांजिस्टर के साथ-साथ अच्छे और कीमती कपड़े आ गए थे। भट्टे पर पकती लाल-लाल ईंटों को देखकर मानो खुश थी। वह ज्यादा से ज्यादा काम करके, अत्यधिक रुपए जोड़कर अपने लिए एक पक्का मकान बनाने का सपना देखने लगी थी। लेकिन एक रोज किसनी के अस्वस्थ होने पर सूबेसिंह ने ठेकेदार असगर के द्वारा मानो को अपने दफ़्तर में बुलवाया। बुलावे की बात सुनते ही मानो और सुकिया बेहद घबरा गए। वे सूबेसिंह की नीयत भाँप गए थे | मानो इज्ज़त की जिंदगी जीना चाहती थी। अपने परिश्रम से रुपए जोड़ना चाहती थी | वह किसनी बनना नहीं चाहती थी। मानो और सुकिया की घबराहट देखकर जसदेव मानो के स्थान पर खुद सूबेसिंह से मिलने उसके दफ्तर चला गया। सूबेसिंह ने जसदेव के साथ अमानवीय व्यवहार किया, उसे अपशब्द बोला और लात-घूसों से पिटाई कर उसे अधमरा सा कर दिया | उस दिन की घटना के बाद से सूबे सिंह से सभी सहम गए थे | उसकी बुरी नियत से परिचित हो गए थे | 


सुकिया और मानो जसदेव को झोपड़ी में ले आए। मानो और सुकिया के दिल में जसदेव के प्रति अपनत्व के भाव प्रस्फुटित होने के कारण दोनों जसदेव के लिए रोटी बनाकर ले जाती है, परन्तु ब्राह्मण होने के कारण उसने मानो की बनाई रोटी खाने से इनकार कर दिया | तत्पश्चात्, असगर ठेकेदार जसदेव को सुकिया और मानो के चक्कर में न पड़ने की सलाह देता है। उक्त घटना के बाद से सूबे सिंह सुकिया और मानो को तंग करने लगा। उसने सुकिया से साँचा छीनकर जसदेव को दे दिया और सुकिया को मोरी के काम पर लगा दिया | मानो और भी ज्यादा डरने लगी थी। छोटी-छोटी बातों पर उनकी मज़दूरी कटने लगी थी। अब तो जसदेव भी मानो पर अपना हुक्म चलाने लगा था। एक दिन मानो ने जब पाथी ईंटों को सूखने के लिए आड़ी-तिरछी जालीदार दीवारों के रूप में लगा दिया और जब अगली सुबह वह जल्दी ही काम पर गई तो वहाँ देखा कि पहले दिन की ईंटें टूटी पड़ी थीं। वह दृश्य देखकर अंदर से टूट गई और दहाड़ें मारकर रोने लगी। मानो की आवाज़ सुनकर सभी मज़दूर वहाँ इकट्ठे हो गए थे | मानो की आवाज़ सुनकर सुकिया भी वहाँ आया और टूटी ईंटे देखकर वह भी आश्चर्य में पड़ गया, उसे कुछ समझ में नहीं आया | ठेकेदार ने टूटी ईंटों की मज़दूरी देने से स्पष्ट शब्दों में इनकार कर दिया | 

इस घटना के पश्चात् सुकिया और मानो दोनों बुरी तरह टूट गए थे। दोनों वहाँ से अगले काम की तलाश में निकल पड़े थे। भट्ठा उन्हें अपनी खानाबदोश जिंदगी का एक पड़ाव लगने लगा था | सुकिया के पीछे-पीछे चल पड़ने से पहले मानो ने जसदेव की ओर देखा था | मानो को यक़ीन था कि जसदेव उनका साथ देगा | परन्तु, जसदेव की खामोशी से उसका विश्वास चकनाचूर हो गया। मानो के सीने में एक टीस उभरी थी | सर्द साँस में बदलकर मानो को छलनी कर गई थी | उसके होंठ फड़फड़ाए थे कुछ कहने के लिए, लेकिन शब्द घुटकर रह गए थे | सपनों के काँच उसकी आँख में किरकिरा रहे थे | वह भारी मन से सुकिया के पीछे-पीछे चल पड़ी थी, अगले पड़ाव की तलाश में, एक दिशाहीन यात्रा पर...|| 

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ओमप्रकाश वाल्मीकि जीवन परिचय  

प्रस्तुत पाठ के लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी हैं | इनका जन्म बरेली, ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर, उत्तरप्रदेश में हुआ था | इनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता तथा पढ़ाई के दौरान भी इन्हें अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं मानसिक पीड़ा से गुज़रना पड़ा | वाल्मीकि जी अपने जीवन का कुछ वक़्त महाराष्ट्र में गुजारे | वहाँ वे दलित लेखकों के सम्पर्क में आए | जिसका परिणाम यह निकला कि वे डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की रचनाओं का अध्ययन करने लगे | इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन देखने को मिला | वर्तमान में वाल्मीकि जी देहरादून स्थित ऑर्डनेन्स फैक्टरी में एक अधिकारी के रूप में सेवारत हैं | 

वाल्मीकि जी ने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक साहित्य का भी सृजन किया है | इनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है | इसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है | हिन्दी में दलित साहित्य के विकास में वाल्मीकि जी की महत्वपूर्ण भूमिका है | उन्होंने अपने लेखन में जातीय अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है | वे मानते हैं कि एक दलित ही दलित की पीड़ा व कष्टों को बेहतर तरीके से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रमाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है | 

नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी वाल्मीकि जी की रूचि रही है | अपनी आत्मकथा 'जूठन' के कारण उन्हें हिन्दी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली | वाल्मीकि जी को 1993 में 'डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार' और 1995 में 'परिवेश सम्मान'  से अलंकृत किया जा चुका है | इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं --- बस! बहुत हो चुका, सदियों का संताप (कविता संग्रह) ; सलाम (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा)...|| 




खानाबदोश पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11


प्रश्न-1 जसदेव की पिटाई के बाद मजदूरों का समूचा दिन कैसा बीता ? 

उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जसदेव की पिटाई के बाद मज़दूरों का समूचा दिन दहशत के वातावरण में बीता | सभी इस भय में थे कि सूबेसिंह किसी भी वक़्त लौटकर आएगा और मार-पीट करेगा | 

प्रश्न-2 सूबेसिंह ने जसदेव को क्यूँ मारा ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, सूबेसिंह सिंह किसनी का शारीरिक शोषण करता था | एक रोज जब वह बीमार पड़ी, तो उसने अपनी हवस मिटाने के लिए मानो को अपने दफ्तर में बुलावा भेजा | मानो को ऑफिस में बुलाने की बात सुनकर जसदेव मानो के स्थान पर ऑफिस में चला गया | जिस पर क्रोध में आकर सूबेसिंह उसे खूब मारा | 

प्रश्न-3 खानाबदोश कहानी में आज के समाज की किन समस्याओं को रेखांकित किया गया है ? इन समस्याओं के प्रति कहानीकार के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए | 

उत्तर- खानाबदोश कहानी में आज के समाज की निम्नलिखित समस्याओं को रेखांकित किया गया है --- 

• मज़दूरों का निरन्तर शोषण तथा उनका नरकीय   जीवन, 
• मजबूरीवश, किसानों का जीविका चलाने के लिए गाँवों से पलायन, 
• जात-पात से संबंधित भेद-भाव की समस्या,
• स्त्रियों का शोषण व उनके प्रति अमानवीय व्यवहार | 

प्रश्न-4 मानो अभी तक भट्ठे की जिंदगी से तालमेल क्यों नहीं बैठा पाई थी ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, मानो का घर शहर से दूर खेतों में था, जहाँ पर परिवहन व यातायात का कोई साधन न था। गाँव की बदहवाली के कारण उसे भट्ठे पर काम करने के लिए आना पड़ा था। मानो को भट्ठे का माहौल पसंद नहीं था, लेकिन फिर भी अपने पति सुकिया के कारण भट्ठे में काम करना उसकी मजबूरी थी | शाम ढलते ही ऐसा आभास होता था, जैसे वहाँ का वातावरण काट खाने को दौड़ा रहा हो | मानो ऐसे माहौल में घबराने लगती थी। यही कारण था कि मानो अभी तक भट्ठे की जिंदगी से तालमेल नहीं बैठा पाई थी | 

प्रश्न-5 'खानाबदोश' कहानी की मूल संवेदना पर प्रकाश डालिए | 

उत्तर- वास्तव में, 'खानाबदोश' कहानी की मूल संवेदना मजदूर वर्ग का शोषण है | प्रस्तुत कहानी में लेखक वाल्मीकि जी ने मजदूरी करके किसी तरह गुजर-बसर कर रहे मजदूर वर्ग के शोषण तथा यातना को चित्रित करने का प्रयास किया है | मजदूर यदि इज्ज़त के साथ जीना भी चाहे तो सूबेसिंह जैसे समृद्ध और ताक़तवर लोग उन्हें जीने नहीं देते | उनको प्रताड़ित करते रहते हैं | 

प्रश्न-6 जसदेव ने मानो के हाथ का खाना क्यों नहीं खाया ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जसदेव ने मानो के हाथ का का खाना इसलिए नहीं खाया क्योंकि मानो दलित समाज से ताल्लुक़ रखती थी और जसदेव उच्च या ब्राह्मण जाति था | साथ ही उसे यह भी लग रहा था कि उसे बचाने के प्रयास में ही उसने मार खाया है | 

प्रश्न-7 निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए --- 
(क)-  अपने देस की सूखी रोटी भी परदेस के पकवानों से अच्छी होती है।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति 'खानाबदोश' पाठ से ली गई हैं, जिसके लेखक 'ओमप्रकाश वाल्मीकि' जी हैं | उक्त पंक्ति के माध्यम से लेखक कहते हैं कि मनुष्य जहाँ पैदा हुआ होता है, वही उसका देश है। वहाँ पर यदि उसे पकवान के स्थान पर साधारण खाना भी मिले, तो वह अच्छा और स्वादिष्ट होता है। इसका मतलब यह है कि जहाँ मनुष्य बचपन से रहता आया है, वहाँ पर जीने के लिए उसे दूसरों की शर्तों पर नहीं चलना पड़ता। वहाँ पर वह पूरी आजादी और मान-सम्मान के साथ जीता है। 

(ख)- इत्ते ढेर से नोट लगे हैं घर बणाने में। गाँठ में नहीं है पैसा, चले हाथी खरीदने।

उत्तर- 
प्रस्तुत पंक्ति 'खानाबदोश' पाठ से ली गई हैं, जिसके लेखक 'ओमप्रकाश वाल्मीकि' जी हैं | उक्त पंक्ति के माध्यम से सुकिया, मानो को संबोधित करते कहता है कि घर बनाना आसान काम नहीं है। इसके लिए बहुत सारे नोटों की ज़रूरत होती है। इस समय हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम पक्के घर का सपना देख सकें | हम मेहनत-मजदूरी करनेवाले लोग हैं | 

(ग)- उसे एक घर चाहिए था - पक्की ईंटों का, जहाँ वह अपनी गृहस्थी और परिवार के सपने देखती थी।

उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति खानाबदोश पाठ से ली गई हैं, जिसके लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि जी हैं | उक्त पंक्ति के माध्यम लेखक कहते हैं कि मानो और सुकिया मज़दूरी करके जीवन जीते थे | वे ठेकेदार पर आश्रित थे | मानो के मन में भी पक्की ईंटो का घर बनाने का सपना जन्म लेने लगा था। वह खुद के घर में अपनी गृहस्थी को आगे बढ़ाना चाहती थी तथा अपने बच्चों के लिए पक्का छत चाहती थी | 

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खानाबदोश ओमप्रकाश वाल्मीकि पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


• ताड़ लेना - अंदाज़ लगाना
• दुश्चिता – बुरी चिंता
• शिद्दत – तीव्रता
• बवंडर - हलचल
• टेम - समय
• कातरता - अधीरता
• अदम्य – जिसे रोका न जा 
• अंतर्मन - हृदय
• मुआयना - निरीक्षण
• कतार - पंक्ति
• प्रतिध्वनियाँ - गूंज
• निगरानी - देख-रेख
• वामन - ब्राह्मण
• स्याहपन - अँधेरा
• बसंत खिल उठना - सुखद विचार आना
• घियी बँधना - कुछ बोल न पाना
• तरतीब - ढंग
• जिनावर - जानवर
• टीस - कसक
• थारी - तुम्हारी  | 



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