औरै भाँति कुंजन में गुंजरत गोकुल के कुल के गली के गोप भौंरन को गुंजन बिहार पद्माकर Kavitt Padmakar class 11 question answers संदर्भ सहित व्याख्या
पद्माकर कवि की कविता
मूल भाव summary and easy explanation of padmakar poem पद्माकर की कविताएं अंतरा भाग-१ mahakavi padmakar ki kavita class 11 kavitt padmakar summary पद्माकर पाठ के प्रश्न उत्तर class 11 padmakar easy explanation by sahitya saundarya Padmakar question answers in hindi Padmakar question answers in hindi class 11 Padmakar class 11 hindi prashan uttar class 11 hindi chapter 13 Important question Padmakar important question class 11 hindi chapter 13 antra question answer Kavitt Padmakar summary class 11 Kavitt Padmakar class 11 question and answers Kavitt Padmakar summary explanation padmakar ki kavita ka easy explanation Kavitt Padmakar explanation in hindi भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में औरै भाँति कुंजन में गुंजरत भौरन को गुंजन बिहार Kavitt Padmakar kavita bhauran ko gunjan bihar ban kunjan me
औरै भाँति कुंजन में गुंजरत कविता का भावार्थ
औरे डौर झौरन पैं बौरन के ह्वै गए।
कहैं पद्माकर सु औरै भाँति गलियानि,
छलिया छबीले छैल औरै छबि छ्वै गए।
औरै भाँति बिहग-समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
औरै रस औरै रीति औरै राग औरै रंग,
औरै तन औरै मन औरै बन ह्वै गए।।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ ''औरै भाँति कुंजन में गुंजरत" कवित्त से उद्धृत हैं, जो कवि 'पद्माकर' जी के द्वारा रचित हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि बसन्त ऋतु के आगमन से प्रकृति की सुंदरता बढ़ गई है। बसन्त ऋतु को कवि ऋतुओं का राजा मानते हैं | पद्माकर जी कहते हैं कि बसन्त ऋतु के आते ही भौंरों के समूह का झाड़ियों में घूमना कुछ अलग ही प्रकार का होता है तथा आम के डालियों में जो बौर आते हैं वो भी अलग ही होती है। बसंत ऋतु में तरह-तरह के फूल और बौर बाग-बगीचों में लगे होते हैं। पद्माकर जी कहते हैं कि गलियों में घूमने वाले सुन्दर नवयुवकों में एक अलग ही छवि छा गई है, सभी बहुत ही आकर्षित नजर आ रहे हैं। और अभी ऋतुराज को आये दो दिन भी नहीं हुए हैं लेकिन पूरे प्रकति में अलग ही सौन्दर्य बिखर गया है प्रकृति मे कुछ अलग ही आवाज गूँजने लगी है। इस ऋतु के आने से एक अलग ही रस, अलग रंग, अलग राग, अलग ही रीति प्रकृति में नज़र आने लगी है। इसके आने से तन, मन प्रसन्न हो गया है। सब कुछ नया और अलग सा लगने लगा है।
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गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के संदर्भ सहित व्याख्या
गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ "गोकुल के कुल के गली के गोप" कवित्त से उद्धृत हैं, जो कवि 'पद्माकर' जी के द्वारा रचित हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि गोकुल के गाँव के गोपियों की गलियों के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता | गोकुल के गलियों में होली का उत्सव मनाया जा रहा है, उसका वर्णन नहीं कर सकते | सब होली के रंग में सराबोर हैं। पद्माकर जी कहते हैं कि वहाँ लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ रहे हैं लेकिन कोई किसी के गुण-अवगुण को नहीं पहचानता है। ऐसे में होली के रंग में सनी एक चतुर सखी के बारे में क्या कहना वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन निचोड़ने का मन नहीं करता। क्योंकी वह तो श्याम के प्रेम रंग में ही चोरी-चोरी रंग चुकी है। वह प्रेम रंग में डूब चुकी है अब उसे निचोड़ते नहीं बन रहा है। श्याम के अनन्य प्रेम में खो जाने के बाद उन्हें किसी प्रकार के लोक-निंदा की परवाह नहीं है। कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती है।
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।
कहैं पद्माकर परोस-पिछवारन के,
द्वारन के दौरि गुन-औगुन गनैं नहीं।
तौ लौं चलित चतुर सहेली याहि कौऊ कहूँ,
नीके कै निचौरे ताहि करत मनै नहीं।
हौं तो स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी,
बोरत तौं बोर्यौ पै निचोरत बनै नहीं।।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ "गोकुल के कुल के गली के गोप" कवित्त से उद्धृत हैं, जो कवि 'पद्माकर' जी के द्वारा रचित हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि गोकुल के गाँव के गोपियों की गलियों के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता | गोकुल के गलियों में होली का उत्सव मनाया जा रहा है, उसका वर्णन नहीं कर सकते | सब होली के रंग में सराबोर हैं। पद्माकर जी कहते हैं कि वहाँ लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ रहे हैं लेकिन कोई किसी के गुण-अवगुण को नहीं पहचानता है। ऐसे में होली के रंग में सनी एक चतुर सखी के बारे में क्या कहना वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन निचोड़ने का मन नहीं करता। क्योंकी वह तो श्याम के प्रेम रंग में ही चोरी-चोरी रंग चुकी है। वह प्रेम रंग में डूब चुकी है अब उसे निचोड़ते नहीं बन रहा है। श्याम के अनन्य प्रेम में खो जाने के बाद उन्हें किसी प्रकार के लोक-निंदा की परवाह नहीं है। कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती है।
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भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में व्याख्या
पद्माकर |
भौंरन को गुंजन बिहार बन कुंजन में,
मंजुल मलारन को गावनो लगत है।
कहैं पद्माकर गुमानहूँ तें मानहुँ तैं,
प्रानहूँ तैं प्यारो मनभावनो लगत है।
मोरन को सोर घनघोर चहुँ ओरन,
हिंडोरन को बृंद छवि छावनो लगत है।
नेह सरसावन में मेह बरसावन में,
सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है।।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ "भौंरन को गुंजन बिहार"कवित्त से उद्धृत हैं, जो कवि 'पद्माकर' जी के द्वारा रचित हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु आते ही बाग-बगीचों में भौंरों का गुंजन कोई सुन्दर मल्हार गीत गा रहा है, ऐसा लगता है। पदमाकर जी कहते हैं कि सावन में प्राणों से प्यारी प्रेयसी का घमंड से रूठना भी और उसे बार-बार मनाना भी मन को बहुत अच्छा लगता है। वर्षा ऋतु में मोरों का शोर चारों ओर फैल जाता है। ऐसे में आँखो के सामने झूला की छवि छाने लगती है और सावन में बारिश के साथ प्रेम, स्नेह का भी बारिश होता है। इस सावन में झूला झूलना सुहाना लगता है |
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महाकवि पद्माकर का जीवन परिचय
महाकवि पद्माकर जी का जन्म 1753 में हुआ था। वे बाँदा उत्तरप्रदेश के निवासी थे। इनके पिता का नाम मोहन लाल भट्ट था । पद्माकर जी का रीतिकालीन कवियों में महत्वपूर्ण स्थान था। पद्माकर जी के परिवार में इनके अलावा पिता और उनके कुल के अन्य लोग भी कवि थे। इस कारण उनके वंश का नाम ही 'कविश्वर' पड़ गया था। पद्माकर बहुत सारे राज-दरबारों में रहते थे। बूंदी दरबार की तरफ़ से उन्हें सम्मान और दान भी मिला था। महाराज पन्ना ने उन्हें बहुत सारे गाँव दान में दिए थे। जयपुर के नरेश ने उन्हें विशेष सम्मान कविराज शिरोमणि की उपाधि से नवाजा था। पद्माकर जी ने सजीव मूर्त विधान करने वाली कल्पना के द्वारा शौर्य, शृंगार, प्रेम, भक्ति, राजदरबार और प्रकृति-सौन्दर्य का मार्मिक चित्रण किया है। जगह-जगह लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग द्वारा वे सूक्ष्म-से-सूक्ष्म भावानुभूतियों को सहज ही मूर्तिमान कर देते हैं। उनके ऋतु-वर्णन में भी इसी जीवन्तता और चित्रात्मकता के दर्शन मिलते हैं। उनके आलंकारिक वर्णन का प्रभाव परवर्ती कवियों पर भी पड़ा है। कवि पद्माकर जी की भाषा सरस, काव्यमय, सुव्यवस्थित और प्रवाहपूर्ण है। अनुप्रास द्वारा ध्वनिचित्र खड़ा करने में वे अद्वितीय थे। काव्य-गुणों का पूरा निर्वाह उनके छंदों में हुआ है। छंदानुशासन और काव्य-प्रवाह की दृष्टि से दोहा, सवैया और कवित्त पर जैसा अधिकार पद्माकर का था, वैसा अन्य किसी कवि की रचनाओं में दिखलाई नहीं पड़ता है।इनकी कुछ प्रमुख कृतियाँ हैं --- पदमाभरण, रामरसायन, गंगा लहरी, हिम्मत बहादुर, विरुदावली, प्रताप सिंह विरुदावली, प्रबोध पचासा, जगद्विनोद आदि...||
पद्माकर पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कविता तीन शीर्षकों में विभक्त हैं | "औरै भाँति कुंजन में गुंजरत, गोकुल के कुल के गली के गोप और भौंरन को गुंजन बिहार" , जो लेखक 'महाकवि पद्माकर' जी के द्वारा रचित है। पहले कवित्त में कवि ने बसंत ऋतु के प्रकृति-सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि ने बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा है। बसंत के आगमन पर सब अलग और नया सा लगने लगता है चारों ओर सुन्दर फूल भौंरों का शोर सब सुन्दर और विचित्र लगता है | कवि ने इसी परिवर्तन का चित्रण किया है । दूसरे कवित्त में गोपियाँ लोक-निंदा और सखी-समाज की कोई परवाह किए बिना कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती हैं। इसमें कवि ने कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम का वर्णन किया है। अंतिम कवित्त में कवि ने वर्षा ऋतु के सौंदर्य को भौंरों के गुंजार, मोरों के शोर और सावन के झूलों में देखा है। और मेघ के बरसने में कवि नेह को बरसते देखता है। इसमें वर्षा ऋतू का अत्यंत सुंदर और मनमोहक वर्णन मिलता है...||---------------------------------------------------------
पद्माकर पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 पहले कवित्त में कवि ने किस ऋतु का प्रभावशाली वर्णन किया है ?
उत्तर- पहले कवित्त में कवि ने बसंत ऋतु का प्रभावशाली वर्णन किया है।
प्रश्न-2 'स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी' से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर- 'स्याम-रंग में चुराई चित चोराचोरी' से कवि का आशय है कि गोपी श्याम के प्रेम रंग में चोरी-चोरी डूब चुकी है |
प्रश्न-3 पहले कवित्त में ‘औरै’ की आवृत्ति से अर्थ में क्या विशिष्टता उत्पन्न हुई है ?
उत्तर- पद्माकर ने अपने पहले कवित्त में ‘औरे’ शब्द की आवृत्ति की है। इसकी आवृत्ति ने उनके कवित्त में विशिष्टता के गुण का समावेश किया है। इसके अर्थ से वसंत ऋतु के सौंदर्य को और अधिक प्रभावशाली रूप से व्यक्त किया है। इस शब्द से पता चलता है कि अभी जो प्राकृतिक सुंदरता थी उसमें और भी वृद्धि हुई है। इसके आने से सब अलग और नया सा लगता है।
प्रश्न-4 'पद्माकर’ के काव्य में अनुप्रास की योजना अनूठी बन पड़ी है।’ उक्त कथन को उनकी कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- 'पद्माकर’ के काव्य में अनुप्रास की योजना अनूठी बन पड़ी है।’ जी नीचे दिए गए निम्नलिखित उनके कविता के आधार पर स्प्ष्ट है-----
(क) भीर भौंर
(ख) छलिया छबीले छैल और छबि छ्वै गए
(ग) गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
(घ) कछू-को-कछू भाखत भनै
(ङ) चलित चतुर
(च) चुराई चित चोराचोरी
(छ) मंजुल मलारन
(ज) छवि छावनो
अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से पद्माकर जी की कविता में चार-चाँद लग जाते हैं |
प्रश्न-5 पद्माकर ने कवित्त में होली का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गोकुल के गलियों में होली का उत्सव मनाया जा रहा है उसका वर्णन बहुत सुंदर किया गया है । पद्माकर जी कहते हैं कि वहाँ लोग अपने आस-पड़ोस, पिछवाड़े और द्वार-द्वार तक दौड़ रहे हैं लेकिन कोई किसी के गुण-अवगुण को नहीं पहचानता है। ऐसे में होली के रंग में सनी एक चतुर सखी के बारे में क्या कहना वह रंग में भीगे हुए अपने कपड़े को अच्छी तरह से निचोड़ने का प्रयास करती है, लेकिन निचोड़ने का मन नहीं करता। क्योंकी वह तो श्याम के प्रेम रंग में ही चोरी-चोरी रंग चुकी है। वह प्रेम रंग में डूब चुकी है अब उसे निचोड़ते नहीं बन रहा है। श्याम के अनन्य प्रेम में खो जाने के बाद उन्हें किसी प्रकार के लोक-निंदा की परवाह नहीं है। कृष्ण के प्रेम में डूबे रहना चाहती है |
प्रश्न-6 सखी अपने चित्त को श्याम-रंग में डूब जाने पर उसे निचोड़ना क्यों नहीं चाहती ?
उत्तर- सखी अपने चित्त को श्याम-रंग में डूब जाने पर उसे निचोड़ना नहीं चाहती क्योंकि सखी श्याम के प्रेम रंग में चोरी-चोरी डूब चुकी है और अब उसी में डूबी रहना चाहती है क्योंकि वह कृष्ण से बहुत प्रेम करती है। अगर इसे निचोड़ देगी तो कृष्ण का रंग निकल जायेगा।
प्रश्न-7 सावन ऋतू की किन-किन विशेषताओं का तीसरे कवित्त में वर्णन हुआ है ?
उत्तर- सावन ऋतु की निम्नलिखित विशेषताओं का तीसरे कवित्त में वर्णन हुआ है----
(क) बगीचे में भँवरों का स्वर गुजन कर रहा है । गुंजार मल्हार राग की तरह मनभावन लग रहा है।
(ख) इस ऋतु के प्रभाव से ही अपना प्रिय प्रियशु प्राण से अधिक प्यारा लगता है।
(ग) मोर की ध्वनि हिंडोलों की छवि-सी लगती है।
(घ) यह प्रेम की ऋतु है।
(ङ) झूला- झूलने के लिए यह ऋतु बहुत ही सुहावन है। सावन की बारिश प्रेम की वर्षा कर रही है।
प्रश्न-8 "गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के
जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं |"------प्रस्तुत पँक्ति में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर- "गोकुल के कुल के गली के गोप गाउन के जौ लगि कछू-को-कछू भाखत भनै नहीं।"-- प्रस्तुत पँक्ति में अनुप्रास अलंकार है |
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पद्माकर पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• औरे - और ही प्रकार का
• कुंजन - झड़ियों में
• बौरन - बौर (आम का फूल)
• भीर-भौंर - भौंरों का समूह
• छबीले-छैल - सुन्दर नवयुवक
• भाखत भनै नहीं - कहा नहीं जा सकता, वर्णन करते नहीं बनता
• गुन-औगुन - गुण-अगुण
• चतुर - होशियार
• बोरत - डुबोना
• नीचौर - निचोड़ना
• मंजुल - सुन्दर
• मलारन - मल्हार राग
• हिंडोरन - झूला
• द्वै - दो
• मानहुँ - मनाना
• सुहावनो - सुहाना
• ओरन - ओर, दिशा
• नेह - प्रेम |
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