सब आँखों के आँसू उजले कविता महादेवी वर्मा class 11 hindi poem sab aankhon mein aasu ujle question and answers explanation in hindi प्रश्न उत्तर
सब आँखों के आँसू उजले महादेवी वर्मा
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सब आँखों के आँसू उजले कविता का अर्थ व्याख्या भावार्थ
सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किंतु कब दीप खीला कब फूल जला ?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि प्रकृति के परिवर्तन शील सच्चाई से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करने की राह चुन सकता है | सभी मनुष्य की आँखों के आँसू में उजलापन होता है | सभी के अपने-अपने सपने होते हैं | उनकी अपनी सच्चाई होती है। जिस प्रकृति ने एक दिये को ज्वाला दिया है, उसी प्रकति ने फूलों में खुशबु भी भरी है। जो दिया खुद जल कर अपनी प्रकाश दूसरों पे न्यौछावर करता है तथा फुल अपनी सुन्दर खुशबु बिखेरता है। वे दोनों एक दूसरे के साथी हैं। दोनों के रास्ते एक हैं भाव भी एक समान है, परंतु दीपक कभी फूल की तरह खिल नहीं सकता और फूल कभी दीपक की तरह जल नहीं सकता सब की अपनी-अपनी सच्चाई होती है। प्रकति का स्वरूप सत्य और यथार्थ है |
वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका उर्मिल नित करूणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि प्रकृति द्वारा निर्मित वह पर्वत पृथ्वी को चंचल धारा के रूप में बहने वाली सैकड़ों झरनों के रूप में जल को भेंट देता है। जो जल हमेशा से धरती को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन झरनों से बहने वाले जल हमेशा निर्मल और करूणा से भरे हुए होते हैं। महादेवी जी कहती हैं कि ये चारों ओर पृथ्वी को घेरे हुए जल पर्वतों से झरनों के रूप में निकलते हैं और समुद्र में भर जाते हैं किंतु समुद्र और पर्वत ये दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं क्योंकि कभी भी समुद्र पर्वत के हृदय की तरह कठोर नहीं बन सकता और न ही कभी भी पर्वत अपनी कठोरता छोड़कर सागर की तरह अपने शरीर को बदल सकता है पर्वत कभी करुणा नहीं दिखा सकता। न ही सागर कठोर बन सकता है |
नभ तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झुम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला ?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से हीरे और सोने में तुलना करते हुए कवयित्री कहती हैं कि हीरा आकाश की तारे की तरह टूटकर भी प्रशन्न हो रहा है। लेकिन हीरा तो तभी चमकता है, जब वह चाकू की धार को चूमता है जब उसे चाकू से तराशा जाता है और सोना अंगारों का मधु रस पीकर अर्थात् आग में जलकर केशर की लाल-लाल किरणों के समान झूम रहा है। भले ही दोनों अनमोल हैं। लेकिन क्या कभी हीरा पिघलता है और क्या सोना कभी टूटता है। कभी नहीं, क्योंकि सोना को पिघलाकर ही आभूषण बनाया जाता है और हीरा टूटकर भी सभी टुकडों में अपनी चमक बरकरार रखता है | यही प्रकृति की स्वाभाविक स्वरूप है |
नीलम मरकत के संपुट दो
जिसमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रुप
उसकी आभा स्पदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि नीला आकाश रूपी नीलम और हरे-भरे पन्ने के समान धरती दो दोने के समान है। जिसमें जीवन रूपी मोती बनती है। इन्हीं दोनों के बीच में सभी रंग-रूप बनते हैं, जिसमें उस परमात्मा की चमक, और धड़क भी होती है एवं जिस आकाश के बादल में बिजली बनती है वहाँ जल भी होती है | उस जल का रेत में गिरने से उस रेत में बीज बोने पर उसमें एक छोटा पौधा निकल आता है |
संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपने साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने सपने में सत्य ढला!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सब आँखों के आँसू उजले कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों की नई छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरी इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो, जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 'मोम के बंधन' और 'तितलियों के पर' कथनों में क्या अर्थ निहित है ?
उत्तर- 'मोम के बंधन' और 'तितलियों के पर' कथनों के माध्यम से कवयित्री कहना चाहती हैं कि हे मानव क्या तुम्हें ये मोमबत्ती की तरह कोमल रिस्तों के बंधन बांध लेंगे ? क्या ये सुन्दर नारियाँ तुम्हारे कर्त्तव्य के रास्ते पर बाधा बन जाएँगे ? इसमें महादेवी जी सब मोह माया को त्याग कर मानव को निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं |
प्रश्न-2 संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना क्या व्यंजित करता है।
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना यह व्यंजित करती है कि हे संघर्षशील मनुष्य तुम अपने जीवन की दर्द भरी कहानी मुझे ठंडी आहें लेकर मत सुनाओ उसे भूल जाओ, जब तुम्हारे हृदय में जोश की आग होगी तो तुम्हारी आँखों में खुद ही सम्मान का पानी सुसज्जित होगा। तेरे संघर्ष से हार भी जीत में बदल जाएगी | तुम इन असफलताओं से निराश न होना तुम्हें तुम्हरे संघर्ष का परिणाम अवश्य मिलेगा |
प्रश्न-3 प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है -- इस भाव को किस उदाहरण द्वारा पुष्ट किया गया है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है -- इस भाव को दीपक और पतंगें की उदाहरण देकर पुष्ट किया गया है, जैसे पतंगा दीपक की रौशनी में खुद को जला कर न्यौछावर कर देता है और अपने प्रेम के लिए जरा सी राख बनकर भी अमर हो जाता है |
प्रश्न-4 मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर- मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने निम्नलिखित प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है --- जैसे-हिमालय में कंपन से, आँसूओ के प्रलय आने से आकाश के रोने से या फिर भयंकर तूफ़ान के आ जाने से, संसार के मोह माया में फंस कर अपने कर्तव्य के रास्ते से भटक जाने को भी कवयित्री ने मार्ग का बाधा कहा है। विश्व के रुदन एवं क्रंदन को भूलकर सुख सुविधाओं में लिप्त रहने को मृत्यु से भी बदतर बताया है | सांसारिक सुख सुविधाओं को भी मार्ग में आने वाली बाधा कहा गया है । कवयित्री ने इस कविता के माध्यम से संघर्षरत जीवन को अमृत बताया है। इसमें महादेवी जी ने भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए कोमल बन्धनों से मुक्त अपने लक्ष्य की ओर निरतंर बढ़ने का सन्देश दिया है |
प्रश्न-5 प्रत्येक छंद के अंत में "चिन्ह अपने छोड़ आना अपने लिए कारा बनाना, मृत्यू को उर में बसाना, मृदुल कलियाँ बिछाना" का संदेश देकर मनुष्य के किन गुणों को विस्तार देने की बात कविता में कही है ?
उत्तर- प्रत्येक छंद के अंत में "चिन्ह अपने छोड़ आना अपने लिए कारा बनाना, मृत्यू को उर में बसाना, मृदुल कलियाँ बिछाना" का संदेश देकर मनुष्य के आत्मविश्वास को बढ़ाने और निरन्तर अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करती है, ताकि वह अपने रास्ते में अपना एक छाप छोड़ते हुए चले एवं मोह माया से मुक्त होकर निरन्तर बढ़ते रहे और अंगारों के सेज पर भी कोमल कली बिछा कर आगे का रास्ता तय करना है | मृत्यु के डर को मन में नहीं बसा के रखना है, बल्कि हमें आत्मनिर्भर बनके हमेशा आगे बढ़ते रहना है |
प्रश्न-6 निम्नलिखित पंक्तियों के आशय स्प्ष्ट कीजिए ---
(क) विश्व का क्रंदन……………………...दूर जाना !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी जी कहती हैं कि क्या तुम इन भौरों की गुनगुन सुनकर सारे संसार का दुख, उनके रोने की चीख को भुला दोगे। क्या ये ओस के बून्द से भीगे फूलों की पंखुड़ियाँ तुम्हें डूबा देंगे। तुम अपनी परछाई को अपने ही लिए जेल ना बना लेना | इस दुनिया की मोह माया में बंधकर अपने रास्ते से भटक नहीं जाना क्योंकि तुम्हें तो अभी बहुत दूर तक जाना है |
(ख) कह न ठंडी………………………….आज पानी !
उत्तर- प्रस्तुत पँक्ति के माध्यम से महादेवी जी कहती हैं कि हे संघर्ष शील मनुष्य तुम अपने जीवन की दर्द भरी कहानी मुझे ठंडी आहें लेकर मत सुनाओ | उसे भूल जाओ, जब तुम्हारे हृदय में जोश की आग होगी तो तुम्हारे आँखों में खुद ही सम्मान का पानी सुसज्जित होगा |
(ग) नीलम मरकत………………………….अंकुर हो निकला !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी जी कहती हैं कि नीला आकाश रूपी नीलम और हरे-भरे पन्ने के समान धरती दो दोने के समान है। जिसमें जीवन रूपी मोती बनती है। इसी दोने के बीच में सभी रंग-रूप बनते हैं। जिसमें उस परमात्मा की चमक और धड़क भी होती है, एवं जिस आकाश के बादल में बिजली बनती है | वहाँ जल भी होती है उस जल का रेत में गिरने से उस रेत में बीज बोने पर उसमें एक छोटा पौधा निकल आता है |
(घ) संसृति…………………...सत्य ढला !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों का नयी छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरे इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो | जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
प्रश्न-(7) कविता के अंतिम छंद में 'सपने-सपने सत्य ढला' का सन्दर्भ देकर पूरी कविता का भावार्थ लिखिए |
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों की नई छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरे इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो | जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
प्रश्न-8 'यह कविता सपनों को सत्य में ढालने का संदेश है' --- इस कथन से आप कहाँ तक सहमत है |
उत्तर-इस कथन में प्रकति की उस स्वरूप की चर्चा हुई है जो सत्य है, यथार्थ है और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मनुष्य की मदद करती है | इस कथन में मनुष्य को सत्य की परख करने की बात कही है। यह कथन पूर्ण रूप से सत्य है। एक मनुष्य को अपने समस्त सपनों को पूरा करने के लिए, एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। बिना लक्ष्य निर्धारित किए, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता |
• व्यस्त बाना - बिखरा या अस्त-व्यस्त वेश
• कारा - बन्धन , कैद
• सजग - सावधान
• उनींदी - नींद से भरी हुई
• व्योम - आकाश
• मलय - पर्वत जहाँ चंदन का वन है
• वात का उपधान - हवा का सहारा
• मृदुल- कोमल
• मरकन्द - फूलों का रस
• नभ-तारक - आकाश का तारा
• पाषाण - पत्थर
• मरकत - पन्ना
• संसृति - सृष्टी, संसार
• पुलकित – प्रसन्न होना
• तारक - तारा
• परिधि- चारों ओर का घेरा
• उर्मी- लहर
• गिरी- पर्वत |
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किंतु कब दीप खीला कब फूल जला ?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि प्रकृति के परिवर्तन शील सच्चाई से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करने की राह चुन सकता है | सभी मनुष्य की आँखों के आँसू में उजलापन होता है | सभी के अपने-अपने सपने होते हैं | उनकी अपनी सच्चाई होती है। जिस प्रकृति ने एक दिये को ज्वाला दिया है, उसी प्रकति ने फूलों में खुशबु भी भरी है। जो दिया खुद जल कर अपनी प्रकाश दूसरों पे न्यौछावर करता है तथा फुल अपनी सुन्दर खुशबु बिखेरता है। वे दोनों एक दूसरे के साथी हैं। दोनों के रास्ते एक हैं भाव भी एक समान है, परंतु दीपक कभी फूल की तरह खिल नहीं सकता और फूल कभी दीपक की तरह जल नहीं सकता सब की अपनी-अपनी सच्चाई होती है। प्रकति का स्वरूप सत्य और यथार्थ है |
वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्झर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका उर्मिल नित करूणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन बदला?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि प्रकृति द्वारा निर्मित वह पर्वत पृथ्वी को चंचल धारा के रूप में बहने वाली सैकड़ों झरनों के रूप में जल को भेंट देता है। जो जल हमेशा से धरती को चारों ओर से घेरे हुए हैं। इन झरनों से बहने वाले जल हमेशा निर्मल और करूणा से भरे हुए होते हैं। महादेवी जी कहती हैं कि ये चारों ओर पृथ्वी को घेरे हुए जल पर्वतों से झरनों के रूप में निकलते हैं और समुद्र में भर जाते हैं किंतु समुद्र और पर्वत ये दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं क्योंकि कभी भी समुद्र पर्वत के हृदय की तरह कठोर नहीं बन सकता और न ही कभी भी पर्वत अपनी कठोरता छोड़कर सागर की तरह अपने शरीर को बदल सकता है पर्वत कभी करुणा नहीं दिखा सकता। न ही सागर कठोर बन सकता है |
नभ तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झुम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला ?
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से हीरे और सोने में तुलना करते हुए कवयित्री कहती हैं कि हीरा आकाश की तारे की तरह टूटकर भी प्रशन्न हो रहा है। लेकिन हीरा तो तभी चमकता है, जब वह चाकू की धार को चूमता है जब उसे चाकू से तराशा जाता है और सोना अंगारों का मधु रस पीकर अर्थात् आग में जलकर केशर की लाल-लाल किरणों के समान झूम रहा है। भले ही दोनों अनमोल हैं। लेकिन क्या कभी हीरा पिघलता है और क्या सोना कभी टूटता है। कभी नहीं, क्योंकि सोना को पिघलाकर ही आभूषण बनाया जाता है और हीरा टूटकर भी सभी टुकडों में अपनी चमक बरकरार रखता है | यही प्रकृति की स्वाभाविक स्वरूप है |
महादेवी वर्मा |
नीलम मरकत के संपुट दो
जिसमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रुप
उसकी आभा स्पदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला !
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि नीला आकाश रूपी नीलम और हरे-भरे पन्ने के समान धरती दो दोने के समान है। जिसमें जीवन रूपी मोती बनती है। इन्हीं दोनों के बीच में सभी रंग-रूप बनते हैं, जिसमें उस परमात्मा की चमक, और धड़क भी होती है एवं जिस आकाश के बादल में बिजली बनती है वहाँ जल भी होती है | उस जल का रेत में गिरने से उस रेत में बीज बोने पर उसमें एक छोटा पौधा निकल आता है |
संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपने साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने सपने में सत्य ढला!
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ सब आँखों के आँसू उजले कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों की नई छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरी इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो, जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
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सब आँखों के आँसू उजले कविता के प्रश्न उत्तर
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए ---
प्रश्न-1 'मोम के बंधन' और 'तितलियों के पर' कथनों में क्या अर्थ निहित है ?
उत्तर- 'मोम के बंधन' और 'तितलियों के पर' कथनों के माध्यम से कवयित्री कहना चाहती हैं कि हे मानव क्या तुम्हें ये मोमबत्ती की तरह कोमल रिस्तों के बंधन बांध लेंगे ? क्या ये सुन्दर नारियाँ तुम्हारे कर्त्तव्य के रास्ते पर बाधा बन जाएँगे ? इसमें महादेवी जी सब मोह माया को त्याग कर मानव को निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं |
प्रश्न-2 संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना क्या व्यंजित करता है।
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, संघर्षों और असफलताओं की कहानी को ठंडी साँस में कहना यह व्यंजित करती है कि हे संघर्षशील मनुष्य तुम अपने जीवन की दर्द भरी कहानी मुझे ठंडी आहें लेकर मत सुनाओ उसे भूल जाओ, जब तुम्हारे हृदय में जोश की आग होगी तो तुम्हारी आँखों में खुद ही सम्मान का पानी सुसज्जित होगा। तेरे संघर्ष से हार भी जीत में बदल जाएगी | तुम इन असफलताओं से निराश न होना तुम्हें तुम्हरे संघर्ष का परिणाम अवश्य मिलेगा |
प्रश्न-3 प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है -- इस भाव को किस उदाहरण द्वारा पुष्ट किया गया है ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, प्रेम में हार भी जीत की निशानी बन जाती है -- इस भाव को दीपक और पतंगें की उदाहरण देकर पुष्ट किया गया है, जैसे पतंगा दीपक की रौशनी में खुद को जला कर न्यौछावर कर देता है और अपने प्रेम के लिए जरा सी राख बनकर भी अमर हो जाता है |
प्रश्न-4 मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने किन-किन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है ?
उत्तर- मार्ग की बाधाओं को कवयित्री ने निम्नलिखित प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया है --- जैसे-हिमालय में कंपन से, आँसूओ के प्रलय आने से आकाश के रोने से या फिर भयंकर तूफ़ान के आ जाने से, संसार के मोह माया में फंस कर अपने कर्तव्य के रास्ते से भटक जाने को भी कवयित्री ने मार्ग का बाधा कहा है। विश्व के रुदन एवं क्रंदन को भूलकर सुख सुविधाओं में लिप्त रहने को मृत्यु से भी बदतर बताया है | सांसारिक सुख सुविधाओं को भी मार्ग में आने वाली बाधा कहा गया है । कवयित्री ने इस कविता के माध्यम से संघर्षरत जीवन को अमृत बताया है। इसमें महादेवी जी ने भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए कोमल बन्धनों से मुक्त अपने लक्ष्य की ओर निरतंर बढ़ने का सन्देश दिया है |
प्रश्न-5 प्रत्येक छंद के अंत में "चिन्ह अपने छोड़ आना अपने लिए कारा बनाना, मृत्यू को उर में बसाना, मृदुल कलियाँ बिछाना" का संदेश देकर मनुष्य के किन गुणों को विस्तार देने की बात कविता में कही है ?
उत्तर- प्रत्येक छंद के अंत में "चिन्ह अपने छोड़ आना अपने लिए कारा बनाना, मृत्यू को उर में बसाना, मृदुल कलियाँ बिछाना" का संदेश देकर मनुष्य के आत्मविश्वास को बढ़ाने और निरन्तर अपने कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहने को प्रेरित करती है, ताकि वह अपने रास्ते में अपना एक छाप छोड़ते हुए चले एवं मोह माया से मुक्त होकर निरन्तर बढ़ते रहे और अंगारों के सेज पर भी कोमल कली बिछा कर आगे का रास्ता तय करना है | मृत्यु के डर को मन में नहीं बसा के रखना है, बल्कि हमें आत्मनिर्भर बनके हमेशा आगे बढ़ते रहना है |
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प्रश्न-6 निम्नलिखित पंक्तियों के आशय स्प्ष्ट कीजिए ---
(क) विश्व का क्रंदन……………………...दूर जाना !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी जी कहती हैं कि क्या तुम इन भौरों की गुनगुन सुनकर सारे संसार का दुख, उनके रोने की चीख को भुला दोगे। क्या ये ओस के बून्द से भीगे फूलों की पंखुड़ियाँ तुम्हें डूबा देंगे। तुम अपनी परछाई को अपने ही लिए जेल ना बना लेना | इस दुनिया की मोह माया में बंधकर अपने रास्ते से भटक नहीं जाना क्योंकि तुम्हें तो अभी बहुत दूर तक जाना है |
(ख) कह न ठंडी………………………….आज पानी !
उत्तर- प्रस्तुत पँक्ति के माध्यम से महादेवी जी कहती हैं कि हे संघर्ष शील मनुष्य तुम अपने जीवन की दर्द भरी कहानी मुझे ठंडी आहें लेकर मत सुनाओ | उसे भूल जाओ, जब तुम्हारे हृदय में जोश की आग होगी तो तुम्हारे आँखों में खुद ही सम्मान का पानी सुसज्जित होगा |
(ग) नीलम मरकत………………………….अंकुर हो निकला !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी जी कहती हैं कि नीला आकाश रूपी नीलम और हरे-भरे पन्ने के समान धरती दो दोने के समान है। जिसमें जीवन रूपी मोती बनती है। इसी दोने के बीच में सभी रंग-रूप बनते हैं। जिसमें उस परमात्मा की चमक और धड़क भी होती है, एवं जिस आकाश के बादल में बिजली बनती है | वहाँ जल भी होती है उस जल का रेत में गिरने से उस रेत में बीज बोने पर उसमें एक छोटा पौधा निकल आता है |
(घ) संसृति…………………...सत्य ढला !
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों का नयी छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरे इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो | जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
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उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति 'सब आँखों के आँसू उजले' कविता से उद्धृत हैं, जो कवयित्री महादेवी वर्मा जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से महादेवी वर्मा जी अपने आप के जीवन के पल को बताते हुए कहती हैं कि सृष्टि में प्रत्येक कदम में तुम मेरी साँसों की नई छाप देख सकते हो | मेरे बनने और मिटने में मेरे इच्छा के पल देख सकते हो। वैसे ही दूसरों के भी इच्छाओं का भी पल देख सकते हो | जैसे संसार में कभी लोगों के जीवन में दुख, तो कभी सुख होते हैं लेकिन प्राण सब को देख कर घुलमिल कर अकेला चलता है। इस संसार में सबके अपने-अपने सत्य हैं |
प्रश्न-8 'यह कविता सपनों को सत्य में ढालने का संदेश है' --- इस कथन से आप कहाँ तक सहमत है |
उत्तर-इस कथन में प्रकति की उस स्वरूप की चर्चा हुई है जो सत्य है, यथार्थ है और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मनुष्य की मदद करती है | इस कथन में मनुष्य को सत्य की परख करने की बात कही है। यह कथन पूर्ण रूप से सत्य है। एक मनुष्य को अपने समस्त सपनों को पूरा करने के लिए, एक लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। बिना लक्ष्य निर्धारित किए, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता |
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सब आँखों के आँसू उजले कविता से संबंधित शब्दार्थ
• कारा - बन्धन , कैद
• सजग - सावधान
• उनींदी - नींद से भरी हुई
• व्योम - आकाश
• मलय - पर्वत जहाँ चंदन का वन है
• वात का उपधान - हवा का सहारा
• मृदुल- कोमल
• मरकन्द - फूलों का रस
• नभ-तारक - आकाश का तारा
• पाषाण - पत्थर
• मरकत - पन्ना
• संसृति - सृष्टी, संसार
• पुलकित – प्रसन्न होना
• तारक - तारा
• परिधि- चारों ओर का घेरा
• उर्मी- लहर
• गिरी- पर्वत |
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